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कोरोना वायरस ने अमेरिका सहित पश्चिमी दुनिया की कमज़ोरियों से पर्दा उठा दिया है

कोरोना वायरस संकट अमेरिका की प्रतिष्ठा को एक ऐसे देश के रूप में धूमिल कर देगा जो चीजों को प्रभावी ढंग से संभालना जानता है।
कोरोना वायरस
Image courtesy: The New York Times

जॉन हापकिन्स यूनिवर्सिटी के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में कोरोना वायरस का संक्रमण 1 लाख से भी अधिक लोगों में फ़ैल चुका है। अमरीका में कोरोना वायरस  के कारण अब तक 1632 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं। कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा 9,134 मौतें यूरोप के देश इटली में हुई हैं। स्पेन में कोरोना वायरस से 4,858 मौतें हुईं हैं। दोनों देशों को मिला दें तो मरने वालों की संख्या 13,992 है। एक अनुमान के हिसाब से पूरे यूरोप में कोरोना वायरस के करीब 3 लाख से अधिक मामले इस समय हैं।
 
न्यूयॉर्क शहर में सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों ने ज्यादा बिस्तरों और चिकित्सा उपकरणों की तलाश तेज कर दी है। कुछ ही हफ्तों में बीमार लोगों की संख्या विस्फोटक होने और शहर के अस्पतालों के हालात इटली और स्पेन जैसे होने के डर से अधिक डॉक्टरों और नर्सों की मांग की गई है। यूरोप में अव्यवस्था है। करोड़ों लोग लॉकडाउन के अधीन हैं, निजी क्षेत्र अपने घुटनों पर है। सरकारें व्यवस्था को कुछ हद तक बनाए रखने की कोशिश करते हुए एक पूरी तरह से अप्रत्याशित प्रतिकूल स्थिति का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। यह सिर्फ एक वायरस कोविड-19 के कारण है। कोरोना वायरस ने अब तक 24,000 से अधिक लोगों की जान ले ली और 590,000 से अधिक लोग इससे संक्रमित हुए हैं।

बीएमडब्ल्यू, निसान, डेमलर, वोक्सवैगन, फिएट, पियाजियो और अन्य कार निर्माता कंपनियों ने यूरोप में अपने विनिर्माण को रोक दिया है। जनरल मोटर्स और फोर्ड ने अमेरिका में अपने सभी उत्पादन को बंद कर दिया है। डॉयचे बैंक द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से सबसे खराब वैश्विक आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने दुनिया भर में 25 मिलियन नौकरी के नुकसान की चेतावनी जारी की है। सभी शेयर बाजारों को इस वायरस ने भारी झटका दिया और ब्रिटिश पाउंड को 1980 के दशक के बाद से इतने कमजोर स्तर पर नहीं देखा गया। यह सिर्फ एक वायरस से हुई साफ तौर पर दिखाई देने वाली क्षति है। अप्रत्यक्ष नुकसानों का आकलन करना अभी शायद किसी भी तरह संभव नहीं है।

अगर अमेरिका में देखें तो पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था सरकारी/निजी बीमा, बीमा कंपनियों और निजी अस्पतालों का मिश्रण है। 37.7% अमेरिकियों के पास सरकारी बीमा कवरेज है। इनमें मेडिकलएड, मेडिकेयर, चिल्ड्रन हेल्थ इंश्योरेंस प्रोग्राम और वेटरन्स एडमिनिस्ट्रेशन सहित सैन्य कवरेज शामिल हैं। अमेरिका की 8.5% आबादी को कोई स्वास्थ्य बीमा कवरेज नहीं है। बाकी अमेरिकियों का निजी स्वास्थ्य बीमा है, जो ज्यादातर अपने नियोक्ताओं से प्रीमियम हासिल करते हैं। बुजुर्गों के अस्पतालों को छोड़कर सभी स्वास्थ्य देखभाल सेवा प्रदाता निजी हैं। अमेरिका उन 33 विकसित देशों में से केवल एकमात्र है, जिनके पास सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल नहीं है।

