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रणबीर सिंह बिष्ट: समाज को लेकर संवेदनशील सोच रखने वाले चित्रकार

बिष्ट बड़े चित्रकार थे। उन्होंने ख़ुद को केवल दृश्य चित्रण (लैंडस्केप) तक सीमित नहीं रखा। उनकी चित्रण शैली में समय के अनुसार बदलाव आता रहा है।
Ranbir Singh Bisht
रणबीर सिंह बिष्ट, साभार: कैटलाग, ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी

समकालीन भारतीय कला पर एक समीक्षात्मक दृष्टिकोण रखने वाले और आम लोगों की परेशानी, देश की बदहाली पर संवेदनशील सोच रखने वाले और प्रकृति के चितेरे रणबीर सिंह बिष्ट देश के एक कला रत्न रहे हैं।

मुझे लखनऊ में बिष्ट जी के चित्रों का अवलोकन करने का मौका अनेकों बार मिला। उनके भू-दृश्य चित्रों और आकृति मूलक चित्रों ने बेहद प्रभावित किया। खास कर समाज के मुसीबत ग्रस्त और उपेक्षित वर्ग पर उन्होंने बेहद मार्मिक चित्रण किया किया है। उदाहरण स्वरूप 'मंदिर के सामने' शीर्षक चित्र जिसे उन्होंने तैल रंगों से 1956 में बनाया था। लखनऊ के वरिष्ठ चित्रकार और कला समीक्षक अखिलेश निगम के अनुसार "यह भावना प्रधान चित्र, बिष्ट की स्केचबुक में, मंदिर के सामने के कई भिखारियों के रेखाचित्रों का परिणाम है, जिसमें रंग और भावनाओं का अद्भुत मिश्रण है।" साभार: समकालीन कला, प्र॰ललित कला अकादमी, नई दिल्ली।

कृष्ण नारायण कक्कड़ लंबे समय तक उ‌त्तर प्रदेश ललित कला अकादमी की पत्रिका 'कला - त्रैमासिक' के अवैतनिक संपादक थे। कला लेखन की उनकी अपनी मौलिक शैली थी। उन्होंने रणबीर सिंह बिष्ट की चित्रकला पर समय-समय पर पत्रिकाओं और अखबारों में लिखा है। कक्कड़ जी‌ ने हिंदुस्तान साप्ताहिक में लिखा,  "श्री‌ आर‌ एस बिष्ट, गढ़वाल के अत्यंत साधारण परिवार से आते हैं और उन्हें आज भी जीवन की सहजता, कर्मठता और सरलता से प्रेम है...श्री‌ बिष्ट अन्य किसी भी सच्चे आधुनिक कलाकार के‌ भांति उन सारी समस्याओं में गंभीरता से लगे हैं जो इस युग के कलाकारों के समक्ष प्रस्तुत है। वे इस अर्थ में आधुनिक चित्रकार नहीं हैं जो परंपरागत या यथार्थवादी शैलियों के कला-संयम के अर्जन पर महत्त्व देते हैं, वह मूलतः अपने विषय को अधिक प्रखर तथा प्रगाढ़ अभिव्यक्ति‌ देने के‌ प्रयास में व्यग्र हैं। उनमें वास्तविक रूप में आधुनिक कलाकार होने की संभावनाएं हैं।" साभार: कला त्रैमासिक, प्र॰ राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश।मंदिर के सामने, 1956,तैल रंगों में,91/122 से॰मी॰ चित्रकार:आर ॰एस॰बिष्ट

चित्रकार व लखनऊ कला महाविद्यालय के कुशल प्राध्यापक रणबीर सिंह बिष्ट का जन्म 4 अक्टूबर,1928 में उत्तराखंड के लैसडाऊन, गढ़वाल में हुआ था। पहाड़ों का नैसर्गिक सौंदर्य, विभिन्न मौसम, पहाड़ और जंगल को नया रूप देता है, सुबह से लेकर सांझ बेला तक में उनका रूप बदलता रहता है। वहां के संघर्षपूर्ण कर्मठ जीवन ने बिष्ट जी की‌ कला को निखारने में बड़ी भूमिका निभाई।

