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'पथेर पांचाली’ का जादू आज भी क़ायम

ब्रिटिश मैगजीन 'साइट एंड साउंड' ने हाल ही में दुनिया भर की 100 बेहतरीन फ़िल्मों की एक फ़ेहरिस्त जारी की, इस फ़ेहरिस्त में ‘पथेर पांचाली’ 35वें नंबर पर है।
pather panchali

जीनियस फ़िल्मकार सत्यजित रे की क्लासिक फ़िल्म ‘पथेर पांचाली’ की रिलीज को छह दशक से ज़्यादा हो गए हैं, लेकिन इसका जादू आज भी क़ायम है। यह फ़िल्म एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं। ब्रिटिश मैगजीन 'साइट एंड साउंड' ने हाल ही में दुनिया भर की 100 बेहतरीन फ़िल्मों की एक फ़ेहरिस्त जारी की, इस फ़ेहरिस्त में ‘पथेर पांचाली’ 35वें नंबर पर है।

यह पहली बार है, जब इस लिस्ट में किसी भारतीय फ़िल्म का नाम शामिल हुआ है।

मैगज़ीन के मुताबिक, ''यह फ़िल्म कलकत्ता केन्द्रित भारतीय कला सिनेमा के आने का ऐलान करती है। यह कमर्शियल सिनेमा से कुछ अलग है। फ़िल्म में कई यादगार सीन हैं। मसलन अपू और उसकी बहन का धान के खेत में दौड़ना और वहां से गुज़रने वाली ट्रेन को देखना।''

ग़ौरतलब है कि 'साइट एंड साउंड' हर 10 साल में एक मर्तबा दुनिया की शीर्ष फ़िल्मों की फ़ेहरिस्त जारी करती है। यह सिलसिला साल 1952 से चल रहा है।

इस साल तक़रीबन 1639 क्रिटिक्स, क्यूरेटर, प्रोग्रामर्स, आर्काइविस्ट और एजुकेशनिस्ट ने अपनी तरफ़ से टॉप 10 लिस्ट बनाकर इस पोल में हिस्सा लिया था। जिसमें उन्होंने ‘पथेर पांचाली’ को भी इस लिस्ट में रखा।

अभी ज़्यादा दिन नहीं गुज़रे हैं, इसी साल अक्टूबर महीने में द इंडियन चैप्टर ऑफ इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फ़िल्म क्रिटिक्स (एफआईपीआरईसीआई—इंडिया) ने 'पथेर पांचाली' को अपने एक सर्वेक्षण में अब तक की सर्वश्रेष्ठ भारतीय फ़िल्म का ख़िताब दिया था। संस्था ने सभी भाषाओं में भारतीय सिनेमा के इतिहास में शीर्ष 10 फ़िल्मों की लिस्टिंग करते हुए 'ऑल टाइम टेन बेस्ट इंडियन फ़िल्म्स' की एक लिस्ट निकाली। जिसमें 'पथेर पांचाली' अव्वल नंबर पर, तो डायरेक्टर ऋत्विक घटक की 'मेघे ढाका तारा' दूसरे और मृणाल सेन की 'भुवन शोम' तीसरे स्थान पर रही। इस फ़ेहरिस्त में सत्यजित रे की एक और फ़िल्म 'चारूलता' ने भी जगह बनाई थी। लिस्ट में यह फ़िल्म सातवें नंबर पर है। सत्यजित रे और उनकी फ़िल्म ‘पथेर पांचाली’ के लिए यह बहुत बड़ा मर्तबा है।

सत्यजित रे देश के ऐसे फ़िल्मकार हैं, जिनकी पहली ही फ़िल्म ‘पथेर पांचाली’ से उन्हें एक दुनियावी शिनाख़्त और बेशुमार शोहरत मिली। साल 1956 में ‘कान्स फ़िल्म फ़ेस्टिवल’ में इसे ‘बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट’ यानी सर्वश्रेष्ठ मानवीय फ़िल्म का अवार्ड मिला।

