Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

चार्ल्स तृतीय का राज्याभिषेक हमें ब्रिटेन के नरसंहार, ग़ुलामी व लूट के ख़ूनी इतिहास की याद दिलाता है…

ब्रिटिश ताज असल में नरसंहार, ग़ुलामी व लूट के ख़ूनी इतिहास की याद दिलाता है, जिस तरह से यह 700 वर्ष पुरानी राज्याभिषेक की परंपरा की याद दिलाता है।
Charles
फ़ोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

गत 6 मई को यूनाइटेड किंगडम के सम्राट के रूप में चार्ल्स तृतीय की जो ताजपोशी की गई है, वह उस दौर में संपन्न हुई है जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज निर्णायक रूप से कब का डूब चुका है। लेकिन इस समारोह ने एक बार फिर से हमें ब्रिटिश ताज के औपनिवेशिक लूट तथा गुलाम व्यापार के साथ रिश्तों की याद ताजा करा दी है, जो कि ब्रिटिश साम्राज्य की बुनियाद रहे हैं। ब्रिटेन का शाही खानदान, असल में उस साम्राज्य का कोई नाम मात्र का शासक नहीं रहा है, बल्कि रॉयल अफ्रीकन नामक कंपनी पर, जिसको कि अमरीका के महाद्वीपों को गुलामों की आपूर्ति करने का एकाधिकार प्राप्त था, ब्रिटिश सम्राट को मालिकाना हक़ प्राप्त था। इसके संचालन की जिम्मेदारी सम्राट के भ्राताश्री अर्थात ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के पास हुआ करती थी। गुलाम व्यापार के ऊपर शाही खानदान के एकाधिकार का खात्मा तब जाकर हुआ जब लंदन, मैनचेस्टर एवं अन्य शहरों के ‘स्वतंत्र व्यापार’ के हामी व्यापारियों ने, उस लाभदायक उद्यम से होने वाले मुनाफे में से, अपने हिस्से की मांग कर डाली थी।

यहां सवाल यह पैदा होता है कि तीन सौ वर्ष पहले के गुलाम व्यापार में इंग्लैंड की भूमिका के बारे में, हम आज विज्ञान एवं विकास से संबंधित इस कॉलम में क्योंकर लिखना चाहते हैं? इस प्रश्न का उत्तर इस तथ्य में निहित है कि हमलोगों को, दुनिया की हकीकत से भिन्न इतिहास की जानकारी दी गयी है। हमें पश्चिमी जगत के उस मिथक की पड़ताल करनी होगी, जिसे वे लोग इतिहास की तरह पेश करते आये हैं। उनके इस मिथक में पहले पायदान पर आता है अन्वेषण का युग। दूसरे पर है प्रबोधन का युग। और उसके बाद आता है विज्ञान एवं तकनीकी क्रांति का युग, जिनकी परिणिति हुई आधुनिकता से सजी हुई इस दुनिया में। अन्वेषण, प्रबोधन एवं औद्योगीकरण के इस कथानक में नरसंहार, गुलामी तथा उपनिवेशों की लूट का कोई जिक्र शामिल नहीं है। पश्चिम के इतिहासकारों के अनुसार पश्चिमी जगत के उद्भव के दौरान हालांकि कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम हुए थे, लेकिन ऐसे घटनाक्रम मुख्य धारा के अंग नहीं थे। उनके अनुसार यह विवेक एवं विज्ञान के उद्भव का अफ़साना रहा है, जिन पर पश्चिम की दुनिया के मानस का एकाधिकार था।

सवाल यह उठता है कि कोलंबस और वास्को-डि-गामा की अमरीका एवं भारत की समुद्री यात्राओं को, पश्चिम वाले ‘खोज’ की संज्ञा क्यों देते हैं? आखिरकार, अमरीका के महाद्वीप तो हैती नामक टापू पर कोलंबस के पहुंचने के समय तक, खूब अच्छी तरह बसे हुए थे। उधर यूरोप के साथ एशिया के व्यापार की हकीकत, रोम के जमाने से विख्यात थी। तब फिर इन खोजकर्ताओं ने कैसे, इन ठिकानों की कथित तौर पर ‘खोज’ की थी?

