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स्पेशल रिपोर्टः 'रेवड़ी कल्चर' पर बहस के बीच कर्नाटक सरकार की ‘काशी दर्शन यात्रा’

धार्मिक बंदोबस्ती और हज एवं वक्फ मंत्री शशिकला जोले मीडिया से कहती हैं, "कर्नाटक मूल के ग़रीब तबके के लोगों के लिए ‘काशी यात्रा’ शुरू की गई है। पांच हजार रुपये की सहायता राशि सिर्फ़ उन्हीं लोगों को दी जाएगी जो बनारस स्थित विश्वनाथ मंदिर में ‘पूजा रसीद’ जैसे साक्ष्य पेश करेंगे।"
Kashi Darshan Yatra
काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए कर्नाटक के बीजापुर से आए लोग। 

उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ़्त की रेवड़ी बांटकर ख़रीद लेंगे। हमें मिलकर उनकी इस सोच को हराना है। रेवड़ी कल्चर को देश की राजनीति से हटाना है...। मुफ़्त में सुविधाएं देने से राज्यों का खज़ाना ख़ाली हो रहा है....।"

मोदी का 'रेवड़ी कल्चर' और मुफ़्त की रेवड़ी बांटकर जनता को ख़रीदने का बयान जिस वक्त आया, उसी समय कर्नाटक में बीजेपी की बोम्मई सरकार ने काशी दर्शन योजना लांच की। दक्षिण को साधने के लिए बीजेपी सरकार एक तरफ तमिलनाडु के लोगों को बनारस, प्रयागराज और अयोध्या की सैर करा रही है तो दूसरी ओर, कर्नाटक की बोम्मई सरकार काशी यात्रा के नाम पर टैक्सपेयर का पैसा धड़ल्ले से लुटा रही है।

विश्वनाथ मंदिर का दर्शन करते कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई अपनी पत्नी के साथ।

मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कर्नाटक के करीब 30 हजार लोगों को काशी यात्रा कराने का ऐलान किया है। यूपी के बनारस स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन करने के इच्छुक सभी तीर्थयात्रियों को पांच-पांच हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। पहले चरण में सात करोड़ रुपये की मंजूरी दी है, जिसके उपभोग के लिए धार्मिक बंदोबस्ती विभाग को ऑथराइज़्ड किया गया है। धार्मिक बंदोबस्ती और हज एवं वक्फ मंत्री शशिकला जोले मीडिया से कहती हैं, "कर्नाटक मूल के गरीब तबके के लोगों के लिए ‘काशी यात्रा’ शुरू की गई है। पांच हजार रुपये की सहायता राशि सिर्फ उन्हीं लोगों को दी जाएगी जो बनारस स्थित विश्वनाथ मंदिर में ‘पूजा रसीद’ जैसे साक्ष्य पेश करेंगे।"

तीर्थयात्रियों से गुलजार कर्नाटक गेस्ट हाउस।

गद्गद हैं तीर्थाटन करने वाले

रेवड़ी, फ्री-बी, मुफ़्तख़ोरी बहस के बीच सियासी दलों की तरफ़ से फोकट में चीज़ें देने पर सुप्रीम कोर्ट में डाली गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। बीजेपी सरकार की ब्रांडिंग करने के लिए एक तरफ बनारस के अखबार काशी-तमिल संगमम की खबरों से रंगे हुए हैं तो दूसरी ओर, गुपचुप तरीके से कर्नाटक के लोगों को पैसे का लालच देकर काशी दर्शन कराया जा रहा है।

बनारस के हनुमान घाट स्थित कर्नाटक गेस्ट हाउस आजकल काफी गुलजार है। बीजापुर जिले से आए चालीस लोगों का जत्था इसी गेस्ट हाउस में ठहरा हुआ है, जिनमें दो तिहाई ज्यादा महिलाएं हैं। योग की शिक्षिका सावित्री आर.मठ और रिटायर्ड टीचर राजेश्वर वी पाटिल इस बात से मगन हैं कि कर्नाटक सरकार की 'काशी यात्रा' योजना के चलते वो काशी विश्वनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक करा पाए। पाटिल कहते हैं, "विश्वनाथ धाम स्वर्ग जैसा लग रहा है। हमें अच्छी तरह से पूजन-दर्शन कराया गया और रुद्राभिषेक भी। मन को बहुत शांति मिली।"

