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सुंदरबन: भूजल के अधिक खारा होने के कारण खेती छोड़ने को मजबूर किसान

“इस क्षेत्र में पानी में लवणता बढ़ रही है, लेकिन 2009 में पश्चिम बंगाल में आईला चक्रवात आने के बाद से इसमें तेज़ी आई है। अब एक लीटर पानी में लगभग 20 ग्राम नमक पाया जाता है, जो कृषि के लिहाज़ से किसी काम का नहीं है।”
 Sundarbans
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : गूगल

पश्चिम बंगाल की हसनाबाद ग्राम पंचायत के एक किसान विभास मंडल ने दो साल पहले 2020 में खेतीबाड़ी उस समय बंद कर दी थी जब अम्फन चक्रवात के चलते सुंदरबन जीवमंडल निचय (बायोस्फीयर रिजर्व) में खारा पानी भर जाने से ज़मीन खेती के लायक़ नहीं बचा था।

खापुकुर गांव की एक अन्य निवासी शिखा मंडल एक स्थानीय शोधन संयंत्र से पीने का पानी ख़रीदती हैं क्योंकि ट्यूबवेल से केवल खारा पानी आता है।

समुद्र वैज्ञानिक प्रोफेसर अभिजीत मित्रा ने बताया कि नलकूपों से मिलने वाले भूजल की लवणता पांच पीएसयू (व्यावहारिक लवणता इकाई) है, जबकि आदर्श पीएसयू शून्य होना चाहिए।

विभास मंडल और शिखा मंडल की तरह परेशानियों का सामना कर रहे कई लोगों ने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने इन मुद्दों को उस समय रखा था जब वह उत्तर 24 परगना जिले में उनके गांव आईं थीं।

बनर्जी ने ज़िला अधिकारियों को उनकी समस्याओं का समाधान करने का निर्देश दिया था। ममता बनर्जी की सरकार की एक नया ज़िला सुंदरबन बनाने की भी योजना है, जिसमें प्रभावित क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा।

शिखा मंडल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हमारे पास पीने का पानी नहीं है। खेती करने के लिए भी (पर्याप्त) पानी नहीं है। 2020 में अम्फन चक्रवात के बाद खारे पानी से पूरी भूमि को नुक़सान पहुंचा है। हम चाहते हैं कि ममता बनर्जी इन समस्याओं का समाधान करें .... हमें और कुछ नहीं चाहिए।”

उल्लेखनीय है कि दो साल पहले 21 मई को राज्य के तटीय ज़िलों में चक्रवात आया था, जिसमें कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई थी, हज़ारों पेड़ उखड़कर गिर गए थे, झुग्गियां तबाह हो गई थीं और निचले इलाक़ों में पानी भर गया था।

ग्रामीणों को शोधन संयंत्र से 10 रुपये में 20 लीटर पानी ख़रीदना पड़ता है और एक परिवार को पीने के पानी के लिए महीने में लगभग 1,500 रुपये ख़र्च करने पड़ते हैं।

गांव के कुछ लोग खारा पानी पीने को मजबूर हैं। लंबे समय तक इस तरह के पानी का इस्तेमाल करने से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होने की संभावना होती है।

चूंकि बशीरहाट अनुमंडल के अंतर्गत आने वाले हसनाबाद, भवानीपुर और वरुणहाट ब्लॉक में ज़मीन कृषि के लिए अनुपयोगी हो गई है, इसलिए बहुत से लोग अब आय के लिए झींगा पालन में हाथ आज़मा रहे हैं।

विभास मंडल ने कहा, “अब हमारे पास कोई काम नहीं है। खारे पानी से ज़मीन खराब हो गई है और हम अब झींगा पालन करके कमाई करने की कोशिश कर रहे हैं।”

समुद्र वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत मित्रा ने इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि 1980 के दशक की शुरुआत से क्षेत्र के पानी में खारापन बढ़ रहा है, ख़ासकर भारतीय सुंदरवन क्षेत्र के मध्य भाग में।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के शिक्षक मित्रा ने कहा कि भारतीय सुंदरबन जीवमंडल निचय का केंद्रीय क्षेत्र बहुत ज़्यादा खारा है। नदी के ऊपर के क्षेत्र से मीठा पानी नहीं आ रहा है और इस हिस्से को केवल बंगाल की खाड़ी का ज्वारीय पानी मिल रहा है।

उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में पानी में लवणता बढ़ रही है, लेकिन 2009 में पश्चिम बंगाल में आईला चक्रवात आने के बाद से इसमें तेज़ी आई है। अब एक लीटर पानी में लगभग 20 ग्राम नमक पाया जाता है, जो कृषि के लिहाज़ से किसी काम का नहीं है।”

राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहा कि प्रशासन उस क्षेत्र में हर मुद्दे को हल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है।

उन्होंने कहा, “हालात उतने बुरे नहीं हैं जितने बताए जा रहे हैं। हम सुंदरबन और इसके आसपास के क्षेत्र के समग्र विकास के लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं।”

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