यूपी विधानसभा चुनाव: पश्चिमी यूपी में भाजपा की स्थिति नाज़ुक, प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वांचल से शुरू किया चुनाव प्रचार

चुनाव आयोग के उत्तर प्रदेश (यूपी) में 2022 के विधानसभा चुनावों की घोषणा करने से पहले ही प्रदेश में चुनावी बिगुल बज गया है क्योंकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूरे जोश में चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल क्षेत्र में बैक टू बैक रैलियां कीं और इन रैलियों में कल्याणकारी परियोजनाओं की एक श्रृंखला की घोषणा की है।
सोमवार को पीएम मोदी ने सिद्धार्थनगर जिले में 2,329 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले नौ मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया। ये मेडिकल कॉलेज सिद्धार्थनगर, एटा, हरदोई, प्रतापगढ़, फतेहपुर, देवरिया, गाजीपुर, मिर्जापुर और जौनपुर जिलों में बनाए जाएंगे। इसके बाद वाराणसी में प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन का शुभारंभ किया गया, जो उनके संसदीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए सबसे बड़ी अखिल भारतीय योजनाओं में से एक है। उन्होंने वाराणसी के लिए 5,200 करोड़ रुपये की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (सड़कों, फ्लाईओवर) की भी घोषणा की है।
पीएम मोदी ने 15 जुलाई को वाराणसी से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की, जहां उन्होंने काशी के लोगों को 1,500 करोड़ रुपये की परियोजनाएं समर्पित की हैं। इसके बाद, 20 अक्टूबर को, वे कुशीनगर पहुंचे, जहां उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया। इसके अलावा उन्होंने पूर्वांचल के लोगों को उपहार स्वरूप 478 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाएं समर्पित की हैं। उन्होंने 5 अक्टूबर को राज्य की राजधानी लखनऊ में 3 दिवसीय शहरी सम्मेलन में भी भाग लिया।
आने वाले दिनों में पीएम मोदी गोरखपुर फर्टिलाइजर फैक्ट्री और गोरखपुर एम्स का शुभारंभ करेंगे। वे दिसंबर के अंतिम सप्ताह में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे और गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करेंगे। अपने भाषणों में, पीएम मोदी ने कट्टर प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (सपा) पर हमला किया और लोगों से केंद्र और राज्य सरकारों की उपलब्धियों को सूचीबद्ध करके भाजपा के मिशन-2022 को सफल बनाने की अपील की।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए पूर्वांचल क्षेत्र को चुनकर पीएम मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ, चुनावी राज्य यूपी में मतदाताओं को लुभाने का काम कर रहे हैं।
यूपी पर राजनीतिक टिप्पणीकार, बीडी शुक्ला का मानना है कि बीजेपी इस बात से पूरी तरह वाकिफ है कि पूर्वांचल जितनी मजबूती से उनकी मुट्ठी में रहेगा, राज्य में सत्ता में वापसी उतनी ही आसान होगी। बीडी शुक्ला के मुताबिक, पश्चिमी यूपी में चल रहे किसान आंदोलन ने बीजेपी की संभावनाओं को कुछ हद तक प्रभावित किया है.
"यही कारण है कि पूर्वांचल कल्याणकारी परियोजनाओं का केंद्र बन गया है। पीएम मोदी ने पिछले कुछ महीनों में पांच बार इस क्षेत्र का दौरा किया है और विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की है।"
403 सदस्यीय यूपी विधानसभा में पूर्वांचल का लगभग 30 प्रतिशत सीटों का योगदान होता है। 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान, भाजपा ने पूर्वांचल में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की थी, इसने 102 विधानसभा सीटों में से 69 पर जीत हासिल की थी। वहीं, समाजवादी पार्टी को 13, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को आठ, कांग्रेस को एक और अन्य को 11 सीटें मिली थीं. सपा का वोट शेयर 21.58 फीसदी था, जबकि बसपा को 24.19 फीसदी वोट मिले थे.
