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कांग्रेस की नई वर्किंग कमेटी में पायलट और थरूर, क्या संदेश देना चाहते हैं खड़गे?

राजस्थान विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बहुत गुणा-भाग लगाकर वर्किंग कमेटी का ऐलान कर दिया है जिसमें सचिन पायलट और थरूर के नाम की काफी चर्चा हो रही है।
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फाइल फ़ोटो। फेसबुक

इस साल के आख़िर में राजस्थान विधानसभा चुनाव होने हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव। ऐसे में मुख्य विपक्षी दल भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस सियासी बिसात बिछाने में लगी है। अब इस बिसात में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता थी राजस्थान में दो बड़े नेताओं सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच बग़ावत।

इस बग़ावत से लड़ने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक तीर से कई निशाने लगाने की कोशिश की है। यानी कांग्रेस वर्किंग कमेटी में सचिन पायलट का नाम डालकर खड़गे ने सचिन को केंद्र की राजनीति में एंट्री तो दी ही है, साथ ही राजस्थान में अशोक गहलोत के सर से कुछ दबाव भी कम कर दिया है।

साल 2018 में जब कांग्रेस राजस्थान की सत्ता में आई तभी से अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जंग छिड़ चुकी थी, सचिन पायलट के समर्थक कहते रहे कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए, लेकिन जीत हुई राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत की। हालांकि सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री चुना गया था, लेकिन बढ़ती लोकप्रियता के कारण पायलट और उनके समर्थकों को ये उपाधि स्वीकार नहीं थी। यही कारण है कि 2020 में पायलट ने पार्टी में विद्रोह कर दिया, इसके बाद कहा जाने लगा कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार गिर जाएगी और सचिन पायलट भाजपा में शामिल हो जाएंगे।

लेकिन ऐसा हुआ नहीं। और आख़िरकार पार्टी ने एक्शन लिया फिर सचिन पायलट से उपमुख्यमंत्री का पद भी छीन लिया गया। इसके बाद भी सचिन पायलट लगातार अशोक गहलोत के ख़िलाफ मुखर रहे और कभी करप्शन का मुद्दा उठाकर तो कभी सरकार पर लापरवाहियों का आरोप लगाकर अशोक गहलोत को घेरते रहे हैं।

अब क्योंकि राज्य में सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ही नेताओं के समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है, ऐसे में राजस्थान चुनाव से पहले दोनों के बीच बगावत शांत कराना बेहद ज़रूरी था।

इसी साल जुलाई में सचिन पायलट ने कहा था कि उन्होंने खड़गे की सलाह पर गहलोत के साथ अपने मतभेदों को सुलझाने का फैसला किया है। अब कांग्रेस नेतृत्व भी पायलट और गहलोत के बीच सब कुछ ठीक होने का दावा कर रहा है। और अब राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले सचिन पायलट को कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल करने का फैसला उन्हें खुश करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

पायलट को वर्किंग कमेटी में शामिल किए जाने पर वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि "पिछले कई महीनों से मल्लिकार्जुन खड़गे राजस्थान में शांति स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने धुर विरोधी सचिन पायलट को राज्य में पार्टी प्रमुख या उप मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार नहीं थे। जबकि ऐसा कहा जाता है कि सचिन पायलट राजस्थान में अपने लिए एक बड़ी भूमिका चाहते हैं, वहीं खड़गे राजस्थान से बाहर उनकी भूमिका पर विचार करते रहे हैं।'’

खैर.. सचिन पायलट आलाकमान के इस फैसले से ख़ुश नज़र आ रहे हैं जिसका अंदाजा आप सचिन पायलट के ट्वीट से लगा सकते हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि ''कांग्रेस वर्किंग कमेटी का सदस्य बनाए जाने पर मैं आदरणीय कांग्रेस अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खरगे जी,सीपीपी चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी जी एवं पूर्व अध्यक्ष श्री राहुल गांधी जी का आभार व्यक्त करता हूं। हम सभी कांग्रेस की रीति-नीति व विचारधारा को सशक्त करते हुए उसे और अधिक मजबूती से जन-जन तक पहुंचाएंगे।"

यहां एक बात जो राजनीति में बेहद अहम होती है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने सचिन पायलट को वर्किंग कमेटी में शामिल कर ये बता दिया है कि भले ही उन्हें मुख्यमंत्री पद न मिला हो लेकिन कांग्रेस को उनकी परवाह है।

कांग्रेस वर्किंग कमिटी के तुरंत बाद राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक में सचिन पायलट और अशोक गहलोत साथ बैठे दिखे जिसे कन्हैया कुमार ने ट्वीट कर बताया।

अब आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं उस एक और महत्वपूर्ण नाम की जो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ उतरे थे, यानी शशि थरूर।

शशि थरूर को भी कांग्रेस वर्किंग कमेटी में शामिल किया गया है जो कांग्रेस में अच्छा संतुलन माना जा रहा है।

दरअसल शशि थरूर वो नेता हैं जो जी-23 में शामिल थे। जी-23 वही ग्रुप है, जिसके 23 वरिष्ठ नेताओं ने अगस्त 2020 में पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक खत लिखा था, जिसमें मांग की थी कि पार्टी को सक्रिय नेतृत्व मिले और संगठन को मजबूत किया जाए। इन नेताओं को कांग्रेस बागियों का ग्रुप जी-23 कहा गया। खड़गे ने बगावती रुख अपनाने वाले कुछ कांग्रेस नेताओं को भी वर्किंग कमेटी में जगह दी है, जिनमें शशि थरूर, मुकुल वासनिक और आनंद शर्मा शामिल हैं। वहीं जी-23 में शामिल रहे वीरप्पा मोइली और मनीष तिवारी को स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस ने ऐसा करके जी-23 गुट का मुद्दा दबा दिया है।

इसके अलावा शशि थरूर का शामिल होना इस बड़े सियासी संदेश की ओर इशारा है कि पार्टी के अंदर सारे काम लोकतंत्र के दायरे में ही होते हैं।

शशि थरूर और अशोक गहलोत के अलावा पार्टी ने वर्किंग कमेटी में अधिवेशन में किए वादों को भी ध्यान रखा है।

इसी साल फ़रवरी में कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन के दौरान पार्टी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों की संख्या 23 से बढ़ाकर 35 करने का फ़ैसला लिया था। इसके अलावा पार्टी अध्यक्ष, कांग्रेस संसदीय समिति अध्यक्ष, प्रधानमंत्री या पूर्व प्रधानमंत्री, लोकसभा-राज्यसभा में कांग्रेस के नेता और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष को भी समिति का हिस्सा बनाने की बात हुई थी।

हालांकि, फ़ैसले लेने वाली मुख्य इकाई में वरिष्ठ नेताओं को तरजीह दी गई है। क्योंकि बीते साल उदयपुर चिंतन शिविर में पार्टी ने ये महसूस किया कि वर्किंग कमेटी से लेकर ब्लॉक समितियों तक 50 फ़ीसदी सदस्यों की संख्या 50 साल से कम उम्र की होनी चाहिए।

हालांकि, रायपुर में इस नियम में थोड़े बदलाव किए गए, पार्टी संविधान में ये प्रावधान किया गया कि 35 सदस्यों में से 50 फ़ीसदी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग,अल्पसंख्यक, युवा और महिला होंगे।

अब कांग्रेस की मुख्य इकाई में फेरबदल आदिवासी,पिछड़े और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व को दिखाता है और कुछ नेता शायद इसी गुणा-भाग के आधार पर जगह पाने में कामयाब रहे हैं। 39 सदस्यीय निकाय में, केवल पायलट, गोगोई और पटेल ही 50 वर्ष से कम उम्र के हैं।

खड़गे ने कई नेताओं को परमानेंट इनवाइटी के तौर पर भी समिति में जगह दी है। जिनमें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एम वीरप्पा मोइली, लोकसभा सांसद मनीष तिवारी, त्रिपुरा के सुदीप रॉय बरमन, केरल के रमेश चेन्नीथाला, कर्नाटक के बीके हरिप्रसाद, हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, पूर्व गोवा कांग्रेस चीफ़ गिरिश चोडनकर, ब्यूरोक्रैट से राजनेता बने के राजू, मुंबई के पूर्व मेयर चंद्रकांत हंडोर, मध्य प्रदेश के मीनाक्षी नटराजन, राज्यसभा सांसद फूलो देवी नेताम, अविभाजित आंध्र प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम दामोदर राजा नरसिम्हा और मोहन प्रकाश भी हैं।

हालांकि कांग्रेस शासित किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को वर्किंग कमेटी में जगह नहीं दी गई है लेकिन मुख्यमंत्री अहम बैठकों में आमतौर पर आमंत्रित होते हैं।

वैसे कुछ महत्वपूर्ण नामों के अलावा कांग्रेस की नई वर्किंग कमेटी में पुराने चेहरे ही हैं, जैसे सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, मनमोहन सिंह, एके एंटनी, अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक,पी. चिदंबरम, आनंद शर्मा, तारिक़ अनवर, अजय माकन, कुमारी शैलजा, अभिषेक सिंघवी, गैखंगम, लाल थानवाला और रणदीप सिंह सुरजेवाला शामिल हैं।

आनंद शर्मा, वीरप्पा मोइली, शशि थरूर और मनीष तिवारी कांग्रेस के उस 23 नेताओं के समूह का भी हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने 2020 में सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी में बड़े बदलावों की मांग की थी।

हालांकि, वर्किंग कमिटी में राजस्थान के नेता रघुवीर सिंह मीणा, उत्तर प्रदेश के नेता प्रमोद तिवारी और पीएल पूनिया का नाम न होना चौंकाता है।

फिलहाल युवाओं और वरिष्ठों की जुगलबंदी पार्टी को कहां तक ले जाएगी, ये देखना महत्वपूर्ण होगा। लेकिन ये कहना ग़लत नहीं होगा कि खड़गे ने राजस्थान में पार्टी के भीतर के डेंट और जी-23 जैसे बाग़ी ग्रुप को बहुत हद तक ख़त्म करने में सफलता पाई है।

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