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कला गुरु ललित मोहन सेन: देशज यथार्थवादी कलाकार

ऐसे समय में जबकि कला क्षेत्र में आत्म प्रचार का दौर सा है। ईमानदार वरिष्ठ कलाकारों के कृतियां न देखने को मिल रही और न बेहतर कला तकनीक सीखने को, तो बेहद ज़रूरी है ललित मोहन सेन जैसे कलाकारों को याद करने की।
lalit mohan sen

कला गुरु ललित मोहन सेन की कला , व्यक्तित्व और विशेषताओं पर लिखते समय एहसास हो रहा है कि बहुत जरूरी है ऐसे महान कला शिक्षक, कलाकार के बारे में जानकारी मिले जिन्होंने निजी हितों का परवाह न करके सदैव छात्रों के बेहतर भविष्य के बारे में सोचा और उन्हें कठोर मेहनत करके उत्कृष्ट कला सृजन को प्रेरित किया। ललित मोहन लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय के स्वर्णिम दौर के कला गुरु थे।

ललित मोहन

प्रख्यात चित्रकार मदन लाल नागर जो  उनके शिष्य रह चुके थे, उन्होंने उनके बारे में लिखा—"शास्त्रीय पद्धति  के आचार्य सेन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, यह तथ्य सर्वमान्य ही है। कला एवं शिल्प की अनेक विद्याओं को उन्होंने जिस रसमय सहजता से न केवल ग्रहण किया था, बल्कि उसमें जो निपुणता प्राप्त की थी, वह उनकी अन्य खूबियों के साथ मिलकर उनके प्रति हमारी श्रद्धा और प्रेम को ही अभिव्यक्ति  करती थी। 'पोट्रेट' और 'लैंडस्केप' के तो वह माने हुए आचार्य थे और उत्तर प्रदेश के ग्राम्य चित्रों में तो उनका समूचा व्यक्तित्व ही समाहित मिलता है। गांवों के मटमैले झोपड़ी, मकानों की खुरदरी दीवारों पर पड़ती सूर्य की प्रखर धूप और छांह जैसा सजीव अंकन कलाकार के चित्रों में था, वही खुरदुरापन, वही प्रखर तेज और छांव लिये था उनका अपना व्यक्तित्व। काला रंग, औसत लम्बान और मोटे शरीर और मोटे ही नाक नक्श, उन्नत ललाट पर बल पड़े हुए,सिर पर थोड़े बाल,क्लीन शेव चेहरा, नाक और होठ के बीच का भाग कुछ अधिक ही चौड़ा और उभरा हुआ, आंखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा और मुंह में दबा मोटा चुरूट, ढीले ढाले पतलून या कभी धोती पर ही बुशर्ट जिसके कुछ बटन अक्सर गायब ही रहते, पैरों में सैण्डिल पहने धप-धप करते पैर पटकती चाल -- यह थी हमारे सेन साहब की छटा। किन्तु सब मिलकर उस असुंदर मनुष्य के व्यक्तित्व में कुछ ऐसा निरालापन और प्रखरता थी जो आम भीड़ से उसे पृथक कर देती थी।'' साभार : कला त्रैमासिक, उत्तर प्रदेश, राज्य ललित कला अकादमी।

काष्ठ छापा चित्र, चित्रकार: ललित मोहन सेन, साभार: कला त्रैमासिक

ललित मोहन सेन की कला और व्यक्तित्व पर इतना सुंदर वर्णन मदनलाल नागर जैसे  संवेदनशील चित्रकार और कला गुरु ही कर सकते हैं।

ललित मोहन सेन एक उत्कृष्ट चित्रकार, मूर्तिकार,छापा चित्रकार के साथ ही कुशल फोटोग्राफर भी थे। उनकी चित्रकला के सभी माध्यमों तैल रंग, जलरंग, पेस्टल, इंक, वाश पेंटिंग और टेम्परा बहुत अच्छी पकड़ थी। आज के नव कलाकार पुरस्कार और प्रसिद्ध पाने के ऐसे होड़ में हैं कि कला के नियमों और तकनीकी जानकारी हासिल करने में पिछड़ रहे हैं। अब न ललित मोहन सेन जैसे कला गुरु हैं और न कला के प्रति समर्पित छात्र। अपने गुणों के कारण ललित मोहन सेन के ‌रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अवनीन्द्रनाथ नाथ ठाकुर, गगनेन्द्रनाथ ठाकुर, असित कुमार हाल्दार, यामिनी राय,जे ॰ पी॓॰ गांगुली और अमृता शेरगिल से  बहुत अच्छे संबंध थे।

ललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के नादिया जिले के शांति नगर में हुआ था।1911 में वे लखनऊ आए। उनकी विद्यालीयन शिक्षा क्वींस हाई स्कूल लखनऊ में हुई।  ललित मोहन कला एवं शिल्प महाविद्यालय  में 1912 में दाखिला लिया। वे महाविद्यालय के उसी बैच के छात्र थे जिन्हें पहली बार डिप्लोमा प्राप्त हुआ। वह वर्ष 1918 था जब उन्होंने उसी विद्यालय में अध्यापन का अवसर मिला। सन् 1923 में ललित मोहन सेन को कला के क्षेत्र में छात्रवृत्ति मिली और वे रायल कॉलेज ऑफ आर्ट्स लंदन में उच्च शिक्षा प्राप्त किया। वहां से वापस लौटने पर इंग्लैंड के इंडिया हाउस में भित्ति चित्र अंकित करने के लिए आमंत्रित किया गया।  पूरे भारत से केवल चार कलाकारों को ही चयनित किया गया था जिसमें ललित मोहन सेन एक थे। लंदन से लौटने के बाद वे फिर से लखनऊ कला एवं महाविद्यालय में अध्यापन किया और प्रिंसिपल पद भी कुशलतापूर्वक संभाला।