बंगाल के विख्यात लेखक विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की कालजयी रचना ‘पथेर पांचाली’ (छोटे पथ का गीत) पर सत्यजित रे ने फ़िल्म बनाने का मंसूबा बनाया। उनके इस ख़्वाब की ताबीर होने में हालांकि, बहुत परेशानियां पेश आईं। ख़ास तौर पर इस फ़िल्म के लिए पैसा जुटाना, रे के लिए कोई आसान काम नहीं था। सत्यजित रे ने अपने सपने को साकार करने के लिए पत्नी विजया राय के गहने तक बेच डाले। बावजूद इसके पैसों की ज़रूरत बनी रही। रे की इन मुसीबतों को देखकर, उनकी मां सुप्रभा देवी उन्हें पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ.विधानचंद्र राय के पास ले गईं। जो सत्यजित राय के पिता सुकुमार राय से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे। मुख्यमंत्री वीसी राय ने इस फ़िल्म के लिए सरकार से फाइनेंस कराया, तब जाकर ये मुक़म्मल हो सकी।

तीन साल के लंबे इंतज़ार और कड़ी मशक़्क़त के बाद साल 1955 में ‘पथेर पांचाली’ रिलीज़ हुई। फ़िल्म रिलीज़ होते ही इसकी मक़बूलियत आहिस्ता-आहिस्ता दुनिया भर में पहुंची। दर्शकों ने सत्यजित रे के इस पहले ही काम को दिल से सराहा। ‘पथेर पांचाली’ ऐसी दूसरी फ़िल्म है जिसे प्रतिष्ठित फ़िल्म फे़स्टिवल ‘कान्स फ़िल्म समारोह’ में एंट्री मिली। फे़स्टिवल में ‘पथेर पांचाली’ को पहले अनदेखा कर दिया गया था। इस पर किसी ने कोई नोटिस नहीं लिया। इसके पीछे भी एक अलग वजह थी। दरअसल, ‘पथेर पांचाली’ का शो, अकीरा कुरोसावा की फ़िल्म के बाद हुआ था। उनकी फ़िल्म देखने के बाद ज्यूरी के कई मेंबर जापान एंबेसी द्वारा आयोजित डिनर में चले गए। जिसके चलते उन्होंने ‘पथेर पांचाली’ को देखा ही नहीं। लेकिन फ़िल्म के शो के दौरान एक शख़्स मौजूद था और यह शख़्स ऑंद्रे बाजॉं था, जो जाने-माने फ़िल्म क्रिटिक थे। जिनकी टिप्पणियों को उस वक़्त बड़े-बड़े फ़िल्मकार भी गंभीरता से लेते थे। दूसरे दिन अख़बारों में ऑंद्रे बाजॉं की यह टिप्पणी छपी, जिसमें उन्होंने ‘पथेर पांचाली’ की तारीफ़ करते हुए, ज्यूरी के गैर ज़िम्मेवाराना रवैये पर सवाल उठाए।

उन्होंने लिखा, ऐसा कर ज्यूरी ने फ़िल्म के साथ नाइंसाफ़ी की है। बहरहाल बाजॉं की टिप्पणी का यह असर हुआ कि ‘पथेर पांचाली’ का फ़िल्मोत्सव में दोबारा शो हुआ। ज्यूरी ने न सिर्फ़ इस फ़िल्म को देखा, बल्कि अपनी ग़ल्ती को तस्लीम करते हुए ‘पथेर पांचाली’ को अवार्ड से भी नवाज़ा। 'कान्स फ़िल्म फेस्टिवल' में सम्मानित होने के बाद दीगर पश्चिमी फ़िल्म समारोहों में भी फ़िल्म ने धूम मचाई।

भारत की बात करें, तो इस फ़िल्म को पश्चिम बंगाल के साथ-साथ पूरे देश के दर्शकों का प्यार मिला। सरकार ने ‘पथेर पांचाली’ को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया। ‘पथेर पांचाली’, यदि 'कान्स फ़िल्म फेस्टिवल' तक जा सकी, तो उसका श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी है। उन्होंने जब इस फिल्म को देखा, तो इतने प्रभावित हुए कि आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में ‘पथेर पांचाली’ को कांस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाए जाने का बंदोबस्त किया। उसके बाद का इतिहास सब जानते हैं।

