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“NEP को रिजेक्ट करें, यह ग़रीबों को पढ़ने से रोक देगा”

ज्वाइंट फोरम फॉर मूवमेंट ऑन एजुकेशन और ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स ऑर्गनाइज़ेशन के संयुक्त नेतृत्व में शिक्षकों ने दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया।
NPS

श्री प्रकाश यादव शांति से अपनी कुर्सी पर बैठ कर जंतर-मंतर पर विभिन्न राज्यों से आए सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को देख रहे थे, जो नई शिक्षा नीति (NEP) के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने और पुरानी पेंशन योजना (OPS) शुरू करने की मांग को लेकर बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी आए थे। यह विरोध प्रदर्शन ज्वाइंट फोरम फॉर मूवमेंट ऑन एजुकेशन और ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स ऑर्गेनाइजेशन (AIFUCTO) के संयुक्त नेतृत्व में आयोजित किया गया था। यादव का कहना है कि उत्तर प्रदेश के औरैया में उनके जनता कॉलेज के छात्र और शिक्षक इस नीति और इसके नतीजों को लेकर काफ़ी चिंतित हैं।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, यादव कहते हैं, “ऐसा प्रतीत होता है कि यह नीति कॉलेजों को नियमित परीक्षा मशीनों में बदल देगी, और पढ़ाई पीछे छूट जाएगी। छात्रों को एक सेमेस्टर के लिए दो बार फीस देनी होगी। फिर, दो परीक्षाएं, कई असाइनमेंट और प्रोजेक्ट होंगे। हम पढ़ाएंगे कब?”

यादव नई पेंशन योजना (NPS) को लेकर नाराज़ हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि शिक्षक इतने हतोत्साहित हैं कि उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद रहने योग्य पेंशन नहीं मिल सकती है। उन्होंने आगे कहा, "सांसद और विधायक OPS के अनुसार पेंशन ले रहे हैं लेकिन वे चाहते हैं कि कर्मचारी NPS के तहत रहें। आप हमें यह भी नहीं बता रहे कि आप अपना पैसा कहां निवेश कर रहे हैं। क्या यह न्यायसंगत है?”

ऑल हरियाणा गवर्नमेंट कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन की संयुक्त सचिव ज्योति दहिया न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि "राज्य सरकार 2025 तक NEP को समग्र रूप से लागू करने की बेवजह जल्दबाजी में है, और नौ राज्य विश्वविद्यालयों में से दो में ज़बरदस्ती लागू किया गया है।"

वह कहती हैं, “हरियाणा सरकार उन कुछ राज्यों में से पहली थी जिसने इसे लागू करने की घोषणा की थी। दिलचस्प बात यह है कि इसे लेकर शिक्षकों के साथ कोई चर्चा नहीं हुई। हमारे पास दो विश्वविद्यालय हैं, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय और जींद में चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जहां इसे लागू किया गया है। हम इसके परिणामस्वरूप फीस में भारी बढ़ोतरी भी देख रहे हैं। गुरु जंबेश्वर विश्वविद्यालय ने हाल ही में अपनी फीस बढ़ाई है और इसका शिक्षा पर सरकार के रुख से गहरा संबंध है।"

इसके अलावा वह कहती हैं, "राज्य विश्वविद्यालयों को इस वर्ष संसाधन जुटाने में आत्मनिर्भर होने के लिए दो बार सर्कुलर जारी किए गए। इसका मतलब है कि वे हमें निजीकरण की ओर धकेल रहे हैं। मैं एक ग्रामीण कॉलेज में पढ़ाती हूं और छात्र अक्सर मदद के लिए हमसे संपर्क करते हैं क्योंकि उन्हें कॉलेज की फीस के लिए 5,000 रुपये का इंतज़ाम करना मुश्किल हो जाता है। ज़रा सोचिए कि अगर फीस तीन गुना बढ़ जाएगी तो छात्र कैसे फीस चुकाएंगे। सबसे ज़्यादा नुकसान छात्राओं को होगा क्योंकि हमारे जैसे पितृसत्तात्मक समाज में उन्हें पढ़ाने पर शायद ही कोई आम सहमति है।"

मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक सरकारी कॉलेज में पढ़ाने वाले डी. कुमार का कहना है कि यह नीति बिना किसी परामर्श के पेश की गई है और छात्र विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, "यह पॉलिसी, स्नातक पाठ्यक्रमों में अलग-अलग विषयों को लेने की सिफारिश करती है, लेकिन इन विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षक कहां हैं? यह उस सुनहरे अतीत को रेफर करता है जहां छात्र गुरुकुल मॉडल का पालन करते हुए नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ते थे। कोई समस्या नहीं, लेकिन आपने कितने विश्वविद्यालय बनाए हैं जहां छात्र और शिक्षक आवासीय परिसरों में रहते हैं और सीखते हैं? क्या यह विडंबना नहीं है कि तीसरे वर्ष के छात्रों को अगले वर्ष पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम के बारे में कुछ भी पता नहीं है?”