तीर्थाटन करने आईं महिलाएं

हमारी मुलाकात सावित्री विजय लक्ष्मी पाटिल से हुई तो वह तहकीकात करने में उत्सुक नजर आईं कि काशी में किफायती बनारसी साड़ियां कहां मिलेंगी? बीजापुर में रुद्राक्ष की माला का कारोबार करने वाली एम.विजय लक्ष्मी और टेलरिंग करने वाली शोभा एस.कोटिखाने ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, "सरकार ने हमें तीर्थाटन के लिए पैसा दिया तो हम काशी देखकर अभिभूत हो गए।" हालांकि अनसूइया स्वामी बनारस प्रशासन के ढीले रवैया से आक्रोशित नजर आईं। उन्होंने कहा, "हमने हरिश्चंद्र घाट पर शवों को जलते और राख गंगा में ढकेलते हुए देखा। ज्यादा बुरा अनुभव तब हुआ जब हमारी आंखों के सामने दो डेड बॉडी को सीधे प्रवाहित किया जा रहा था। डेड बॉडी, कूड़ा-कचरा और शव जलाने वाली लकड़ियों की राख को गंगा में फेंकते देख रुह कांप उठी। शहर साफ-सुथरा नहीं है। यहां जाम की समस्या विकट है।"

बातचीत के बीच नीला गुगिया और प्रेमा एम.मैद्रिकी ने हां में हां मिलाई। इसी बीच कर्नाटक के बीजापुर से ही आए अशोक हुल्लर ने सवाल दागा, "समझ में नहीं आ रहा है कि इस शहर के हुक्मारान कैसे हैं? अमृत महोत्सव बीत गया, लेकिन घरों के ऊपर फटे-चिथड़े तिरंगे अब तक फहराए जा रहे हैं और अफसरान राष्ट्रध्वज का अपमान बर्दाश्त कर रहे हैं।"

काशी तीर्थ योजना के तहत कर्नाटक से आने वाले तीर्थ यात्रियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया यही रही कि पांच हजार रुपये के सरकारी अनुदान से काशी यात्रा उनका मनोरथ पूरा हो गया। कर्नाटक के इस जत्थे का नेतृत्व कर रहे गागलकोट के गाइड आनंद ने "न्यूज़क्लिक" से कहा, "हमें नहीं मालूम की पैसा कहां से आ रहा है, लेकिन मोदीजी का दिल से सेल्यूट करना चाहूंगा कि जो भी बनारस आ रहा है उसके एकाउंट में सीधे पैसा चला जा रहा है।"

काशी दर्शन यात्रा चुनावी हथकंडा

कर्नाटक के बोम्मई सरकार के काशी दर्शन यात्रा योजना को काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी चुनावी हथकंडा बताते हैं। वह कहते हैं, " रेवड़ी कल्चर’ पर प्रधानमंत्री चाहे कुछ भी बोलें, लेकिन उनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क है। वो ‘रेवड़ी कल्चर’ पर सिर्फ लच्छेदार भाषण दे लेते हैं, लेकिन इस कल्चर के सबसे बड़े पोषक वही हैं। गरीबी, बेरोजगारी और फटेहाल व्यवस्था को ताक पर रखकर सर्वाधिक रेवड़ियां उन्हीं राज्यों में बांटी जा रही हैं जहां बीजेपी की सरकारें हैं। रेवड़ी बांटने के मामले में कर्नाटक की बोम्मई सरकार सबसे आगे है। कर्नाटक में अगले साल मई से पहले होने वाले विधानसभा चुनाव में समर्थन जुटाने की कवायद का दूसरा नाम है काशी दर्शन। इसी लिए पांच-पांच हजार रुपये की रेवड़ियां बांटी जा रही हैं। इस रेवड़ी से बीजेपी को मुफ्त में चुनाव एजेंट मिल जाएंगे और उनके कार्यकर्ताओं के देशाटन का मकसद भी पूरा हो जाएगा। कर्नाटक से जो लोग काशी दर्शन की रेवड़ी लेकर आ रहे हैं उनमें गरीब कम, सुविधा-संपन्न लोग ज्यादा हैं।"

