नशा और होश : विश्व नागरिक माराडोना को समर्पित कविता
नशा और होश
भांग-गांजे-अफ़ीम
शराब-हेरोइन-कोकीन
और बेशुमार सूंघने वाले नशे
गले और थुंथने से होकर
उतर जाते हैं धमनी और शिराओं तक
रंग बदलने लगती है देह
ढंग बदलने लगता है दिमाग़
और दोनों बदलावों के बीच
बहने लगते हैं
कॉमेडी,
अभिनय
दर्शन
ठहराव का घूर्णन
रफ़्तार का परिक्रमण
सुप्रीम इंसाफ़
बदला और माफ़ी
पतझड़ का विरहा
आल्हा और कबीरा
शरद की हूक
बसंत की कूक
विलाप मिलाप अलाप
विद्रोह की थाप
और वे सभी हाव-भाव-ताव
जिन्हें देखा सुना जा सकता है
मगर,
देह और दिमाग़ के बीच का विचार
इन नशों से कभी फ़ुर्र नहीं होते
ठीक वैसे ही जैसे कि
खिलाड़ी माराडोना
"नशेड़ी" माराडोना के बीच
एक विद्रोही माराडोना होता है
जिसे पता है
नशे और खेल की असलियत
मगर,
उससे कहीं ज़्यादा पता है
समाज और सियासत
विचारों को अभिव्यक्त करने की लत
ग़लत के विरुद्ध बग़ावत
नशे के बीच सही कहने की आदत
और
नशे की बेचैनी पर कहीं भारी पड़ती
होशमंद राहत
क्योंकि
शख़्स माराडोना को मालूम है
नशा अगले ही पल टूट जाता है
मगर,
होश कभी नशे में नहीं होते
- उपेंद्र चौधरी
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