अभी और कितने दिन सदियों का संताप सहना है!
हमारा दलित साहित्य वास्तविक अर्थों में प्रतिरोध का साहित्य है। और इसके मज़बूत स्तंभ हैं ओमप्रकाश वाल्मीकि। ओमप्रकाश जी न केवल हिंदी के महत्वपूर्ण कवि हैं, बल्कि उन्होंने कहानियां भी लिखीं और आलोचना भी और जूठन जैसी आत्मकथा भी जो भीतर तक झकझोर देती है। बीते 30 जून को उनका जन्मदिन था। तो आइए 'सारे सुख़न हमारे' के इस एपिसोड में उन्हेें याद करते हुए उनकी कविताओं के ज़रिये हम अपने समाज की पड़ताल करते हैं।
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