इसी तरह अवध क्षेत्र में भी बीजेपी ने 121 विधानसभा सीटों में से 93 पर जीत दर्ज कर दमदार प्रदर्शन किया था। वहीं, समाजवादी पार्टी को 10, बहुजन समाज पार्टी को आठ, कांग्रेस को चार और अन्य को छह सीटें मिलीं थीं। सपा का वोट शेयर 21.81 प्रतिशत था, जबकि बसपा को 21.93 प्रतिशत वोट मिले थे।
वयोवृद्ध पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी पीएम मोदी के पूर्वांचल के दौरे को इस तरह से देखते हैं, चूंकि बीजेपी को यह महसूस हो गया है कि किसानों आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी में उसकी स्थिति अस्थिर या नाज़ुक है इसलिए भाजपा ने अभियान शुरू करने के लिए पूर्वांचल को चुना है।
"पूर्वांचल यूपी के पूर्वी हिस्से को कवर करता है। इसे भारत के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक माना जाता है। पूर्वांचल में सीटों की संख्या पश्चिमी यूपी की तुलना में अधिक है। इसलिए, पूर्वांचल में भाजपा की गतिविधियां अधिक हैं।"
2017 में पूर्वांचल और अवध में सपा और बसपा को मिले वोटों के काफी बड़े हिस्से पर टिप्पणी करते हुए त्रिपाठी ने कहा: "सपा और बसपा का वोट शेयर समान है। इस बार, बसपा की गतिविधियां अन्य पार्टियों की तरह जमीन पर दिखाई नहीं दे रही हैं। और इसके नेता सपा में भी शामिल हो रहे हैं। इसलिए, लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है। लेकिन कांग्रेस पार्टी जिस तरह से जमीन पर काम कर रही है, वह निश्चित रूप से भाजपा को नुकसान पहुंचाएगी क्योंकि कांग्रेस का मुख्य मतदाता वही है जो भाजपा का है और वह मुख्य रूप से सवर्ण मतदाता है। अगर कांग्रेस दमदार रूप से उभरती है, तो भाजपा अपने मतदाताओं को खो देगी। अल्पसंख्यक वोट बहुत रणनीतिक हैं। वे जो भी जीतने की स्थिति में होंगे, वे उन्हें ही वोट देंगे।"
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन पिछले विधानसभा चुनाव में विफल रहा था क्योंकि कांग्रेस के मतदाता भाजपा में चले गए थे। ऐसा ही कुछ तब हुआ जब 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया था। दोनों चुनावों में, भाजपा राज्य में विजयी हुई थी।
"अगर वे स्वतंत्र रूप से लड़ते हैं और छोटी पार्टियों को लाने की कोशिश करते हैं, तो भाजपा के चुनाव हारने की संभावना अधिक होगी।"
यह पूछे जाने पर कि क्या किसान आंदोलन दो क्षेत्रों (पूर्वांचल और अवध) को प्रभावित करेगा, अनुभवी पत्रकार ने कहा कि इन क्षेत्रों में किसानों की ज्यादा लामबंदी नहीं है क्योंकि यहां ज्यादातर किसान सीमांत किसान हैं। उनकी महत्वपूर्ण चिंता फसलों पर लागत और बिजली की दरें हैं। त्रिपाठी ने आगे कहा कि इन क्षेत्रों के किसानों में यह भावना है कि सत्तारूढ़ सरकार उनकी दुर्दशा पर ध्यान नहीं दे रही है।
"बड़ी घोषणाओं और वादों के बावजूद, कई किसान अभी भी अपनी धान की फसल को बेचने में कामयाब नहीं हैं और दुखी है। त्रिपाठी ने कहा, ऐसी ही एक घटना घटी जिसकी वजह से यूपी सरकार को आलोचना के घेरे में आना पड़ा, एक किसान ने पिछले 15 दिन में फसल न बेच पाने के कड़े संघर्ष के बाद अपनी उपज में आग लगा दी थी।"
यूपी में आमतौर पर माना जाता है कि लखनऊ का रास्ता पूर्वांचल से होकर निकलता है। 2017 में, भाजपा ने इस क्षेत्र के 26 जिलों की 156 विधानसभा सीटों में से 106 सीटें जीती थीं। जबकि सपा ने 2012 में यहां से 85 सीटें जीती थीं और सरकार बनाई थी। ऐसा ही कुछ 2007 में हुआ था जब बसपा को यहां से 70 से ज्यादा सीटें मिली थीं। हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन दशकों में पूर्वांचल और अवध क्षेत्र के मतदाता हमेशा किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहे हैं।
क्या एसपी-एसबीएसपी गठबंधन बीजेपी की संभावनाओं को खत्म कर सकता है?
