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देहरादून: प्रधानमंत्री के स्वागत में, आमरण अनशन पर बैठे बेरोज़गारों को पुलिस ने जबरन उठाया

4 दिसंबर 2021 को उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ रहे हैं। लेकिन इससे पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए आमरण अनशन पर बैठे बेरोजगार युवाओं को, पुलिस द्वारा बल प्रयोग कर जबरन देहरादून में ही एकता विहार धरना स्थल ले जाकर छोड़ दिया गया।
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2 अक्टूबर को मुख्यमंत्री आवास कूच के दौरान पुलिस द्वारा रोके जाने पर आम सभा करते प्रदर्शनकारी (फोटो- सत्यम कुमार)

“उत्तराखंड प्रगति के स्वर्णिम पथ पर” उत्तराखंड के तमाम अखबारों में आप को ये लाइन देखने को मिल जायेगी, कारण 4 दिसंबर 2021 को उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आने वाले हैं और देहरादून स्थित परेड ग्राउंड से करोड़ों रुपये की योजनाओं की घोषणा करेंगे। लेकिन इस मैदान के बहुत ही नजदीक गांधी पार्क के मुख्य द्वार पर सहायक लेखाकार की परीक्षा रद्द कराने की मांग को लेकर पिछले 6 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे बेरोजगार युवा शायद इस प्रकार की घोषणाओं की हकीकत से जनता को रूबरू करा सकते थे। इसी को देखते हुए शायद 3 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए आमरण अनशन पर बैठे इन बेरोजगार युवाओं को, बल प्रयोग कर जबरन देहरादून में ही एकता विहार धरना स्थल ले जाकर छोड़ दिया गया। ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी प्रकार की कोई समस्या न हो, इन बेरोजगार युवाओं ने जब पुलिस से उनको हटाए जाने का कारण पूछा तो पुलिस का कहना था कि यहाँ कोरोना फैलने का खतरा है इस कारण यहाँ से हटाया जा रहा है।

प्रदर्शनकारियों को जबरन पुलिस वैन में ले जाते हुए (फोटो- सत्यम कुमार)

आप को बता दें कि उत्तराखंड राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून स्थित गांधी पार्क में सहायक लेखाकार परीक्षा रद्द करने की अपनी मांग को लेकर अभ्यर्थी 22 नवंबर से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रशासन की ओर से कोई कार्यवाही न होते देख, धरने पर बैठे इन युवाओं ने 28 नवम्बर से आमरण अनशन की शुरुआत की। अभ्यर्थियों के द्वारा लगातार सरकार को ज्ञापन देकर अपनी समस्याओं से अवगत कराया गया। लेकिन सरकार की ओर से से अभी तक केवल आश्वासन ही मिला है।

प्रदर्शनकारियों को पकड़ कर ले जाती देहरादून पुलिस (फोटो - सत्यम कुमार)

सहायक लेखाकार परीक्षा रद्द करने की मांग क्यों?

आपको बता दें कि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के द्वारा 05 फ़रवरी 2021 को जारी विज्ञापन के अनुसार सहायक समीक्षा अधिकारी (लेखा) के लिए 01 पद, विभिन्न विभागों में लेखाकार के लिए 9 पद, विभिन्न विभागों में सहायक लेखाकार के लिए 469 पद, कैशियर कम सहायक लेखाकार के लिए 01 पद, विभिन्न विभागों के अंतर्गत लेखा परीक्षा के 57 पद और पॉवर ट्रांसमिशन कॉरपोरशन ऑफ उत्तराखंड के कार्यालय सहायक तृतीय(लेखा) के 04 पदों को मिलाकर कुल 541 पदों पर भर्तियां निकाली गईं। जिसकी परीक्षा 12, 13 और 14 सितम्बर 2021 को सम्पन हुई थी। इस परीक्षा में लगभग नौ हजार अभ्यर्थियों ने भाग लिया। लेकिन परीक्षा के समाप्त होने के तुरंत बाद ही अभ्यर्थियों द्वारा आयोग से इस परीक्षा को रद्द करने की मांग की जाने लगी। अभ्यर्थियों का कहना है कि प्रश्न पत्र में गूगल ट्रांसलेटर का इस्तेमाल किया गया जिस कारण प्रश्न का अर्थ बदल रहा था, जैसे पूंजी(Capital) को राजधानी लिखा गया, निकासी का चित्रकला इत्यादि, परीक्षा में 30 से 40 तक न्यूमेरिकल प्रश्न दिए गए, दो घंटे की परीक्षा में इतनी गणनाएं करना मेधावी अभ्यर्थियों के लिए भी बहुत कठिन है और सभी पदों के लिए एक ही प्रश्न पत्र दिया गया। जबकि पद अलग-अलग पेय ग्रेड के हैं और योग्यता भी अलग अलग मांगी गई है। उदाहरण के तौर पर सहायक समीक्षा अधिकारी लेखा के लिये स्नातक और लेखाकार के लिए स्नातकोत्तर की योग्यता मांगी गई है। ऐसे में प्रश्नों का स्तर भी सभी अभ्यर्थियों के लिए चुनौती बनाया गया था।