महिला, चित्रकार: ललित मोहन सेन, साभार:कला त्रैमासिक

ललित मोहन सेन का आरंभिक जीवन भीषण अभाव और संघर्षपूर्ण रहा। लेकिन इन्हीं अभावों ने उन्हें मेहनती और दूसरों के लिए संवेदनशील कलाकार बनने की प्रेरणा दी।‌ बाद में उन्हें पैसे की कमी नहीं रही‌ लेकिन उन्होंने पैसों को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।‌ वे गलत बात पर कभी झुकते नहीं थे। ललित मोहन मूलतः बेहद दयालु व्यक्ति थे। अपने छात्रों को वे बेहद प्यार करते थे।            

भारतीय कला के जिस दौर में ललित मोहन सेन  शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उस समय ब्रिटिश अकादमिक शैली ही हावी थी। जिसके तहत कला के छात्रों को व्यक्ति चित्रण, मुखाकृति चित्रण, भूदृश्य चित्रण पर ज्यादा जोर था। ललित मोहन भी यथार्थवादी शैली में ही चित्र बनाते थे। बाद में वे बंगाल पुनरूत्थानवादी चित्रकारों के संपर्क में आए, जिनसे उनके बहुत अच्छे संबंध थे। उनकी रेखा प्रधान चित्रों में रेखाएं प्रभावशाली और गतिशील हैं खासकर छापा चित्रों में। उन्होंने मुखाकृति बनाते समय भावों के अंकन पर बहुत ध्यान दिया है। जिससे चित्र सजीव से लगते हैं। यथार्थवादी शैली के चित्रकार होते हुए भी ललित मोहन सेन एक ही लीक पर‌ चलने के विरोधी थे। उन्होंने यथार्थवाद शैली में चित्रण के साथ -साथ के साथ बंगाल स्कूल के तकनीकियों और  सौंदर्यशास्त्र को समझा और अपने चित्रों में देशज और पाश्चात्य कला तकनीकी का कुशलता पूर्वक सामंजस्य किया। सफेद और लाल रंग उनके प्रिय रंग थे फिर भी अन्य रंगों का भी सुंदर प्रयोग करते थे। उनके भूदृश्य चित्रों में ' रिवर कुकरैल,' मार्निंग इन टी.जी.',बनारस घाट, और  शबीह चित्रों (पोट्रेट) में मिसेज बी.सेन, अंगारिका गोविंद,मिस पूर्णिमा सेन ,श्री बी.एस सरकार प्रमुख हैं। मलिनोकट छापा चित्रण में,रविन्द्र नाथ टैगोर की उन्होंने सुंदर छवि अंकित की है।

मुखाकृति, चित्रकार: ललित मोहन सेन, साभार: कला त्रैमासिक, प्रकाशन, उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी

ललित मोहन सेन की फोटोग्राफी पर बढ़िया पकड़ थी। उन्होंने 1932 में यूपी एमेच्योर फोटोग्राफिक एसोसिएशन का गठन किया। जिससे लखनऊ भी अंतरराष्ट्रीय कला गतिविधियों से रूबरू होने लगा।

ऐसे समय में जबकि कला क्षेत्र में आत्म प्रचार का दौर सा है। ईमानदार वरिष्ठ कलाकारों के कृतियां न देखने को मिल रही और न बेहतर कला तकनीक सीखने को, तो बेहद जरूरी है ललित मोहन सेन जैसे कलाकारों को याद करने की। उनके शिष्यों में बी.एन. झिज्जा, बी सी घूमे, एस सेन राय, ईश्वर दास, एच एल मेढ़, इफ्तखार अहमद, उमेश चंद्र,  ग्राफिक आर्टिस्ट और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे पी. बनर्जी ,एम.ए नागर और रणबीर बिष्ट  दोनों ही लखनऊ कला में प्राध्यापक और प्रिंसिपल भी रहे आदि प्रमुख हैं। ललित मोहन सेन अकेले रहते हुए भी सबके साथ चले। 2 अक्टूबर 1954 में उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई और भारतीय कला जगत में वे एक रिक्त स्थान छोड़ गए। ललित मोहन सेन महान कलाकार थे, उनकी कलाकृतियों को बेहतर ढंग से संरक्षित करने और सामने लाने की जरूरत है। उनकी कई सुंदर कलाकृतियां महत्वपूर्ण कला संग्रहालय जैसे विक्टोरिया अल्बर्ट संग्रहालय, ब्रिटिश अकादमी में संग्रहीत  हैं। 

लैंडस्केप, चित्रकार: ललित मोहन सेन

आज के समय में ललित मोहन सेन जैसे कलाकार और कला गुरू  बहुत कम हैं।‌ विशेषकर हिंदी भाषी क्षेत्र के कला संस्थान जिनका शैक्षिक स्तर बेहतर शिक्षकों के अभाव में बेहतर और उत्कृष्ट नहीं हो पा रहा है, वहां कला के छात्रों को ललित मोहन सेन के मेहनत पूर्ण कार्य क्षमता को अपनाने की ओर प्रेरित करने की‌ जरूरत है। उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी द्वारा ललित मोहन सेन की उपेक्षा की गई है। उनकी कलाकृतियों को समुचित रूप से सहेजा नहीं गया।

(लेखिका स्वयं एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिंदी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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