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स्वामी सहजानंद सरस्वती: समाज सुधार से साम्यवाद तक की यात्रा

26 जून को स्वामी सहजानंद सरस्वती की 73वीं पुण्यतिथि थी। स्वामी जी ने गांधी जी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसके बाद वे किसान आंदोलन और साम्यवादी आंदोलन में शामिल हुए और आज़ादी की लड़ाई में उन्हें निर्णायक सफलता मिली।
Sahajanand Saraswati

स्वामी सहजानंद सरस्वती की 73वीं पुण्यतिथि के अवसर पर श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट, राघवपुर, बिहटा की ओर से विमर्श कन्वेंशन का आयोजन किया गया। इस विमर्श कन्वेंशन का विषय था 'स्वामी सहजानंद सरस्वती: उनकी विचार यात्रा'

स्वामी सहजानंद सरस्वती सामाजिक सुधार के अग्रणी पैरोकार थे। गांधी जी के आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसके बाद वे किसान आंदोलन और साम्यवादी आंदोलन में शामिल हुए और आज़ादी की लड़ाई में उन्हें निर्णायक सफलता मिली।

श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट के तत्वाधान में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में बिहार के कोने-कोने से किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के अलावा बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और संस्कृतिकर्मी इकट्ठा हुए।

सबसे पहले ट्रस्ट परिसर में शिलालेख का उद्घाटन किया गया जिसमें इम्तेयाज़ अहमद, डॉ. सत्यजीत सिंह, कैलाश चंद्रझा, प्रो. नवल किशोर चौधरी शामिल थे। आपको बता दें इस शिलालेख में श्री सीताराम आश्रम की ऐतिहासिक भूमिका का उल्लेख किया गया है।

ट्रस्ट के सचिव डॉ. सत्यजीत सिंह ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा, "यह ट्रस्ट हमेशा से स्वामी जी के विचारों के साथ-साथ किसानों की जायज़ मांगों को उठाने का माध्यम बनेगा।"

इसके अलावा अध्येता कैलाश चंद्र झा ने अपने संबोधन में शिलालेख के बारे में बताते हुए कहा, "हम लोगों का पार्टनरशिप स्वामी सहजानंद सरस्वती के साथ रहा है। हम लोग जल्द ही ट्रस्ट की ओर से पहला प्रकाशन करने जा रहे हैं।"

खुदाबक्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के निदेशक रहे इम्तेयाज़ अहमद नें अपने संबोधन में कहा, "मैं ऐसी जगह पर खड़ा हूं जिसने इतिहास बनते देखा है। मैं वाल्टर हाउज़र को याद करना चाहता हूं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक जगत को स्वामी जी से परिचित कराया। वाल्टर हाउज़र से मेरे पिता जी के भी ताल्लुकात थे। मैं उन दोनों की बातचीत को सुना करता था। इसके अलावा वाल्टर हाउज़र ने स्वामी सहजानंद से संबंधित दस्तावेज़ों को संरक्षित कर के रखा गया है। ट्रस्ट के सचिव डॉ. सत्यजीत ने प्रशंसनीय काम किया है। स्वामी सहजानंद की वैचारिक यात्रा एक जगह नहीं रुकती है। पहले वे सामाजिक सुधार के भूमिहार ब्राह्मण सभा में थे फिर गांधी जी के आंदोलन में आये और उसके बाद किसान और साम्यवादी आंदोलन में आये। स्वामी जी ने सरल ढंग से प्रभावशाली अंदाज में बातें की है। उनके उद्धरणों से गुजरने पर उनके राजनीतिक दर्शन से परिचित हुआ जा सकता है। स्वामी जी ने असहयोग आंदोलन से सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिया। उनके करिश्माई व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग गोलबंद हुए। आज़ादी की लड़ाई में उन्हें निर्णायक सफलता मिली। यहां तक की खादी और नशाबंदी आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया। बिक्रम-बिहटा-गाजीपुर-शाहाबाद के इलाके में जबरदस्त काम किया। बाद में गांधी जी के आंदोलन से उनका मोहभंग हुआ।"

इम्तेयाज़ अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं, "1937 के चुनाव में कांग्रेस की सफलता में किसान सभा का सहयोग सबसे प्रमुख रहा लेकिन ज़मींदारों को लेकर ही कांग्रेस और किसान सभा में मतभेद बढ़ने लगा यहां तक कि विधानसभा का भी घेराव किया गया। स्वामी जी फासिज़्म के प्रबल विरोधी थे क्योंकि फासिज़्म कभी भी गरीब-कमज़ोर लोगों के लिए अच्छा नहीं रहा है। बहुत कम लोग ऐसे रहे हैं जो आंदोलन से जुड़े रहे हों तथा इतना ज़्यादा लिखा भी है। अंग्रेज़ी अनुवाद में उनके विचार और भी बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचे हैं। आज़ादी के बाद ज़मींदारी उन्मूलन करने वाला पहला राज्य यदि बिहार बना तो उसका सबसे बड़ा श्रेय स्वामी सहजानंद सरस्वती को जाता है लेकिन स्वामी जी सिर्फ़ राजनीतिक आज़ादी से प्रसन्न नहीं थे। वे सामाजिक-आर्थिक आज़ादी लाना चाहते थे।"

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के राज्य महासचिव अजय कुमार ने अपने ट्रस्ट के लोगों को आश्रम के पुराने गौरव को लौटाने की बात करते हुए कहा, "बड़े ज़मींदारों के द्वारा छोटे व मंझोले किसानों का जो शोषण किया जाता था उससे आहत होकर स्वामी सहजानंद सरस्वती ने उनका पक्ष लिया। एक ही जाति का होने के बावजूद मंझोले किसान ज़मींदारों के सामने बैठने से कतराते थे। शोषण विहीन समाज की स्थापना के विचार स्वामी सहजानंद को सोवियत संघ की ओर ले गई। किसानों को तबाह करने के लिए कृषि कानून तथा मज़दूरों के ख़िलाफ़ चार लेबर कोड लाया गया ताकि उन्हें बर्बाद किया जा सके। देश की 94 प्रतिशत आबादी किसान-मज़दूर की है। किसानों और मज़दूरों की समस्या को एक साथ लड़ना है।"

सामाजिक कार्यकर्ता अनिल सिन्हा ने विमर्श में हस्तक्षेप करते हुए कहा, "सबसे पहले मैं यहां के ट्रस्टियों को धन्यवाद देना चाहता हूं। इस आश्रम का प्रचार प्रसार किया जाए। स्वामी जी ने सामतों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। कोरोना के जाल में यह किसान ही था जिसने अर्थव्यवस्था को बचाकर रखा।"

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य नवल किशोर चौधरी ने कहा, "स्वामी जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि वे निरंतर विकास करते हैं। स्वामी ब्रह्मर्षी वंश विस्तार एक समाजशास्त्रीय अध्ययन हैं, उसमें वे एक विद्रोही की तरह नज़र आते हैं। साम्राज्यवाद के विरोध में वे विद्रोही तो हैं ही साथ ही वे जाति से वर्ग की ओर जाते हैं। आज कास्ट से क्लास की ओर न जाकर पीछे की ओर मुड़ा जा रहा है। यदि स्वामी जी न होते तो बिहार ज़मींदारी उन्मूलन कानून लागू न होता। यहां मैं जाति नहीं सामाजिक-आर्थिक वर्ग के टर्म्स में बात कर रहा हूं। उनके सत्ता में आने की पृष्ठभूमि स्वामी जी ने तैयार की। आज दुर्भाग्य यही है कि वही लोग आज किसानों की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। डी बंदोपाध्याय की सिफारिशों को आजतक नहीं लागू किया गया, ठीक इसी प्रकार समान स्कूल शिक्षा प्रणाली को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। हमें याद रखना चाहिए कि स्वामी जी सोशलिस्ट ट्रांसफारमेशन के समर्थक थे।"

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