Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

राजनीति: 2024 के लिए विपक्ष को ठोस रोड-मैप पेश करना होगा

विभाजनकारी एजेंडे के ख़िलाफ़ एकता, भाईचारे का लोकतांत्रिक माहौल बनाना ज़रूरी है, पर वही पर्याप्त नहीं है।
Rahul
फ़ोटो ट्विटर से साभार

अगले महीने शुरू हो रही विधानसभा चुनावों की श्रृंखला के साथ 2024 के आम चुनाव के लिए count-down शुरू हो गया है। हालांकि लोकसभा चुनाव के लिए 15 महीने के आसपास बचे हैं, लेकिन पक्ष-विपक्ष समेत सारे stake-holders के लिए इस चुनाव में दांव इतना बड़ा है कि अभी से सबकी व्यूह रचना के केंद्र में वही है।

भले ही भारत जोड़ो यात्रा का वृहत्तर परिप्रेक्ष्य हो और कांग्रेस यह दावा करे कि यह चुनावी नहीं है, पर उसके समर्थक भी अपनी "तपस्या" की 2024 में विजयी चुनावी परिणति अवश्य देखना चाहेंगे।

उधर बताया जा रहा है कि यात्रा को मिल रहे response और इसकी राजनीतिक संभावनाओं से चिंतित मोदी जी ने मंत्रियों से अपने मंत्रालय से इतर विषयों पर सरकार की "उपलब्धियों और कल्याणकारी योजनाओं" को लेकर लगातार प्रेस वार्ता के निर्देश दिए हैं, वे स्वयं G 20 और "विश्व जोड़ो" से भारत जोड़ो का मुकाबला करने वाले हैं

अमित शाह की त्रिपुरा में राहुल गांधी को, जिन्हें अब भी वह राहुल बाबा कहना जारी रखे हुए हैं, " कान खोल कर सुन लो राहुल बाबा" शैली में ललकार कि 1 जनवरी, 24 से अयोध्या राम-मंदिर में पूजा शुरू हो जाएगी, भले ही तात्कालिक तौर पर त्रिपुरा व अन्य राज्यों में होने जा रहे चुनावों से प्रेरित हो, पर अंततः तो वह 2024 के लिए एजेंडा सेटिंग ही है।

बहरहाल, मोदी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि post-गोधरा गुजरात चुनाव या 2019 के post- पुलवामा आम चुनाव जैसे असामान्य चुनावों को छोड़ दिया जाय तो केवल विभाजनकारी एजेंडा के आधार पर (और वह भी राम मंदिर के पुराने मुद्दे पर जिसकी चुनावी संभावनाओं का पहले ही भरपूर दोहन किया जा चुका है ) भविष्य के चुनाव, सर्वोपरि 2024 नहीं जीता जा सकता, वह भी तब जब जनता के जीवन के ज्वलंत सवाल सतह पर आ चुके हैं और विपक्षी एकता का index बढ़ने के आसार हैं। ऊपर से भारत जोड़ो यात्रा जैसे कार्यक्रम और लोकतांत्रिक आंदोलन आने वाले दिनों में नफरती अभियान की धार कुंद करते रहेंगे।

यह अनायास नहीं है कि post-गोधरा ध्रुवीकरण को sustain करने, उसकी धार को बरकरार रखने और जीतों का सिलसिला जारी रखने के लिए गुजरात में भी "Vibrant गुजरात " जैसे इवेंट साल-दर-साल करने पड़े थे और 2014 के आम चुनाव में दो करोड़ रोजगार, 15 लाख हर खाते में, चीन की तरह भारत को मैनुफैक्चरिंग हब बनाने जैसे सपने और "गुजरात मॉडल " को sell करना पड़ा था। 

इसीलिए संघ-भाजपा दुहरी रणनीति पर काम कर रहे हैं- ध्रुवीकरण के लिए वे राम मंदिर और धारा 370, CAA जैसी पुरानी "उपलब्धियों" की याद दिलाते रहेंगे, उससे बढ़कर Uniform Civil Code और जनसंख्या नियंत्रण, काशी, मथुरा जैसे नए मुद्दों को हवा देंगे जिनमें एक element of novelty है, जगह-जगह जमीनी स्तर पर साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देंगे और उसके नए नए तरीके ईजाद करते रहेंगे, चुनिंदा मुस्लिम शख़्सियतों/कार्यकर्ताओं/बाहुबलियों-अपराधियों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई के माध्यम से उनकी सरकारें कम्युनल messaging करती रहेंगी।

दूसरी ओर जनता के मुद्दों को लेकर विपक्ष के हमलों की धार को भोथरा करने, आने वाले दिनों में किसान आंदोलन समेत तमाम जनसंघर्षों की संभावनाओं को pre-empt करने के लिए बदहाल जनसमुदाय को पॉपुलिस्ट कदमों से लुभाने की जीतोड़ कोशिश जारी है। यद्यपि स्वयं मोदी सरकार की नीतियों के चलते तबाह हुई अर्थव्यवस्था के कारण इनके हाथ तंग हैं और इसके लिए बहुत स्पेस नहीं मिलेगा।

