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लखनऊ विश्वविद्यालय के मनमाने रवैये के ख़िलाफ़ छात्र संगठन लामबंद

छात्रावास में रहने वाले कुछ छात्रों पर 16-17 दिसंबर की रात पुलिस के लाठीचार्ज ने छात्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र कहते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन सुरक्षा के नाम पर उनकी स्वतंत्रता ख़त्म करना चाहता है।
लखनऊ विश्वविद्यालय के मनमाने रवैये के ख़िलाफ़ छात्र संगठन लामबंद

छात्रों और लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच का गतिरोध अब "छात्र आंदोलन" का रूप लेता जा रहा है। आज बुधवार को सुबह कई छात्र संगठन विश्वविद्यालय परिसर में जमा हुए और एक विरोध जुलूस निकाला। छात्रों ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों को सुरक्षा देने में असमर्थ है और उनकी असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए छात्र संघ का गठन नहीं होने दे रहा है।

विश्वविद्यालय प्रशासन के मनमाने रवैये से नाराज़ छात्र अब एकजुट होकर छात्रवृत्ति मुद्दे से लेकर विश्वविद्यालय परिसर में पुलिसकर्मियों की भारी मौजूदगी के ख़िलाफ़ लेकर लामबंद हो रहे हैं।

छात्रावास में रहने वाले कुछ छात्रों पर 16-17 दिसंबर की रात पुलिस के लाठीचार्ज ने छात्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र कहते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन सुरक्षा के नाम पर उनकी स्वतंत्रता ख़त्म करना चाहता है।

पिछले 17 वर्षों से विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव नहीं होने से भी छात्रों में नाराज़गी है। विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति 2020 को लेकर भी विरोध का माहौल बना हुआ है। विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर के इस्तीफ़े की मांग भी हो रही है।

लखनऊ विश्वविद्यालय में 2005 के बाद से छात्र संघ चुनाव नहीं हुआ है। छात्र कहते हैं, पहले छात्र संघ चुनाव पर अदालत से रोक थी। अब यह रोक ख़त्म हो गई है। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन छात्र संघ चुनाव नहीं होने दे रहा है।

छात्र संघ चुनाव नहीं होने से भी छात्र संगठनों और विश्वविद्यालय प्रशासन में गतिरोध बढ़ता जा रहा है। छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन चुनाव नहीं होने दे रहा है क्योंकि अगर छात्र संगठित हो गए तो सरकार द्वारा बनाई जा रही "छात्र-विरोधी” नीतियों को लागू करना आसान नहीं होगा।

मौजूदा समय में अलग-अलग छात्र संगठन विश्वविद्यालय में सक्रिय हैं, लेकिन 2007 के बाद से कोई छात्र संघ नहीं है। छात्रों का कहना है कि छात्र संघ न होने के कारण "सामूहिक आवाज़" नहीं है और सरकार मनमाने ढंग से छात्र विरोधी नीतियों को लागू कर रही है।

छात्र संगठन कहते हैं कि सरकार द्वारा शिक्षा को "कॉर्पोरेट" के हवाले करने की तैयारियां हो रही है। लेकिन छात्र संघ न होने के कारण कोई सामूहिक आंदोलन नहीं हो पा रहा है।

छात्र संगठन मौजूदा समय में चुनाव कराने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव बना रहे है।छात्रों द्वारा चुनावों कराने के लिए विश्वविद्यालय परिसर में अभियान भी चलाया जा रहा है। छात्र संगठन मानते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन नहीं चाहता कि छात्र संगठित होकर उसके तानाशाही रवैये के विरुद्ध आवाज़ उठा सकें।

हाल में ही विश्वविद्यालय के छात्रावास में कर्फ्यू का फ़रमान जारी हुआ है। इसका भी भरी विरोध हो रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन के नये आदेश के अनुसार अब छात्रों को रात्रि 10 बजे और छात्राओं को शाम 8 बजे के बाद छात्रावास में प्रवेश नहीं मिलेगा। जबकि छात्र संगठनों का कहना है कि यह उनकी स्वतंत्रता पर हमला है।

पुलिस की भारी मौजूदगी भी छात्र संगठनों और विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच तनाव की एक बड़ी वजह बनी हुई है। छात्र नेताओं का कहना की विश्वविद्यालय परिसर में हर समय पुलिसकर्मियों की गश्त से "शैक्षणिक माहौल" ख़राब होता है।

उल्लेखनीय है कि अभी दिसंबर के पहले सप्ताह में विश्वविद्यालय के रणबीर सिंह बिष्ट छात्रावास (कला संकाय) में पुलिस के शिविर लगने का छात्र संगठनों ने विरोध किया था।

क़रीब 150 पुलिसकर्मियों की परिसर मौजूदगी से छात्र बिफर गये थे। छात्र संगठनों के विरोध और दबाव के चलते पुलिस शिविर हटाए गये। विरोध कर रहे छात्रों ने कहा था कि, "विश्वविद्यालय प्रशासन पुलिस दमन के ज़रिए उनकी 'असहमति' की आवाज़ को दबाने का प्रयास कर रहा है। जबकि विश्वविद्यालय का कहना था कि पुलिस की तैनाती विधानसभा सत्र के मद्देनज़र की गई थी।"

इतना ही नहीं छात्रवृत्ति के रोज़ नए नियम बनाए जाने को लेकर भी लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच लगातार गतिरोध का माहौल बना हुआ है। छात्र संगठनों की माने तो छात्रवृत्ति के नियमों में रोज़ बदलाव कर के उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने वाले छात्रों का कहना है कि नये नियम ऐसे बनाए जा रहे हैं कि अधिकतर छात्र-छात्रवृत्ति के लिए अयोग्य हो जाएं।

लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच सबसे अधिक गतिरोध, छात्रों की कक्षाओं में उपस्थिति कम से कम 75 प्रतिशत होने को लेकर है। इसके अलावा “आय प्रमाण पत्र” को लेकर आए नये नियम का भी छात्र विरोध कर रहे हैं।

छात्रों का कहना है पिछले सत्र में भी फंड के कमी बता कर अधिकतर छात्रों की छात्रवृत्ति रोक दी गई थी। अब आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों का पढ़ाई जारी रखना मुश्किल होता जा रहा है। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि छात्रवृत्ति से संबंधित फ़ैसले प्रदेश सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा लिए जाते हैं।

जबकि मौजूदा समय में तनाव का सबसे बड़ा कारण छात्रों पर हुआ बर्बर लाठीचार्ज है। होटल से चाय पी कर लौट रहे छात्रों पर दिसंबर 16-17 की रात पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। लाठीचार्ज में कई छात्र घायल हो गए थे।

छात्र लाठीचार्ज करने वाले पुलिसकर्मियों की बर्ख़ास्तगी की मांग कर रहे हैं। जबकि उनका कहना है दोषी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कारवाई के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कोई क़दम नहीं उठाया गया। छात्रों का आरोप है कि उन पर हुए लाठीचार्ज में विश्वविद्यालय प्रशासन की गुप्त सहमती भी शामिल थी। हालांकि इस घटना के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने देर रात छात्रों के छात्रावास से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी है।

इस बढ़ते गतिरोध के बीच आज 21 दिसंबर को कई छात्र संगठन लखनऊ विश्र्वविद्यालय प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने के लिए एकजुट हुए। ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई), समाजवादी छात्र सभा और अंबेडकर फूले स्टूडेंट एसोसिएशन (बिरसा) ने लामबंद होकर संयुक्त रूप से प्रॉक्टर राकेश द्विवेदी के इस्तीफ़े की मांग की है।

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि 16 दिसंबर की रात हुए लाठीचार्ज में छात्रों को गंभीर चोटें आईं, लेकिन विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर को इस बात की चिंता नहीं थी। बल्कि वह प्रयास कर रहे थे कि मुद्दे को दबा दिया जाए।

न्याय सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करने के बजाय प्रशासन ने अनुचित पुलिस की पिटाई का पक्ष लिया और यह कहकर छात्रों को डराने की कोशिश की कि उन्हें इस मामले को नहीं उठाना चाहिए अन्यथा उन्हें परिणाम भुगतने होंगे।

आइसा नेता निखिल ने कहा, 'यह पहली बार नहीं है जब कैंपस के अंदर छात्रों को पीटा गया है। हाल ही में कुछ बाहरी गुंडों ने विश्वविद्यालय परिसर में घुसकर विश्वविद्यालय के छात्रों को पिटा था।

निखिल ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रॉक्टर ने इस मामले में भी अक्षमता और पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाया था। इसके अलावा प्रोo रविकांत द्वार पर हुए हमले में नामित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) के दोषियों का पूरी तरह से लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने बचाव किया।

लखनऊ विश्वविद्यालय एनएसयूआई इकाई के अध्यक्ष विशाल सिंह का कहना है कि ' विश्वविद्यालय परिसर में हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रॉक्टर में छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं।' इस बीच एनएसयूआई के लखनऊ विश्वविद्यालय इकाई के अध्यक्ष ने पुलिस द्वारा उनके कॉलर पकड़ कर धक्का-मुक्की करने का आरोप लगाया है।

समाजवादी छात्रसभा के नेता अमित यादव ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने हमेशा केवल छात्र नेताओं और आम छात्रों को डराने की कोशिश की है, जो परिसर के अंदर होने वाली हिंसक घटनाओं के विरुद्ध और छात्रों से जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर आवाज़ उठाते हैं।

छात्र नेता अंजलि ने कहा कि प्रदर्शन के दौरान प्रॉक्टर छात्रों और अध्यापकों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और क़ानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में विफल रहे हैं। आइसा नेता अंजलि ने आगे कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन केवल इतना ही कर पाया हैं कि एक लोकतांत्रिक परिसर को पुलिस शिविर में तब्दील कर दिया है जिससे छात्र परिसर में असहज महसूस कर रहे हैं।

छात्र संगठन बिरसा के विराट ने कहा कि 'यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है कि सुरक्षा के नाम पर परिसर में छात्रों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि छात्रावास में कर्फ्यू लागू कर केवल वास्तविक समस्या से बचने का यह प्रयास है। विश्वविद्यालय छात्रों की समस्या हल करने के बजाय प्रशासन छात्रों को छात्रावास के अंदर क़ैद करना चाहता है।'

छात्रों की समस्याओं और उनके आरोपों के संदर्भ में बात करने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर राकेश द्विवेदी से संपर्क किया गया लेकिन उनसे बात नहीं हुई।

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