पूर्व महंत राजेंद्र काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास के 286 देव-विग्रहों को तोड़े जाने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहते हैं, "पीएम नरेंद्र मोदी ने बाबा के मंदिर को धर्म के व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र बना दिया है। पहले यहां दुनिया भर से दिग्गज महापुरुष ज्ञान अर्जन करने आते थे। दुख इस बात का है कि काशी में सनातन संस्कृति के मूल पर प्रहार किया जा रहा है और हर कोई चुप है। दक्षिणी राज्यों में अपना पैर को जमाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रही बीजेपी चाहे जितना हाथ-पैर मार ले, उसे वहां कुछ भी नहीं मिलने वाला।"

"बनारस के लोग भले ही चुप हैं, लेकिन हर किसी के दिल में मंदिरों और विग्रहों पर बुल्डोजर चलाए जाने की तल्खी कम नहीं हुई है। काशी दर्शन के बहाने इनकम टैक्स का पैसा फिजूलखर्ची में बहाया जा रहा है। पैसा जनता का है और कर्नाटक व तमिलनाडु से आने वाले धर्मभीरू लोग सरकार का एहसान जता रहे हैं। आप ग्राउंड पर जाकर देखेंगे तो हालात बिल्कुल अलग हैं। एक बड़ी आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे हैं। इनमें बीस-तीस फीसदी तो ऐसे हैं जो कल्याणकारी योजनाओं के बंद होने पर दोबारा भूख से मरने के कगार पर आ जाएंगे। हैरत की बात यह है कि जिन्हें सचमुच सरकारी सुविधाओं की दरकार है, उनके मुंह से निवाला छीना जा रहा है। काशी दर्शन के बहाने गरीबों को लालची, लोभी और मूर्ख बनाया जा रहा है।"

पूर्वांचल के चंदौली के नौगढ़, सोनभद्र और मिर्जापुर के जंगली इलाकों में रहने वालों की चिंता किसी को नहीं है। सिर्फ यूपी ही नहीं, झारखंड, केरल, ओडिशा और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं जहां पिछले तीन सालों में सबसे ज़्यादा सब्सिडी का पैसा ख़र्च किया गया है। इन राज्यों में वित्तीय साल 2019 के समय कुल जीडीपी का करीब 7.8 प्रतिशत पैसा सब्सिडी पर ख़र्च होता था जो 2021-22 तक आते आते 11.2 प्रतिशत तक पहुंच गया है। गुजरात, पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकारें भी सब्सिडी पर कुल जीडीपी के दस प्रतिशत से ज़्यादा पैसा ख़र्च कर रही हैं। और यह पैसा गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं पर कम इस तरह के सियासी मकसद के लिए ज़्यादा किया जा रहा है।

बोम्मई सरकार की काशी यात्रा के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2022 के पहले पखवाड़े में बेंगलूरु के केएसआर रेलवे स्टेशन पर 'भारत गौरव काशी दर्शन' ट्रेन को हरी झंडी दिखाई। बाद में मोदी ने एक ट्वीट भी किया, "भारत गौरव काशी यात्रा ट्रेन शुरू करने वाला पहला राज्य होने के लिए कर्नाटक को बधाई देना चाहता हूं। यह ट्रेन काशी और कर्नाटक को करीब लाती है। तीर्थयात्री और पर्यटक आसानी से काशी, अयोध्या और प्रयागराज की यात्रा कर सकेंगे।" 13 नवंबर 2022 को भारत गौरव टूरिस्ट ट्रेन जब 600 तीर्थ यात्रियों को लेकर बनारस जंक्शन पर पहुंची तो उनके स्वागत के लिए कर्नाटक की धार्मिक बंदोबस्ती मंत्री शशिकला जोले खुद मौजूद थीं।

प्रेसवार्ता में उन्होंने दावा किया, "मेरे राज्य के अधिकांश लोग चाहते हैं कि जीवन में कम से कम एक बार काशी यात्रा की जाए। इस तरह का कार्यक्रम शुरू करने की मेरी भी इच्छा थी, जो कि अब पूरी हो रही है। कर्नाटक सरकार ने तय किया है कि वह हर साल राज्य के 30 हजार लोगों को काशी दर्शन कराएगी। काशी आने वाले सभी तीर्थ यात्रियों को पांच-पांच हजार रुपये दिए जाएंगे। मोदीजी के नेतृत्व में बनारस चमचमा रहा है। काशी विश्वनाथ धाम तो अब देखते बन रहा है। यहां आने पर एहसास हुआ कि गंगा घाट सुंदर हो रहे हैं। सड़कें पहले से ज्यादा बेहतर हैं। हर ओर विकास दिख रहा है।"

कर्नाटक गेस्ट हाउस का तटवर्ती हिस्सा।

काशी यात्रा की ज़रूरत क्यों?

कर्नाटक के लोगों के लिए शुरू की गई काशी दर्शन योजना के तहत पांच हजार रुपये बांटने की व्यवस्था हनुमान घाट स्थित कर्नाटक स्टेट गवर्नमेंट गेस्ट हाउस में की गई है। यात्रियों को यहां सस्ती दरों पर ठहराया जा रहा है। यह गेस्ट हाउस मैसूर के लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है, क्योंकि तत्कालीन महाराजा नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार ने 20वीं सदी में इसका निर्माण कराया था। कुछ साल पहले कर्नाटक सरकार ने इसे अपने कब्जे में ले लिया और जीर्णोद्धार कराया। राजा नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार पहले साल में एक बार काशी जरूर आते थे और उसी गेस्ट हाउस में ठहरते थे। 50 सीढ़ियां चढ़कर, वह गंगा स्नान करते थे।

बनारस रेलवे स्टेशन से करीब छह किमी दूर स्थित कर्नाटक स्टेट गवर्नमेंट गेस्ट हाउस के किनारे से गंगा बहती है। गेस्ट हाउस के बाईं ओर हरिश्चंद्र घाट की रखवाली करने वाले हरिश्चंद्र की परंपरा जिंदा है। अतिथि गृह के प्रबंधक एसएम वेंकटेशमूर्ति कहते हैं, "कर्नाटक स्टेट गवर्नमेंट गेस्ट हाउस में कुल 17 कमरे और एक बड़ा हॉल है। तीर्थ यात्रियों के लिए यहां गंगा स्नान, वाहन व्यवस्था और भोजन सुविधा भी मुहैया करी जाती है। कर्नाटक से जो भी बनारस आता है, हम उसकी मदद के लिए मौजूद रहते हैं। कर्नाटक और वाराणसी के बीच की दूरी का विश्लेषण करें, तो यह लगभग 1700 किमी है, जो एक बहुत लंबी यात्रा है। यात्रा अनुदान से गरीबों की मुरादें पूरी हो रही हैं।"

गेस्ट हाउस

बनारस के जाने-माने मुखर वक्ता वैभव त्रिपाठी कहते हैं, "कर्नाटक सरककार की तीर्थयात्रा योजना हो या फिर काशी-तमिल संगमम, ये वक्त की जरूरत नहीं है। देश के करोड़ों नौजवान नौकरी की तलाश में मारे-मारे फिर रहे हैं। आसमान छू रही महंगाई और भ्रष्टचार से देश कराह रहा है और बीजेपी सरकार खुद ‘रेवड़ी कल्चर’ को बढ़ावा दे रही है। दक्षिण से आने वाले श्रद्धालुओं को शायद यह पता नहीं है कि वो जिस विश्वनाथ कारिडोर को देखने आ रहे हैं उसे पर्यटक स्थल बनाने में मोदी सरकार ने न जाने कितने शिव विग्रहों को तोड़ा और पुरातन मंदिरों को मिट्टी में मिला दिया। मंदिरों व देव विग्रहों पर चले हथौड़ों की कोई भी देख लेगा तो वो बीजेपी सरकार से घृणा करने लग जाएगा। मंदिर को माल बनाने के लिए नेस्तनाबूत किए गए काशी खंडोक्त के सैकड़ों विग्रहों के अलावा बाबा विश्वनाथ की कचहरी और अक्षयवट को उजाड़ फेंकने की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है।"

वैभव यह भी कहते हैं, "वणक्कम काशी का नारा गढ़ने से बनारस का भाग्य नहीं संवरने वाला। बनारस की गंगा में दर्जनों नाले पूरे वेग से नदी को गंदा कर रहे हैं और दावा यह किया जा रहा है कि शहर स्मार्ट हो रहा है। दक्षिण के लोगों को दूर गंगा अविरल दिखती है, लेकिन अस्सी और वरुणा नदी से होकर गिरने वाला मल-जल नहीं दिखता, अन्यथा मोदी के प्रति मान-सम्मान का नजरिया वैर-भाव में बदल जाता। इन्हें असी और वरुणा नदियों की कोई चिंता नहीं है। इन्हें चिंता है तो सिर्फ सत्ता की।"

कई सरकारें देती हैं सब्सिडी

सियासत की नब्ज टटोलने वाले लोगों का मानना है कि कर्नाटक सरकार की काशी यात्रा योजना वहां की गरीब जनता को लुभाने के लिए चुनावी इवेंट का एक हिस्सा है। साल 2023 में देश के कुल नौ राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम शामिल हैं। इन राज्यों में पार्टियों की जीत-हार से आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर जनता के मूड का पता चलेगा। कर्नाटक में भी साल 2023 में चुनावी रण है। वहां बीजेपी की सरकार है और बसवराज बोम्मई सूबे के मुख्यमंत्री हैं। कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल मई 2023 में खत्म होने जा रहा है। इससे पहले वहां विधानसभा के चुनाव कराए जाएंगे। साल 2019 लोकसभा चुनाव के बाद 'ऑपरेशन लोटस' में यहां से कांग्रेस की सरकार छिन गई थी। अबकी बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस और जेडीएस भी सत्ता की कुर्सी पाने की उम्मीद जता रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के साल 2012 के एक फैसले के मद्देनजर केंद्र सरकार ने हज यात्रियों को दी जाने वाली सब्सिडी भले ही खत्म कर दी है, लेकिन कई धार्मिक यात्राओं के लिए सरकारें अभी भी पानी की तरह पैसा बहा रही हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने साल 2012 में मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना शुरू थी। रामेश्वरम की यह यात्रा उन राज्य के उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए थी जो आयकर का भुगतान नहीं करते हैं। सरकार ने शुरू में 17 तीर्थस्थानों की लिस्ट बनाई जिसमें मुसलमानों के लिए अजमेर शरीफ, बौद्धों के लिए गया, सिखों के लिए अमृतसर, जैनों के लिए श्रवणबेलगोला और सम्मेद शिखर, ईसाइयों के लिए वेलांगडी चर्च नागापट्टिनम (तमिलनाडु) के अलावा हिंदुओं के कई तीर्थस्थलों-वैष्णो देवी, अमरनाथ, तिरुपति, काशी, बद्रीनाथ, केदारनाथ, द्वारका पुरी, जगन्नाथ पुरी, हरिद्वार, शिरड़ी और रामेश्वरम की तीर्थयात्राओं का विकल्प दिया था। 60 साल से अधिक के लोग और 65 साल से अधिक के वृद्ध सहायकों के साथ ये यात्राएं फ्री में करते हैं।

बीजेपी सरकार विदेश में स्थित ननकाना साहिब, हिंगलाज माता मंदिर (पाकिस्तान), मानसरोवर (चीन), अंगकोरवाट (कंबोडिया), सीता मंदिर (श्रीलंका) की तीर्थयात्रा के लिए कुल खर्च का आधा अथवा तीस हजार रुपये तक का खर्च खुद वहन करती है। गुजरात की बीजेपी सरकार साल 2001 से श्रद्धालुओं को मानसरोवर यात्रा करा रही है। तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने गुजरात के 57वें स्थापना दिवस के अवसर पर श्रवणतीर्थ दर्शन योजना और सिंधु दर्शन यात्रा शुरू की थी। मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को सरकार 23 हजार की सहायता देती है। चार दिवसीय सिंधु यात्रा के लिए सब्जिडी दी जा रही है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 6 मार्च 2017 को वरिष्ठ नागरिकों के लिए तीर्थ दर्शन नामक योजना की घोषणा की। इस योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले वरिष्ठ नागरिकों को निःशुल्क यात्रा करवाई जा रही है। जो वरिष्ठ नागरिक बीपीएल श्रेणी में नहीं आते हैं उन्हें 70 फीसदी राशि विभाग और 30 फीसदी लाभार्थी को देना पड़ता है। भारतीय रेलवे केटरिंग और टूरिज़्म कॉर्पोरेशन हर साल 250 वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थाटन कराता है। साथ ही 50 बुजुर्ग तीर्थयात्रियों को लद्दाख में सिंधु दर्शन के लिए 10,000 रुपये और 50 बुजुर्गों को मानसरोवर की यात्रा के लिए 50,000 रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। यूपी सरकार भी मानसरोवर और सिंधु यात्रा के लिए भी सब्सिडी दे रही है। मानसरोवर यात्रा के लिए पहले 50,000 दिए जाते थे जिसे बीजेपी सरकार ने बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया है।

