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पद्मश्री सम्मानित वैज्ञानिक डॉ मानस बिहारी वर्मा का निधन

"देश और समाज के साम्प्रदायीकरण के खतरे के विरुद्ध चल रहे अभियान में वे चट्टान की तरह खड़े रहे।  मिथिलांचल ने एक बड़े वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता को खो दिया है जो बहुत बड़ी क्षति है।... "
पद्मश्री सम्मानित वैज्ञानिक डॉ मानस बिहारी वर्मा का निधन
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

दरभंगा-पटना: पद्मश्री सम्मान से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ मानस बिहारी वर्मा का बिहार के दरभंगा शहर के लहेरियासराय मुहल्ला स्थित उनके आवास पर मंगलवार को निधन हो गया।

वर्मा के भांजे और वरिष्ठ पत्रकार प्रणव कुमार चौधरी ने बताया कि कल देर रात दिल का दौरा पड़ने के कारण उनके मामा का देहांत दरभंगा स्थित उनके आवास पर हो गया । उन्होंने बताया कि वह 78 साल के थे ।

दरभंगा जिले के घनश्यामपुर प्रखंड के बाउर गांव में जन्में वर्मा वर्ष 2005 में डीआरडीओ से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने पैतृक जिले में रह रहे थे ।

राज्यपाल फागू चैहान ने रक्षा वैज्ञानिक पद्मश्री वर्मा के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।

उन्होंने कहा कि देश के पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमान ‘तेजस’ के निर्माण में उनकी अहम भूमिका थी। वह पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के सहयोगी भी रहे थे। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ से सेवानिवृति के बाद वह समाज सेवा से जुड़े रहे। उनका निधन अत्यंत दुखद है।

राज्यपाल ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति एवं परिजनों को धैर्य, साहस एवं संबल प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी वर्मा के निधन पर गहरी शोक जताया है।

उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना को अधिक मारक बनाने में डॉ वर्मा का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा कि निधन से वैज्ञानिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में अपूरणीय क्षति हुई है।

उन्होंने दिवंगत आत्मा की चिर शान्ति तथा उनके परिजनों को दुःख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।

भाकपा-माले ने देश के जाने-माने वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता मानस बिहारी वर्मा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी है।

अपने शोक बयान में भाकपा-माले ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति कलाम के अनन्य सहयोगी वर्मा जी ने रिटायरमेंट के बाद मिथिलांचल में समाज सेवा के कई नए अध्यायों की शुरुआत की थी।  दरभंगा में महिला इंजीनियरिंग कालेज खुलवाने में उनकी अहम भूमिका थी, जिसके वे कई वर्षों तक डायरेक्टर रहे. कोसी-कमला के बाढ़ पीड़ित इलाके में उन्होंने कई सफल अभियान चलाए और नदियों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक बनाया। दलित-गरीबों के बच्चों के बीच सुदूर ग्रामीण इलाके में शिक्षा अभियान और वैज्ञानिक सोच-समझ के अभियान की नींव डाली।

माले ने अपने बयान में कहा "देश और समाज के साम्प्रदायीकरण के खतरे के विरुद्ध चल रहे अभियान में वे चट्टान की तरह खड़े रहे।  मिथिलांचल ने एक बड़े वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता को खो दिया है जो बहुत बड़ी क्षति है। इस दौर में उनकी बड़ी जरूरत थी।  विगत विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने एक बुद्धिजीवी के बतौर देश और समाज को बचाने के लिये भाजपा को हराने की मुहिम में भी शामिल हुए।  उन्होंने भाकपा माले के कई अभियानों को मदद की और अक्सर अपना सलाह-सुझाव देते रहते थे."

( समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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