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अम्फान ने बंगाल को तबाह कर दिया, लेकिन उस पर राजनीति चालू है 

तबाही के इतने बड़े पैमाने को देखते हुए, केंद्र अब अपने पैर पीछे नहीं खींच सकती है। इस बीच, टीएमसी भी उम्मीद लगाए हुए है कि बीजेपी के नेता मतदाताओं को ग़ुस्सा दिलाते रहेंगे।
अम्फान
Image Courtesy: Wikimedia Commons

20 मई को आए सुपर-चक्रवात अम्फान ने बंगाल को तबाह कर दिया है, इसने राज्य में इतनी तबाही मचाई है जिसे लोगों ने लंबे समय से नहीं देखा है। सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाकों में पूर्वी मेदिनीपुर, कोलकाता और उत्तर और दक्षिण 24 परगना, हावड़ा और हुगली के तटीय ज़िले थे। कोविड-19 महामारी के बीच, जीवन को वापस पटरी पर लाने की प्रक्रिया अभी शुरू हुई है और संभवतः महीनों तक जारी रहेगी।

मौद्रिक यानि धन-संपदा के नुकसान का जायजा लेना बाकी है और इसलिए नुकसान की तस्वीर स्पष्ट नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 1 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का हवाला दिया है। वे इस आंकड़े पर कैसे पहुंची, इसका ज्ञान नहीं है। 22 मई को जारी एक रिपोर्ट में भी राज्य सरकार के एक सूत्र के हवाले से नुकसान का आंकड़ा 13.2 बिलियन डॉलर दिया गया है। यह एक लाख करोड़ रुपये के आसपास बैठता है जिसका हवाला बनर्जी ने दिया था। फिलहाल, हमें यह एक आधारभूत आंकड़ा देता है। परिप्रेक्ष्य के लिए देखें तो, पिछले साल ओड़ीशा में चक्रवात फनी के कारण करीब 24,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था, इसका आंकलन विश्व बैंक, एशियन डेव्लपमेंट बैंक और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों ने किया था।

अभी तक जो अनुमान लगाया गया है उसके मुताबिक महामारी के चलते हुई देरी से कटाई की प्रतीक्षा कर रही  88,000 हेक्टेयर से अधिक की बोरो धान और 1,00,000 हेक्टेयर से अधिक की सब्जियों और तिल की फसल की खेती समतल हो गई है; मालदा जिले में 38,000 टन आम की अनुमानित फसल को बड़ा नुकसान हुआ है, जो इसकी औसत वार्षिक उपज का दसवां हिस्सा है। यह जिला आम की फसल पर बहुत निर्भर करता है और अब इसे काफी तनाव और गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

शुक्रवार के अनुमानों के अनुसार, तूफान के कारण 86 लोगों की जानें चली गई हैं, 10 लाख से से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं, 1 करोड़ 30 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि 6,00,000 लोगों को 5,000 से अधिक राहत शिविरों में रखा गया है। फिलहाल, इस बारे में बात करना ही निरर्थक है कि उनमें शारीरिक दूरी को कैसे बनाए रखा जा सकता है।

देखा जाए तो चक्रवात का संज्ञान लेने में केंद्र सरकार को थोड़ा वक़्त लगा। चक्रवात का पहला झटका लगने के लगभग 24 घंटे बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार सार्वजनिक रूप से एक ट्वीट के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिसमें कहा गया कि वे, “चक्रवात अम्फान से पश्चिम बंगाल में तबाही के दृश्य देख रहे हैं। इस चुनौतीपूर्ण समय में, पूरा देश पश्चिम बंगाल के साथ एकजुटता में खड़ा है।” और, "प्रभावित लोगों की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।"

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मोदी से थोड़ा पहले ही सोशल मीडिया पर थे और उन्होंने बनर्जी से भी बात भी की थी। प्रारंभिक प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति आम लोगों में न जा पाने की कोई  रणनीति हो सकती है। इसके तुरंत बाद, प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ इलाकों की तबाही का हवाई सर्वेक्षण किया।

बनर्जी और अन्य लोगों के साथ एक प्रशासनिक बैठक के बाद, मोदी ने बंगाल के लिए 1,000 करोड़ रुपये की धुन पर "अग्रिम सहायता" की घोषणा की। गुरुवार को ही, बनर्जी ने 1,000 करोड़ रुपये का एक कोष बनाया जिसे उनकी सरकार राहत और पुनर्निर्माण के काम के लिए सीधे खर्च करेगी।

लगता है अभी के लिए, मुख्य खिलाड़ी एक ही लय में काम कर रहे हैं। बनर्जी मार्च के महीने से केंद्र पर बिना भड़के काम कर रही हैं, खासकर उन्हे जब यह पता चल गया कि महामारी को नियंत्रण करने के लिए संयुक्त रूप से काम करना होगा। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बंगाल इकाई और धनखड़ ने शुरू में काफी उकसाने के काम किए और राज्य में माहौल को खराब कर दिया था और माहौल को अशांत बना दिया था। बनर्जी और उनकी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस ने संवेदनपूर्ण ढंग से इसका जवाब दिया था।

हालाँकि, मुद्दा यह है कि बंगाल भी, अन्य सभी राज्यों की तरह, कोविड-19 महामारी के खिलाफ "लड़ाई" के मोर्चे पर ड्ंटा था। दुर्भाग्य से, केंद्र सरकार की काम के मामले में प्रतिक्रिया सभी क्षेत्रों में काफी कमजोर रही है। अगर केंद्र सरकार ने कुछ किया है तो उसने राज्यों द्वारा किए गए प्रयासों को पंगु बनाने की कोशिश की है।