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, भाजपा के पूर्व सहयोगी, जो 2019 तक योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में रहे हैं, ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में सपा के साथ गठबंधन करेगी।
राजभर ने 27 अक्टूबर को मऊ के हलधरपुर मैदान में एक जनसभा भी बुलाई है। यहां मुख्य अतिथि के तौर पर अखिलेश यादव राजभर के साथ मंच साझा कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि सपा के साथ एसबीएसपी का गठबंधन एक नया एमबीसी-यादव गठजोड़ बना सकता है, जो संभावित रूप से बीजेपी को परेशान कर सकता है।
उन्होंने कहा कि, "विधानसभा चुनाव में हार या जीत का अंतर 1000-2000 वोटों से कम हो सकता है। यादव को पूर्वांचल में राजभर के साथ गठबंधन से फायदा होगा। इसी तरह, पश्चिमी यूपी में रालोद के साथ सपा के गठबंधन से भी पार्टी को मदद मिलेगी।"
पूर्वांचल के राजभर समुदाय के मतदाताओं में राजभर की 18 से 20 प्रतिशत से अधिक की पकड़ है। पार्टी वाराणसी, गोरखपुर और आजमगढ़ संभाग सहित पूर्वांचल की 125 से अधिक विधानसभा सीटों को प्रभावित करती है।
2017 में, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) ने भाजपा के सहयोगी के रूप में चार विधानसभा सीटें जीती थीं। राजभर खुद जहूराबाद (गाजीपुर) से निर्वाचित हुए थे। भाजपा ने उन्हें राज्य सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण और विकलांग जन विकास विभाग के रूप में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया था। बाद में, राजभर ने सीट आवंटन को लेकर मतभेदों के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ लिया था।
जानकारों का यह भी मानना है कि लखीमपुर खीरी की घटना को जल्द नहीं भुलाया जा सकता है, कम से कम आगामी यूपी विधानसभा चुनाव तक तो ऐसा नहीं होगा। आगामी चुनावों में इस मुद्दे का प्रभाव अधिक न हो इसलिए योगी सरकार ने कुछ तत्काल कदम उठाए हैं। लेकिन विपक्ष इस मुद्दे के इर्द-गिर्द किसानों की वोट जुटाने की कोशिश करेगा।
वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान के मुताबिक, बीजेपी को एहसास हो गया है कि पश्चिमी यूपी उनके साथ नहीं है। इसलिए वे बैक टू बैक रैलियां कर रहे हैं और पूर्वांचल के लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। यह देखना बाकी है कि क्या इन परियोजनाओं से राज्य में भाजपा को अधिक वोट मिलते हैं।
"लोग जानते हैं कि ये घोषणाएं केवल कागजों पर की जा रही हैं। ये जमीन पर लागू होने वाली नहीं हैं। स्टाफ की कमी के कारण, लखनऊ मेडिकल कॉलेज का नेफ्रोलॉजी विभाग पिछले पांच वर्षों से बंद पड़ा है। सरकार कैसे हर जिले में मेडिकल कॉलेजों को संभालेगी, जब वह सिर्फ एक विभाग चलाने के लिए कर्मचारियों की भर्ती नहीं कर सकती है? स्टाफ की कमी के कारण गुणवत्ता प्रभावित होगी। प्रधान ने कहा, मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन और एक्सप्रेसवे के निर्माण से सत्तारूढ़ सरकार को मदद नहीं मिलेगी।
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