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परिसीमन आयोग के जम्मू क्षेत्र पर ताजा मसौदे पर बढ़ता विवाद

जम्मू के सुचेतगढ़ और आरएस पुरा इलाकों में पहले ही विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जा चुके हैं, जहाँ दो विधानसभा क्षेत्रों का विलय प्रस्तावित किया गया है।
 J&K

श्रीनगर: परिसीमन आयोग द्वारा प्रस्तावित नए मसौदे पर न सिर्फ कश्मीर में तीखी प्रतिक्रिया हुई है, बल्कि जम्मू क्षेत्र में भी इसी के समान कड़े विरोध के पैदा होने की संभावना बनी हुई है, जहाँ पैनल के द्वारा सुझाए गए बदलावों को राजनीतिक रूप से तीक्ष्ण बदलाव के रूप में भी देखा जा रहा है।

(सेवानिवृत्त) न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व वाले आयोग द्वारा सुझाए गए बदलावों के चलते जम्मू के सुचेतगढ़ और आरएस पुरा के इलाकों में पहले ही विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। ये दोनों इलाके अभी तक विधानसभा क्षेत्र थे, लेकिन यदि सुझावों को स्वीकार कर लिया जाता है तो इनके एक में विलय होने की उम्मीद है, जिसमें आरएस पुरा का अनारक्षण किया जाना भी शामिल है।

सुचेतगढ़ से जिला विकास परिषद (डीडीसी) सदस्य, तरनजीत सिंह टोनी ने परिसीमन आयोग पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से “प्रभावित” होने का इल्जाम लगाया है। 

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, “परिसीमन आयोग ने आरएसएस (राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ) और बीजेपी के सूक्ष्मदर्शी यंत्र सरीखी निगरानी के तहत रहते हुए काम किया है और जिस प्रकार से नए निर्वाचन क्षेत्रों को बनाया गया है, यह सब उनके मन-मुताबिक काम किया गया है।

टोनी आगे कहते हैं कि जो सुझाव दिए गए हैं वे अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करते हैं और इनका उद्देश्य क्षेत्र के अल्पसंख्यकों की राजनीतिक आवाज को “कुचल” कर रख देने का है।

पिछले विधानसभा चुनाव में जाट समुदाय के द्वारा पार्टी को मिले समर्थन के बाद से आरएस पुरा को भाजपा के गढ़ के तौर पर देखा जाता है। लेकिन नए प्रस्तावित बदलावों को देखते हुए समुदाय के नेता काफी प्रेषण दिख रहे हैं, जिसके चलते स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच में शत्रुता पनपने लगी है। इनमें से कईयों ने पार्टी महासचिव को अपने इस्तीफे सौंप दिए हैं।

लेकिन टोनी इस सबसे आश्वस्त नहीं दिखते और वे सौ से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं के इस्तीफों को “आँखों में धूल” झोंकने के रूप में बताते हैं। 

उनका कहना था, “वे जाट समुदाय को सिर्फ यह दिखाना चाहते हैं कि वे भी मसौदे के खिलाफ हैं लेकिन यदि वे इस पर गंभीरता से लड़ रहे होते तो सबसे पहले उनके वरिष्ठ नेताओं को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था, ना कि साधारण कार्यकर्ताओं को आगे करना चाहिए था, जिन्हें चुनावों में अपने समुदाय को खुश रखने के लिए बलि के बकरे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि वे सच में इस बारे में इतने ही ईमानदार हैं तो सभी वरिष्ठ जाट नेताओं को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए।”

दोनों क्षेत्रों में नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे दलों का मजबूत आधार होने के बावजूद अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करने से पहले भी दोनों क्षेत्रों के प्रतिनिधि शायद ही कभी किसी मुद्दे पर एक दूसरे के साथ एकमत रहे हों। एनसी के देवेंदर सिंह राणा के दलबदल को राजनीतिक संतुलन में एक महत्वपूर्ण बदलाव के तौर पर देखा गया, जिसके चलते पिछले अक्टूबर में ही दोनों क्षेत्रों के बीच की खाई और चौड़ी हो गई थी।