रणबीर सिंह बिष्ट का कला छात्र के रूप में जीवन 1948 से लखनऊ कला महाविद्यालय में शुरू हुआ। उन्होंने बेहद परिश्रम से कला की सभी तकनीकों पर अपनी पकड़ बनाई। उन्होंने वाश चित्रण शैली, यथार्थवादी अकादमिक शैली और जलरंग चित्रण शैली में अपनी कुशलता बनाई। बिष्ट जी के जलरंग, दृश्य चित्रों के लिए प्रख्यात रहे हैं। उनके दृश्य चित्रों (लैंडस्केप) में रंगों का सुंदर संयोजन, छाया-प्रकाश और गतिपूर्ण रेखाओं का अंकन है। उन्होंने अपने पसंदीदा विषय पर सार्थक चित्रण के लिए और भारत के प्राकृतिक-सामाजिक जीवन को दर्शाने के लिए अनेक जगह भ्रमण किया। फलस्वरूप उनके चित्रों में वहां के स्थानीय लोगों के सुंदर आवास, पहाड़, चट्टान, पेड़ -पौधों का नैसर्गिक सौंदर्य बार-बार प्रकट हुआ। कृष्ण नारायण कक्कड़ जी के अनुसार, '1956 तक बिष्ट जी की ख्याति मुख्यतः एक रोचक जल-चित्र व भूखंड चित्रकार के रूप में थी।'

1960 के समय में लखनऊ में बहुत प्रचंड बाढ़ आयी थी। गोमती नदी ने विकराल रूप धारण कर लखनऊ के बड़े हिस्से को प्रभावित किया था‌। बिष्ट ने लोगों की पीड़ा को महसूस किया और अनेक रेखा चित्र और जलरंग चित्र बनाए। कक्कड़ जी के अनुसार 'उस समय ऐसे बहुत कम कलाकार लखनऊ शहर में थे जिन्होंने उस अनुभव को इतनी गहराई से देखा और समझा हो।'

दृश्य कला और नाट्य कला में प्रगाढ़ गहरा संबंध रहा है। देश के मशहूर नाटककार राज बिसारिया के निर्देशन में, 'थियेटर आर्ट वर्कशॉप' ने अपना दशक मनाया जिसके तहत रणबीर सिंह बिष्ट के ढेरों लघु चित्र उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ के कला वीथिका में प्रदर्शित किए गए। यह एक सफल कला आयोजन था।

हमने कई ऐसे कलाकारों को देखा जो अपने निजी फायदे के लिए अपनी अभिव्यक्ति के विषय और विचार बदलते रहते हैं। सामाजिक बदहाली, विरूपण की ओर आंख मूंद लेते हैं। वे बहुत बड़े समूह में हैं उनका घेरा बहुत बड़ा है। इसके विपरीत रणबीर सिंह बिष्ट ऐसे चित्रकार नहीं थे। उनका एक प्रगतिशील कलाकार, साहित्यकारों वाला दायरा था जिनके बीच सामाजिक बदलाव, कला और कलाकार के उन्नयन पर‌ बातें होती रहती थीं। श्याम अंकुरम बताते हैं कि "बिष्ट जी कविताएं भी लिखते थें। एक बार लखनऊ कला महाविद्यालय के छात्र हड़ताल पर बैठे हुए थे, उन्होंने अपने समर्थन के लिए श्याम को विश्वविद्यालय परिसर में बुलाया था। उस समय रणबीर सिंह बिष्ट ही प्रिंसिपल थे। वे जानते थे श्याम कवि हैं, उन्होंने श्याम को अपने कक्ष में बुलाया और बड़े प्रेम से कविताएं सुनाने लगे।"

जल रंगों के दृश्य चित्रों में बिष्ट जी ने मौलिक रंगों का प्रयोग किया है जिसमें मैदानी और पहाड़ी दृश्य प्रमुख हैं।

