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देश में धार्मिक आज़ादी को चिंताजनक बताने वाली रिपोर्टों को सरकार ने नकारा, लेकिन अल्पसंख्यकों के साथ हुई हिंसा पर साधी चुप्पी
अमेरिकी आयोग यूएससीआईआरएफ़ की आलोचना करते हुए भारत की ओर से कहा गया कि धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की प्रतिक्रिया दिखाती है कि उनके विचारों में भारत और उसके संवैधानिक ढांचे को लेकर 'समझ की व्यापक कमी है।
सोनिया यादव
04 Jul 2022
arindam bagchi

देश में धार्मिक आज़ादी का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। इसकी प्रमुख वजह भारत सरकार की ओर से अमेरिकी रिपोर्ट पर दी गई तल्ख़ प्रतिक्रिया है, जो राष्ट्रीय मीडिया में छाई हुई है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की हालिया रिपोर्ट को 'पक्षपातपूर्ण' और 'ग़लत' बताया है। शनिवार, 2 जुलाई को अमेरिकी आयोग यूएससीआईआरएफ़ की आलोचना करते हुए भारत की ओर से कहा गया कि धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की प्रतिक्रिया दिखाती है कि उनके विचारों में भारत और उसके संवैधानिक ढांचे को लेकर 'समझ की व्यापक कमी है।

बता दें कि इससे पहले बीते महीने जून में भी एक ऐसी ही रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें भारत पर धार्मिक आज़ादी को लेकर कई तरह के आरोप लगाए थे। इस पर भी भारत सरकार की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई थी। भारत ने कहा था कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वोट बैंक की राजनीति की जा रही है।

इसी साल अप्रैल के महीने में अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ़) की जारी रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश मंत्रालय से यह सिफ़ारिश की गई थी कि वो भारत को 'विशेष चिंता वाले' देशों की सूची में डाल दे। आयोग की ओर से बीते तीन सालों से यह सिफ़ारिश की जा रही है लेकिन भारत को अभी तक इस सूची में नहीं डाला गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हालिया जारी इस रिपोर्ट में अमेरिका ने भारत में ऐसे कानूनों की ओर संकेत किया है जो धर्म परिवर्तन पर पाबंदियां लगाते हैं। रिपोर्ट में मुसलमानों और ईसाइयों के साथ धर्म के नाम पर भेदभाव के उदाहरण दिए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के नेताओं ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ टिप्पणियां की हैं या सोशल मीडिया पर लिखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार ने ऐसे कई कानून बनाए हैं जिन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता और आलोचक भेदभावकारी बताते हैं।

क्या है पूरा मामला?

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने शनिवार को ट्विट कर जानकारी दी कि हमने यूएससीआईआरएफ़ की ओर से भारत को लेकर जारी की गई पक्षपातपूर्ण और ग़लत टिप्पणियों वाली रिपोर्ट पर अपना पक्ष रखा है। अरिंदम बागची के मुताबिक आयोग की टिप्पणियां भारत और इसके संवैधानिक ढांचे, इसकी विविधता और इसके लोकतांत्रिक लोकाचार के प्रति 'आयोग की गंभीर कमी' को दिखाते हैं।

अरिंदम बागची ने आगे कहा, "अफ़सोस की बात है कि प्रेरित एजेंडे के तहत यूएससीआईआऱएफ़ अपनी रिपोर्टों में बार-बार तथ्यों को गलत तरीक़े से पेश करना जारी रखे हुए है। इस तरह की कार्रवाई संगठन की विश्वसनीयता और निष्पक्षता के संबंध में चिंताओं को बढ़ाना का ही काम करते हैं।"

धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थल को लेकर लोगों पर हुए हमले बढ़े

मालूम हो कि अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ़) की जारी रिपोर्ट से इतर जून में दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की 2021 की रिपोर्ट अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने जारी की थी। एंटनी ब्लिंकन ने कहा था कि हाल के दिनों में भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थल को लेकर लोगों पर हुए हमले बढ़े हैं। उन्होंने कहा था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। वहां हाल के दिनों में लोगों पर और उपासना स्थलों पर हमले के मामले बढ़े हैं।

भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी विदेश विभाग की इस रिपोर्ट पर अपना आधिकारिक बयान जारी किया था। बयान में कहा गया था कि इस रिपोर्ट और वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों की बेबुनियाद जानकारी पर आधारित टिप्पणियों ने भारत का ध्यान आकर्षित किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में अमेरिकी में होने वाली नस्ली हिंसा और गन वॉयलेंस के मामलों का भी जिक्र किया गया था।

भारत ने कहा था, "हम अपील करेंगे कि पहले से बनाई गई जानकारियों और पक्षपातपूर्ण नज़रिये के आधार पर किए जाने वाले मूल्याकंन से बचा जाना चाहिए। एक विविधतापूर्ण समाज के तौर पर भारत धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का सम्मान करता है। अमेरिका के साथ बातचीत में हम ने वहां की चिंताओं के मुद्दों पर ध्यान दिलाया है।"

क्या था इस रिपोर्ट में?

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इस रिपोर्ट में साल 2021 में दुनिया के अलग-अलग देशों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति का आकलन किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में कुछ नेता लोगों और धर्म स्थलों पर बढ़ते हमलों को नजरअंदाज ही नहीं बल्कि समर्थन भी कर रहे हैं। रिपोर्ट में धार्मिक स्वतंत्रता को ना सिर्फ एक मूलभूत अधिकार बल्कि अमेरिकी विदेश नीति की महत्वपूर्ण प्राथमिकता बताया गया था।

इस रिपोर्ट में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान को भी शामिल किया गया था, जिसमें भागवत ने कहा था कि भारत में हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक है और इन्हें धर्म के आधार पर अलग-अलग नहीं किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया कि संघ प्रमुख ने कहा था कि मुस्लिमों को इस बात से नहीं डरना चाहिए कि भारत में इस्लाम खतरे में है और गाय की हत्या के लिए किसी गैर हिंदू की हत्या कर देना हिंदू धर्म के खिलाफ है।

गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इससे पहले और इस रिपोर्ट में भी यही दोहराया गया है कि साल भर में भारत सरकार ने अपनी हिंदू-राष्ट्रवादी नीतियों को और मजबूत करने के लिए कई नीतियां अपनाई हैं जो मुसलमान, ईसाई, सिख, दलित और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम कर रही हैं। रिपोर्टें कहती हैं कि भारत सरकार व्यवस्थागत तरीके से मौजूदा और नए कानूनों के जरिए अपने हिंदू-राष्ट्रवाद के दर्शन को आगे बढ़ाने पर काम कर रही है।

बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं कि भारत में बीते कुछ सालों में सांप्रदायिक तनाव की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें सरकार का रवैया निराशाजनक रहा है। लेकिन इस संदर्भ में अमेरिका को भी दूध का धुला नहीं कहा जा सकता। अमेरिका में नस्लीय हिंसा और भेदभाव को लेकर 'ब्लैक लाइफ मैटर्स' आंदोलन का उदाहरण हम सबके सामने है। ऐसे में एक-दूसरे पर छींटाकशी करने से अच्छा है कि सभी देश ऐसी समस्याओं का एक साथ मिलकर हल ढूंढने का प्रयास करें।

इसे भी पढ़ें: भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

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