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राजस्थान : आंगनवाड़ी भर्ती के लिए 'महिलाओं का शादीशुदा' होना अनिवार्य, ये कैसा नियम है?

विभागीय नियमों के मुताबिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहयोगिनी के पद पर सिर्फ़ शादीशुदा महिलाएं ही आवेदन कर सकती हैं। इस भेदभावपूर्ण नियम के चलते अविवाहित युवतियां नौकरी के इस अवसर से वंचित रहने को मजबूर हैं।
Anganwadi
सांकेतिक तस्वीर। साभार : ट्विटर

जब भी बात नौकरी की आती है तो अक्सर उम्र और वैवाहिक स्थिति के आधार पर महिलाओं को दो अलग-अलग नज़रिए से देखने की कोशिश की जाती है। कई लोग शादीशुदा औरतों को उनके घर और बच्चे की जिम्मेदारियों के चलते नौकरी नहीं देना चाहते, तो वहीं अब राजस्थान सरकार का महिला एवं बाल विकास विभाग अविवाहित लड़कियों को शादी के बाद उनके घर बदलने के चलते आंगनवाड़ी में नौकरी नहीं देना चाहता। खबरों की मानें, तो हाल ही में जारी इस विभाग की एक नोटिफिकेशन में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहयोगिनी के पद पर सिर्फ शादीशुदा महिलाएं ही आवेदन कर सकती हैं।

बता दें कि ये पहली बार सुर्खियों में है जब राजस्थान के किसी सरकारी विभाग ने इस तरह से भर्ती के लिए शर्त रखी गई है। फिलहाल राजस्थान सरकार के सभी विभागों में भर्ती के दौरान विवाहित व अविवाहित महिलाओं को समान मौका दिया जाता है, लेकिन आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहयोगिनी की भर्ती में पर इस बार ये मौका नहीं मिल रहा है, जिसे लेकर आने वाले दिनों में राज्य में एक नया विवाद देखने को मिल सकता है। न्यूज़क्लिक ने इस संबंध में राजस्थान महिला एवं बाल विकास से फोन और मेल के जरिए संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन खबर लिखे जाने तक हमें कोई जवाब नहीं मिल पाया है, जैसे ही कोई जानकारी आएगी, खबर अपडेट की जाएगी।

क्या है पूरा मामला?

राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित खबर के अनुसार महिला एवं बाल विकास विभाग आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहयोगिनी की भर्ती में महिलाओं के साथ भेदभाव कर रहा है। विभागीय नियमों के मुताबिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहयोगिनी के पद पर सिर्फ शादीशुदा महिलाएं ही आवेदन कर सकती हैं। इस कठोर नियम के चलते अविवाहित युवतियां और महिलाएं इन पदों पर आवेदन नहीं कर पा रही हैं।

खबर में विभाग के हवाले से लिखा गया है कि क्योंकि 'विभाग का मानना है कि अविवाहित युवतियां शादी के बाद दूसरी जगह चली जाती हैं। इसके बाद पद खाली हो जाता है। ऐसे में शादीशुदा महिलाओं को कार्यकर्ता पद पर नियुक्ति देने से वो एक ही पद पर एक ही जगह काम करती रहेंगी और एक ही जगह से सेवानिवृत्त हो जाएंगी। क्योंकि यहां कार्यकर्ता का एक बार चयन होने के बाद उसका दूसरी जगह पर स्थानांतरण नहीं होता है।

महिला एवं बाल विकास विभाग, अलवर के उपनिदेशक जितेन्द्र मीणा का कहना है कि इस बार आवेदन कम आए हैं, लेकिन यह मुख्यालय के आदेश हैं कि केवल शादीशुदा महिलाओं को ही आवेदन के योग्य माना जाए। इसके अलावा विधवा व तलाकशुदा महिलाएं भी आवेदन कर सकती हैं। इनका स्थानांतरण नहीं किया जाता है। विभाग का मानना है कि विवाहित महिला नियुक्ति के बाद एक ही पद पर काम करती हैं, जबकि अविवाहिता का यदि चयन किया जाता है तो वह शादी होकर दूसरी जगह चली जाती हैं।

विवाहित और अविवाहित महिलाएं दोनों ही करती हैं लैंगिक भेदभाव का सामना

गौरतलब है कि हमारे देश में संघर्ष, शोषण और लैंगिक भेदभाव का सामना विवाहित और अविवाहित महिलाएं दोनों ही करती हैं। इसी साल इंडियन बैंक ने तीन महीने या उससे अधिक समय की गर्भवती महिलाओं को नौकरी के लिए ‘‘अस्थायी रूप से अयोग्य’’ करार दिया था, जिसे लेकर महिला संगठनों का भारी विरोध देखने को मिला था। बाद में चौतरफा किरकिरी होने के बाद बैंक प्रशासन ने इस भेदभावपूर्ण फैसले को वापस ले लिया था।

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इससे पहले साल की शुरुआत, जनवरी में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने भी एक ऐसा ही सर्कुलर जारी किया था, जिसके तहत तीन माह से अधिक अवधि की गर्भवती महिला उम्मीदवारों को ‘‘अस्थायी रूप से अयोग्य’’ माने जाने की बात कही गई थी। इस प्रावधान को श्रमिक संगठनों और दिल्ली के महिला आयोग समेत समाज के कई तबकों ने महिला-विरोधी बताते हुए निरस्त करने की मांग की थी। इसके बाद एसबीआई को इस नियम को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था। तब बैंक ने कहा था कि आम लोगों की भावनाओं का आदर करते हुए भर्ती संबंधी नए निर्देशों को स्थगित कर दिया है।

ध्यान रहे कि भारत के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है, जो ऐसे फैसलों के बाद और कम हो सकती है। इस तरह की नीतियां और नियम महिलाओं के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। विश्व बैंक के मुताबिक़ भारत में साल 2020 में महिलाओं की श्रम शक्ति में ज़िम्मेदारी लगभग 19 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की 76 प्रतिशत है। इस भागीदारी को बढ़ाने के लिए भी महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे लाना ज़रूरी है। लेकिन सबसे पहले ऐसे महिला विरोधी नियमों पर सख्त रोक लगाने की जरूरत है, जो महिलाओं को कार्यबल में आने से ही रोक देते हैं।

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