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पुलिस हिरासत में अतीक़ और अशरफ़ अहमद की हत्या से यूपी में गहराया संदेह

एक तरफ़ कई लोग उन हालात पर सवाल उठा रहे हैं, जिनमें गैंगस्टर भाइयों की मौत हुई, वहीं प्रयागराज में मुस्लिम समुदाय में ग़ुस्सा उबल रहा है।
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प्रयागराज (इलाहाबाद): प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता था, उसी इलाहबाद का बेहद भीड़भाड़ वाला चकिया इलाका शनिवार को, उस वक़्त 15 राउंड गोलियों की आवाज से गूंज उठा, जब माफिया से नेता बने अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ़ की हत्या कर दी गई थी। रविवार को शहर में तनावपूर्ण स्थिति रही। सड़कों पर सुरक्षा बलों या मीडिया के वाहनों का बोलबाला था, जबकि छोटी गलियों में आम लोग माफिया भाइयों की हत्या के बारे में बात कर रहे थे।

रविवार की शाम को 7 बजे, हमले में मारे गए दोनों भाइयों के शवों को पुलिस की भारी मौजूदगी के बीच क़ब्रिस्तान लाया गया और परिजनों के करीबी साथियों ने उनका अंतिम संस्कार किया।

जमीन हड़पने, अपहरण और हत्या के 100 से अधिक अलग-अलग मामलों में नामजद होने के बावजूद, गैंगस्टर को दफनाने के लिए चकिया, कसेरी-मसेरी और करेली इलाके के लोग बड़ी संख्या में शामिल होना चाहते थे, लेकिन पुलिस और प्रशासन ने कानून एवं व्यवस्था के मद्देनज़र इसकी अनुमति नहीं दी। हालांकि, भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में शनिवार को घटी घटना, जहां पुलिस हिरासत में यह दोहरा हत्याकांड हुआ, कोई भी प्रदेश की 'कानून व्यवस्था' का सही जायज़ा ले सकता है।

गैंगस्टर भाइयों के जीवन के आखरी सफ़र में शामिल नहीं होने देने पर समुदाय के कुछ युवाओं ने पुलिस का विरोध भी किया।

बड़ा सवाल 

“जब वह जीवित था तब उस आदमी ने अपराध किए थे। लेकिन वे अब मर चुके हैं, और उनके परिवार का कोई सदस्य भी यहां नहीं हैं, इसलिए मैं उनके अंतिम सफर में साथ देने आया हूं। मेरे जैसे कई लोग हैं जो ऐसा ही करना चाहते हैं, लेकिन हमें अनुमति नहीं दी जा रही है। हमने आवास-संबंधित प्रमाण दिए, लेकिन फिर भी पुलिस ने हमें अंदर नहीं जाने दिया”, उक्त बातें, चकिया इलाके के युवा शाहरुख (नाम बदला हुआ) ने बताई, जो अतीक अहमद के ध्वस्त हुए घर से मुश्किल से 100 मीटर दक्षिण में रहता है। इस हत्या के खिलाफ अपना गुस्सा जताते हुए युवा लड़के ने कहा कि, “अगर अदालत ने उसे दोषी ठहराया होता, तो चीजें अलग होतीं। अतीक जैसा व्यक्ति जो कई बार विधायक रहा है और इतने मामलों में वांछित है, वह कैसे मारा जा सकता है, वह भी तब जब वह पुलिस हिरासत में था? मैं अतीक का बचाव या उनकी वकालत नहीं कर रहा हूं, लेकिन जिन हालात में हत्या हुई, वह बहुत कमजोर हालात की तरफ इशारा करते हैं।"

मोहम्मद शरीक (अनुरोध पर नाम बदला गया), जो चकिया इलाके के निवासी हैं, जो राज्य द्वारा संचालित एक चिकित्सा सुविधा के नजदीक किराने की दुकान चलाते हैं, जहां यह हत्या हुई थी, ने इस घटना पर संदेह जताया है। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "सब कुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि लोग कुछ सोच या समझ नहीं पाए। लेकिन अगर आप हत्या का वीडियो देखेंगे तो समझ जाएंगे कि पुलिस ने हमलावरों को रोकने की कोई कोशिश नहीं की।”

शरीक ने आरोप लगाया लगाया कि, “शुरू में अहमेन लगा कि सब कुछ बड़ी तेजी से हुआ, लेकिन जब हमने घटना का वीडियो बार-बार देखा, तो हम इस नतीजे पर पहुंचे कि अतीक की सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस ने हत्यारों को रोकने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। उत्तर प्रदेश पुलिस मुठभेड़ के लिए जानी जाती है, और वे अच्छी तरह से जानते हैं कि बंदूकों का सबसे बेहतर इस्तेमाल कैसे और कब किया जाता है। लेकिन उनमें से एक ने भी कमर से लटकी बंदूक नहीं उठाई। ऐसा लग रहा था कि पुलिसकर्मी दोनों भाइयों को आसानी से मारने में उनकी मदद कर रहे थे।” उन्होंने आगे कहा कि, “एक लोकतांत्रिक देश में इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? हमारे देश में अपराधियों को सजा देने के लिए अदालतें बनी हैं। इस अपराधी की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों की भूमिका की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।”

जिस अस्पताल में यह घटना हुई, उसके सामने की गली में खड़े युवा और थोड़ी बड़ी उम्र के लोग खड़े थे और मीडिया के लोगों को कवरेज करते देख रहे थे। उनमें से एक युवक ने सिर पर टोपी और हाथों में दूध का पैकेट के लिए हुए कहा कि, "क्या मीडिया इस बार हत्यारों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई के लिए कहेगा?"

इस युवक से अनौपचारिक बातचीत से पता चला कि प्रयागराज के मुस्लिम समुदाय में गुस्सा उबल रहा है। “घटना का सीसीटीवी फुटेज अभी तक क्यों नहीं आया है? यह बहुत भीड़-भाड़ वाले इलाके में हुआ है, और वहां दर्जनों सीसीटीवी लगे होने चाहिए। ये हत्यारे कौन थे और इनकी मुलाकात कैसे हुई और पुलिस की खुफिया जानकारी कैसे फेल हो गई?”

“कानून को अपना काम करना चाहिए था। एक अपराधी के साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, लेकिन अन्य अपराधियों द्वारा सड़क पर नहीं मारा जाना चाहिए। वीडियो में जय श्रीराम के धार्मिक नारे भी लगाए गए। क्या ऐसा हमारे शहर के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के लिए किया गया था?” उन्होंने आगे कहा कि, "अगर अत्याधुनिक हथियारों के बारे में मीडिया की खबरें सच हैं, तो इसकी भी जांच की जानी चाहिए कि इन युवा अपराधियों को ये कहां से मिले। क्योंकि एनडीटीवी कह रहा है कि एक बंदूक की कीमत 6 लाख रुपये तक हो सकती है.”

इस बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की रात एक न्यायिक आयोग के गठन की घोषणा की है, जो इस घटना की जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत करेगा; यह दो महीने में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।

रॉबिनहुड था या नहीं?

उत्तर प्रदेश की शैक्षिक राजधानी कहे जाने वाले इस शहर ने अतीत में गैंगवार और हिंसा देखी है, लेकिन इस बार हालात अलग हैं। प्रशासन ने अफवाह फैलाने वालों को रोकने के लिए इंटरनेट कनेक्शन बंद कर दिया है, जिससे सार्वजनिक अशांति फेल सकती है, और शहर जैसे डर के मारे थम सा गया है।

अतीक जिस चकिया इलाके के रहने वाले थे, वहां आधा दर्जन से ज्यादा घर हैं, जिन्हें प्रशासन ने तोड़ दिया है, क्योंकि ये घर या तो उनके रिश्तेदारों के थे या अतीक अहमद के गुर्गों के  थे। 

इस घटना के बारे में बात करते हुए शहर के वयोवृद्ध संदीप सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "शहर ने रामू पाल की हत्या देखी है। उमेश पाल और कई अन्य लोगों की हालिया हत्या भी देखी है, लेकिन यह एक बहुत ही हाई-प्रोफाइल हत्या है जहां इस मामले का राजनीतिकरण पहले की तुलना में अधिक हुआ है। जिन लोगों ने अतीक अहमद को अपने चरम पर देखा है, वे जानते हैं कि एक शक्तिशाली माफिया राजनेता के इस तरह के अंत की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी।

सिंह ने कहा कि, "अतीक को उसके द्वारा किए गए अच्छे कामों के लिए 'रॉबिनहुड' के रूप में सम्मानित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसने जो अपराध किए, वे सब किस्म के अच्छे कामों से आगे निकल गए। अपराध, अपराध है, और कोई भी अच्छा काम गलत कामों को सही नहीं ठहरा सकता है।"

घरों पर बुलडोज़र चलाए जाने के बारे में पूछे जाने पर, शहर के इस अनुभवी व्यक्ति का कहना है कि वह इमारतों या प्रतिष्ठानों को गिराने में विश्वास नहीं करते हैं क्योंकि परिवार, जिसमें बच्चे भी शामिल हैं, इसके कारण पीड़ित होते हैं।

“मैं यहाँ विशेष रूप से अतीक या किसी अपराधी के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ। मैं घरों पर बुलडोजर चलाने का समर्थन नहीं करता हूं। जब्ती के बाद इन भवनों का इस्तेमाल सरकारी कार्य या जनकल्याण उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है। 

न्यूज़क्लिक को प्रशासन के सूत्रों से मिली आधिकारिक जानकारी के अनुसार, अतीक और उनके करीबी सहयोगियों के स्वामित्व वाली 1,200 करोड़ रुपये की संपत्ति को पिछले कुछ महीनों में सरकार ने या तो जब्त कर लिया है या ध्वस्त कर दिया गया है।

प्रयागराज स्थित पीयूसीएल की कार्यकर्ता सीमा आजाद ने कहा कि उन्हें इस घटना में बड़ी साजिश का आभास हुआ है। वे कहती हैं कि, “सभी को जीने का अधिकार है, यहां तक कि पुलिस हिरासत में भी। यदि कोई रिमांड में है या जेल में है तो आमतौर पर मेडिकल कराने का समय सुबह या शाम का होता है। रात में मेडिकल जांच नहीं की जाती है। मैं यहां के कानून को लेकर बहुत निश्चित नहीं हूं, लेकिन मेडिकल जांच की यह टाइमिंग कुछ सवाल भी खड़े करती है। दूसरा, इंडियन एक्सप्रेस में उद्धृत प्राथमिकी के अनुसार, इन लड़कों ने कहा है कि उन्होंने प्रसिद्ध होने के इरादे से ऐसा किया। तो इन युवाओं को यह प्रेरणा कहां से मिली? क्या यह समाज के लिए एक बुरा संदेश नहीं है क्योंकि लोग मुठभेड़ों और हत्याओं पर सवाल नहीं उठा रहे हैं बल्कि इसे एक मुस्लिम माफिया की हत्या के रूप में देख रहे हैं? मौके पर इस तरह की कार्रवाई भारतीय संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है और सबसे चिंताजनक बात यह है कि समाज इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है बल्कि इसका जश्न मना रहा है।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Suspicion Rises in UP Over Atiq and Ashraf Ahmed's Murder in Police Custody

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