कई अमेरिकी बीमा के प्रीमियम के भुगतान को पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, जो आय खर्च का एक बहुत बड़ा मुद्दा है। मेडिकल खर्च के कारण अमेरिका में करीब 2 मिलियन लोग दिवालिया हुए हैं। स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती लागतों ने पूरे संघीय बजट का भार बहुत बढ़ा दिया है। इसके कारण निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान दिया जाना संभव नहीं हो पा रहा है।  

निवारक देखभाल किसी भी तरह की स्वास्थ्य आपात स्थितियों से बचाव करती है। निवारक देखभाल का लक्ष्य लोगों को स्वस्थ रहने में मदद करना होता है। मौत के चार सबसे प्रमुख कारण हृदय रोग, कैंसर, फेफड़ों की पुरानी बीमारी और स्ट्रोक पूरी तरह से रोके जाने वाले रोग होते हैं। इन पुरानी बीमारियों का इलाज महंगा है।आधे वयस्क अमेरिकियों को गंभीर पुरानी बीमारी होती है, लेकिन वे स्वास्थ्य खर्च के 85% के लिए जिम्मेदार हैं।

टेक्सास के डलास शहर का 872-बेड का पार्कलैंड मेमोरियल अमेरिका के 10 सबसे बड़े अस्पतालों में से एक है। इसके लगभग 85% रोगी या तो ऐसे हैं जिनका बीमा नहीं है या मेडिकेड पर हैं। अस्पताल ने अपने बजट का करीब आधा 871 मिलियन डॉलर ऐसे लोगों के इलाज पर खर्च करता है, जो कोई भुगतान नहीं करते। अस्पताल पर ऐसे रोगियों के बढ़ते दबाव को रोकने के लिये एक कल्याण कार्यक्रम चलाया गया जो कई बार अस्पताल में भर्ती हो चुके थे। इसके बहुत सकारात्मक नतीजे सामने आए।  

किसी भी अन्य विकसित देश की तुलना में अमेरिकी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की लागत प्रति व्यक्ति दो गुना ज्यादा है। सकल घरेलू उत्पाद में स्वास्थ्य क्षेत्र का योगदान 3.2 ट्रिलियन डॉलर या 17.8 प्रतिशत था। यह विकसित दुनिया में सबसे अधिक प्रतिशत है। अमेरिकी डॉक्टर किसी कनाडाई डॉक्टर की तुलना में बीमा कंपनियों के साथ मोलभाव में चार गुना समय खर्च करते हैं।

तीन ऐसे कारण हैं जिनसे अमेरिका में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत इतनी अधिक है। सबसे पहले अधिकांश लागत उनके जीवन के पहले 10 दिनों और अंतिम 10 दिनों में लोगों का इलाज करने से आती है। चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है जो समय से पहले जन्में बच्चों को बचाती है और बुजुर्गों की जीवन प्रत्याशा को बढ़ाती है। लेकिन ये प्रक्रिया बहुत महंगी हैं। अगर इसमें सफलता की संभावना कम हो कुछ अन्य देश देखभाल के उच्च स्तर को सीमित करते हैं। वे इस प्रक्रिया को अपनाने से मना कर देते हैं। जबकि अमेरिका में इस तरह की देखभाल को वरीयता दी जाती है, भले ही रोग के इलाज से मरीज की स्थिति ज्यादा खराब हो।

डॉक्टर अक्सर बिना वजह ज्यादा टेस्ट करते हैं और 1,000 डॉलर के एमआरआई और 1,500 डॉलर कॉलोनोस्कोपी का आदेश देते हैं। ऐसा वे तब भी करते हैं, जब उन्हें नहीं लगता कि उनकी जरूरत है। द इकोनॉमिस्ट का अनुमान है कि इन तौर-तरीकों से अमेरिकी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता प्रतिवर्ष 65 बिलियन डॉलर से अधिक मुनाफा कमाते हैं।

