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स्मृति शेष: संजीदा कवि व बेहद उम्दा चित्रकार थे सईद शेख़

सईद शेख़ 15 अगस्त, 1941 को नैनीताल ज़िले के भवाली में पैदा हुए थे और 1977 से ही फ़िनलैंड के तुर्कू शहर में रह रहे थे।
Saeed Sheikh

जाने-माने चित्रकार, कवि व अनुवादक सईद शेख़ का निधन हो गया है। वह फ़िनलैंड के तुर्कू शहर में रहते थे। वहीं उन्होंने आख़िरी सांस ली। वे 81 बरस के थे।

शुक्रवार, सवेरे, जिस सोसायटी में वह रहते थे, उसके चौकीदार ने उन्हें मृत पाया। उसने पुलिस को और फिर फ़िनलैंड में ही रह रहे उनके बेटे सलीम को इसकी ख़बर दी। उनके बेटे ने यह समाचार उतराखंड के भवाली में उनके बाक़ी परिजनों तक पहुंचाया।

सईद शेख़ 15 अगस्त, 1941 को नैनीताल ज़िले के भवाली में पैदा हुए थे और 1977 से ही तुर्कू में रह रहे थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई भवाली में हुई और आगे की पढ़ाई नैनीताल के डीएसबी कॉलेज से। नैनीताल का यह कॉलेज पहाड़ की कई साहित्यिक प्रतिभाओं को निखारने वाला रहा। यहीं सईद की मुलाक़ात कवि वीरेन डंगवाल से भी हुई। वह भले ही साइंस के विद्यार्थी रहे, लेकिन एक अच्छे कवि थे और बेहद ही शानदार चित्रकार भी। कॉलेज के दिनों में सईद शेख़ ने बटरोही, पुष्पेश पंत, श्याम टंडन, रमेश थपलियाल और ओमप्रकाश साह गंगोला के साथ मिलकर “द क्रैंक्स” नामक संस्था बनाई जिसमें सामयिक वैचारिक मुद्दों पर गहरे विचार-विमर्श व बहसें हुआ करती थीं। उनका वामपंथी झुकाव उसी समय से था।

उनकी पहली कविता ‘शरदोत्सव’ कल्पना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद कुछ और कविताएँ अन्य पत्रिकाओं में छपीं। 1967 में नैनीताल विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद वह पहले इलाहाबाद गए और फिर वहां से दिल्ली आ गए और कुछ समय पत्रकारिता की। फिर 1967 से 1970 तक वह दिल्ली में सोवियत सूचना विभाग में फ्रीलांस अनुवादक के तौर पर काम करते रहे और अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद का काम किया।

बेहद भावुक ह्रदय सईद शेख़ कुछ घटनाओं व पुलिसिया ज़्यादतियों के चलते यूरोप चले गए और उनके जीवन ने नाटकीय मोड़ ले लिया। कई सालों तक युवा ज़िंदगी की उथल-पुथल झेलने के बाद आख़िरकार वह 1977 में फ़िनलैंड के तुर्कू शहर में बस गए और अंतिम दम तक वहीं रहे। उन्होंने वहाँ तुर्कू म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में भी काम किया लेकिन ज़्यादातर ख़ुद को चित्रकला और लेखन में डुबोए रखा। वह भले ही तुर्कू में जा बसे लेकिन हिंदुस्तान हमेशा उनके दिल में बसा रहा।

हिंदी तो उनकी मातृभाषा थी ही, उर्दू व अंग्रेज़ी पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी। फिर प्रेम ने उन्हें जर्मन भाषा सिखाई और तुर्कू में बसने के बाद वह फ़िनिश के भी उस्ताद हो गए। उन्होंने तुर्कू यूनिवर्सिटी से बाक़ायदा फ़िनिश भाषा की पढ़ाई की।

सईद शेख़ ने फ़िनिश कवियों व लेखकों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद करने का महत्वपूर्ण काम किया। उनके कई अनुवाद हिंदी पत्रिका ‘तनाव’ में प्रकाशित हुए। मार्ती जोएनपॉल्वी और मारिया जोतुनी की लघु कहानियों का भी उन्होंने हिंदी में अनुवाद किया जो कई हिंदी पत्रिकाओं में छपा। उन्होंने महान फ़िनिश लेखक आलेक्सिस किवी के उपन्यास ‘सेवेन ब्रदर्स ’ का हिंदी में अनुवाद किया जो साल 2014 में ‘सात भाई ’ नाम से किताब की शक्ल में आधारशिला प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। यह उनकी पहली किताब थी।

इसके अलावा उन्होंने मिका वाल्तारी के ऐतिहासिक उपन्यास ‘द इजिप्शियन ’ और वाइना लिन्ना के उपन्यास ‘द अननोन सोल्जर ’ का भी फ़िनिश से हिंदी में अनुवाद किया था जो अभी तक अप्रकाशित हैं। ये दोनों ही फ़िनलैंड की बेहद लोकप्रिय साहित्यिक कृतियां में गिनी जाती हैं। फ़िनलैंड के सामी आदिवासियों के साहित्य पर सईद शेख़ ने काफ़ी काम किया। "शेखर पाठक द्वारा संपादित पहाड़ पोथी के साल 2016 के पहले अंक को एक पुस्तिका के रूप में सामी आदिवासियों के बारे में सईद शेख के लंबे लेख के साथ प्रकाशित किया गया था।"

कवि व अनुवादक के साथ-साथ सईद शेख़ बहुत बढ़िया चित्रकार भी थे। पेंटिंग के प्रति उनका लगाव पढ़ाई के दिनों से ही था। जब वह इलाहाबाद में थे तो 1967 के आसपास इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उनकी पहली पेंटिंग प्रदर्शनी हुई जो खासी सराही गई। उन दिनों की याद करते हुए वरिष्ठ कवि व लेखक और सईद शेख़ के दोस्त अजय सिंह बताते हैं कि जाने-माने लेखक व समीक्षक लक्ष्मीकांत वर्मा उस प्रदर्शनी को देखने आए थे और उसके बाद उन्होंने सईद की पेंटिंग के बारे में ‘दिनमान’ पत्रिका में लिखा।

पेंटिंग करना सईद शेख़ के लिए दिनचर्या का हिस्सा था। लेकिन यह अफ़सोस की बात रही कि उनकी चित्रकला का ज़्यादातर दौर तुर्कू में बीता जिसे यहाँ हिंदुस्तान में कम ही देखा-सुना गया। हालाँकि कई किताबों व पत्रिकाओं के कवर के तौर पर उनकी पेंटिंग सामने आती रहीं।

ख़ुद सईद शेख़ ने बताया था कि साल 2001 में वीरेन डंगवाल ने उन्हें तुर्कू पत्र भेजकर अपने दूसरे कविता संग्रह ‘दुश्चक्र में स्रष्टा’ के कवर के लिए एक चित्र माँगा था। साल 2002 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुए इस कविता संग्रह पर सईद शेख़ का बना हुआ चित्र ही इस्तेमाल हुआ था। इसी कविता संग्रह के लिए बाद में वीरेन डंगवाल को साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

फिर साल 2014 में गुलमोहर किताब से प्रकाशित शोभा सिंह के पहले कविता संग्रह ‘अर्द्ध विधवा’ के कवर पर भी सईद शेख़ की पेंटिंग इस्तेमाल की गई।

गुलमोहर किताब ने साल 2015 में प्रकाशित ओमप्रकाश नदीम के ग़ज़ल संग्रह ‘सामना सूरज से है’ के कवर पर भी सईद शेख़ की पेंटिंग इस्तेमाल की थी। ‘पहल’ व ‘आधारशिला’ पत्रिकाओं के कई अंकों के कवर पर उनकी पेंटिंग इस्तेमाल की गईं।

सईद शेख के किए अनुवाद तो फिर भी हम तक पहुंचते रहे लेकिन उनकी पेंटिंग व कविताएं वे जगह न पा सकीं, जिनकी वे हकदार हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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