छत्तीसगढ़ में बीजेपी के जमाने से ही मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना चल रही है। इस योजना के तहत वहां के वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष या अधिक आयु के व्यक्ति) को उनके जीवनकाल में एक बार, प्रदेश के बाहर स्थित विभिन्न नामनिर्दिष्ट तीर्थ स्थानों में से किसी एक या एक से अधिक स्थानों की यात्रा सुलभ कराने के लिए अनुदान दिया जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार दिव्यांग यात्रियों को भी निशुल्क यात्रा करवाती है। पंजाब में अकाली-बीजेपी सरकार ने साल 2016 में मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना शुरू की थी और इसके तहत 2017 तक 139 करोड़ रुपये भी खर्च हुए। बाद में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आते ही इस योजना को बंद कर दिया।

कांग्रेस भी पीछे नहीं

राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने साल 2013 में सीनियर नागरिक तीर्थयात्रियों के लिए सभी खर्चों वाली रेलवे यात्रा शुरू की। साल 2013-14 में 41,390 तीर्थयात्रियों को 2014-15 में 6,914 और 2015-16 में 8,710 लोगों को इस सरकारी सुविधाओं का लाभ दिया गया। बीजेपी सरकार ने इसका नाम बदलते हुए इसे हवाई सेवा से जोड़ दिया। राजस्थान सरकार ने श्रद्धालुओं को जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम वैष्णो देवी, तिरुपति, द्वारिका पुरी, अमृतसर सहित 13 स्थानों की यात्रा कराई थी।

उत्तराखंड में जब कांग्रेस सरकार थी तो साल 2014 में वरिष्ठ नागरिकों के लिए ‘मेरे बुजुर्ग, मेरे तीर्थ’ नाम से योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत श्रद्धालुओं को गंगोत्री, बद्रीनाथ और रीठा-मीठा साहिब जैसे धर्मस्थलों की यात्रा कराई जाती है। साल 2017 में बीजेपी सरकार ने इस योजना का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय मातृ-पितृ कर दिया। गंगोत्री और बदरीनाथ के बाद पौड़ी जिले के ताड़केश्वर महादेव मंदिर, कुमाऊं के जागेश्वर धाम, ऊधमसिंह नगर के नानकमत्ता, हरिद्वार के पिरान कलियर दरगाह धार्मिक स्थलों को इसमें शामिल कर दिया गया।

तमिलनाडु में ईसाइयों और हिंदुओं दोनों को सब्सिडी मिलती है। ईसाइयों को यरुशलम और हिंदुओं को मानसरोवर के लिए 40,000 और नेपाल के मुक्तिनाथ जाने के लिए 10,000 रुपए धनराशि दी जाती है। जबकि 500 ईसाइयों को यरुशलम जाने के लिए 20-20 हजार रुपये सब्सिडी दी जाती है।

असम की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने साल 2004-05 में वरिष्ठ नागरिकों के लिए धर्मज्योति योजना शुरू की थी। इसके तहत विभिन्न तीर्थस्थलों की बस यात्रा पर 50 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है। मौजूदा बीजेपी सरकार ने साल 2017 में पुण्यधाम यात्रा योजना शुरू की। इसके तहत 3,000 तीर्थयात्रियों को हर साल जगन्नाथ मंदिर, वृंदावन, अजमेर शरीफ, मथुरा और वैष्णो देवी की यात्रा कराई जाती है।