तीसरा कारण यह है कि उपभोक्ता क्षेत्र के इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अन्य उद्योगों की तुलना में स्वास्थ्य देखभाल में कम कीमतों के लिये प्रतिस्पर्धा बिल्कुल नहीं है। अधिकांश लोग स्वयं के स्वास्थ्य देखभाल के लिए पूरा भुगतान नहीं करते हैं। मरीज केवल एक निर्धारित शुल्क या सह-भुगतान करते हैं, जबकि बीमा कंपनी बाकी भुगतान करती है। इसके कारण डॉक्टरों, लैब परीक्षणों या दूसरी सुविधाओं के लिए कीमत पर मरीज ज्यादा एतराज नहीं करते हैं, जैसा कि वे कंप्यूटर या टेलीविजन सेट के लिए करते हैं। हर वर्ष 101,000 से अधिक अमेरिकियों की मृत्यु केवल इसलिये हो जाती है क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य बीमा नहीं होता है।

अमेरिकी स्वास्थ्य व्यवस्था मे साधारण स्वास्थ्य सुविधाओं के बजाय विशेषज्ञता पर ज्यादा जोर दिया गया। कोरोना वायरस जैसी महामारी से निपटने में साधारण प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। नर्सों और अन्य स्टॉफ का अभाव ब्रिटेन, इटली और स्पेन में भी साफ दिख रहा है। ब्रिटेन ने महामारी से निपटने के लिये स्वयंसेवकों को काम पर लगाया है।  
 
एक सदी से भी अधिक समय से दुनिया भर में अमेरिका का प्रभाव तीन स्तंभों पर टिका हुआ है। सबसे पहला तो इसकी अति विशाल आर्थिक और सैन्य ताकत का भयानक संयोजन है। संयुक्त राज्य अमेरिका में दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे परिष्कृत अर्थव्यवस्था है। अधुनिक विज्ञान के हर क्षेत्र में विशेषज्ञता में अमेरिका की प्रतिष्ठा, इसकी शक्ति के सबसे बड़े स्रोतों में से एक रही है। कोरोना वायरस महामारी इसे कुछ हद तक खत्म कर सकती है।

दूसरा स्तंभ सहयोगी देशों से समर्थन था। जो देश वाशिंगटन की हर बात से सहमत नहीं हैं। वे भी समझते हैं कि वे अमेरिकी नेतृत्व से लाभान्वित हुए हैं और आमतौर पर उसका साथ पाने के इच्छुक रहते हैं। जबकि अमेरिका हमेशा अपने स्वयं के हित में काम करता रहा है, फिर भी दूसरों के समान हितों ने उन्हें अमेरिका से साथ जाने के लिए राजी करना आसान बनाया।

एक तीसरा स्तंभ अमेरिकी क्षमता में व्यापक विश्वास है। जब दूसरे देश अमेरिका की ताकत को पहचानते हैं, तो यह मानते हैं कि अमेरिकी नेतृत्व को पता है कि वे क्या करना जरूरी है। यदि वे इसकी शक्ति, इसकी बुद्धि या इसकी प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता पर संदेह करने लगेंगे तो अमेरिका का वैश्विक प्रभाव अनिवार्य रूप से खत्म होने की ओर बढ़ेगा। यदि अमेरिका के नेता खुद को अक्षम पाते हैं, तो विदेशी शक्तियों को उनकी सलाह क्यों माननी चाहिए?

वियतनाम युद्ध जैसी हार ने भी अमेरिका की क्षमता को पूरी तरह से धूमिल नहीं किया था। दरअसल शीत युद्ध और 1990-1991 के खाड़ी युद्ध में अमेरिका की प्रचंड जीत ने वियतनाम की यादों को खत्म कर दिया था। उदारवादी लोकतांत्रिक पूंजीवाद के अमेरिका के मॉडल को दूसरों के अनुकरण के लिए एक आदर्श मॉडल माना जाने लगा था।

पिछले 25 वर्षों में अमेरिका के गैर-जिम्मेदार नेतृत्व ने बुनियादी क्षमता की उस प्रतिष्ठा को खत्म करने का उल्लेखनीय काम किया है। यह सूची बहुत लंबी है: व्हाइट हाउस की प्रशिक्षु के साथ पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की गैरजिम्मेदाराना हरकत, पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन का 9/11 से पहले आतंकवादी हमले की चेतावनी पहचानने में विफल रहना, एनरॉन घोटाला, 2005 में तूफान कैटरीना और 2017 में तूफान मारिया के समय घबराहट भरी अक्षम प्रतिक्रियाएं, अफगानिस्तान और इराक में युद्धों को जीतने या समाप्त करने में असमर्थता और लीबिया, यमन, सीरिया और अन्य जगहों पर बेकार हस्तक्षेप, 2008 का वॉल स्ट्रीट संकट आदि।

