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राजस्थान: REET अभ्यर्थियों को जयपुर में किया गया गिरफ़्तार, बड़े पैमाने पर हुए विरोध के बाद छोड़ा

दरअसल यह लोग राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (REET) के तहत अगले चरण में पदों को बढ़वाने के लिए 70 दिनों से संघर्ष कर रहे हैं। इनकी मांग है कि सीटों की संख्या को बढ़ाकर 50,000 किया जाए।
REET
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत

जयपुर पुलिस ने स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) के एक दर्जन सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया था। दरअसल यह लोग राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा (REET) के तहत अगले चरण में पदों को बढ़वाने के लिए 70 दिनों से संघर्ष कर रहे हैं। इनकी मांग है कि सीटों की संख्या को बढ़ाकर 50,000 किया जाए। बाद में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में पूरे राज्य के अलग-अलग शहरों में प्रदर्शन हुए, जिसके चलते पुलिस को इन्हें देर शाम को छोड़ना पड़ा। 

दिसंबर, 2019 में राजस्थान उच्चतर शिक्षा बोर्ड ने ग्रेड-III स्तर के शिक्षकों की भर्ती के लिए आवेदन निकाला था। बहुत देर करने के बाद सरकार ने कहा कि वह सीटें बढ़ाएगी, क्योंकि आर्थिक तौर पर गरीब़ तबके और दृष्टिहीन छात्रों के आरक्षण के प्रावधानों के चलते यह सीटें कम हो गईं थीं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राज्य में पिछले तीन सालों में 10,000 शिक्षकों की कमी आई है, क्योंकि यह लोग रिटायर हो चुके हैं।

अपने तर्क को समर्थन देने के लिए एसएफआई राजस्थान के उपाध्यक्ष महेंद्र शर्मा ने न्यूज़क्लिक से कहा कि राज्य में फिलहाल ग्रेड-III शिक्षकों के 63,033 पद खाली हैं। राज्य को इन पदों पर जल्द से जल्द शिक्षकों की नियुक्ति की जरूरत है। 

वह कहते हैं, "हम देख रहे हैं कि महामारी ने परिवारों को आर्थिक तौर पर इतना नुकसान पहुंचाया है कि वे अब सिर्फ़ सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाले खाद्यान्न पर ही निर्भर होकर रह गए हैं। पिछले दो सत्रों में ही हमने देखा कि सरकारी स्कूलों में 10 लाख नए बच्चों की भर्ती हुई है, जिससे कुल बच्चों की संख्या 99 लाख पहुंच गई है। 

शर्मा कहते हैं कि सरकार को राज्य में तेजी से बढ़ चुकी बेरोज़गारी पर भी ध्यान देना चाहिए। स्थिति इतनी बदतर है कि सेकंडरी बोर्ड द्वारा करवाई गई शिक्षक पात्रता परीक्षा में 26 लाख लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें से 11 लाख लोगों ने यह परीक्षा पास की। राजस्थान परीक्षा के दो स्तरों का पालन करता है। छात्रों को शिक्षक बनने के लिए पहले पात्रता परीक्षा पास करनी होती है। दूसरी परीक्षा के बाद बोर्ड उन बच्चों की मेरिट लिस्ट जारी करता है, जो बतौर शिक्षक स्कूलों में भर्ती हो सकते हैं। 

शर्मा आगे कहते हैं, "इन परीक्षाओं को पास करने में यह छात्र बहुत मेहनत करते हैं। गरीब़ छात्र जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे अपने घरों को गिरवी रखकर कोचिंग के लिए शुल्क इकट्ठा करते हैं, और सरकार कह रही है कि वो उन्हें अच्छी नौकरी नहीं दे सकती। यह कैसा रवैया है!"