लेकिन समय-समय पर कुछ मुद्दे ऐसे भी देखने को मिले हैं जब दोनों क्षेत्रों का नेतृत्व भले ही अटपटे ढंग से ही सही, लेकिन आपसी सहमति के लिए आगे आये हैं। उन चालों पर अपनी-अपनी आशंकाओं को साझा करते हुए, हाल के दिनों में इसे परिसीमन प्रस्ताव पर देखा जा सकता है।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू—कश्मीर और लद्दाख के भाजपा के महासचिव, अशोक कौल के हिसाब से मसौदे को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है, इसलिए ऐसे में आगे भी विचार-विमर्श और सुझावों की गुंजाइश बनी हुई है। आयोग ने दूसरे मसौदे को अपने सहयोगी सदस्यों के साथ साझा कर दिया है, और उम्मीद की जा रही है कि 14 फरवरी तक उनकी ओर से अपनी प्रतिक्रियाएं दाखिल कर दी जाएँगी। 

परिसीमन आयोग की सिफारिशों का समर्थन करते हुए कौल ने कहा कि विलय होना तो तय है और यदि सांसदों को, जो कि इसके सहयोगी सदस्य हैं, को यदि कोई संदेह या आपत्तियां हैं तो उन्हें आगे आना चाहिए।

कौल ने न्यूज़क्लिक से बताया, “वे समझते हैं कि इसे भाजपा के द्वारा किया जा रहा है की बात कहना सही नहीं है। परिसीमन आयोग में भाजपा का कोई भूमिका नहीं है। हम अपने सांसदों के जरिये अपनी सिफारिशों को को भेजेंगे और देखते हैं कि फिर क्या होता है। फिर जब यह सार्वजनिक डोमेन में आएगा तो आम लोगों के पास आयोग के समक्ष अपनी-अपनी प्रतिक्रियाओं को साझा करने का अवसर होगा।”

आयोग के द्वारा सुझाये गए प्रस्तावित बदलावों को लेकर एनसी, पीडीपी एवं पीपल्स कांफ्रेंस जैसे दलों में भारी नाराजगी बनी हुई है। इन सभी दलों ने दोनों मसौदों को ख़ारिज कर दिया है और इन्हें अगले चुनावों में “भाजपा को फायदा पहुँचाने का साधन” करार दिया है। इस बीच, भाजपा नेता आयोग को “प्रभावित” करने के आरोपों का खंडन करते हुए, आयोग के समर्थन में खड़े हो रहे हैं।

पुंछ के पीर पंजाल क्षेत्रों और राजौरी के अनंतनाग संसदीय क्षेत्र के साथ प्रस्तावित विलय के प्रस्ताव ने विशेष तौर पर कई राजनीतिक दलों के नेताओं को अचंभे में डाल दिया है। उनका मानना है कि दोनों क्षेत्र स्थलाकृति से लेकर राजनीतिक चुनौतियों और आकांक्षाओं तक के लिहाज से एक दूसरे से पूरी तरह से भिन्न हैं। 

हालाँकि, दक्षिण कश्मीर के भाजपा प्रभारी, वीर सराफ को इस फैसले में कुछ भी गलत नहीं दिखता। उनका कहना है कि जम्मू -कश्मीर दो क्षेत्र हैं, और हर कोई अपनी-अपनी असहमतियों को आधार बनाकर राजनीति कर रहा है, लेकिन वास्तविकता यह है कि वे सभी एक ही केंद्र शासित प्रदेश का हिस्सा हैं।

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, “यदि हम इसे विभाजित करते हैं, तो हम कभी हम एक जैसे नहीं हो सकते। मैं इसे व्यक्तिगत तौर एक स्वागत योग्य कदम के रूप में लेता हूँ, और मेरा दृढ मत है कि मेरी पार्टी भी इसका स्वागत करेगी।” 

