आम-जन का दर्द: अर्थव्यवस्था भंवर में है और मोदी सरकार को कुछ सूझ नहीं रहा
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) द्वारा 29 नवंबर, 2019 को जारी किये गए ताजा आंकड़ों के अनुसार, आर्थिक विकास की दर घटकर स्थायी मूल्य सूचकांक के हिसाब से 2019-20 की दूसरी तिमाही में (अप्रैल-सितम्बर) मात्र 4.5% रह गई है, जो लगातार छठी तिमाही में गिरावट का रुख दर्शा रहा है। यहां तक कि जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस मुद्दे पर अपनी सरकार के बचाव में सामने आकर इस बात का दावा किया है कि इसे अभी भी पूर्ण विकसित मंदी नहीं कह सकते और इसे काबू में कर लिया जाएगा, तो इस बात का देश के लोगों के लिए कोई अर्थ नहीं रह गया है।
घटते विकास की दर का अर्थ है, असंख्य भारतीय जन के लिए और खासकर उन लोगों को जो गरीबी की रेखा के आस-पास या उससे भी नीचे जी रहे हैं के पहले से ही कष्ट-साध्य जीवन में और इजाफ़ा करना है, क्योंकि इससे नौकरियों के अवसरों कमी, आमदनी में गिरावट के रूप में परिलक्षित हो रहा है, और एक झटके के रूप में इसमें और भी इजाफ़ा होने जा रहा है।
यदि आप इसे और बारीकी से देखें तो चीजें कहीं अधिक अधिक डरावनी हैं। कृषि, वानिकी और मछली पालन के क्षेत्र में, जहाँ पर सबसे अधिक रोजगार पैदा करने की गुंजाईश होती है, में मात्र 2.1% की दर से बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। विनिर्माण के क्षेत्र में जहाँ पिछली तिमाही में सिर्फ 0.6% की दर से वृद्धि दर्ज की गई थी, उसमें वास्तव में इस समय 1% की गिरावट देखने को मिल रही है। निर्माण के क्षेत्र में सिर्फ 3.3% की तेजी आई है और व्यापार, होटल, परिवहन आदि के क्षेत्र में 3.8% की वृद्धि हुई है। एकमात्र क्षेत्र जहाँ पर एक ठीक-ठाक बढ़त देखने को मिल रही है, वह पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, रक्षा और अन्य सेवा क्षेत्र में है, जो 11.6% की दर के साथ आगे बढ़े हैं।
इस बीच, अबाध गति से लगातार बढ़ते बेरोजगार लोगों की संख्या ने संकट और और भी गहरा दिया है। यह चलन मौजूदा मंदी के पहले से जारी है क्योंकि इसकी जडें काफी गहरे प्रणालीगत दोषों की अभिव्यक्ति है। लेकिन मंदी ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है, और सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक, मंदी के चलते अक्टूबर में बेरोजगारी दर बढ़कर 8.5% हो गई थी, जो एक साल पहले 6.7% के स्तर पर थी। [नीचे चार्ट देखें]
कल एक और बुरी खबर सुनने को मिली है, जिसे सुनकर कोई अचंभा नहीं महसूस होता। वाणिज्य मंत्रालय ने आठ उद्योगों के आँकड़े जारी किये हैं, जिन्हें कोर सेक्टर के रूप में जाना जाता है। ये हैं कोयला, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली के क्षेत्र। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दर्शाया गया है कि साल दर साल विकास दर गिरकर इस साल अक्टूबर में -5.8% पर पहुंच गई है। सितंबर में यह गिरावट -5.1% के स्तर पर थी। जुलाई में एक छोटे से उछाल को अगर छोड़ दें तो, इस साल मार्च से ही कोर सेक्टर के उत्पादन में गिरावट का दौर जारी है।
वास्तव में, ये चिह्नित कोर सेक्टर, गिरते हुए औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक (IIP) के केंद्र में है, जो देश में औद्योगिक उत्पादन में हो रहे बदलावों को दर्शाने का काम करता है। MOSPI द्वारा जारी किये गए आईआईपी के आँकड़े इस साल के सितंबर तक के उपलब्ध हैं, जिसमें इस साल की जुलाई से लगातार गिरावट देखी जा सकती है। अगस्त में जहाँ इसमें 1.4% की गिरावट देखने को मिली थी, वहीँ सितंबर में आईआईपी में साल दर साल के आधार पर 4.3% की गिरावट आई है।
एक बार फिर से महीन अध्ययन करें तो एक स्याह तस्वीर उजागर होती है। सितंबर में जहाँ विनिर्माण घटक में 3.9% की गिरावट देखने को मिली वहीँ खनन क्षेत्र में 8.5% की जबर्दस्त गिरावट दर्ज की गई। खास तौर पर ढलाई की जाने वाले धातु के उत्पादों (मशीनरी और उपकरणों को छोड़कर) के निर्माण में 22%, रबर और प्लास्टिक उत्पादों में 12.6%, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पादों में 10.6% और मशीनरी एवं उपकरण (nec) के क्षेत्र में 18.1% की गिरावट के साथ दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। उम्मीद है कि अक्टूबर आईआईपी के परिणाम भी जल्द ही जारी किये जायेंगे और नहीं लगता कि इस ढलान की ओर सरपट रफ़्तार से भाग रही अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार के सुधार की गुंजाईश वाले आँकड़े निकल कर सामने आयें।
ये सभी आँकड़े चीख-चीख कर साबित कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था गहरी मंदी की चपेट में है, जबकि सरकार द्वारा इसे नकारने और झूठ फ़ैलाने का काम लगातार जारी है। मोदी सरकार के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के बेवकूफी भरे लक्ष्य को हासिल करने के ख्वाब को इस कड़वे हक़ीकत ने मटियामेट कर दिया है। वास्तविकता यह है कि इस मंदी का इस्तेमाल कॉरपोरेट लॉबी द्वारा इस लाल-बुझक्कड़ सरकार से अधिक से अधिक रियायतें झटकने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसको अभी भी यही यकीन है कि यदि कॉर्पोरेट को मदद जारी रखी जाये तो एक न एक दिन अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर दौड़ पड़ेगी।
इस विचित्र किस्म की अंधी हठधर्मिता, जिसके तहत मोदी सरकार कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती करने, क्षतिग्रस्त पड़े निर्माण के क्षेत्र में भारी धनराशि की पेशकश करने, सुरक्षात्मक श्रम कानूनों को ध्वस्त करने ताकि नौकरी पर रखने और निकालने की शर्तों को आसान बना दिया जाये, और कल्याणकारी कार्यक्रमों पर खुद के खर्च में कटौती करने जैसे उपायों के खिलाफ आज चिली और लेबनान सहित कई अन्य देशों की सड़कों पर लड़ाई लड़ी जा रही है।
यह ‘आ बैल मुझे मार’ वाला एक शानदार नुस्खा है, जिसे इस साल मई में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल कर चुकी बीजेपी को, हालिया चुनावों में उलटफेर के रूप में भुगतना पड़ा है। यह इस बात का प्रमाण है कि सरकार को मिलने वाले जन समर्थन में किस प्रकार से गिरावट का दौर जारी है।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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