‘पथेर पांचाली’ की स्टोरी अगर जाने, तो एक छोटे से गाँव में सुविधाओं के अभाव और ग़रीबी के बीच एक परिवार के छोटे-छोटे सुखों और दुःखों की यह कहानी इतनी सार्वभौमिक और सार्वकालिक है कि इसने बांग्लाभाषी होते हुए भी दुनिया भर के दर्शकों को प्रभावित किया। सिनेमा की दुनिया में सत्यजित रे की सीधी-सादी क़िस्सागोई ने तहलका मचा दिया।

‘पथेर पांचाली’ में ऐसा क्या था?, जो सत्यजित रे को पसंद आया और उन्होंने इस उपन्यास पर फ़िल्म बनाने का फै़सला किया। सत्यजित रे पर बनी डाक्युमेंट्री ‘राय द मास्टर्स’ में ‘पथेर पांचाली’ के बारे में रे की कैफ़ियत है, ‘‘मैं इस किताब से भलीभांति परिचित था। क्योंकि, एक विशेष संस्करण के लिए मैंने इसका रेखांकन तैयार किया था। रेखांकन बनाने के लिए पढ़ते वक्त मुझे लगा कि शुरुआत के लिए यह विषय अच्छा है। उसमें मुझे चाक्षुष और भावनात्मकता के लिहाज़ से कई विशिष्टताएं दिखी थीं, जो फ़िल्मी जादू रचने में सहायक होती हैं।’’ सत्यजित रे की सोच सही दिशा में थी। फ़िल्म का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर बोला।

आज भले ही ‘पथेर पांचाली’ फ़िल्मी इतिहास में एक सुनहरा पन्ना है, लेकिन यह जानकर लोगों को तअज्जुब होगा कि सत्यजित रे ने जब ‘पथेर पांचाली’ को फ़िल्माना शुरू किया, तब उनके पास इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट जैसा कुछ भी नहीं था। सिर्फ़ कुछ नोट्स थे। यही नहीं इस फ़िल्म के संवाद भी सीधे किताब से लिए गए थे। रे उस वक़्त तक संवाद लेखक के तौर पर पारंगत नहीं हुए थे। ‘पथेर पांचाली’ के ज़्यादातर कलाकारों ने इस फ़िल्म में काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। ना-नुकूर के बाद ही उन्होंने इस फ़िल्म में अदाकारी की थी। वहीं ‘पथेर पांचाली’ के कला निर्देशक बंशी चंद्रगुप्त ने इस फ़िल्म से पहले कला निर्देशक के तौर पर कोई काम नहीं किया था। सिनेमैटोग्राफर सुब्रतो मित्र, जो आज बेहतरीन सिनेमैटोग्राफर माने जाते हैं, उन्होंने भी इस फ़िल्म से पहले कभी मूवी कैमरा हैंडिल नहीं किया था। वह स्टिल फोटोग्राफर थे और मूवी कैमरे को लेकर बेहद नर्वस थे। सत्यजित राय के साथ बाद में इन दोनों की ऐसी ट्यूनिंग बनी कि बंशी चंद्रगुप्त ने 23 फ़िल्मों में उनके संग काम किया, तो सुब्रत मित्र भी उनके साथ आख़िर तक जुड़े रहे। ‘पथेर पांचाली’ को उस वक़्त 11 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और भारत में कुल 32 सम्मान मिले। यही नहीं बीबीसी की बेहतरीन सौ फ़िल्मों की फेहरिस्त में भी ‘पथेर पांचाली’ शामिल है। बावजूद इसके सत्यजित रे ‘पथेर पांचाली’ को अपनी सर्वक्षेष्ठ फ़िल्म नहीं मानते थे। क्योंकि उनकी निग़ाह में ‘पथेर पांचाली’ में काफ़ी कमियां हैं। जबकि उनके मुताबिक ‘‘एक सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पूरी तरह परफ़ेक्ट होनी चाहिए-हर दृष्टि से, हर एंगल से और ‘पथेर पांचाली’ में वह परफ़ेक्शन नहीं है।’’(सत्यजित रे से संजीव चट्टोपाध्याय का संवाद, पत्रिका-‘समकालीन सृजन’, अंक-17) जिस फ़िल्म को पूरी दुनिया ने खुले दिल से सराहा और आज भी उसे पसंद करते हैं, उसको परफ़ेक्ट नहीं मानना, सत्यजित रे की विनम्रता को दर्शाता है। इसी लिए वो महान फ़िल्मकार हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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