एसएफआई के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष जाखड़ ने न्यूज़क्लिक को बताया कि चुने हुए प्रतिनिधि भी परीक्षार्थियों के प्रदर्शन की गर्मी महसूस कर रहे हैं। 70 से ज़्यादा विधायकों और गहलोत सरकार के पांच सलाहकारों ने पदों की संख्या 31,000 से बढ़ाकर 50,000 करने की मांग की है। 

जाखड़ ने बताया, "सरकार तीन बार परीक्षा की तारीख़ों में बदलाव कर चुकी है और सरकार ने दूसरे वर्गों को भी परीक्षा में शामिल करने का फ़ैसला किया है। तो पदों की संख्या 2019 के आधार पर तय की गई है, लेकिन पदों को 2022 में भरा जा रहा है। जयपुर में शहीद स्मारक पर हमारे प्रदर्शन को जबरदस्ती हटवा दिया गया, क्योंकि हमने 7 जनवरी को मुख्यमंत्री के घर के घेराव का आह्वान किया था। सरकार स्थिति की आपात जरूरत को नहीं समझ रही है। देश में कुल बेरोज़गारी के मामले में राज्य पूरे देश में दूसरे नंबर पर है। जबकि शिक्षा के समग्र पैमानों में हम 16वें पायदान पर हैं। तो बिना पद बढ़ाए, मुख्यमंत्री कैसे स्थिति सुधारने के बारे में सोच सकते हैं।"

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी द्वारा 6 जनवरी, 2022 को जारी किए गए बेरोज़गारी के आंकड़ों के मुताबिक़, राजस्थान में बेरोज़गारी दर 27.1 फ़ीसदी है, जो सिर्फ़ हरियाणा से ही कम है, जहां यह दर 34.1 फ़ीसदी है। 

जाखड़ ने बताया कि राज्य ने नीति आयोग के सुझावों के चलते राज्य में 22,000 स्कूल कम हो गए, नीति आयोग ने ज़्यादा कार्यकुशलता के लिए ज़्यादा छोटे स्कूलों को बंद करने का सुझाव दिया था। जुलाई, 2017 में शिक्षा मंत्रालय ने राज्यों को इस संबंध में ख़त लिखा था और छोटे स्कूलों की संख्या नियंत्रित करने का सुझाव दिया था ताकि बेहतर कार्यकुशलता हासिल की जा सके। खत से समझ में आता है कि यह दिशा-निर्देश प्रधानमंत्री द्वारा पर्यवेक्षण और बाद में नीति आयोगों के सुझाव के बाद दिए गए थे। बाद में नीति आयोग ने प्रदेशों के स्कूलों को इसमें शामिल कर लिया।  

स्कूलों के बंद होने पर उन्होंने कहा, "इन प्रतिबंधों के चलते स्कूली शिक्षा को जो नुकसान हुआ है, उसके बारे में सोचिए। हमें संभाग मुख्यालय और शहरों में अच्छे स्कूल मिल सकते हैं, लेकिन जब हम जनजातीय इलाकों में जाते हैं, तो स्थिति बदतर हो जाती है।"

शिक्षा के अधिकार के पक्ष में काम करने वाले जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने जयपुर हाईकोर्ट में स्कूलों की बदतर स्थिति पर याचिका दाखिल की थी। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनकी टीम ने ऐसे छात्रों को खोजा, जो खुले आसमान के नीचे शिक्षा पाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें जर्जर हो चुकी पुरानी इमारतों में शिक्षा नहीं दी जा सकती। यह ऐसे स्कूल हैं, जहां लगभग ना के बराबर शिक्षक हैं।

उन्होंने कहा, "हम कई उदाहरण दे सकते हैं। जैसे भरतपुर जिले की कामा तहसील में जीराहेडा माध्यमिक शाला में 536 छात्रों का नामांकन है, जिसमें 261 लड़कियां और 265 लड़के हैं। जब हम वहां गए, तो 290 छात्र मौजूद थे। शाला में 11 शिक्षकों के पद आवंटित हैं, लेकिन सिर्फ़ 4 की ही तैनाती है। हमारी यात्रा वाले दिन उनमें से भी 2 की ड्यूटी टीकाकरण में लगवाई गई थी। एक दूसरे स्कूल में हमने पाया कि 400 छात्रों के पास पानी पीने का स्रोत सिर्फ़ एक हैंडपंप है। यह समाज के निचले तबके से आने वाले छात्रों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 21-अ और 38 और इसके साथ-साथ बच्चों की नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में  प्रदत्त है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सारे बच्चे बुनियादी इमारत संरचना के आभाव और शिक्षकों की कमी की भयावह स्थिति के बीच पढ़ने के लिए मजबूर हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

Rajasthan: REET Aspirants Arrested in Jaipur, Later Released After Mass Outcry

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