Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

यूपी चुनाव: क्या हैं जनता के असली मुद्दे, जिन पर राजनीतिक पार्टियां हैं चुप! 

सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस की जीत और हार के बीच की इस बहस में कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब नहीं मिल पा रहा है। सवाल ये हैं कि जनता के मुद्दा क्या है? जनता की समस्या क्या है? पश्चिमी यूपी, अवध, पूर्वांचल और बुंदेलखंड के लोगों की राय।
up elections

उत्तर प्रदेश में चुनाव का दौर है। पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और मतदान की तारीख़ बेहद नज़दीक आ गई है। सभी प्रत्याशियों ने अपने-अपने चुनावी क्षेत्रों में प्रचार और तेज़ कर दिया है।

सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस की जीत और हार के बीच की इस बहस में कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब नहीं मिल पा रहा है। सवाल ये हैं कि जनता के मुद्दे क्या हैं? जनता की समस्या क्या है? उनके लिए प्राथमिकता क्या हैं, उनके लिए क्या ऐसे मुद्दे हैं जो उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हुए हैं।

पिछले वर्षों में कोविड काल रहा हो या सरकारी नौकरियों में भर्तियां रही हों, इस तरह के कई मुद्दे राजनीतिक बहसों में कहीं खोए हुए से नज़र आते हैं। जिन पर चर्चा या विचार विमर्श न के बराबर होता है। फिर चाहें वो कोविड काल के दौरान बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था हो या ओला पड़ने की वजह से फसलों का नष्ट होना हो। इन जनसमूह के मुद्दों पर राजनीतिक पार्टियां चर्चा करती हुई कम हीं नज़र आई हैं।

हमने जनता से ये मुद्दे जानने की कोशिश की है कि उत्तर प्रदेश की जनता आखिर क्या चाहती है? उनके क्या मुद्दे हैं, वो किन मुद्दों पर वोट करेंगें या किस समस्या को ध्यान में रखते हुए वोट करेंगें।

कुछ ऐसे बड़े सवाल हैं जिनका जवाब जनता से हमने जानने की कोशिश की है और उत्तर प्रदेश के चारों महत्वपूर्ण और बड़े क्षेत्र- पश्चिमी यूपी, अवध, पूर्वांचल और बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों से बात करके उनकी समस्या पर हमनें चर्चा की है।

सुरक्षा हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है- रवीश आलम

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िला मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले रवीश आलम कहते हैं कि "सुरक्षा" 2013 (मुजफ्फरनगर दंगें) के बाद से हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। उनका कहना है कि "सुरक्षा हमारे लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि सीएए-एनआरसी प्रोटेस्ट के दौरान बेगुनाह मुस्लिमों पर बहुत अत्याचार किया गया।

हमारे यहां खालापर-मुजफ्फरनगर क्षेत्र के घरों के दरवाजे तोड़-तोड़ कर झूठे आरोपों के नाम पर युवाओं को जेलों में डाल दिया गया था। झूठी धाराओं के तहत मुकदमें कर दिए गए।

दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है समाज के बीच की दूरी, यहां पर सामाजिक तौर पर लोगों में दूरी आ गयी थी, लेकिन पिछले साल हुए किसान आंदोलन ने इस माहौल को बदल कर रख दिया है। क्योंकि जब पिछले दिनों "हर हर महादेव-अल्लाह हु अकबर" के नारे एक साथ लगाए गए तो लोगों के बीच की दूरियां खत्म होती हुई नजर आने लगी। लेकिन अब जैसे-जैसे चुनाव करीब आया है तो "माहौल" बदला है, गठबंधन ने मुजफ्फरनगर ज़िले में जहां की आबादी क़रीबन 6 लाख वोटर्स की है वहां एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। जिसके बाद ये सवाल भी उठाया जाना महत्वपूर्ण है कि क्या गठबंधन सिर्फ मुस्लिम समाज का वोट चाहता है? उन्हें भागीदारी नहीं देना चाहता है? हम यहां किसे वोट करेंगें ये भी विचार विमर्श का मुद्दा है।

शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं- सुधांशु मिश्रा

यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र के गोंडा ज़िले की तराबगंज विधानसभा के रहने वाले सुधांशु मिश्रा कहते हैं कि "स्वास्थ्य हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा है और इस बात की सच्चाई हमारे सामने कोविड की दूसरी लहर में आई, जब लगभग हर घर मे ऑक्सीजन की डिमांड थी लेकिन ऐसी किसी भी मदद का सरकार की तरफ से कोई भी नामोनिशान नहीं था। 

हमारे क्षेत्र के "कम्युनिटी वेलफेयर सेंटर" को अगर छोड़ दें तो कोई भी स्वास्थ्य सुविधा हासिल करने के लिए करीब 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। सवाल ये है कि इस बीच में होने वाली किसी भी मृत्यु का ज़िम्मेदार कौन होगा? क्या ये सवाल पूछा नहीं जाना चाहिए। वो भी तब जब सांसद, विधायक और राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक सब कुछ एक ही राजनीतिक दल भाजपा के पास है।

