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जन विज्ञान कांग्रेस : धर्मान्धता को ख़त्म करने के लिए वैज्ञानिक चेतना ज़रूरी

भोपाल में आयोजित चार दिवसीय 17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस के समापन पर संविधान विशेषज्ञ फ़ैज़ान मुस्तफ़ा, शिक्षाविद प्रो. आर. रामानुजम, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सहित कई वक्ताओं ने मौजूदा समय में जन विज्ञान आंदोलन को महत्वपूर्ण बताया।
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भोपाल में आयोजित चार दिवसीय 17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस के अंतिम दिन गुरुवार को मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के विकास पर चर्चा की गई। इसके बाद समापन सत्र में नाल्सर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद के कुलपति एवं संविधान विशेषज्ञ प्रो. फैजान मुस्तफा, शिक्षाविद प्रो. आर. रामानुजम, आयशर पुणे के वैज्ञानिक प्रो. सत्यजीत रथ, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोनाझारिया मिंज और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने वक्तव्य दिए।

आशा मिश्रा

कार्यक्रम की संयोजक आशा मिश्रा ने पिछले 4 दिनों में हुई चर्चा को संक्षिप्त में बताया कि हमने देश एवं प्रदेश की वर्तमान नीतियों एवं कानूनों को समझने की कोशिश की। उन्हें समझने के लिए 9 विषयों पर विमर्श किया और 22 कार्यशालाओं का आयोजन किया। हम जन विज्ञान के माध्यम से जन विरोधी नीतियों एवं व्यवहारों के खिलाफ वैज्ञानिक चेतना के साथ जन आंदोलन करेंगे, ताकि भारत की विरासत और विविधता को बचाते हुए विकास कर सकें।

इस अवसर पर विज्ञान एवं संविधान से जुड़ी विभिन्न पुस्तकों का विमोचन किया गया। अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क की नई कार्यकारिणी की घोषणा की गई। इस अवसर पर एआईपीएसएन के संस्थापक न्यूक्लियर इंजीनियर एम.पी परमेश्वरन का रिकॉर्डेड वक्तव्य सुनाया गया।

वर्तमान अध्यक्ष डॉ. सब्यसाची चटर्जी ने नई कार्यकारिणी का परिचय कराया। अखिल भारतीय जन विज्ञान नेटवर्क की नई कार्यकारिणी में अध्यक्ष के रूप में आयसर पुणे के वैज्ञानिक प्रो. सत्यजीत रथ को नियुक्त किया गया।

प्रो. सत्यजीत रथ
मध्यप्रदेश भारत ज्ञान विज्ञान समिति की आशा मिश्रा को महासचिव एवं मध्यप्रदेश विज्ञान सभा के एस.आर. आजाद को कोषाध्यक्ष बनाया गया है। कार्यकारिणी में कुल 31 सदस्य हैं और 11 लोगों को विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया है। वैज्ञानिक चेतना के लिए समाज में काम करने के संकल्प के साथ आयोजन का समापन किया गया। समापन सत्र का संचालन एस.आर. आजाद ने किया।

फ़ैज़ान मुस्तफ़ा

कार्यक्रम में फ़ैज़ान मुस्तफ़ा ने कहा कि कानून का मतलब न्याय होता है, लेकिन कानून के केन्द्र में शक्ति हो गई है। आज स्थिति यह है कि लोगों के न्याय क्या है, बताना मुश्किल हो गया है। पर हमें अन्याय भी नहीं दिख रहा है। किसी के साथ हो रहे अन्याय को देखकर हम विचलित क्यों नहीं हो रहे हैं? यदि ऐसा नहीं हो रहा है, तो मनुष्यता पर प्रश्नचिह्न लगता है। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी दी हुई है। इसका साफ मतलब है कि व्यक्ति के दिल में जो कुछ भी है, उसे बोलने दिया जाए। जो समाज बोलने से रोकता है, वह आगे नहीं बढ़ सकता। जनता की सहमति से सरकार है, तो जनता की भागीदारी सरकार की नीतियों पर बोलकर ही हो सकती है। यह प्रशंसा के रूप में भी हो सकता है या फिर आलोचना के रूप में। उन्होंने कहा कि देश में वैज्ञानिक चेतना के बिना देश को बेहतर नहीं बनाया जा सकता। देश में नफरती भाषणों के खिलाफ कड़े कानून बनाने की जरूरत है। आज देश में धर्म, सत्ता और कार्पोरेट का गठजोड़ है, यदि हम इसे समझ जाएंगे, तो संभव है कि कुछ बेहतर कर पाएं।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि आज देश में जो धर्मान्धता फैली है, उसे वैज्ञानिक चेतना से खत्म किया जा सकता है। वैज्ञानिक चेतना के लिए जन विज्ञान आंदोलन से जुड़े लोगों को सामूहिक रूप से आगे आकर काम करना होगा। शिक्षाविद प्रो. आर. रामानुजम ने कहा कि आज जनता डेटा बन गई है। हमें तकनीक के सही इस्तेमाल के लिए लोगों को जागरूक करना होगा। सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोनाझारिया मिंज ने कहा कि समाज के उन आयामों की पहचान की जाए, जहां वैज्ञानिक चेतना में कमी है और फिर हमें उन क्षेत्रों में काम करने की जरूरत है।