उनके इन प्रयासों को ‘तलाश’ की बजाय ‘खोज’ का दर्जा प्रदान करने के पीछे मंशा यह थी कि तथाकथित ‘खोजे गये’ गैर-ईसाई धर्मों को मानने वाले क्षेत्रों को, चर्च एवं सम्राट के नाम पर जब्त किया जाए। वर्ष 1494 की टोरदेसिलस की संधि के अनुसार सारी गैर-यूरोपीय/गैर-ईसाई दुनिया को, स्पेन एवं पुर्तगाल के बीच बांट लिया गया था। इन भू-पर्यटकों द्वारा अपने सम्राट एवं चर्च के ध्वज का इस्तेमाल किया जाता था। गैर-ईसाई धर्मों को मानने वाले क्षेत्रों के निवासियों को ईसाई मत में धर्म परिवर्तन कर लेने का विकल्प दिया जाता था, जिसको उनके सामने एक ऐसी भाषा में पढ़ कर सुनाया जाता था, जिस भाषा से वे देसज लोग परिचित नहीं होते थे। अगर वे लोग धर्म परिवर्तन के लिए अपनी सकारात्मक सहमति प्रदान नहीं करते थे, तो उनको अपनी जमीन, अपनी आज़ादी तथा अपने जीवन के अधिकार से वंचित होना पड़ जाता था। उनके अनुसार, गैर-ईसाइयों में उनकी अपनी कोई रूह नहीं होती थी, और ना ही उनके कोई अधिकार थे। उस दौर में चर्च के अनुसार गैर-ईसाइयों के नरसंहार को जुर्म की श्रेणी में नहीं रखा जाता था।

हमारे इस विश्वास को कहीं एक ऐतिहासिक विसंगति न मान लिया जाए, इसलिए, अमरीका के सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1823 में अन्वेषण के सिद्धांत के बारे में जो कहा गया था, उस पर गौर किया जाना चाहिए। वहां के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, ‘अन्वेषण के बाद आता था कब्ज़ा’ अर्थात देसज लोगों की बेदखली, जिसके उपरांत यूरोप के सत्ताधीशों को उन जमीनों की मिल्कियत का वैधानिक अधिकार मिल जाया करता था।

यदि हम पश्चिम के विद्वानों द्वारा लिखित विश्व के आर्थिक इतिहास का अध्ययन करते हैं, तो पाते हैं कि अन्वेषण के उनके युग के दौरान जो अफ्रीका से गुलामों का व्यापार होता था, अमरीका के महाद्वीपों में जो नरसंहार हुए थे तथा जो लूट की गयी थी, उनकी पश्चिम के उद्भव में किसी भी भूमिका का जिक्र नहीं किया जाता है। उनके हिसाब से तो पश्चिम का उद्भव वहां की औद्योगिक क्रांति की वजह से ही संभव हुआ था, जिसकी आधारशिला विवेक के युग (ऐज ऑफ़ रीजऩ) में रखी गयी थी, जिसने आधुनिक विज्ञान को जन्म दिया था। असल में तो औद्योगिक क्रांति ही वह कारक है - भाप के इंजन से चलने वाले कपड़ा मिल - जो पश्चिम को बाकी हम सब से अलग करता है। यहां पश्चिम से तात्पर्य यूरोप की उन सभी उपनिवेशवादी ताकतों से है, जो मिलकर एक समरूप सत्ता का निर्माण करती हैं तथा जिसमें अमरीका का आबाद औपनिवेशिक राज्य भी शामिल है।

ऐसे में मुद्दा बन कर यह उभरता है कि औद्योगिक क्रांति ने क्योंकर अपने पांव ग्रेट ब्रिटेन में ही जमाये थे, जिसके बाद पश्चिमी जगत बाकी दुनिया से पूरी तरह भिन्न हो चला था?

इस आधार पर उपनिवेशवादी इतिहास को हम दो स्पष्ट युगों में बांट सकते हैं। पहले युग को आधुनिक पूंजी के मर्केंटाइल युग की संज्ञा प्रदान की जाती है, जिसकी परिणिति दुनिया के आर्थिक एकीकरण में हुई थी। ‘मर्केंटाइल’ नामक संज्ञा प्रदान करने से अमरीकी महाद्वीपों में जो नरसंहार हुआ, अफ्रीका से जो गुलाम व्यापार किया गया तथा गन्ना एवं कपास प्लांटेशनों में जो गुलामी करवाई गयी, उन सबकी बदबू को शराफत का जामा पहना दिया जाता है। दूसरे दौर को औद्योगीकरण के युग का नाम दिया जाता है। विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में पैदा हुई क्रांति ने पश्चिम को चीन एवं भारत जैसी पुरानी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में तेजी से बढ़त प्रदान कर दी थी और उस प्रक्रिया में उनकी आर्थिक शक्ति को भारी नुकसान पहुंचा था।

कैरीबियन एवं अमरीकी महाद्वीपों में प्लांटेशन आधारित अर्थव्यवस्था, हालांकि शुगर प्लांटेशन तक ही सीमित नहीं थी, लेकिन विश्वव्यापी व्यापार के लिए चीनी, उनका प्रमुख तथा बहुत हद तक विशालतम माल हुआ करती थी। शुगर प्लांटेशनों में पूंजी का मुख्य निवेश जमीन अथवा कारखाने एवं मशीनरी में नहीं बल्कि गुलामों में किया जाता था। प्लांटेशनों के मालिक अपने गुलामों की संख्या, उनकी उम्र, उनके जेंडर - अर्थात उनकी उत्पादन क्षमता एवं उनकी परिचालन लागत आदि का, उसी तरह हिसाब रखते थे, जिस प्रकार मिल मालिक अपने पूंजीगत उपकरणों का हिसाब रखते हैं। बैंक से ऋण लेने के वास्ते गुलामों को उसी प्रकार बैंक में बंधक रखा जाता था, जिस प्रकार फैक्ट्री मालिकान आज के युग में अपने पूंजीगत सामानों को बैंक में बंधक रखते हैं। गुलामों को बैंक के पक्ष में बंधक बनाकर जो ऋण लिए जाते थे, वे बागान मालिकों के लिए, उनकी वर्किंग कैपिटल का महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करते थे।

बागानों में गुलामों की शुमार जहां मशीनरी की तरह हुआ करती थी, वहीं उनको व्यक्तिगत स्तर पर वस्तु अर्थात माल की हैसियत प्राप्त थी। गुलाम व्यापार की जो निर्दयता होती थी तथा जिन अमानवीय हालातों में उनको जहाज से उतरने एवं बेचे जाने से पहले रखा एवं लाया ले जाया जाता था, उसकी एक अलग ही कहानी है। जो बात इतिहास के इस मर्केंटाइल युग के बारे में आर्थिक इतिहासकार बताना भूल जाते हैं, उसका संबंध इस तथ्य से है कि उस गुलाम व्यापार से जुड़े शिपिंग, बैंकिंग एवं बीमा के कामों से वित्तीय पूंजी का भारी विस्तार हुआ था। तदुपरांत, इसी पूंजी ने औद्योगिक क्रांति को जन्म दिया था।

जब ब्रिटेन ने गुलामी की प्रथा का अंत किया था, तब गुलाम मालिकों को जो मुआवजा दिया गया था, उससे वित्तीय पूंजी के विस्तार में भारी मदद मिली थी। गुलाम-मालिकों को मुआवजा प्रदान करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने बांड्स के जरिये 2 करोड़ पौंड की धनराशि की उगाही की थी, जो कि ब्रिटिश सरकार की सालाना आमदनी का 40 फीसद बैठता था। मजेदार बात यह है कि गुलामी की प्रथा को एक अमानवीय व्यवस्था करार देते हुए ब्रिटेन में इसका अंत किया गया था, लेकिन मुआवजा गुलामों के बजाय गुलाम-मालिकों को ही दिया गया था। गुलामों को तो अगले 6 वर्षों तक अप्रेंटिस की तरह काम करना पड़ता था ताकि बागानों में दास-श्रम के स्थान पर मजदूरी-श्रम की प्रथा का चलन हो सके। ब्रिटेन के उपनिवेशों में भारत के गिरमिटिया मजदूरों के हालात गुलामों जैसे ही थे, जिनको कैरीबियन की ब्रिटिश कॉलोनियों में दास-श्रमिकों के स्थान पर लगाया गया था।

भाप के इंजन की कहानी - कि वह विज्ञान एवं तकनीक का नतीजा था - एक और मिथक है। हमने पूर्व में पेटेंट्स के सिलसिले में जेम्स वाट्स के भाप के इंजन के बारे में लिखा था कि कैसे वाट्स के पेटेंट की वजह से भाप के इंजन का आगे विकास नहीं हो पाया था। हमारा वास्ता यहां इस बात से है कि ताप-गतिकी (थर्मोडाईनॅमिक्स) के विज्ञान का नतीजा होने के बजाय, भाप का इंजन असल में कोर्नवॉल के कोयला खनिकों की जरूरतों का नतीजा था। उष्मा के विज्ञान की समझ से इसका कोई ख़ास लेना-देना नहीं था। ना ही जेम्स वाट के इंजन से कपड़ा मिलों के विस्तार में कोई मदद मिली थी - जो कि औद्योगिक क्रांति का इंजन बना था। भाप का इंजन तो कपड़ा मिलों में शक्ति का स्रोत 1825-1835 के बीच जाकर बन पाया था, और तभी पनचक्की से छुटकारा मिला था।

भारत के कपड़ा-उद्योग का विनाश गोरों के हाथ हुआ ही था, जिन्होंने एक शाही फरमान के तहत भारत पर राज किया था। भारत के साथ व्यापार का एकाधिकार, ईस्ट इंडिया कंपनी को शाही फरमान के जरिये ही प्राप्त हुआ था - बिलकुल उसी तरह जैसे रॉयल अफ्रीकन कंपनी को अटलांटिक में गुलाम व्यापार का एकाधिकार प्राप्त हुआ था। दोनों के पीछे उसी ब्रिटिश ताज की सैनिक ताकत खड़ी हुई थी, जिससे किंग चार्ल्र्स तृतीय को 700 वर्ष पुरानी राज्याभिषेक की परंपरा के अंतर्गत आयोजित समारोह में नवाजा गया है। इस बीच एक या दो राजवंश भले ही बदले हों, लेकिन राजतंत्र की संस्था वहां बखूबी बरकरार रही है।

ब्रिटिश ताज की शाही सत्ता ने ही भारत के कपड़ा उद्योग का विनाश किया था, जिसके तहत भारत को तैयार मालों का आयातक तथा कपास का निर्यातक बना डाला गया था। इस तरह भारत को घरेलू एवं विदेशी बाज़ारों के लिए सामानों के प्रमुख उत्पादक से बदल कर, एक निर्धन राष्ट्र में तब्दील कर दिया गया, जो यूनाइटेड किंगडम को अनाज एवं खनिजों का निर्यात करने लगा था। इससे भी बुरी बात यह थी कि भारत को जबर्दस्ती अफीम के उत्पादन के काम में लगा दिया गया था, जिसकी सप्लाई ब्रिटेन द्वारा चीन को की जाती थी और जिसके परिणामस्वरूप, अफीम युद्धों की शुरुआत हुई थी। भारत से दौलत के प्रवाह, चीन के साथ अफीम का व्यापार तथा अन्य उपनिवेशों की लूट के माध्यम से ही, यूनाइटेड किंगडम तथा अन्य उपनिवेशवादी ताकतों का विकास हो पाया था, न कि अन्वेषण की उनकी तलाश तथा ज्ञान की उनकी चाह के कारण।

पश्चिमी जगत एवं शेष दुनिया के बीच का जो अंतर पैदा हुआ है, उसकी तह में अन्वेषण की कोई भावना अथवा विवेक एवं विज्ञान की कोई खोज नहीं रही है। हकीकत में तो यह लूट, गुलामी एवं नरसंहार की कहानी है। ब्रिटिश ताज असल में इसी निरंतरता की याद दिलाता है, जिस तरह से यह 700 वर्ष पुरानी राज्याभिषेक की परंपरा की याद दिलाता है।

मूल रुप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Charles III Coronation Reminds of Britain’s Bloody History of Genocide, Slavery, and Loot

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest