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राजस्थान : मंत्रालय कर्मचारियों की महीने भर से जारी हड़ताल, प्रशासनिक काम-काज ठप

बीते 40-50 दिन से ये कर्मचारी जयपुर महापड़ाव में शांति के साथ गांधीवादी तरीक़े से प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन इनका कहना है कि राज्य सरकार की बेरुखी इन्हें अपना आंदोलन तेज़ करने पर मजबूर कर रही है।
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चुनावी साल 2023 में राजस्थान की गहलोत सरकार कर्मचारियों की हड़ताल और प्रदर्शन की नई चुनौती का सामना कर रही है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से लेकर नर्सिंग और मंत्रालयिक कर्मचारी सभी सरकार के विरोध में लगातार सड़कों पर है। ऐसे में सरकार की बेरुखी इन्हें और निराश कर रही है। इन कर्मचारियों का कहना है कि अगर सरकार जल्द ही इनकी सुनवाई नहीं करती तो ये आने वाले दिनों में अपना आंदोलन और तेज करेंगे।

बता दें कि जयपुर के मानसरोवर में राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ के बैनर तले महीनेभर से अधिक जारी इस मंत्रलयिक कर्मचारियों की हड़ताल में आज शनिवार, 27 मई से करीब 1100 कर्मचारी अनशन पर बैठे हैं और सरकार से अपनी मांगों को लेकर गंभीरता दिखाने की बार-बार अपील भी कर रहे हैं। इन कर्मचारियों की प्रमुख मांगों में ग्रेड पे 2800 से बढ़ाकर 3600 करना और सचिवालय के समान वेतन भत्ते एवं पदोन्नति के अवसर मिलना शामिल है। इसे लेकर प्रदेश के दफ्तरों में कहीं ताले ताे कहीं सन्नाटा पसरा नजर आने लगा है और ज्यादातर कामकाज ठप हैं। जो सरकार के साथ ही आम लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है।

बार-बार प्रदर्शन लेकिन मामला जस का तस

संगठन के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना ने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया कि बीते लंबे समय से मंत्रालयिक कर्मचारी केवल दो ही प्रमुख मांगों को लेकर बार-बार प्रदर्शन कर रहे हैं। इनकी पहली मांग है कि पदोन्नति के प्रथम पद वरिष्ठ सहायक की ग्रेड पे 2800 के स्थान पर 3600 की जाए, सहायक प्रशासनिक अधिकारी की ग्रेड पे 4200 की जाए और अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी की पे ग्रेड 4800 मिले। इसके अलावा दूसरी जो जरूरी मांग है वो  मंत्रालयिक कर्मचारियों का वेतन और प्रमोशन दोनों ही सचिवालय कर्मचारियों के बराबर हो क्योंकि सभी एक ही परीक्षा पास कर नियुक्ति पाते हैं।

हड़ताल पर बैठे कर्मचारियों का कहना है कि वो बीते 40-50 दिन से जयपुर महापड़ाव में शांति के साथ गांधीवादी तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन राज्य सरकार की बेरुखी उन्हें अपना आंदोलन तेज करने पर मजबूर कर रही है। आगे इस आंदोलन की दशा और दिशा जो भी होगी उसकी जिम्मेदार केवल सरकार ही होगी। इस पूरे संघर्ष में बीते दिनों अपने कुछ साथियों को खोने के बाद ये कर्मचारी और हताश और निराश हैं, ये अपनी सभी समस्याओं के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं।

समझौते धरातल पर नहीं उतर सके, वादे हवा-हवाई हो गए

कई कर्मचारियों ने ये भी बताया कि बीते कई प्रदर्शनों में सरकार ने उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया था। हालांकि वो सब सिर्फ बातों तक ही सीमित रह गया और कर्मचारियों के हाथ कुछ नहीं लगा। 50 से अधिक जनप्रतिनिधि भी इस संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखे चुके हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसे में अब उनके पास अनिश्चितकालीन काम बंदी के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।

राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ से जुड़े पिंकेश कुमार मीणा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि बीते 17 अप्रैल से जारी इस महापड़ाव में राजस्थान के 120 से ज्यादा सरकारी विभागों के करीब 80 हजार मंत्रालयिक कर्मचारियों ने पिछले कई दिन से कामकाज का बहिष्कार कर रखा है। लेकिन ये पहली बार नहीं है, इससे पहले भी कई बार ये कर्मचारी की वेतन संबंधित विसंगतियों के निराकरण के लिए भूख हड़ताल और आमरण अनशन तक कर चुके हैं। राज्य सरकार ने कमेटियों के गठन के साथ कई मर्तबा समझौते भी किए। लेकिन अभी तक न तो कमेटियों की रिपोर्ट सामने आई और नारी कर्मचारी संगठनों के साथ हुए सरकारी समझौते ही धरातल पर क्रियान्वित हो पाए।

गौरतलब है कि राजस्थान में  मंत्रालयिक कर्मचारियों का संघर्ष दशकों पुराना है। न तो राज्य की मौजूदा कांग्रेस सरकार और नाही पहले की बीजेपी सरकार अपने कार्यकाल में इनका कोई खास समाधान कर सकी है। ऐसे में आगामी चुनावों में इन कर्मचारियों की हड़ताल एक बड़ा मुद्दा बन सकती है। फिलहाल कर्मचारियों के महापड़ाव के कारण सभी विभागों में कामकाज प्रभावित हाे रहा है।

मूल निवास प्रमाण पत्र, जन्म-मृत्यु एवं हैसियत प्रमाण पत्र, वसीयत, विक्रम पत्र, पंचायतों के पट्टे, नगर निगम के पट्टे, जन आधार कार्ड, राशन कार्ड सहित सरकार की विभिन्न योजनाओं के काम अटके हुए हैं। इसके अलावा खाद्य सुरक्षा, सूचना का अधिकार, फ्री योजना, पालनहार सहित अन्य काम भी नहीं हो पा रहे हैं, जिससे आम लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

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