लेकिन बंगाल पर दोहरी मार पड़ रही है, कोई भी पक्ष आपातकाल और राहत प्रयासों में पक्षपातपूर्ण राजनीति करने की अनुमति नहीं दे सकता है। बंगाल में चुनाव 2021 के वसंत और गर्मियों में होने हैं। हो सकता है कि बीजेपी के रणनीतिकारों को इस बात का एहसास हो कि सुपर-चक्रवात के लिए राहत में बिना किसी हिचकिचाहट के काम करने से पहले की गई विफलताओं को छिपाया जा सकता है। केंद्र इस मोड़ राज्य सरकार के साथ राजनीति खेलेगा ऐसा नहीं लगता है। इस प्रकार बनर्जी सुलह के मुड़ में दिखी, जबकि मोदी राज्य सरकार की सराहना करते नज़र आए।

राजनैतिक रूप से जिस तथ्य पर ध्यान दिया जाना है, वह यह कि उत्तर भारतीय मुख्यधारा के साथ बंगाल के राजनीतिक संबंधों का एक इतिहास है, जो पूर्व की शिकायत की भावना से भरा हुआ है। आप तर्क दे सकते हैं कि यह भावना औपनिवेशिक काल से चली आ रही है, जब ब्रिटिश हुकूमत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था और बंगाल के  तत्कालीन प्रांत जोकि गति को तय करता था उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया था। आप यह तर्क दे सकते हैं कि उत्तर भारत से बंगाल के अलगाव को तब से जाना जाता है।

औपनिवेशिक काल के बाद की अवधि को छोड़ कर, विशेष रूप से 1967 के बाद से, जब बंगाल ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था, तब से ही यह धारणा बनी हुई है कि केंद्र में बैठा राजनीतिक गठजोड़ राज्य के साथ भेदभाव करता है। 1977 से 2011 तक बंगाल पर बेरोकटोक शासन करने वाला वाम मोर्चा अधिकांश समय केंद्र विरोधी भावना और कांग्रेस विरोध की भावना पर टिका था, और यही भावना तब भी रही जब भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 1998 से 2004 के बीच सत्ता में आया था।

2014 में मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही तृणमूल कांग्रेस इसी धुन को बजा रही है। चाहे वे चुनावी तौर पर कोई माईने रखती हों या नहीं, दोनों में असाधारणता और शिकायत दोनों भावनाएं मौजूद हैं, और इसलिए केंद्र को अब कुछ ज़िम्मेदारी अपने काँधों पर लेते हुए देखा जा सकता है जिसमें वित्तीय, रसद-पानी और अन्य सहायता हो सकती है। इसलिए 1,000 करोड़ रुपये की अग्रिम वित्तीय सहायता को इस कदम की शुरुवात की तरफ देखा जा सकता है। जल्द ही और त्वरित कार्यवाही देखी जा सकती है, जैसा कि बनर्जी जोर भी दे रही हैं। बनर्जी ने गुरुवार को कहा कि जो भी केंद्र भुगतान करने का फैसला करता है, उसका भुगतान तुरंत किया जाना चाहिए। उसने कहा, "हम 500 दिनों तक भुगतान का इंतजार नहीं कर सकते है"।

बंगाल के गवर्नर, जो राज्य सरकार के साथ वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे थे, एक शुरुवाती दुर्व्यवहार के बाद पीछे हट गए हैं, जिसमें उन्हौने बंगाली में ट्वीट कर हुए नुकसान को "न्यूनतम" कहा था। उसके बाद से वे अपनी ट्वीट में आपदा की भयावहता और उससे हुए नुकसान को मानते हुए बयान दे रहे हैं।

लेकिन कुछ ऐसी टिप्पणियां भी की जा रही हैं जो न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार की मदद करेंगी। जैसे कि बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष, जिन्हें बदज़ुबानी करने की लत है और बुनियादी सामंजस्य को बनाना दोनों ही मुश्किल लगता है, उन्हौने ऐसे हालत में भी यह मांग की कि मृतक के परिजनों को केंद्र द्वारा पहले किए गए घोषित भुगतान का हस्तांतरण सीधे उनके  जन धन खातों में किया जाए, क्योंकि यदि राज्य सरकार को धन दिया जाता है तो यह उन तक नहीं पहुंचेगा। संयोग से, मिदनापुर से सांसद की बदज़ुबानी की अनदेखी करना मुश्किल है।

समान रूप का नुकसान भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय की अमानवीय टिप्पणी ने भी किया, जिसमें कहा गया है कि बनर्जी को केंद्र सरकार की मदद लेने के लिए मजबूर किया गया था। “ममता बनर्जी ने हमेशा बंगाल के लोगों के कल्याण पर राजनीति को प्राथमिकता दी है। ... लेकिन अब, दबाव इतना है कि उसके पास सहयोग लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। " किसी को आक्रामक रूप से अयोग्य मालवीय को यह बताना चाहिए कि यह बनर्जी का मामला नहीं है कि किसी की मदद लेनी है या नहीं। यह राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक संघीय मामला है, जिसे संवैधानिक और अन्य प्रावधानों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। अर्थात्, जब केंद्र अपनी शक्तियों का उपयोग राज्य सरकार की उपेक्षा या अवज्ञा करने के लिए नहीं करता है।

बंगाल को उबरने में लंबा वक्त लगेगा। और यह अपने आप में समझ से बाहर है कि केंद्र सरकार तबाही की भयावहता को देखते हुए अपने पैर पीछे हटाएगी। हालांकि, तृणमूल को उम्मीद होगी कि मालवीय, घोष और उनके अनुयाई इस तरह की बयानबाज़ी करना जारी रखेंगे। इस तरह की प्रतिक्रियाएं अगले साल उन्हे सत्ता में वापस ला सकती हैं।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

In Amphan-Battered Bengal, For Now, Rivals Conceal Acrimony

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