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सरकार जी के आठ वर्ष: नफ़रती बोल और बोलने की आज़ादी

मैंने सोचा, जो भी लिखूंगा सच ही लिखूंगा और सच के सिवाय कुछ नहीं लिखूंगा। क्या पता आज जैसे पद्मावत और पृथ्वीराज रासो को पढ़ कर लोग उस समय के इतिहास को समझ रहे हैं, उस पर फिल्म बना रहे हैं, हो सकता है उसी तरह मेरे लिखे....
Modi

'सरकार जी की सरकार को आठ वर्ष हो चुके हैं तो क्या जरूरी है कि सरकार जी का मजाक उड़ाया जाए। शर्मा जी! उनके खाने-पीने और कपड़ों पर बात मत करो, काम पर बात करो। क्या उन्होंने आठ वर्षों में कोई भी ऐसा काम नहीं किया जिसका जिक्र किया जा सके'? मेरा पिछले हफ्ते का व्यंग्य पढ़ कर गुप्ता जी मेरे घर आ धमके थे।

मैंने कहा, 'जरूर किए हैं, सरकार जी ने आठ वर्षों में बहुत से काम किए हैं। सबसे बड़ा काम तो यही किया है कि आप सब लोगों को विश्वास दिला दिया है कि पिछले सत्तर वर्षों में कोई काम नहीं हुआ था और जो भी काम हुए हैं, अब, पिछले आठ वर्षों में ही हो रहे हैं। फिर भी मैं सरकार जी के कामों के बारे में जरूर लिखूंगा'। 

तो मैं सरकार जी के कार्यों के बारे में लिखने बैठ गया। मैंने सोचा, जो भी लिखूंगा सच ही लिखूंगा और सच के सिवाय कुछ नहीं लिखूंगा। क्या पता आज जैसे पद्मावत और पृथ्वीराज रासो को पढ़ कर लोग उस समय के इतिहास को समझ रहे हैं, उस पर फिल्म बना रहे हैं, हो सकता है वैसे ही चार-पांच सौ वर्ष बाद कोई मेरे व्यंग्यों को पढ़ कर सरकार जी की सरकार के कामकाज का आकलन करे, सरकार जी के काल का इतिहास लिखे, उस पर फिल्म बनाये। 

सरकार जी की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि उनके शासन काल में उन्होंने लोगों को इतना उन्नत कर दिया है कि कि लोग विज्ञान के लिए विज्ञान की किताबों को नहीं पढ़ रहे हैं, धार्मिक ग्रंथों को पढ़ रहे हैं। धार्मिक ग्रंथों को पढ़ कर ही समझा जा रहा है कि हमारे देश में प्लास्टिक सर्जरी और जेनेटिक्स कितनी उन्नत थी। ऐसे ही इतिहास को इतिहास की कक्षा में नहीं पढ़ जा रहा है। कालेज और यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़ा जा रहा है, बल्कि महाकाव्यों और लोकगीतों में ढूंढ़ा जा रहा है। सरकार जी के काल में लोगों ने अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए पढ़ना लिखना, यूनिवर्सिटी जाना छोड़ दिया है। जब से सरकार जी ने जेएनयू, जामिया, एएमयू, डीयू, जादवपुर विश्वविद्यालय जैसे पढ़ने-लिखने और शोध करने के सभी संस्थानों को देश विरोधी बताना शुरू कर दिया है छात्र जानने बूझने यानी ज्ञान प्राप्ति हेतु वाट्सएप यूनिवर्सिटी की शरण में जाने लगे हैं। वही यूनिवर्सिटी देश प्रेम की एकमात्र यूनिवर्सिटी बची है। वाट्सएप यूनिवर्सिटी 'इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस' बन गई है। अब इसी वाट्सएप यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर हम विश्वगुरु बनेंगे। बनेंगे क्या, बन चुके हैं।

विश्वगुरु से याद आया कि सरकार जी ने एक बड़ा कार्य यह भी किया है कि हमें विश्वगुरु बना ही दिया है। अब हम विश्वगुरु हैं। कोई और माने या न माने पर हम मानने लगे हैं कि हम विश्वगुरु बन गए हैं। वैसे बताया यह जा रहा है कि सरकार जी ने हमें फिर से विश्वगुरु बना दिया है। पर यह जो 'फिर से' कहा जा रहा है, यह सरकार जी का महत्व कम करने के लिए ही कहा जा रहा है। सरकार जी कोई काम 'फिर से' नहीं करते हैं। जो भी काम करते हैं, पहली बार ही करते हैं। तो यह विश्वगुरु बनने का काम भी पहली बार ही हुआ है और सरकार जी ने ही किया है। 'फिर से' विश्वगुरु बन गए कह कर सरकार जी को बदनाम ना करें। बल्कि यही कहें कि सरकार जी के नेतृत्व में हम पहली बार विश्वगुरु बन गए हैं। वैसे भाई साहब, यह विश्वगुरु का खिताब देता कौन है? जरा पता कर के उससे यह खिताब ले भी लिया जाए। या फिर यह खिताब हमनें स्वयं को खुद ही दे दिया है। और यह खिताब हमने छीना किस से है? हमारे से पहले यह खिताब किसके पास था?

सरकार जी ने भी हमें विश्वगुरु ऐसे ही नहीं बनाया है। उसके लिए सरकार जी को लगातार आठ वर्षों तक मेहनत करनी पड़ी है। सरकार जी और सरकार जी के दल ने, मंत्रियों ने, समर्थकों ने पूरे आठ वर्ष तक मेहनत की है और उसका ही परिणाम है कि आज देश के दोनों बहुसंख्यक समाज एक दूसरे से नफ़रत कर रहे हैं, एक दूसरे के प्रति घृणा से भरे हैं। देश में नफ़रत का माहौल सरकार जी की इसी मेहनत का फल है। सरकार जी यह जो नफ़रत फैला रहे हैं ना, प्यार बढ़ाने के लिए ही फैला रहे हैं। सरकार जी जानते हैं कि जहर ही जहर को मारता है। तो साफ है, नफ़रत ही नफ़रत को मारती है। सरकार जी तो नफ़रत के जहर को नफ़रत के ज़हर से ही मार रहे हैं। जो सोचते हैं कि नफ़रत प्यार से मरती है, वे गलत हैं। सरकार जी ऐसा हरगिज नहीं सोचते हैं। गांधी जी गलत हैं और सरकार जी सही। नफ़रत के इस फील्ड में सरकार जी ने और सरकार जी की पार्टी ने जितना किया है उससे ज्यादा तो यदि किसी ने किया है तो सिर्फ हिटलर और मुसोलिनी ने ही किया है।

सरकार जी ने अपने राज में बोलने की पूरी आजादी दी हुई है। जिन लोगों को लगता है कि सरकार जी के राज में बोलने की आजादी का गला घोंट दिया गया है, वे गलत हैं। वे स्वयं सरकार जी को और उनकी पार्टी के मंत्रियों, प्रवक्ताओं और समर्थकों को बोलते हुए देख सुन सकते हैं। उससे वे देख समझ सकते हैं कि देश में बोलने की कितनी आजादी है। सरकारी पार्टी के मंत्रियों, प्रवक्ताओं और समर्थकों के अलावा वे देख सकते हैं कि गोदी मीडिया के एंकर भी जो मर्जी बोल भी सकते हैं और बोलने भी दे सकते हैं। और इन पर कोई भी आंच नहीं आती है। 

सरकार जी बोलने की आजादी के बहुत ही बड़े पक्षधर हैं विशेष रूप से यदि वह सरकार के पक्ष में हो। इसलिए यह आजादी कुछ ही लोगों को हासिल है। बोलने की इस आजादी का असली मजा तो सरकार जी और उनकी सरकारी पार्टी के लोग ही उठा रहे हैं। वे लोग जो चाहे बोल सकते हैं और सरकार और पार्टी कुंभकर्ण की तरह सोई रहती है। उठती तब ही है जब कोई विदेश से झकझोर कर उठाता है। अपने लोगों के लिए सरकार जी भले ही कुंभकर्णी नींद सोए हुए हों पर दूसरी ओर सरकार जी इतने जगे हुए हैं कि कुछ लोग बिना नफरती बोल के ही नफरती बोल बोलने के आरोप में जेल पहुंच जाते हैं। कुछ लोग तो इस कारण भी जेल में हैं कि सरकार को लगता है कि उन्होंने कुछ बोला है, वे कुछ बोल सकते हैं या फिर वे कुछ सोच सकते हैं।

खैर सरकार जी ने काम तो बहुत सारे किए हैं। सब कामों का लेखा जोखा लिखने बैठ जाओ तो पोथियां भर जायेंगी। तो आज इतना ही, बाकी की बात अगले हफ्ते।

(व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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