जेएनयू हिंसा और सीएए के खिलाफ छात्रों का दिल्ली में मार्च
दिल्ली में गुरुवार को नागरिकता कानून और जेएनयू में हुई हिंसा के विरोध में मंडी हाउस से लेकर मानव संसाधन मंत्रालय तक मार्च निकाला गया। नागरिक संस्थाओं के सदस्यों और छात्रों समेत सैकड़ों लोगों ने जेएनयू में हुए हमले और सीएए के विरोध में सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया। इस दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति के इस्तीफे की मांग की गई।
माकपा नेता सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, बृंदा करात, भाकपा महासचिव डी राजा और लोकतांत्रिक जनता दल के प्रमुख शरद यादव भी जुलूस में शामिल थे। हाथ में तख्तियां लेकर प्रदर्शनकारियों ने मंडी हाउस से जुलूस निकाला। प्रदर्शनकारी हल्ला बोल और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। तख्तियों पर “सीएए नहीं, एनआरसी नहीं”, “विश्वविद्यालय परिसर में घुसने पर एबीवीपी पर प्रतिबंध लगाओ”, “हिंसा त्याग करो”, “शिक्षा खरीदने बेचने की चीज नहीं है” के नारे लिखे हुए थे।
पुलिस ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ, छात्र संघ पदाधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल की मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात कराई।
इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए जवाहर लाल नेहरू के छात्र मनीष जायसवाल ने कहा, 'पांच जनवरी का दिन जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पर कहर बनकर टूटा। सरकार के गुंडों ने छात्रों और शिक्षकों पर अपना दुश्मन मानकर हमला किया। ऐसे हमले पर अगर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो इसका मतलब होगा भारत को संभालने वाला कोई नहीं बचा है।'
वहीं, प्रदर्शन में शामिल हुए सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुरेश चौहान का कहना है,'आज की दुनिया डिजिटल पर चलती है। हमें पता नहीं होता लेकिन हमारी समझ का बहुत बड़ा हिस्सा डिजिटल बनाता है। नागरिकता संशोधन कानून के बाद से मैं देख रहा हूं जिस तरह से समाज में इनफॉरमेशन फ्लो हो रहा है, वह एक दूसरे के मन में नफरत पैदा करने वाला है। मैं इस नफरत के माहौल से लड़ने के लिए पिछले कई दिनों से इन प्रदर्शनों में शामिल हो रहा हूं।'
प्रदर्शन में शामिल जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में सक्रिय लवप्रीत कहते हैं,'हम मानते हैं कि छात्र राजनीति में हिंसक झड़पें होती है और इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन को कारवाई करने का हक है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ मिलकर सरकार के गुंडों ने पुलिस के आंख के सामने जवाहर लाल विश्व विद्यालय पर हमला लिया। मीडिया इसकी सबसे बड़ी गवाह है। छात्र राजनीति में क्या आपने कभी ऐसा देखा है?'
हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि जब वह इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे तब 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' नहीं हुआ करता था।
जयशंकर के इस बयान को प्रदर्शन में शामिल जेएनयू में हिंदी के प्रोफेसर रहे पुरुषोत्तम अग्रवाल खारिज करते हैं। उन्होंने कहा, 'वो (जयशंकर) पता नहीं कहा की बात कर रहे हैं। इससे पहले की सरकारों से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने जमकर सवाल पूछा है। इतिहास उठाकर देखिए इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक का इस विश्वविद्यालय ने जमकर विरोध किया है। लेकिन अब यह होता है कि सवाल पूछने पर एंटीनेशनल कह दिया जाता है। छात्रों और शिक्षकों पर दमन किया जाता है।'
सीएसडीएस के मशहूर समाजशास्त्री आदित्य निगम भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल थे। उन्होंने कहा, 'नागरिकता कानून में भेदभाव करने का एजेंडा तो उनका बहुत पहले से था। इस बार उन्हें मौका मिला उन्होंने लागू कर दिया। पहचान के आधार पर काम करने वाले पार्टियां अपने वोट बैंक तक पहुंचने के लिए ऐसे ही कदम उठाते रहते हैं। इस सरकार ने भी यही किया। सरकार के ऐसे क़दमों का विरोध करने के लिए ऐसे विरोध प्रदर्शन जरूर होने चाहिए। लोकतंत्र ऐसे ही जिंदा रहता है।'
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