परिसीमन आयोग एक स्वायत्त निकाय के तौर पर अपने कामकाज को कर पाने में विफल साबित हुआ है और भाजपा या भारत सरकार के द्वारा “प्रभावित” किया जा रहा है, के आरोपों को ख़ारिज करते हुए सराफ ने कहा कि उन्होंने खुद तीन सीटों पर कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षण के संबंध में सुझाव रखे थे, जो फलीभूत नहीं हो सके।

उन्होंने कहा, “हमारे प्रतिनिधित्व को स्वीकार नहीं किया गया, जबकि हम इसके लिए योग्य थे, लेकिन इससे मैं आयोग की समूची प्रकिया पर प्रश्न खड़े करने की भूमिका में नहीं आ सकता। परिसीमन आयोग ने अपने विवेक का इस्तेमाल किया है। भले ही हम इन सिफारिशों से सहमत न हों, इसके बावजूद मुझे नहीं लगता कि इस पर आक्षेप मढ़ना सही बात है।”

पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने बुधवार को कहा है कि परिसीमन रिपोर्ट एक विशेष पार्टी के लिए एक “बाधक” के रूप में कार्य करने के लिए की गई एक कवायद है।

उन्होंने कहा, “सरकार गफलत में है। इस प्रकार की चीजों को करने से जम्मू-कश्मीर में कुछ भी बदलने नहीं जा रहा है।”

कश्मीर आधारित दलों द्वारा भी इस बारे में आशंकाएं व्यक्त की गई है कि यह समूची कवायद इस क्षेत्र के मुसलमानों को “अक्षम” बनाने को लेकर की जा रही हैं। लेकिन दूसरा मसौदा प्रस्ताव पेश किये जाने के बाद से जम्मू में भी इसके कुछ छींटे पड़े हैं। जम्मू के नगरोटा इलाके में, पीडीपी और कांग्रेस सहित अधिकांश राजनीतिक दलों ने इस मसौदे को ख़ारिज करने के लिए एक संयुक्त मोर्चे का गठन किया है, जिसे जॉइंट एक्शन कमेटी (जेएसी) नाम दिया गया है। 

नगरोटा में स्थानीय प्रतिनिधियों ने, जिनमें अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी का बहुमत है, ने विधानसभा क्षेत्र में एसटी आरक्षण की उम्मीद जताई है। लेकिन प्रमुख इलाकों को नगरोटा निर्वाचन क्षेत्र से बाहर कर दिया गया है और जम्मू पूर्व में शामिल कर दिया गया है, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह “गलत हुआ है।”

जे एंड के नेशनल पैंथर पार्टी के जम्मू के वरिष्ठ राजनेता भीम सिंह ने भी दूसरे मसौदे के प्रस्तावों को ख़ारिज करते हुए आयोग की सिफारिशों को “शांति और सुरक्षा” के लिए “खतरनाक” बताया है।

एक बयान में, सिंह ने आरोप लगाया है कि रिपोर्ट एक तरह से 1951 की ओवेन डिक्सन प्लान को आगे बढ़ाने का साधन बन गया है, जिसे सभी राष्ट्रीय और राज्य की राजनीतिक पार्टियों ने ख़ारिज कर दिया था। उन्होंने कहा, “कई वजहों में से एक इस वजह से भी जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री, शेख अब्दुल्ला को तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरु ने 1953 में पद से बर्खास्त कर दिया था।”  

सिंह ने जिस डिक्सन प्लान का जिक्र किया है, उसका नाम संयुक्त राष्ट्र के एक प्रतिनिधि सर ओवेन डिक्सन के नाम पर रखा गया था, जिनको इस क्षेत्र पर संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के हिस्से के तौर पर लद्दाख को भारत को सौंपने, पाकिस्तान-नियंत्रित कश्मीर के हिस्सों को पाकिस्तान को सौंपने, जम्मू को दोनों के बीच विभक्त करने और कश्मीर घाटी के लिए एक “जनमत-संग्रह” कराने की परिकल्पना के लिए मध्यस्तता की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 

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