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EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की 3-2 से मुहर, जानें किस जज ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिका दायर की गयी थीं। सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल रखा गया कि आर्थिक तौर पर आरक्षण संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ है या नहीं? पांच जजों की बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच जजों की बेंच ने आज 3:2 से फैसला सुनाया है कि आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग को दिया गया 10 प्रतिशत आरक्षण संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है।
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EWS आरक्षण तो याद होगा ही।  यह संविधान का 103वां संशोधन है। इस संशोधन के जरिये संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में बदलाव किया गया। इसमें खंड 6 जोड़ा गया जिसके मुताबिक देशभर में आर्थिक तौर पर कमजोर सामान्य वर्ग को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए 10 फीसदी आरक्षण का एलान किया गया। मोटे तौर पर कहा जाए तो अनारक्षित वर्ग से जुड़े वह परिवार  जिनकी आय 8 लाख वार्षिक से कम है उनके बच्चों को नौकरी और शिक्षण संस्थान में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। संसद से आनन-फानन में इस संवैधानिक संशोधन को पास करवाया गया।

इस पर ढेर सारे सवाल खड़े हुए। यह आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करता है  जबकि संविधान में सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की बात की गयी है। इसलिए यह संविधान के बुनयादी ढांचें के खिलाफ है। इस आरक्षण के नियम से आरक्षण के लिए बनाई गयी 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा का उल्लंघन होता है। 8 लाख की सीमा कैसे तय की गयी? यह तो इतनी बड़ी सीमा है कि इसके अंतर्गत भारत 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग आ जाएंगे? आरक्षण अगर सामाजिक न्याय का औजार है तो इसे गरीबी उन्मूलन के औजार के तौर पर सरकार क्यों इस्तेमाल कर रही है?

यह सब सवाल सुप्रीम कोर्ट के याचिका में तबदील हो गए। सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिका दायर की गयी थीं। सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल रखा गया कि आर्थिक तौर पर आरक्षण संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ है या नहीं? पांच जजों की बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसी पर फैसला आया है। पांच जजों की बेंच ने 3:2 से फैसला सुनाया है कि आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग को दिया गया 10 प्रतिशत आरक्षण संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं है। आर्थिक तौर दिया गया आरक्षण संवैधानिक तौर पर वैध है। यह आरक्षण जारी रहेगा।

CJI यूयू ललित, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस रवींद्र भट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ थी। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस भट्ट ने EWS कोटा को संविधान के बुनियादी ढांचें के खिलाफ माना। जबकि जस्टिस माहेश्वरी, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS कोटा को संविधान के बुनियादी ढांचें के सुसंगत माना।

जस्टिस माहेश्वरी ने फैसला सुनाया कि आरक्षण राज्य द्वारा अपनाई गई सकारात्मक कार्रवाई है। इसके जरिये सभी तरह के असमानताओं को दूर कर समता मूलक समाज बनाने की कोशिश की जाती है। यह केवल सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्य धारा में लाने का साधन नहीं है, बल्कि किसी भी वर्ग या वर्ग को मुख्यधारा में शामिल करने का एक औजार है। आर्थिक तौर पर पिछड़ापन भी इस तरह की वंचना में शामिल किया जा सकता है। इस पृष्ठभूमि के आधार पर देखा जाए तो केवल आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान की किसी भी अनिवार्य विशेषता का उल्लंघन नहीं करता है। संविधान के मूल ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।

आगे इन्होंने कहा कि आरक्षित श्रेणियों को ईडब्ल्यूएस कोटे से बाहर करना संविधान में लिखित किसी भी तरह की समानता के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है। किसी भी तरह से संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता है।

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी के साथ सहमति जताई। अपने फैसले में कहा कि ईडब्ल्यूएस कैटेगरी बनाना संविधान के खिलाफ नहीं है। एससी एसटी और ओबीसी के अलावा कमजोर वर्ग को आरक्षण देना संविधान के अनुच्छेद 14 के मूल भावना के खिलाफ नहीं है। ना ही यह अतार्किक और ना ही यह अन्याय पूर्ण वर्गीकरण है।

जस्टिस त्रिवेदी ने यह भी कहा कि हालांकि यह परिकल्पना की गई थी कि आरक्षण की एक समयावधि होनी चाहिए। यह आजादी के 75 साल बाद भी पूरा नहीं हुआ है। इस मसले पर विचार करने की जरूरत है।

कमोबेस यही बात जस्टिस जेबी पारदीवाला ने भी कही। जिन दो लोगों ने असहमति जाहिर की। उनमें जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस यूयू ललित का नाम शामिल है।

जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबी झेलने वालों को सरकार आरक्षण दे सकती है। ऐसे में आर्थिक आधार पर आरक्षण अवैध नहीं है, लेकिन इसमें से SC-ST और OBC को बाहर किया जाना असंवैधानिक है। ऐसे में EWS आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात है। ये समानता की भावना को खत्म करता है। ऐसे में मैं EWS आरक्षण को गलत ठहराता हूं। अगर ईडब्ल्यूएस आरक्षण देते समय एससी एसटी और ओबीसी को इससे बाहर रखा गया है तो इसका मतलब है कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करता है। सामाजिक न्याय के विचार का उल्लंघन करता है। एससी एसटी और ओबीसी को ईडब्ल्यूएस से बाहर रखना भेदभाव के उस सिद्धांत को अपनाना है जिसे संविधान खारिज करता है। इस बात पर जस्टिस यूयू ललित ने भी सहमति जताई।

नोट : जजमेंट की फुल कॉपी आने पर विस्तृत तरीके से लेख लिखा जाएगा।

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