दूसरी बड़ी समस्या, मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है, जो मेरे गृह क्षेत्र से क़रीबन 700 किलोमीटर की दूरी पर है, क्या वजह है कि पिछले 25 सालों से अब तक सपा, बसपा और भाजपा की सरकारें शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा विकास नहीं कर पाई हैं जो पूर्वांचल क्षेत्र के छात्रों को सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर जाने से छुटकारा मिल सकें और हज़ारों छात्र आस पास ही में पढ़ाई और नौकरी प्राप्त कर सकें। ये बड़े मुद्दे हैं इन पर बात होनी चाहिए।

हमारे लिए रोज़गार सबसे बड़ा मुद्दा है- सैयद सना

अवध क्षेत्र के ऐतिहासिक शहर और यूपी की राजधानी लखनऊ की रहने वाली सैयद सना पेशे से पत्रकार हैं और पढ़ाई से लेकर नौकरी उन्होने लखनऊ में ही की है। आने वाले 2022 के चुनावों के लिए वो रोज़गार को सबसे बड़ा मुद्दा मानती हैं। उनका कहना है कि धर्म को लेकर लोगों को जागरूक होना होगा और अपनी जरूरत के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए।

सैयद सना कहती हैं कि "आप फ्री राशन बांट रहे हैं क्यों बांट रहे हैं? और कब तक बांटेंगें? आप क्यों ज़रूरतमंदों को रोज़गार नहीं देते हैं? उन्हें मज़बूत नहीं करते हैं? आप देखिये तीन साल हो चुके हैं कोरोना को, लेकिन सरकार इससे निपटने के लिए कोई ऐसा कदम नहीं उठा रही है जिससे तीन सालों से बच्चों की लगातार प्रभावित हो रही पढ़ाई का कोई हल निकल सके। ये पूर्ण रूप से सरकार की ज़िम्मेदारी है।

राज्य का हाल ये हो चुका है कि समय पर सरकारी भर्ती नहीं हो पा रही हैं, कॉन्ट्रेक्ट पर कर्मचारियों को रखा जा रहा है और मानसिक तौर पर उनका शोषण किया जा रहा है। इस तरफ़ ध्यान देना और इसका हल आने वाली सरकार को ज़रूर सोचना चाहिए। क्योंकि अगर युवा ही नौकरियां नहीं पाएगा, आगे नहीं बढ़ेगा तो कैसे यूपी की या देश की तररकी होगी, ये बहुत बड़ा सवाल है।"

बुंदेलखंड की सबसे बड़ी समस्या रोज़गार के साधन ना होना- मो. जुबैद 

मध्यप्रदेश की सीमा से लगा ललितपुर ज़िला बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है, जहां खेती करने वाले अच्छी खासी तादाद में निवास करते हैं। इसी ज़िलें के रहने वाले मो. जुबैद बताते हैं कि रोज़गार के साधन न होना और किसानों की तरफ बीतें 5 सालों से सरकार का ध्यान न देना इस क्षेत्र के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है। इसलिए बुंदेलखंड आज भी पिछड़ा हुआ है।

वो कहते हैं कि "ललितपुर की स्थिति ये हो चुकी है कि अगर यहां एक घर मे चार या तीन भाई हैं और उनमें से एक खेती करता है तो बाकी भाई दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में नौकरी ढूढ़ने निकल जाते हैं। क्यूंकि उन्हें अपना घर परिवार चलाना है और यहां उनके पास और कोई ऐसा साधन नहीं है।

जुबैद बताते हैं कि "किसानों की स्थिति बहुत खराब है, यहां का वातावरण बहुत अलग है, यहां सर्दी पड़ती है तो बहुत पड़ती है अब यहां कुछ दिन बारिश हुई है तो रबी और चना की फसलें बिल्कुल तबाह हो गयी हैं और मुआवजे के नाम पर सरकार जो देती है वो बस ऊंट के मुंह मे ज़ीरे के बराबर होता है। आने वाली सरकार को इस तरफ खास ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है। लेकिन हर बार हमारे ललितपुर ज़िलें की अनदेखी की जाती है। अब देखते हैं कि 2022 में आने वाली सरकार क्या करती है।

अब आगे की राह...

प्रदेश के चारों बड़े-बड़े क्षेत्रों की जनता से बात करने के बाद उनकी अपनी समस्या तक तो पहुंचा जा सका है लेकिन एक सवाल ये है कि अब आगे की राह क्या होगी? आगे की राह में सबसे पहले ज़रुरी ये है कि जनता को अपने सभी सवाल अपने घर वोट मांगने आने वाले नेताओं से भी ज़रूर करने चाहिए और जाति-धर्म के मुद्दों से हट कर अपने वोट की चोट करनी चाहिए। तभी सही मायनों में ये लोकतंत्र और ज़्यादा मज़बूत होगा।

अब देखना ये है कि उत्तर प्रदेश की जनता अपने किन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वोट करेगी और सत्ता से लेकर अब 2022 में सत्ता में आने वाली पार्टियों से सवाल करते हुए अपने और अपने आने वाले भविष्य को उज्ज्वल करेगी। क्योंकि जो भविष्य की तैयारी अभी से करेगा उसका भविष्य रोशन भी होगा।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

ये भी पढ़ें: यूपी चुनाव: योगी और अखिलेश की सीटों के अलावा और कौन सी हैं हॉट सीट

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest