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यूपी : नौकरी नियमित करने को लेकर वाराणसी से दिल्ली तक पदयात्रा पर निकले संविदा मनरेगा कर्मचारी

छह कैडर के संविदा मनरेगा कर्मचारी जिनमें तकनीकी सहायक, बेयरफुट तकनीशियन, लेखाकार, ग्राम रोज़गार सेवक, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी और कनिष्ठ अभियंता शामिल हैं, वे मानदेय में वृद्धि की मांग कर रहे हैं।
Contract Workers
फ़ोटो साभार : PTI

लखनऊ : अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी संघ के बैनर तले महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के संविदा कर्मचारी अपने पदों को नियमित करने की मांग को लेकर वाराणसी से दिल्ली कूच कर रहे हैं। सोमवार को 22 दिनों में 870 किलोमीटर की दूरी पूरी करने वाला ये मार्च नौकरी नियमित करने और वेतन में बढ़ोतरी की मांग को लेकर किया जा रहा है।

पैदल मार्च 9 जनवरी को शुरू हुआ था जोकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर उनकी मांगों को पूरा करने के लिए दबाव बनाने हेतू संविदा कर्मचारियों के शक्ति प्रदर्शन का एक हिस्सा है। ये मार्च 1 फरवरी को राष्ट्रीय राजधानी में समाप्त होगा जहां वे प्रधानमंत्री कार्यालय को अपनी मांगों का एक ज्ञापन सौंपेंगे।

मनरेगा संविदा कर्मचारी संघ के सदस्यों ने राज्य सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी करते हुए राज्य सरकार पर लंबे समय से उनकी मांगों पर अनजान बने रहने का आरोप लगाया। उन्होंने हर जिले में अपनी मांगों को लेकर एक ज्ञापन सौंपा है।

अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी संघ के राष्ट्रीय महासचिव चिदानंद कश्यप ने न्यूज़क्लिक को बताया, "अनुबंध मनरेगा कर्मचारियों की दुर्दशा पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसलिए, हमनें पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र से पदयात्रा शुरू की और 1 फरवरी को पीएमओ कार्यालय पर ये यात्रा समाप्त होगी। हम पिछले 15-16 सालों से मनरेगा के तहत संविदा पर काम कर रहे हैं। हम पिछले कई सालों से अपने पदों को नियमित करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने हमारे अनुरोध को अनसुना कर दिया।"

छह कैडर के संविदा मनरेगा कर्मचारी जिनमें तकनीकी सहायक, बेयरफुट तकनीशियन, लेखाकार, ग्राम रोज़गार सेवक, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी और कनिष्ठ अभियंता शामिल हैं, वे यह कहते हुए मानदेय में वृद्धि की मांग कर रहे हैं कि उन्हें कम मज़दूरी मिल रही है, जबकि कीमतें बढ़ रही हैं।

कश्यप कहते हैं, "इतनी कम मज़दूरी पर गुज़ारा करना बेहद मुश्किल है। हम बूढ़े हो रहे हैं और हम पर अपने माता-पिता और बच्चों की ज़िम्मेदारी है। हमें बुढ़ापे में वित्तीय स्थिरता की जरूरत है। पिछले 16 साल से ठेके के नाम पर सरकार हमारा शोषण कर रही है, और स्थायी कर्मचारियों का लाभ लेने से रोक रही है।"

आगे उन्होंने कहा कि कई मनरेगा कर्मचारियों को पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए भर्ती किया गया था जिसमें समाचार पत्रों में विज्ञापन और मेरिट सूची तैयार करना शामिल था और फिर भी इतने वर्षों तक काम करने के बाद भी मनरेगा श्रमिकों को नियमित नहीं किया गया है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय, रोज़गार गारंटी परिषद के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित, जिन्होंने अतीत में संविदा मनरेगा श्रमिकों के कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया, ने न्यूज़क्लिक को बताया, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये संविदा कर्मी ही हैं जो योजना का क्रियांवयन कर रहे हैं लेकिन न्यूनतम मानदेय पा रहे हैं। राज्य सरकार मनरेगा मज़दूरों को नियमित करने की इच्छुक नहीं है। यह बहुत अधिक काम के लिए अल्प वेतन देकर उनका शोषण कर रही है।”

दीक्षित ने आगे कहा कि वेतन में भी असमानता है : “उदाहरण के लिए, एक अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी को उत्तर प्रदेश में 22,000 रुपये मिल रहे हैं, लेकिन अन्य राज्यों में यह काफी अधिक है। संविदा कर्मियों के लिए उनके न्यूनतम वेतन के मामले में एक बेंचमार्क तय होना चाहिए। जब दो राज्य-राजस्थान और हिमाचल प्रदेश नौकरी नियमित कर सकते हैं तो उत्तर प्रदेश क्यों नहीं?"

उत्तर प्रदेश में पिछले 15-16 सालों से मनरेगा के तहत लगभग 45,000 संविदा कर्मी काम कर रहे हैं और उनमें से ज़्यादातर "सरकार की लापरवाही" के कारण एक कमज़ोर स्थिति में हैं।

एक यूनियन नेता ने आरोप लगाते हुए कहा, "तकनीकी सहायकों को 12,000 रुपये, बेयरफुट तकनीशियनों को 6,000 रुपये जबकि ग्राम रोज़गार सेवकों को 8,800 रुपये प्रति माह मिल रहे हैं। अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी को 22000, जूनियर इंजीनियर को 18000 व अकाउंटेंट को 15000 रुपये वेतन मिल रहा है। मनरेगा अधिनियम के तहत हम सभी को बहुत कम वेतन मिल रहा है। अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से मानदेय में अबतक संशोधन नहीं किया गया। आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा, "राज्य के संविदा कर्मी भुखमरी की कगार पर हैं और सरकार की लापरवाही का सामना कर रहे हैं।”

पदयात्रा में शामिल संविदा कर्मचारी परशुराम शर्मा ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमारी मांग है कि किसी और को नौकरी देने के बजाय 14 साल से पंचायत सहायक का काम कर रहे संविदा मनरेगा मज़दूरों को नियमित किया जाए।"

शर्मा ने आगे कहा कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान मनरेगा मज़दूरों के काम को नियमित करने का वादा किया था, हालांकि, सरकार ने सत्ता में आने के बाद इस वादे को पूरा करने के लिए कोई पहल नहीं की।

उन्होंने आगे कहा, "हम सिर्फ नौकरी की सुरक्षा चाहते हैं क्योंकि हमनें अपने जीवन का एक बेहतर हिस्सा इस सेवा को दिया है।"

साल 2021 में, राज्य भर के लगभग हज़ारों मनरेगा श्रमिकों ने कम मज़दूरी और नौकरी नियमितीकरण के मुद्दे पर राजधानी लखनऊ का घेराव किया था।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

UP: Contract MGNREGA Workers on Padayatra From Varanasi to Delhi Over Job Regularisation

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