कुमार कहते हैं कि राज्य सरकार, पॉलिसी की आवश्यकताओं के अनुरूप कॉलेजों का विलय कर रही है। "सबसे पहले कॉलेज इसलिए बनाए गए क्योंकि उनकी ज़रूरत थी। शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए दो कॉलेजों का विलय करना बहुत आसान है। एक नई संस्था बनाने में समय, पसीना और संसाधन लगते हैं। हमारे देश को बयानबाजी की नहीं, नई संस्थाओं की ज़रूरत है।"

राजस्थान के चुरू के एक स्कूल शिक्षक महावीर सिंह सिहाग को लगता है कि स्कूल जाने वाले बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा, जहां क्लास I और II के छात्रों को आंगनवाड़ी केंद्रों में ट्रांसफर किया जाएगा। "इन कक्षाओं को पढ़ाने के पद ही ख़त्म हो जायेंगे। हम इस पॉलिसी के तहत ठेकेदारी प्रथा की एक नई लहर भी देख रहे हैं, जो कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा से वंचित कर देगी। राजस्थान सरकार ने हाल ही में स्कूलों में पढ़ाने के लिए 10,000 संविदा शिक्षकों को नियुक्त किया है जो नियमित शिक्षकों को दिए जाने वाले वेतन के सिर्फ़ एक तिहाई पर काम करेंगे।"

सिहाग कहते हैं, “हमारी दूसरी चिंता आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों को लेकर है, क्योंकि उनके पास उनसे निपटने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। न तो उनके पास बुनियादी ढांचा है और न ही प्रशिक्षित शिक्षक। ऐसे में अभिभावक बच्चों को सेंटरों से निकालकर निजी स्कूलों में ट्रांसफर कराने को मजबूर होंगे। तो, पॉलिसी की शुरुआत निजीकरण के हाथ में है।”

सिहाग का कहना है कि NEP बाल श्रम को भी बढ़ावा दे सकता है, भले ही अनजाने में। वह कहते हैं, “इसमें सिफारिश की गई है कि कक्षा छह के छात्रों को इंटर्नशिप के लिए भेजा जाए। "छात्र आमतौर पर बारहवीं कक्षा तक अपनी ताकत और कमजोरियों का पता लगाते हैं। इसलिए, आप उनके मोमेंटम को तोड़ रहे हैं। इस स्तर पर कौशल प्रदान करने का इरादा क्या है?”

वह आगे बताते हैं, “आपको यह समझना चाहिए कि हमारे देश में ज़बरदस्त गरीबी है, और यदि किसी बच्चे को किसी मशीन को ठीक करने के लिए आंशिक प्रशिक्षण मिलता है, तो वर्कशॉप्स उसे बाल श्रम में संलग्न करने के लिए आकर्षित कर सकती हैं, और अशिक्षित माता-पिता को आपत्ति नहीं हो सकती है क्योंकि वह अंततः घर पर कुछ पैसे ला रहा है। हालांकि, वह उच्च शिक्षा के अवसर खो देगा, और यदि सरकारें वास्तव में रोज़गार सृजन में रुचि रखती हैं, तो वह स्कूली शिक्षा विभागों में 10 लाख रिक्तियां क्यों नहीं भर रही हैं? जनसंख्या और उनकी ज़रूरतें बढ़ी हैं, लेकिन कोई नई नौकरियाँ मौजूद नहीं हैं। आख़िर क्यों?”

सिहाग के पास खड़े भूप सिंह कूकाना को बड़े स्कूलों को लेकर अन्य चिंताएं हैं जो लगभग छह किलोमीटर दूर के क्षेत्रों को पूरा करेंगे। "गरीब माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाएंगे क्योंकि इसमें पैसे खर्च होंगे। फिर, अभिभावक छात्राओं की सुरक्षा को लेकर खासे चिंतित रहते हैं। दूसरा, अकेले राजस्थान में स्कूल शिक्षा विभाग में एक लाख से ज़्यादा पद खाली हैं। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि किसी भी परिस्थिति में 10% से अधिक पद छह महीने तक खाली नहीं रखे जा सकते। फिर भी, ये पद खाली हैं, जो कुल संख्या का लगभग 40% हैं।"

सरकारें अनावश्यक रूप से महात्मा गांधी स्कूल नामक स्कूलों की एक और परत जोड़ रही हैं, जहां शिक्षकों की पूरी ताकत अनुबंध के माध्यम से नियोजित की जाएगी। कूकना कहते हैं, "आम तौर पर दो शिक्षक एक स्कूल को संभालेंगे, लेकिन महात्मा गांधी स्कूलों के मामले में शिक्षकों की संख्या अपने आप पांच हो जाएगी। यहां भी तीन अतिरिक्त शिक्षक अनुबंध के माध्यम से आएंगे। दोहरे मापदंड क्यों हैं? सबसे पहले, आप लोगों को गरीब बनाएंगे, फिर इन स्कूलों को निजी खिलाड़ियों को सौंप देंगे!”

उत्तर भारतीय राज्यों से दूर, स्कूल टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, आंध्र प्रदेश के के. नरसिम्हा रेड्डी अपने राज्य के बारे में एक ऐसी ही कहानी बताते हैं। वह न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "जगन मोहन रेड्डी सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों को तीन किलोमीटर के दायरे में आने वाले उच्च विद्यालयों में विलय कर दिया, और हमारे चार लाख छात्र सरकारी स्कूलों से निजी स्कूलों में चले गए। साथ ही 25,000 पद खत्म कर दिये गये। हमारे पास 4,000 स्कूल हैं जहां केवल एक शिक्षक पढ़ा रहा है। यह NEP का प्रभाव है। हम नहीं चाहते कि दूसरे लोग इस आघात से गुजरें!”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Reject NEP, it Will Drive Poor Out of Schools and Colleges, Say Teachers

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