हर साल 2 करोड़ रोजगार के अपने वायदे को कभी का भूल चुके मोदी जी ने बेरोजगारी को लेकर धधकते युवा-आक्रोश को ठंडा करने के लिए केंद्र सरकार के वर्षों से खाली पड़े 10 लाख पदों को भरने की कवायद शुरू कर दी है। वैसे तो इसमें अभी बहुत सारे ifs & buts हैं, पर अगर चुनाव तक यह पूरा हो भी जाय, तो भी बेरोजगारी के महासंकट के इस दौर में यह ऊंट के मुंह में जीरा से अधिक नहीं होगा।

किसानों को मिलने वाली सम्मान निधि 6 हजार से बढ़ाकर 12 हजार सालाना करने तथा कृषि उपकरणों पर GST घटाने की माँग RSS के किसान संगठन द्वारा उठवाई जा चुकी है। MSP गारंटी कानून के सवाल पर सरकार की धोखाधड़ी तथा अन्य लंबित मांगों को लेकर किसान जिस तरह फिर आंदोलन की राह पर बढ़ रहे हैं, उसे पटरी से उतारने और किसानों के बीच भ्रम तथा विभाजन के लिए सम्भव है फरवरी में पेश होने जा रहे बजट में किसान सम्मान निधि में कुछ बढ़ोत्तरी कर दी जाय। बहरहाल, इसका लाभ खेती पर निर्भर विराट आबादी में से महज जमीन के मालिक किसानों को ही मिल पाता है और पिछले दिनों यह चौंकाने वाला खुलासा भी हो चुका है कि इसके लाभार्थियों की संख्या भी पहले की तुलना में काफी कम कर दी गयी है। यह तय है कि 500 या हजार रूपये महीने की कथित सम्मान निधि किसानों की कानूनी गारंटीशुदा MSP की मांग का substitute नहीं हो सकती। इसके बल पर किसानों की आँख में धूल झोंकने की सरकार की कोशिश कामयाब नहीं होने वाली।

कारपोरेट लॉबी के दबाव में, बजट घाटा कम करने के नाम पर, कोविड के समय गरीबों को मिलने वाला मुफ्त अनाज बंद कर दिया गया है, लेकिन गरीबों की नाराजगी से बचने और उनके वोट की जुगत में बीच का रास्ता निकालते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून ( NFSA ) के तहत पिछली सरकार के समय से ही गरीबों को सस्ते दर पर ( 2 रु. किलो गेहूँ व 3 रु. किलो चावल, 1 रु. मोटा अनाज ) मिलने वाले अनाज को मुफ्त कर दिया गया है। इस तरह गरीबों को 10 किलो की जगह अब उसका आधा 5 किलो अनाज ही मिलेगा, हालांकि यह मुफ्त होगा-इस तरह गरीबों को 10 से 15 रू महीने की छूट मिलेगी और इस एहसान के बदले उनका वोट हथियाने का खेल होगा !

लोकसभा चुनावों के पहले 9-10 सितंबर, 2023 को दिल्ली के प्रगति मैदान में G 20 के 18वें शिखर सम्मेलन की भारत द्वारा मेजबानी तथा अध्यक्षता को मोदी के विश्वनेता के रूप में उदय के बतौर showcase करने की राजधानी दिल्ली और पूरे देश में युद्धस्तर पर तैयारियां जारी हैं।

जाहिर है विपक्ष तथा लोकतांत्रिक ताकतों को 2024 में संघ-भाजपा के चक्रव्यूह को भेदने के लिए बहुस्तरीय रणनीति पर अमल करना होगा। न सिर्फ नफरती राजनीति की काट करनी होगी, बल्कि उनके populism तथा अंधराष्ट्रवादी उन्माद का भी मुकाबला करना होगा। विभाजनकारी एजेंडा के खिलाफ एकता, भाईचारे का लोकतांत्रिक माहौल बनाना जरूरी है, पर वही पर्याप्त नहीं है। जरूरत है कि इसके साथ ही संघ-भाजपा के विनाशकारी-राज के बरक्स जनमुद्दों के ठोस समाधान का रोड-मैप तथा राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में संवैधानिक मूल्यों की पुनर्बहाली पर आधारित राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का नया स्वप्न जनता के सामने पेश किया जाय।

बेहतरी की यह लड़ाई एक ओर नफरती जहर से जनसमुदाय को detoxicate करने के लिए लोगों के दिलो-दिमाग के स्तर पर विचारधारा और राजनीति के क्षेत्र में लड़ी जानी है, दूसरी ओर कारपोरेट पूंजी के बल पर वोट खरीदने और राज्य मशीनरी के misuse, दमन तथा हर तरह के फ्रॉड द्वारा जनादेश लूटने की साजिशों के खिलाफ सम्भवतः सड़कों पर भी लड़नी होगी।

2024 एक ऐसा महायुद्ध होने जा रहा है जैसा शायद इस देश में पहले कभी नहीं हुआ, जो न सिर्फ सरकार की तकदीर बल्कि इस देश में लोकतंत्र के भविष्य का भी फैसला करेगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest