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रिलायंस को फ़ायदा पहुंचाने के लिए बैंकों के ग्रुप एक्सपोज़र लिमिट में आरबीआई ने की बढ़ोतरी

केंद्रीय बैंक और बैंकिंग नियामक ने ग्रुप एक्सपोज़र लिमिट यानी समूह ऋण सीमा को बढ़ाये जाने का फ़ैसला किया है। बैंकों को किसी विशेष कॉरपोरेट समूह को दिये गये ऋण की मात्रा की गणना विशिष्ट बैंक द्वारा दिये गये कुल ऋण के अनुपात के रूप में की जानी है। दरअसल, इस फ़ैसले से भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को फ़ायदा पहुंचेगा।
Mukesh Ambani

गुरुग्राम / मुंबई: “आज मैं यह ऐलान करते हुए एक साथ बहुत ख़ुश और अह्लादित हूं कि हमने 31 मार्च 2021 के अपने मूल समय सीमा से बहुत पहले ही रिलायंस ने सभी तरह की ऋण से मुक्ति पा ली है और ऐसा करके शेयरधारकों से अपना किया गया वादा निभा दिया है। एक बार फिर हमने अपने शेयरधारकों और अन्य सभी हितधारकों की अपेक्षाओं से कहीं ज़्यादा कर दिखाया है।” ये बात बतौर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी ने 19 जून को जैसे ही ये बात कही,वैसे ही कंपनी के शेयर की क़ीमत रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया।

उन्होंने आगे कहा,"... पूरी तरह से ऋण मुक्त कंपनी बनने के इस गौरवपूर्ण अवसर पर मैं उन्हें (शेयरधारकों को) आश्वस्त करना चाहता हूं कि अपने स्वर्णिम दशक में रिलायंस और भी अधिक महत्वाकांक्षी विकास लक्ष्य तय करेगी, और उन्हें हासिल करेगी।” पिछले कुछ हफ़्तों में न्यूज़क्लिक ने भारत की सबसे बड़ी इस निजी कॉर्पोरेट इकाई को सरकारी नीतियों में हुए बदलाव से लाभान्वित होने का सबूत जुटाया है और उसका विश्लेषण किया है। इस श्रृंखला के इस पांचवें लेख में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा हाल ही में किये गये नीतिगत परिवर्तन के निहितार्थों की जांच-पड़ताल की गयी है।  

22 मई को देश के केंद्रीय बैंक और शीर्ष मौद्रिक प्राधिकरण ने 30 जून, 2021 तक के लिए एकल कॉर्पोरेट समूह को लेकर बैंकों की समूह वित्तपोषण की सीमा को 25% से 30% तक बढ़ा दिया है। जब तक आरबीआई कोई दूसरा फ़ैसला नहीं ले लेता है, तबतक इस समय-सीमा के बाद समूह वित्तपोषण की यह सीमा को 25% तक बहाल रखा जायेगा। यह समूह ऋण-सीमा इस बात को सुनिश्चित करती है कि बैंक एक कॉर्पोरेट समूह को कितनी राशि उधार दे सकता है,ज़ाहिर तौर पर इसका मक़सद बैंकों के लिए प्रणालीगत जोखिम पैदा करने वाले किसी पूरे समूह इकाई की तरफ़ होने वाले किसी समूह इकाई में ऋण के पुनर्भुतान सम्बन्धी परेशानियों को रोकना है।

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर, शक्तिकांत दास ने अपने सार्वजनिक भाषण में कहा: “पूंजी बाजार से संसाधन जुटाने में हो रही मौजूदा कठिनाइयों को देखते हुए कॉरपोरेट्स को बैंकों से उनकी वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए बैंकों के समूह ऋण-सीमा को योग्य पूंजी आधार पर 25% से 30% तक बढ़ाया जा रहा है।”