बिष्ट बड़े चित्रकार थे। उन्होंने अपने को केवल दृश्य चित्रण तक सीमित नहीं रखा। उनकी चित्रण शैली में समय के अनुसार बदलाव आता रहा है। उनके 1963‌ की चित्र आकृति मूलक तो‌ हैं लेकिन उनमें मनुष्य आकृतियों के सिर गायब हैं,  लेकिन आंख और मस्तिष्क चित्रित हैं। सामाजिक अव्यवस्था और लोगों का व्यवहार कलाकार को बाध्य करता है कि वह प्रतीकात्मक ढंग से ही‌ सही अपनी बात रखें। कला एक ऐसी भाषा है जहां कलाकार अपनी अव्यक्त भावनाओं को अभिव्यक्त करता है। इसके बाद के‌ कई चित्रों में बिष्ट ने रेखा प्रधान आकारों को‌ कम रंगों में बांधने की कोशिश की। फूलों से भरे वृक्षों के चित्र, बड़े आकार के रात्रि दृश्य चित्र, जिसमें काले, लाल और पीले रंगों वाले चित्र भी हैं।

बिष्ट जी के चित्र शैली परिवर्तन के बारे में कक्कड़ जी लिखते है, "यह शैली स्तर पर एक विचित्र प्रकार की टकराहट थी। एक ओर पहाड़ों में उनका प्रारंभिक जीवन बिताना और साथ ही नागरिक जीवन की जटिलताओं से उनका साक्षात्कार - इन दो तथ्यों ने बिष्ट के व्यक्तित्व को एक विचारशील व्यक्ति और एक कलाकार का रूप प्रदान किया। "साभार: स्टेट्समैन, 25 सितंबर 1977

दृश्य चित्र -जलरंग,1958-से॰मी॰, साभार: कैटलाग, ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश

साल 1965 से बिष्ट जी आंतरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति के तहत अमूर्तता की ओर आए। अपने नीले रंगों की प्रमुखता वाले चित्रों में उन्होंने ब्रह्मांड को बनाया।

ध्यान देने की बात है, रणबीर सिंह बिष्ट जिस कला महाविद्यालय की उपज हैं वहां बंगाल स्कूल के वाश चित्रण का प्रभाव था। ललित मोहन सेन उनके अध्यापक रहे हैं। परंतु बिष्ट के चित्रों में गहरे और प्रखर रंगों का कौशल पूर्ण ढंग से प्रयोग हुआ है।

चित्रकार -रणवीर सिंह बिष्ट, साभार:कला त्रैमासिक, पत्रिका ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश

रणबीर सिंह बिष्ट एक प्रतिभाशाली चित्रकार के साथ-साथ एक कुशल प्राध्यापक और कला चिंतक भी थे। समकालीन कला और कलाकार के ऊपर समय-समय पर उनके लेख प्रकाशित होते रहे हैं। कला समीक्षक कृष्ण नारायण कक्कड़ जी को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने समकालीन भारतीय कला स्थिति पर कहा, "कलाकृति एक सामग्री मात्र बन कर रह गई है जबकि वह सामग्री वास्तव में कलाकार का व्यक्तिगत अनुभव होती है और जिसमें उसके सौंदर्यमूलक तत्व समाहित होते हैं। स्थिति में परिवर्तन होने के कारण कला मनोरंजन के क्षेत्र में आती जा रही है। बजाए इसके कि वह एक व्यक्तिगत सत्य जो व्यक्ति की अनुभूतिपरकता से उत्पन्न होता है।" (साभार : कला त्रैमासिक पत्रिका) उक्त कथन आज की कला‌ के लिए सटीक है।

रणबीर सिंह बिष्ट के दौर में राजनीति इतनी हावी नहीं थी। इसलिए उन्हें समय-समय पर अनेकों पुरस्कार, सम्मान से नवाजा गया जिसमें पद्मश्री भी शामिल है। उन्होंने देश विदेश की यात्राएं कीं और महत्वपूर्ण जगहों पर उनके चित्र संग्रहित हैं।

(लेखिका स्वयं एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिंदी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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