संसाधनों के बावजूद पिछड़ा हुआ है मध्यप्रदेश

17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस में मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के विकास पर बात करते हुए वक्ताओं ने कहा कि मध्यप्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है, लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार में प्रदेश पिछड़ा हुआ है। विकास संवाद के निदेशक सचिन जैन ने कहा कि सामाजिक विकास के संकेतकों में मध्यप्रदेश पिछड़ा हुआ है। एक ओर केरल में जहां शिशु मृत्यु दर 6 है, वहीं मध्यप्रदेश में इसकी संख्या 43 है। स्वास्थ्य की स्थिति देखा जाए, तो प्रदेश में 14 हजार से ज्यादा उप स्वास्थ्य केन्द्र चाहिए, लेकिन पिछले 15 सालों से 4 हजार की कमी बनी हुई है। एनएफएचएस के नए आंकड़ों में देखा जाए तो गांवों में स्वच्छ ईंधन का उपयोग मात्र 23 फीसदी घरों में है।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र कोठारी ने कहा कि मध्यप्रदेश की प्रति व्यक्ति आय देश की तुलना में दो तिहाई ही है। प्राकृतिक संसाधन के बावजूद कुपोषण, बेरोजगारी और अन्य समस्याएं हैं। मध्यप्रदेश के मानव विकास पर काम करने वाले वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता संदीप दीक्षित ने कहा कि प्रदेश के 95 फीसदी नेतृत्व यहां की संभावनाओं को छूते ही नहीं है। असीम संभावनाओं के बावजूद हम आगे नहीं बढ़ पाए। राजनीतिक नेतृत्व प्रदेश के बजाय व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए संसाधनों का दोहन कर रहा है।

किसान आंदोलन के नेता बादल सरोज ने कहा कि मध्यप्रदेश के संसाधनों को बचाने में यहां के जन आंदोलनों की बड़ी भूमिका रही है, यदि ऐसा नहीं होता, तो विकास के नाम पर जल, जंगल और जमीन को सरकार बेच देती। यह लड़ाई अभी भी जारी है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शरदचन्द्र बेहार ने कहा कि प्रदेश में पंचायत राज को मजबूत करने के बजाय खत्म करने का प्रयास किया जाता रहा है, ऐसे में विकेंद्रीकृत विकास की संभावनाएं खत्म होती है। समर्थन संस्था के निदेशक डॉ. योगेश कुमार ने कहा कि पंचायतों की ताकत कम करने से शक्तियां केंद्रीकृत हो जाती है, जिसकी वजह ग्राम सरकार की अवधारणा खत्म हो जाती है। यह जरूरी है कि पंचायतों एवं राज्य स्तर के संस्थानों में शक्ति का सही तरीके से बंटवारा किया जाए और हमें पंचायत राज को मजबूत करने का प्रयास करना होगा।

जन विज्ञान कांग्रेस में विभिन्न विषयों पर हुआ विमर्श

17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस में पर्यावरण, कृषि, आजीविका, लैंगिक समानता, संस्कृति, आत्मनिर्भरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, वैज्ञानिक चेतना जैसे विषयों पर सेमिनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। सेमिनार में देश के विभिन्न राज्यों से आए शिक्षाविद, पर्यावरणविद और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विश्लेषणात्मक वक्तव्य दिए।

प्रो. सोनाझारिया मिंज

सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सोनाझारिया मिंज ने कहा कि हर गांव तक प्राथमिक स्कूल की पहुंच हो गई है, भले ही वहां कैसी भी शिक्षा हो, लेकिन आज भी जरूरत के मुताबिक उच्च शिक्षण संस्थान नहीं है। शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण, समानता और समावेशीकरण के लक्ष्यों को पाया जा सकता है, लेकिन उच्च शिक्षा का फंक्शनल पार्ट दयनीय स्थिति में है। स्कूली शिक्षा में भी क्लासरूम से भेदभाव हटाने के लिए हमें प्रोग्रेसिव स्कूल की जरूरत है, जहां भाषा, पहनावा, लिंग एवं रंग के आधार पर भेदभाव न हो।