आरबीआई का यह फ़ैसला उस नीति निर्देश का संकेत देता है, जो गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों यानी बट्टे-खाते में गये ऋण (एनपीए) के रूप में बैंकिंग प्रणाली को डूबते ऋण के बढ़ते ढेर से बचाने के लिए की गयी सिफ़ारिशों के ठीक उलट है। बैंकों के लिए जोखिम बढ़ाते हुए, समूह के लिए वित्तपोषण सीमा में की गयी इस बढ़ोतरी से भारत के सबसे अमीर आदमी, मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस समूह जैसे भारत के कुछ सबसे बड़े कॉर्पोरेट समूहों को फ़ायदा पहुंचेगा।

बैंकिंग प्रणाली से अधिक ऋण जुटाने की रिलायंस को हासिल हुए यह क्षमता एक ऐसे महत्वपूर्ण समय में मिली है,जब रिलायंस अपने मुख्य राजस्व उत्पादक के रूप में अपने पेट्रोकेमिकल्स और बिजली जैसे मुख्य व्यवसाय क्षेत्रों से हटाकर दूरसंचार और मोबाइल इंटरनेट से संचालित खुदरा, डिजिटल बैंकिंग और मीडिया इकोसिस्टम की तरफ़ अपने कारोबार को ले जाने की तलाश में है।  

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL),जिसके पास इस समूह का डिजिटल और टेलीकॉम व्यवसाय है,उसकी सहायक कंपनी,जियो प्लेटफ़ॉर्म्स में निवेश की इस समय भरमार है। इसके साथ ही यह समूह भारत में अबतक के सबसे बड़े राइट इश्यू के साथ आ रहा है, जिसका मक़सद अपने विरासत में मिले व्यवसायों पर लिये गये उच्च ऋण भार से भुगतान के ज़रिये मुक्त होना है, यानी कोविड-19 महामारी के चलते लगने वाला अखिल भारतीय लॉकडाउन मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाले इस समूह के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बनकर उभर रहा है। इस महत्वपूर्ण मोड़ पर आरबीआई की तरफ़ से समूह वित्तपोषण की सीमा में की जाने वाली इस बढ़ोतरी से भारत के सबसे ज़्यादा ऋणग्रस्त कॉर्पोरेट समूहों में से एक रिलायंस समूह की और ज़्यादा तरक़्क़ी हो सकेगी।

संसदीय समिति ने क्या कहा

3 जनवरी, 2019 को भारत के बैंकिंग क्षेत्र की वित्त-संबंधी 88-पृष्ठ की इस रिपोर्ट को 31 सदस्यीय, बहु-दलीय संसदीय स्थायी समिति ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सामने प्रस्तुत किया था। एम वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली इस समिति ने पहले ही 31 अगस्त, 2018 को लोकसभा अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। बैंकों के समूह वित्त पोषण से सम्बन्धित इस रिपोर्ट के अंश यहां दिये गये हैं:

“इस समय,अपने एकल और समूह उधारकर्ताओं के प्रति बैंकों के जोखिमों के कारण एकाग्र जोखिम से पैदा होने वाली चिंताओं को ऐसे जोखिमों पर सीमा लगाये जाने के ज़रिये हल किया जाता है। हालांकि, बड़े “जोखिमों के आकलन और उसे नियंत्रण के लिए पर्यवेक्षी फ़्रेमवर्क' पर BCBS (बेसेल कमेटी ऑन बैंकिंग सिस्टम) मानकों के साथ "बैंकों के एक्सपोज़र" को लेकर मौजूदा विवेकपूर्ण मानदंडों को बदलने के लिए रिज़र्व बैंक ने 1 दिसंबर 2016 के सर्कुलर में 'बड़े एक्सपोज़र फ्रेमवर्क' पर अंतिम दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं। यह फ़्रेमवर्क 1 जनवरी, 2019 तक पूरी तरह से लागू हो जायेगा।”

(BCBS बैंकिंग पर्यवेक्षी प्राधिकारियों के प्रतिनिधियों की एक अंतरराष्ट्रीय समिति है,जिसकी स्थापना स्विट्जरलैंड के बासेल स्थित बैंक फ़ॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स के तत्वावधान में केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों द्वारा की गयी थी।)

संसदीय समिति की इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “प्रत्येक काउंटर पार्टी और समबद्ध काउंटर पार्टियों के समूह के संबंध में LE (बड़ी जोखिम) सीमा, सामान्य परिस्थितियों में, पात्र पूंजी आधार,यानी मौजूदा 'कैपिटल फ़ंड' के मुकाबले बैंक की टियर 1 पूंजी के क्रमशः 20 प्रतिशत और 25 प्रतिशत पर अधिकतम सीमा तय कर दगी जायेगी।”

इस रिपोर्ट के ‘बाज़ार तंत्र के माध्यम से बड़े उधारकर्ताओं के लिए क्रेडिट आपूर्ति बढ़ाने के लिए रूपरेखा पर दिशानिर्देश’ नामक शीर्षक वाले खंड में कहा गया है: “एकल कॉरपोरेट की अधिकता के कारण बैंकिंग प्रणाली के लिए उत्पन्न जोखिम को कम करने के मक़सद से रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने 25 अगस्त, 2016 को इस सर्कुलर के ज़रिये मार्केट मैकेनिज्म के माध्यम से बड़े उधारकर्ताओं के लिए क्रेडिट आपूर्ति बढ़ाने के लिए इस फ्रेमवर्क पर दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं। यह फ़्रेमवर्क वित्तीय वर्ष 2017-18 से प्रभावी हो गया है और यह भारत के सभी बैंकों और विदेश स्थित भारतीय बैंकों की शाखाओं पर लागू होगा।

“इस फ़्रेमवर्क के तहत, बैंकिंग प्रणाली से एक सीमा से अधिक सकल निधि-आधारित क्रेडिट सीमा (ASCL) ,मंज़ूर किये गये उधारकर्ताओं को वृद्धिशील बैंक ऋण, अतिरिक्त जोखिम भार और उच्च मानक परिसंपत्ति प्रावधानों को आमंत्रित करेगी। इसे बड़े उधारकर्ताओं को बाजार स्रोतों से अपनी वित्तपोषण आवश्यकताओं तक अधिक से अधिक पहुंच बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसे कि बॉंड जारी करना।”

आरबीआई के फ़ैसले पर बैंकरों की प्रतिक्रिया

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा बैंकों के समूह ऋण सीमा को 25% से बढ़ाकर 30% किये जाने वाले इस 22 मई के नीतिगत बदलाव पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ के पूर्व महासचिव,थॉमस फ़्रैंको  कहते हैं,“ यह फ़ैसला केवल अडानी और अम्बानी जैसे बेहद सरेआम हो चुके कॉर्पोरेट समूहों के लिए सहायक है।”

सार्वजनिक क्षेत्र के देश का सबसे बड़ा बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) का शीर्ष स्रोत इस बात से सहमति जताता है। नाम नहीं छापने की शर्त पर इस लेख के लेखकों में से एक से बात करते हुए वह कहते हैं, “बैंकों के कॉरपोरेट समूहों के लिए एक्सपोजर की सीमा सार्वजनिक डोमेन में होनी चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे कि उद्योग-वार एक्सपोजर सीमायें होती हैं। किसी समूह के एक हिस्से के रूप में एक इकाई के लिए मानदंड पर अधिक स्पष्टता होनी चाहिए, विशेष रूप से इकाइयों के मामले में, जहां प्रवर्तकों के पास छोटी हिस्सेदारी हो सकती है, लेकिन इसे एक नियंत्रित हित में होना चाहिए।  किसी समूह में एक इकाई को शामिल करने के लिए शेयरहोल्डिंग की आरंभिक सीमा के साथ-साथ जटिल क्रॉस-होल्डिंग्स वाले समूह में बहु-स्तरित संस्थाओं के लिए जिस किसी हित को नियंत्रित करता है,उसे भी स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए। रिलायंस समूह को एक ऐसे ही समूह के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।”

वह स्रोत आगे बताता है, “रिलायंस के अलावा, बैंकों के लिए ग्रुप एक्सपोज़र लिमिट बढ़ाये जाने के आरबीआई के इस क़दम का एक दूसरा लाभार्थी भी हो सकता है,और वह है-अडानी समूह । मुझे संदेह है कि शायद ही कोई अन्य समूह एसबीआई के इस समूह ऋण सीमा को पार कर पाये।”

अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी महासंघ (AIBEF) के पूर्व उपाध्यक्ष,विश्वास उतगी ने न्यूज़क्लिक को बताया: “आरबीआई ने यह निर्धारित करने के लिए बैंकों को दिशा-निर्देश और मानदंड भी जारी कर दिये हैं कि किसी विशेष समूह को किसी समूह का हिस्सा होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। ऐसे में अलग-अलग बैंकों का प्रबंधन इन दिशानिर्देशों के आधार पर ही समूह ऋण सीमा का आकलन करेगा। इस लिहाज से इस निर्धारण में एक तयशुदा विवेक भी शामिल हो जाता है कि बैंक प्रबंधन आरबीआई के इन दिशानिर्देशों और मानदंडों की व्याख्या इस बात को लेकर किस तरह करते हैं कि किसी विशेष इकाई को समूह का हिस्सा माना जाना चाहिए या नहीं माना जाना चाहिए।”

एक विश्लेषक अपना नाम नहीं उजागर किये जाने की शर्त पर कहते हैं, “सरकार, बैंक और कॉरपोरेट दिग्गज इस चूहे-बिल्ली के खेल को खेल रहे हैं और उस ढांचे में जिसे व्यंजनात्मक रूप से 'ऑफ़ बैलेंस शीट' कहा जाता है, उस सीमा में उस सहयोगी संस्थाओं के ज़रिये उधार मिल जाता है, जिसके बारे में बताया जाता है कि वे समूह के प्रमुख या पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक और इक्विटी शेयरों के जटिल और पेचीदे बहुस्तरीय क्रॉस-होल्डिंग्स के माध्यम से बारीकी के साथ अपने मूल इकाई से ही जुड़े होते हैं।”

वह विश्लेषक बताता है, “यह भी स्पष्ट नहीं है कि उस समय सचेत या सावधान करने की ज़िम्मेदारी किसकी होगी,जब कोई कॉर्पोरेट समूह किसी विशिष्ट बैंक पर लागू समूह ऋण सीमा का उल्लंघन करने वाला हो या उल्लंघन कर देता हो। क्या यह समूह के प्रवर्तकों या किसी बैंक के प्रबंधन की जिम्मेदारी है ? या जवाबदेही के इस मुद्दे को जानबूझकर अस्पष्ट रखा गया है ?

3 जून को इस लेख के लेखकों में से एक ने भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष,रजनीश कुमार को एक ईमेल भेजा था, जिसकी एक प्रति बैंक के बाहरी संचार को संभालने वाले अधिकारी को भी भेजी गयी थी। इस मेल के ज़रिये पूछे गये सवाल निम्नलिखित थे:

1. आरबीआई की घोषणा (22 मई) से पहले, किसी भी कॉर्पोरेट समूह के लिए एसबीआई की यह ऋण-सीमा पहले से ही पात्र पूंजी आधार का 25% थी?  यदि ऐसा था, तो एसबीआई ने किस कॉर्पोरेट समूह/समूहों के लिए 25% या उससे अधिक की सीमा को सामने रखा है?

2. मुकेश डी अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनियों के रिलायंस समूह के लिए एसबीआई की ऋण-सीमा क्या है?

3. ऐसा तो कहा जा सकता है कि बैंकों के समूह ऋण-सीमा को बढ़ाने के आरबीआई के इस फ़ैसले का सबसे बड़ा लाभार्थी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के नेतृत्व वाला कॉर्पोरेट समूह होगा। आपकी क्या टिप्पणियां हैं ?

इस लेख के प्रकाशन के समय तक, एसबीआई की तरफ़ से इन सवालों का कोई जवाब नहीं मिला था; जैसे ही जवाब आयेगा,इस लेख में उस जवाब से मिली सूचना भी शामिल कर ली जायेगी।

एक दूसरे विश्लेषक ने भी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट इकाई (आरआईएल) को देश के सबसे बड़े बैंक (एसबीआई) के समग्र समूह के ऋण के बारे में पता नहीं हो, बल्कि "इस बात की संभावना है कि एसबीआई ने रिलायंस से सम्बन्धित समूह ऋण-सीमा का उल्लंघन किया हो और चूंकि यह सच्चाई पब्लिक डोमेन में नहीं हैं, इसलिए हम फिलहाल अटकलें ही लगा सकते हैं।"

उनका आकलन है कि एसबीआई का आलोक इंडस्ट्रीज में लगभग 3,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुए है,जो इस समय रिलायंस समूह की एक 'सहयोगी' कंपनी है। रिलायंस कम्युनिकेशंस में इस बैंक का घाटा लगभग 4,000 करोड़ रुपये का है और एसबीआई का रिलायंस जियो के एक्सपोजर 7,000 करोड़ रुपये के आस-पास होने का अनुमान है। हालांकि विश्लेषक बताते हैं कि रिलायंस जियो का खाता एनपीए (ग़ैर निष्पादित परिसंपत्ति या बट्टे-खाते में जाने वाला ऋण) नहीं है और उसकी इक्विटी पूंजी में उस ज़बरदस्त रूप से होने वाले अपेक्षित निवेश से उसका ऋण काफ़ी कम हो जायेगा, जिसकी घोषणा हाल ही में की गयी है।"

एआईबीईएफ़ के पूर्व संयुक्त सचिव,देवीदास तुलजापुरकर इसे और भी मज़बूती के साथ रखते हुए कहते हैं,  “रिलायंस समूह के साथ कई और बड़े कॉर्पोरेट समूह हैं, जो इसी तरह के मौजूदा समूह ऋण सीमा के क़रीब हैं। अगर उन्हें पूंजी जुटाने में सक्षम बनाना है, तो समूह ऋण सीमा के बढ़ाये जाने का यह फ़ैसला उनके लिए मददगार होगा। प्रधान मंत्री ने टेलीविज़न पर आकर कहा था कि महामारी हम सभी के लिए एक मौक़ा लेकर आती है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह मौक़ा बड़े कॉर्पोरेट्स के लिए ही अवसर के रूप में आया है।”

एआईबीईएफ़ के पूर्व उपाध्यक्ष,उतगी ने बताया कि छोटे व्यवसायों को सहायता सरकार जिस तरह से करने की बात कर रही है, रिलायंस समूह को उससे भी मदद मिलेगी, “हाल ही में सरकार ने MSME (माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज) के लिए एक आपातकालीन ऋण सहायता को लेकर एक गारंटी योजना शुरू की है। हालांकि, रिलायंस समूह एक MSME तो नहीं है, लेकिन सैकड़ों ऐसे MSME  हैं, जो कि रिलायंस की सहायक या सहयोगी कंपनी हैं, और उन्हें इस क़दम से फ़ायदा पहुंचेगा।”

'सबसे बड़ी कंपनी सबसे बड़े लाभार्थी होने के लिए तैयार'

एसबीआई के एक पूर्व प्रबंध निदेशक ने नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर दूसरों के हवाले से कही गयी बातों से असहमति जताते हुए कहते हैं कि आरबीआई के इस फ़ैसले से लाभान्वित होने वाले रिलायंस समूह को लेकर कुछ भी असामान्य नहीं है।

“यदि इस समूह ऋण-सीमा को सार्वजनिक किया जाता है, तो इसे बैंक और उसके ग्राहकों के बीच के रिश्ते में गोपनीयता के भंग होने के तौर पर देखा जा सकता है। किसी समूह या समग्र समूह में किसी इकाई को शामिल करने के लिए क्या मापदंड होने चाहिए, इस पर बहस भारत में कई वर्षों से चल रही है और ये बहस अनिर्णायक बनी हुई है। मिसाल के तौर पर, जब 1990 के दशक में एसबीआई ने समूह ऋण सीमा को निर्धारित करने के लिए एसोसिएटेड सीमेंट कंपनीज (एसीसी) को टाटा समूह के एक हिस्से के रूप में को शामिल करने की मांग की, तो कंपनी ने इस पर सख़्त ऐतराज़  जताया।”

एसबीआई के पूर्व एमडी आगे कहते हैं: “अगर रिलायंस आरबीआई के इस समूह ऋण-सीमा को बढ़ाया जाने के फ़ैसले का सबसे बड़ा लाभार्थी है, तो इसमें आपको आश्चर्य क्यों होना चाहिए? आख़िरकार, आरआईएल देश के निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कॉर्पोरेट इकाई है”।

उन्होंने कहा कि अतीत में भी तो  सरकार ने रिलायंस समूह का पक्ष लेने के लिए नियम बनाये हैं। “मिसाल के तौर पर मई 1985 में सीमा शुल्क शुल्क संरचना को बदलने से पहले सरकार ने रिलायंस के लिए पॉलिएस्टर फ़ाइबर के निर्माण के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले एक मध्यवर्ती उत्पाद, पीटीए (शुद्ध टेरेफ़्थलेट एसिड) का आयात करने को लेकर अवसर की एक छोटी सी खिड़की खोल दी थी, तो फिर इसमें क्या नया है?"

लेखकों में से एक ने 16 जून को इस लेख के लिए उनकी टिप्पणी मांगते हुए आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को निम्नलिखित प्रश्नावली भेजी थी। इस लेख के प्रकाशन तक उनका कोई जवाब नहीं मिला था। आरबीआई के इस पूर्व गवर्नर से अलग-अलग लोगों से मिली राय पर टिप्पणी करने के अलावे उनसे जिन सवालों का जवाब मांगा गया था,वे निम्नलिखित हैं:

1. कहा जा सकता है कि इस फ़ैसले के बड़े लाभार्थी रिलायंस समूह जैसे बड़े कॉर्पोरेट समूह होंगे और ऐसा माना जाता है कि इसकी शुद्ध ऋण-सीमा पहले ही इस समूह की ऋण-सीमा को पार कर चुकी है। मुझे आपकी टिप्पणियां चाहिए।

2. आरबीआई के गवर्नर के रूप में आपके कार्यकाल के दौरान, आपने प्रस्तावित किया था कि व्यक्तिगत कॉर्पोरेट समूहों के लिए 10,000 करोड़ रुपये की सीमा ही तय की जायेगी। इसी तरह की सिफ़ारिश वित्त पर संसदीय स्थायी समिति ने भी की थी। इस प्रस्ताव के पीछे आपका तर्क क्या था?

3. आरबीआई गवर्नर के तौर पर आपके कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी समूह ऋण-सीमा पर अनुशंसित कैप नहीं लगायी जाती रही, और अब आरबीआई ने बैंकों को और भी अधिक बड़ी सीमा तक ऋण लेने की सिफ़ारिश कर दी है। इस पर आपकी टिप्पणियां चाहिए।

समूह ऋण-सीमा में होने वाली यह बढ़ोतरी ऐसे समय में हुई है,जब कई अन्य सरकारी फ़ैसले रिलायंस समूह के प्रयासों के पक्ष में थे, पिछले लेखों में इस लेख के लेखकों ने इस बात को कवर किया है कि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया,भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड और वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा लिये गये विभिन्न फ़ैंसलों ने इस समूह को 53,000 करोड़ रुपये के फ़ंड जुटाने के अधिकार के मुद्दे पर कि स तरह से मदद की है। इन तमाम फ़ैसलों का मक़सद कोविड-19 के चलते लगे लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था की मदद करना था।

(जारी है।)

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को भी आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

RBI Hike in Banks’ Group Exposure Limit to Benefit Reliance

यह श्रृंखला का यह पांचवां लेख है। इसके पहले के चार लेखों के लिंक नीचे दिये गयें हैं

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