ओडिशा राज्य सरकार ने साल 2016 में वरिष्ठ नागरिक तीर्थयात्रा योजना शुरू की थी। इसके तहत बीपीएल श्रेणी के वरिष्ठ नागरिकों को 100 फीसदी और गैर बीपीएल यात्रियों को उम्र के मुताबिक 50 से 70 फीसदी तक की टिकट में रियायत दी जाती है।

दिल्ली की केजरीवाल सरकार अपने वरिष्ठ नागरिकों को वातानुकूलित बसों से इसमें मथुरा, वृन्दावन, हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकंठ, पुष्कर, अजमेर, अमृतसर, वाघा और वैष्णो देवी का तीर्थाटन करा रही है। तीन दिन और दो रात की यात्रा में दिल्ली सरकार होटल में रहने, बस और भोजन का खर्च उठाने के साथ ही नागरिकों दो लाख रुपये का बीमा भी मुफ्त में दे रही है। सिर्फ पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल की सरकारें तीर्थयात्रियों को कोई सब्सिडी नहीं देती है।

अनुचित है मुफ़्त का तीर्थाटन

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "सरकार का कोई धर्म नहीं होता। सरकारी खर्च पर तीर्थाटन पूरी तरह अनुचित है और यह भारतीय संविधान का उल्लंघन है। तीर्थाटन विशुद्ध रूप से इनसान के मजहबी अकीदत से जुड़ा मसला है। आप चुनाव जीतने के लिए यह सब कर रहे हैं तो और भी गलत है। बीजेपी को पता है कि सत्ता पर काबिज हुए बगैर भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बनाया जा सकता। देश में टीएन शेषन जैसा कोई चुनाव आयुक्त नहीं है, अन्यथा यह तिकड़म नहीं चल पाता। कुर्सी पर जो विराजमान हैं उन्हें कुछ दिखाई-सुनाई ही नहीं पड़ रहा है। सत्ता की ढपली बजाने वाले चुनाव आयोग से किसी तरह की कोई उम्मीद करना व्यर्थ है। ‘रेवड़ी कल्चर’ की दौड़ में बीजेपी भले ही सबसे आगे है, कांग्रेस व दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी पीछे नहीं हैं। केंद्र सरकार ने मुसलमानों के लिए हज सब्सिडी बंद कर दी और तर्क दिया कि धर्म के नाम पर अनुदान क्यों दिया जाए? काशी-तमिल संगमम को देखिए, यह विशुद्ध रूप से चुनावी इवेंट है। कर्नाटक की बोम्मई सरकार की काशी तीर्थ यात्रा योजना के नेपथ्य से जो बातें छनकर आ रही हैं वह सब चुनाव जीतने का हथकंडा ही है।"

काशी तमिल संगम और काशी दर्शन यात्रा योजना की आलोचना करते हुए प्रदीप कहते हैं, "कर्नाटक और तमिलनाडु में हिन्दी विरोधी आंदोलन अभी थमा नहीं है। ऐसे में बीजेपी ऐसी छवि बनाना चाहती है कि वह तमिलनाडु के लोगों को सेलिब्रेट कर रही है। भाषाओं का विकास करना भारतीय भाषा समिति का काम है, सरकार का नहीं। यह समिति सचमुच तमिल भाषा और उसकी संस्कृति को बढ़ावा देना चाहती तो इसका आयोजन तमिलनाडु में किया जाता, न कि बनारस में। बीजेपी की नजर में बनारस अब हिंदुत्व का मुख्यालय बन चुका है। इसीलिए तमिल भाषा और उसकी संस्कृति के महत्व को बताने के लिए इस शहर का चुनाव किया जा रहा है। तमिल संगमम हो या फिर काशी तीर्थयात्रा योजना, दोनों का आयोजन भारतीय आयकर दाताओं के पैसे से हो रहा है।"

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो. ओमशंकर कहते हैं, "काशी दर्शन यात्रा समानता के अधिकार के साथ घोर अन्याय है। अगर कर्नाटक की सरकार बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को तीर्थाटन करा रही है तो तो मुसलमानों को हज पर जाने से क्यों रोक रही हैं? इन्हें पता है कि हिन्दू बनाम मुसलमान से वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। राहुल की यात्रा के बाद दक्षिण की सियासत बदल रही है, जिससे बीजीपी बौखलाई हुई है। हिन्दू राष्ट्र बीजेपी और आरएसएस का लांग टर्म एजेंडा है। जब राम मंदिर फेल होने लगेगा तो ज्ञानवापी का मुद्दा उठा देंगे। ज्ञानवापी को शोर थमेगा तो मथुरा में कृष्ण जन्मस्थली का विवाद छा जाएगा। जब ये तीनों एजेंडे फेल हो जाएंगे तो हिन्दू राष्ट्र वाला एजेंडा चालू कर देंगे। फिलहाल इनका शार्ट गोल अगला चुनाव है। देश में भ्रष्टाचार, भुखमरी और बेरोजगारी को लेकर जो असंतोष है उसे वो काशी यात्रा से ढंकना चाहते हैं। कर्नाटक में सरकारी भ्रष्टाचार चरम पर है। आर्थिक बदहाली से लोग कराह रहे हैं। बीजेपी असली सवालों से भटकाना चाहती है।"

प्रो. ओमशंकर यह भी कहते हैं, "धर्म ऐसी अफीम है जिसे सुंघा दिया जाए तो सारी कमियां दूर हो जाती हैं। बीजेपी इसी का फायदा उठा रही है। उसने समाज को गंदे नाली में गिरा दिया है। सबसे खतरनाक और चिंता का विषय यह है कि सरकार अब अल्पसंख्यकों को वोट ही नहीं डालने दे रही है। इनके निशाने पर मुसलमान पहले नंबर पर हैं। इसके बाद दलित और आदिवासियों का नंबर आएगा। फिर अति पिछड़ी और आखिर में पिछड़ी जातियों को सलटाने की कोशिश की जाएगी। जब धर्म की अफीम का नशा टूटेगा तब तक सारे अधिकार छिन चुके होंगे। आप अपने शिक्षा, स्वास्थ्य और वोट देने के मौलिक अधिकार को खो चुके होंगे। आजादी से पहले की तरह भूखे, नंगे, बदहाल और अछूत हिन्दू बनकर घूमने को मजबूर होंगे।"

"बीजेपी हिन्दुओं को मुस्लिम से डर दिखाती है। उच्च वर्ग के शिया मुसलमानों को सुन्नियों का खौफ सताता है। पुरुष बनाम स्त्री का भेद खड़ा किया जा रहा है। सुन्नी में पसमंदा बनाम नान पसमंदा से लड़ा रहे हैं। पिछड़ों और दलितों को आपस में लड़वाते हैं। दलितों में जाटव बनाम नॉन जाटव को पिछड़ों में यादव बनाम नॉन यादव से लड़वाते हैं। पिछड़े बनाम अति पिछड़े से लड़वाते हैं। बीजेपी की वोट पालिटिक्स यह है कि आप हमेशा लड़ते रहें, ताकि वो वोटों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में आसानी से करा सके। संविधान की मूल आत्मा को तोड़कर गैर-संवैधानिक ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लागू करवाने और देश की सारी संपदाए दो कारपोरेट घरानों में सिमटते हुए प्रमाण के तौर पर देखा जा सकता है।"

प्रो. ओमशंकर कहते हैं, "बीजेपी तमिल और कर्नाटक में सांस्कृतिक प्रतीकों पर अपनी पकड़ बना कर वहां आने वाली बाधाओं को तोड़ने का प्रयास कर रही है। उसे पता है कि लोगों के जुड़ने से उसका काम आसान हो जाएगा। कल्पना कीजिए, जब कर्नाटक के 30 हजार और तमिलनाडु के 3000 लोग मुफ्त में यात्राएं करेंगे, तो वे बीजेपी के लिए एक कितना बड़ा राजनीतिक माहौल तैयार करेंगे? तमिल संगमम हो या फिर कर्नाटक सरकार की काशी यात्रा योजना, यह जनता को धर्म की अफीम चटाकर उसे बेहोश करने का नया चुनावी फंडा है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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