इसके बाद कोविड-19 आया। बार-बार चेतावनी के बावजूद ट्रम्प का संकट से निपटने का ढंग शुरू से ही अजीब रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के बेलगाम, आत्म-केंद्रित और चेतावनियों को अनसुनी करने के रवैये से अब खरबों डॉलर खर्च होंगे और हजारों मौतें हो रही हैं, जो शायद रोकी जा सकती थीं। लेकिन इससे अमेरिका को केवल यही एकमात्र नुकसान नहीं होगा। कोरोना वायरस संकट अमेरिका की प्रतिष्ठा को एक ऐसे देश के रूप में धूमिल कर देगा जो चीजों को प्रभावी ढंग से संभालना जानता है।

अमेरिका ऐसी स्थिति में कैसे पहुंचा? अमेरिकियों को लगातार बताया जाता रहा कि सरकार केवल दुश्मनों के लिये और कर चूसने के लिए होती है। लालच अच्छा है। बाजार ही सब कुछ है। सार्वजनिक सेवा क्षेत्र का लगातार अवमूल्यन होता रहा। दशकों से अमेरिका के कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक संस्थान खोखला होते रहे हैं।

अमेरिकी राजनीतिक प्रणाली बहुत खर्चीली है और केवल उन लोगों के जीतने की उम्मीद रहती है, जो सबसे अधिक खर्च करते हैं। अरबों डॉलर के खर्च से कई महीनों तक चलने वाला चुनाव अभियान और केवल दो या तीन गोरे लोगों के बीच से ही राष्ट्रपति के लिये एक विकल्प देने जैसी कमियां सर्वज्ञात हैं। बेतुका इलेक्टोरल कॉलेज एक पुराना अवशेष है, जो देश के अधिकांश हिस्सों में मतदाताओं को व्यवस्थित ढंग से चुनाव प्रक्रिया से एक विशिष्ट ढंग से अलग कर देता है। क्या चार साल के कार्यकाल के लिये चुनाव पर इतना खर्च करने का कोई मतलब है? किसी भी दूसरे लोकतंत्र ऐसा नहीं होता है।

पर्ल हार्बर हमला 1979 की ईरानी क्रांति या 9/11 के आतंकवादी हमले के विपरीत वर्तमान कोरोना वायरस संकट पर मौजूदा व्हाइट हाउस प्रशासन की एकमात्र जिम्मेदारी बनती है। ट्रंप पर उदासीनता यहां तक कि जानबूझकर लापरवाही के आरोप लगाये गये हैं। वाशिंगटन पोस्ट ने जो खुलासा पिछले हफ्ते किया है, उसके अनुसार जनवरी और फरवरी में खुफिया अधिकारियों ने व्हाइट हाउस को कोरोना वायरस संकट के बारे लगातार चेतावनियां दी थीं। इसका वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों पर बहुत कम प्रभाव हुआ। जो निस्संदेह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कोरोना वायरस के प्रति लापरवाही भरे रवैये से प्रेरित थे।

यूरोपीय संघ के साथी देश महामारी से सबसे ज्यादा पीड़ित इटली को चिकित्सा सहायता और आपूर्ति देने में विफल रहे हैं। अपनी जिम्मेदारी के पीछे हटने का यह एक शर्मनाक संकेत है। इटली में अब रूस, क्यूबा और चीन इस खालीपन को भर रहे हैं। कोरोना वायरस संकट पश्चिम जगत की कई रणनीतिक कमजोरियों को उजागर कर रहा है। अमेरिका और यूरोपीय संघ के विरोधी इस पर जरूर ध्यान दे रहे होंगे ताकि वे भविष्य के संघर्ष में वे इन कमजोरियों का फायदा उठा सकें।

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