शुक्रिया डोर्सी जी, आप बोले तो सही।
अभी जैक डोर्सी जी ने एक रहस्योद्घाटन किया है। उन्होंने कहा है कि किसान आंदोलन के दौरान उन्हें ट्विटर को सरकार के अनुसार मैनेज करने को कहा गया था। उन्होंने बताया कि उनसे कहा गया था कि ऐसे अकाउंटों को बंद कर दें जो सरकार की आलोचना कर रहे हैं। नहीं तो हम तुम्हारा काम इंडिया में बंद कर देंगे। तुम्हारे इंडिया ऑफिस पर छापे पड़वा देंगे, तुम्हारे कर्मचारियों को फंसवा देंगे। वैसे डोर्सी जी, इसमें रहस्य-वहस्य कुछ नहीं है, बस उद्घाटन ही है। जो रहस्य है, वह सारी दुनिया पहले से ही जानती है। यह रहस्य तो पत्ता पत्ता, बूटा बूटा जानता है। सरकार जी इसी तरह से काम करते हैं।
हुआ यूं कि डोर्सी जी पहले ट्विटर के सीईओ हुआ करते थे, एलन मस्क द्वारा ट्विटर खरीदने से जस्ट पहले तक। उस समय ट्विटर को वही हैंडल किया करते थे। यह बात उन दिनों की है जब देश में किसानों का आंदोलन शुरू हुआ था। वही तीन कानूनों के विरोध वाला आंदोलन। उस समय सरकार ने मीडिया से मदद मांगी। भारत के मीडिया ने तो एकदम से ही मदद दे दी। अपनी अपनी भक्ति दिखा दी, निभा दी। सारे आंदोलनकारियों को खालिस्तानी, टुकड़े टुकड़े गैंग आदि बता दिया गया। यह भी बताया कि कैसे ये आंदोलनकारी एसी टेंटों में रह रहे हैं, कैसे ड्राई फ्रूट खा रहे हैं, कैसे उन्होंने आंदोलन की जगह पर जिम खोले हुए हैं और कैसे थक जाने पर टांगों की, पैरों की मसाज करवा रहे हैं।
देसी मीडिया तो मैनेज कर लिया गया। कर क्या लिया गया, 2014 से मैनेज्ड ही है। अब तो उसे मैनेज करने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। लेकिन विदेशी मीडिया को भी तो मैनेज करना था। ट्विटर को, फेसबुक को, इंस्टाग्राम को, इन सभी को भी तो मैनेज करना था। तो ये डोर्सी जी बस उसी के बारे में बोल रहे हैं। उसी की शिकायत कर रहे हैं।
इन विदेशी लोगों को तो बस शिकायत करना आता है। किसी देसी मीडिया वाले ने कोई शिकायत की है भला। ठीक है, सरकार जी ने डोर्सी जी से कहा हमारी बात मानो, किसान आंदोलन के दौरान तो मान ही लो। नहीं तो हमारे पास टॉमी है। हम भी कह देंगे, टॉमी, शू, शू..शू, टॉमी शू। तुम तो अमरीका में हो पर तुम्हारे कर्मचारियों को तो टाॅमी से कटवा ही सकते हैं ना। फिर लगवाते रहना उनके पेट में टाॅमी के काटने के इंजेक्शन।
तो तब डोर्सी जी टॉमी से डर गए। कहा तो यह है कि उस समय अपने कर्मचारियों की रक्षा की वजह से डर गए थे। अब दो साल बाद बोल रहे हैं। वहां अमरीका में बोल रहे हैं। किसी पत्रकार के पूछने पर बोल रहे हैं। साक्षात्कार करने पर बोल रहे हैं। हमारे यहां आ कर बोलते तो हम समझते। पर यहां कैसे बोलते बच्चू? अलबत्ता तो हमारे यहां साक्षात्कार होते ही नहीं हैं और अगर होते भी हैं तो हमारे यहां तो आम खाने का तरीका पूछा जाता है, आप बटुआ रखते हैं या नहीं, यह पूछा जाता है। डोर्सी जी हमारे यहां साक्षात्कार देते तो यही बता पाते कि केला कैसे खाते हैं। साक्षात्कार करने वाला सवाल ही यही पूछता।
डोर्सी जी, आप अब बोल रहे हैं। अब आप तब बोल रहे हैं जब आप ट्विटर के सीईओ नहीं रहे हैं। अब आप बोल रहे हैं और जो अब ट्विटर के नए सीईओ हैं, वे नहीं बोल रहे हैं। अब भी तो पहलवानों का आंदोलन चल रहा है, मणिपुर भी जल रहा है। अब भी तो यहां, भारत में वही सरकार जी हैं जो किसानों के आंदोलन के समय थे। अब भी तो उन सरकार जी ने ट्विटर के सीईओ से वही सब कहा होगा जो किसानों के आंदोलन के समय आपको कहा था। अब भी तो टॉमी का डर दिखाया होगा। और हमारे यहां एक टॉमी नहीं है, कई सारे टॉमी हैं। और सरकार जी के शू,शू करने पर सारे टाॅमी एक साथ टूट पड़ते हैं।
डोर्सी जी, तब आप बिजनेस कर रहे थे और अब एलन मस्क बिजनेस कर रहे हैं। आप भी तब बोले जब ट्विटर बेच दिया और मस्क भी तभी बोलेंगे जब ट्विटर बेच देंगे। बिजनेसमैन बिजनेस करते हुए नहीं बोल सकता है। हमारे यहां भी बहुत सारे अखबार हैं, बहुत सारे टीवी चैनल हैं। और उन सबके मालिक और सीईओ भी बिजनेस ही कर रहे हैं। इसलिए वे भी नहीं बोल रहे हैं। वे भी तब बोलेंगे जब वे बिजनेस छोड़ देंगे।
डोर्सी जी, आप अब बोले, अच्छा किया। जो सबको पहले से ही पता है, आपने भी बता दिया। आपने देखा नहीं, सरकार जी के पास टॉमी ही नहीं, कई सारे मोती भी हैं। आपके बोलते ही सारे के सारे बोलने लगे। भों भों करने लगे। लेकिन अच्छा किया, आप बोले। प्रश्न पूछने पर ही बोले। पर बोले तो सही। यहां तो कोई बोलता ही नहीं है।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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