शिमला से आए सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ओ.पी. भूरेटा ने कहा कि हिमालयन जोन बहुत ही संवेदनशील है। हम वहां जो भी विकास की पहल कर रहे हैं, उसका पूरे पर्यावरण पर असर पड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व तक के हिमालयन राज्यों में विकास की योजनाएं बनाते समय हमें यह देखना होगा कि इसका असर पूरे देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के पर्यावरण पर पड़ता है। आज जो भी आपदाएं आती हैं, वे प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव जनित आपदाएं हैं। हमें इस क्षेत्र में बड़ी योजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए और आपदाओं के प्रति लोगों में जागरूकता, वनीकरण एवं सही नीति के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव के चेयर प्रो. एन. रघुराम ने कहा कि कृषि क्षेत्र की विदेशी निजी कंपनियों एवं ईस्ट इंडिया कंपनी में कोई अंतर नहीं है। ये सारी कंपनियां किसानों को लूटकर यहां की पूंजी विदेश ले जा रही है। आज कृषि क्षेत्र के कई समझौते पूंजीवादी पूंजी को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, इसका किसानों को कोई फायदा नहीं है। आश्चर्यजनक बात यह है कि देश में आजादी के बाद उत्पादन बढ़ा है, लेकिन भुखमरी खत्म नहीं हुई। यह वितरण प्रणाली के असफल होने के कारण है।

कोरोना काल में आजीविका को लेकर देशव्यापी संकट आया था, जिसमें रिवर्स माइग्रेशन में गांव लौटे मजदूरों के लिए गांव में कोई आजीविका नहीं थी। कृषि में भी रोजगार सीमित है। इस मसले पर पर्यावरणविद् एवं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डी. रघुनंदन ने एक अध्ययन की रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में गैर कृषि रोजगार यानी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ाने की जरूरत है ताकि टिकाऊ आजीविका की ओर हम बढ़ सकें।

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. अनिता रामपाल ने कहा कि नईशिक्षा नीति में कई खामियां हैं, जो एक बड़े वर्ग को शिक्षा से वंचित कर सकती है। शिक्षा नीति बनाने और उसके क्रियान्वयन में बाजार का हस्तक्षेप है। भारत के शिक्षा मॉडल में बाजारीकरण की झलक मिलती है। सरकारी स्कूलों की इतनी श्रेणियां बना दी गई हैं, जो अपने आप में भेदभाव को दर्शाता है। इसी तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बात करते हुए साइंस डॉक्युमेंट्री निर्माता एवं वैज्ञानिक गौहर रजा ने कहा कि जरूरी नहीं कि जिन तक विज्ञान पहुंचे उन तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी पहुंचे। यह हमारी बड़ी जवाबदेही है कि इस वर्ग तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पहुंचाया जाए।

स्वास्थ्य पर बात करते हुए वरिष्ठ स्वास्थ्य कार्यकर्ता समीर गर्ग ने कहा कि आयुष्मान कार्ड जैसी योजना से निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को लाभ हो रहा है और सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा कमजोर हो रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सत्यजीत रथ ने कहा कि महामारी या सामान्य समय में भी हम तक दवाइयों के पहुंचने के साथ-साथ इसकी जानकारियों का भी पहुंचना जरूरी है। जानकारी के अभाव में हम उन बातों को नहीं जान पाते, जिनकी वजह से हमारा स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।

अंतिम दिन गुरुवार को शाम के समय विभिन्न राज्यों से आए प्रतिभागियों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं। ‘‘हस्ती मिटती नहीं हमारी’’ विषय पर आजादी के 75वें साल में भारतीय संस्कृति की विविधता पर भी चर्चा की गई। “भारत का विचार’’ को लेकर विभिन्न महापुरुषों एवं वैज्ञानिकों के वक्तव्य के साथ वरिष्ठ चित्रकार मनोज कुलकर्णी की पेंटिंग प्रदर्शनी लगाई गई थी। कार्यक्रम स्थल पर विभिन्न राज्यों के पुस्तकें एवं उत्पादों के स्टॉल लगाए गए थे। आंध्रप्रदेश के प्रतिभागियों ने अंधविश्वास एवं भ्रांतियों की वैज्ञानिक व्याख्या के लिए लाइव डेमो का स्टॉल लगाया गया था।

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