आमरण अनशन पर बैठे लोगों का क्या कहना है?

“मेरी तीन साल की बेटी है, जो मुझ से दूर होकर बहुत रोती है, एक माँ के लिए अपने बच्चे को रोते हुए देखना बहुत मुश्किल होता है लेकिन फिर भी मैं उसको अपनी माँ के पास छोड़ कर इस आंदोलन में आती हूँ” यह कहना है सहायक लेखाकार परीक्षा रद्द कराने और जल्द ही फिर से परीक्षा कराने की मांग के साथ धरने पर बैठी पूजा थपलियाल का। पूजा थपलियाल आगे बताती हैं कि इस परीक्षा के लिए मैंने अपने मायके में रहकर 2 साल तक तैयारी की है, लेकिन आयोग की गलती के कारण पेपर में होने वाली गलतियों के कारण मेरे द्वारा की गयी सारी मेहनत बेकार जाएगी, मैंने इस परीक्षा के लिये बहुत परेशानियों का सामना किया है। मैं एक और बार इस परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाऊँगी, साथ ही इस परीक्षा के लिये जो पढ़ाई मैंने की है वह किसी और परीक्षा में काम नहीं आने वाली। इसी कारण मैं अपनी तीन साल की बेटी को उसकी नानी के पास छोड़कर रोज इस प्रदर्शन में आती हूँ। क्योंकि मेरे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसलिए मैंने यह तय किया है कि जब तक यह परीक्षा रद्द नहीं हो जाती। तब तक मैं रोज इस प्रदर्शन का हिस्सा बनूँगी। आज पुलिस द्वारा जबरन हमारे आंदोलन को समाप्त करने के लिये जो तानाशाह रवैया इस्तेमाल किया गया है हम उस से डरने बाले नहीं है, हमारा आंदोलन हमारी मांग पूर्ण होने तक जारी रहेगा।

पिछले पांच दिनों से आमरण अनशन पर बैठे धीरज परिहार का कहना है कि मैं पिछले दो सालों से इस परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं और मुझे उम्मीद थी कि इस बार मैं इस परीक्षा में पास हो जाऊँगा। लेकिन इस परीक्षा में होने वाली अनियमितता ने मेरी और मेरे जैसे कितने अभ्यर्थियों की उम्मीद तोड़ दी है। आयोग भी यह मानता है कि 600 में से लगभग 75 प्रश्नों में गलतिया हैं। मैं उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से यह पूछना चाहता हूँ कि क्या आयोग पेपर कराने से पहले इन प्रश्नपत्रों को जाँच नहीं सकता था? क्या इन गलतियों के लिए आयोग जिम्मेदार नहीं है? धीरज परिहार आगे कहते हैं कि 2 अक्टूबर 2021 से हम लोग लगातार सरकार और आयोग के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, हम लोगों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर उनको ज्ञापन सौंपा, मुख्यमंत्री द्वारा हम लोगों को भरोसा दिलाया गया कि वह आयोग से बात करेंगे लेकिन आयोग की ओर से कोई भी कार्यवाही नहीं होते देख 22 नवम्बर 2021 से देहरादून स्थित गांधी पार्क में धरना लगाया गया। सरकार की ओर से फिर भी कोई भी हम लोगों से बात करने नहीं आया। तब हमने 28 नवम्बर से आमरण अनशन शुरू किया। आज मुझे पांच दिन हो चुके हैं अभी भी प्रशासन की ओर से हमारी सुध लेने कोई नहीं आया और आज राज्य में बढ़ती बेरोजगारी छिपाने के लिए जबरन पुलिस के द्वारा बल प्रयोग कर हमारे आंदोलन को ख़त्म करने की जो साज़िश सरकार द्वारा की जा रही है, हम इसको कभी सफल नहीं होने देंगे। अंत में धीरज परिहार कहते हैं कि जब तक सहायक लेखाकार परीक्षा रद्द नहीं हो जाती तब तक हमारी ये भूख हड़ताल जारी रहेगी और हमारे द्वारा कल प्रधानमंत्री के सामने भी प्रदर्शन किया जायेगा।

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इस मुद्दे पर विपक्ष क्या कहता है?

चकराता विधानसभा के विधायक और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह आंदोलन कर रहे अभ्यर्थियों से मिले और वर्तमान राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि किसी परीक्षा में यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो तुरंत उस परीक्षा को रद्द कर जल्द से जल्द दोबारा कराया जाना चाहिए। लेकिन आयोग अपनी मनमानी कर रहा है और राज्य सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है, हमारा एक साथी भूख हड़ताल पर बैठा है लेकिन सरकार की ओर से कोई उसकी सुध लेने नहीं आया, यह इस सरकार के लिए बहुत ही शर्म की बात है। प्रीतम सिंह आगे कहते है कि उत्तराखंड राज्य के युवाओं में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा होने के बावजूद परीक्षाओं में होने वाली इस प्रकार की अनियमितता युवाओं में रोष पैदा करती है, अभ्यर्थीयो की मांग को लेकर हम मुख्यमंत्री से मिलेंगे और यदि राज्य में हमारी सरकार आती है तो इस मामले की जाँच भी होगी।

नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह को अपनी समस्याओं की जानकारी देते प्रदर्शनकारी (फोटो- धीरज परिहार)

लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात रख रहे सहायक लेखाकार परीक्षा के अभ्यर्थियों को बलपूर्वक हटाना पूर्ण रूप से अलोकतांत्रिक है। स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया उत्तराखंड के राज्य सचिव हिमांशु चौहान का कहना है कि हम पूर्ण रूप से, प्रशासन द्वारा किये गये इस कार्य की निंदा करते हैं और साथ ही कहना चाहते हैं कि भाजपा की जो सरकार राज्य में है वह तानाशाह रवैया अपनाती है, पिछले पांच सालों में रोजगार के नाम पर कुछ विज्ञापन निकाल कर दावा करते हैं कि युवाओं को रोजगार मिला है।

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उन्होंने आगे कहा “मै इस सरकार से पूछना चाहता हूं कि आए दिन बेरोजगार युवा रोजगार की मांग को लेकर गांधी पार्क पर प्रदर्शन कर रहे हैं वे कौन हैं? आये दिन परीक्षा में अनियमितता होती है और जब बेरोजगारी की मार से परेशान युवा इस बेरोजगारी व अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करते हैं तो पुलिस के द्वारा प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के नाम पर लोकतंत्र व मुद्दों को छिपाने का काम करती है।

प्रशासन का पक्ष जानने के लिए हमारे द्वारा उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष एस. राजू से बात की गयी। जिसमें उन्होंने बताया कि अभी एक जांच कमेटी प्रश्नपत्रों में हुई गलतियों की जांच कर रही है, अभी तक कमेटी 600 प्रश्नों में से लगभग 45 प्रश्नों में गलतियां पायी हैं, जांच कमेटी की जांच पूर्ण होने पर ही कोई निर्णय लिया जायेगा। अभ्यर्थियों द्वारा परीक्षा रद्द कराने की मांग को लेकर एस. राजू ने कहा कि यह एक बहुत ही कठिन निर्णय है क्योंकि यहाँ दो पक्ष हैं। दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय लिया जायेगा। एस. राजू आगे कहते है कि यदि इस परीक्षा को रद्द किया जाता है तो पुनः परीक्षा कराने में सालों लग सकते हैं।

(लेखक देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार है)

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