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छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया

राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
MNREGA
फ़ोटो साभार: टाइम्स ऑफ़ छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में पिछले दो महीने से अपनी दो सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल कर रहे बड़ी संख्या में मनरेगा अधिकारी-कर्मचारियों ने शासन-प्रशासन पर दमनकारी हथकंडे अपनाने का आरोप लगाते हुए गुरूवार को इस्तीफा दे दिया। दो दिन पहले राज्य के मनरेगा संघ ने मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफे का ऐलान किया था।

पत्रिका डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक मनरेगा कर्मियों के पदों को विलोपित कर प्रतिनियुक्ति से भरने व हड़ताल वापसी के बाद कभी भी हड़ताल नहीं करने का बांड भरवाने की तैयारी के विरोध में संगठन ने यह कदम उठाया। दांतेवाड़ा जिले के 178 मनरेगा अधिकारी-कर्मचारियों ने सामूहिक तौर पर इस्तीफे पर हस्ताक्षर किया। वहीं दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक गरियाबंद जिले के 400 मनरेगा कर्मियों ने आयुक्त के नाम जिला कार्यक्रम अधिकारी को सामूहिक इस्तीफा सौंप दिया है।

ज्ञात हो कि मनरेगा कर्मियों के संघ के पदाधिकारियों ने दो दिन पहले कहा था कि यदि मांग नहीं मानी गई तो प्रदेश के 15 हजार मनरेगा कर्मी इस्तीफा देने को तैयार हैं।

सिविल सेवा नियम 1966 व पंचायत कर्मी नियमावली लागू करने की मांग

मनरेगा कर्मियों का कहना है कि राज्य सरकार चुनावी जन घोषणा-पत्र में किए गए वादों को पूरा करते हुए सभी मनरेगा कर्मियों का नियमितीकरण करे। साथ ही नियमितीकरण की प्रक्रिया पूर्ण होने तक ग्राम रोजगार सहायकों का वेतनमान निर्धारण करते हुए सभी मनरेगा कर्मियों पर सिविल सेवा नियम 1966 के साथ पंचायत कर्मी नियमावली लागू करे।

इन कर्मियों ने कहा है कि मांगों को लेकर अब तक सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई जबकि इसके उलट प्रशासनिक स्तर से दो महीने से जारी इस हड़ताल को कुचलने की तैयारी है।

कोरोना काल में मज़दूरों को काम देने में जान की परवाह नहीं की

मनरेगा महासंघ के पदाधिकारियों का कहना था कि 'आम लोगों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए हमारे 200 से अधिक मनरेगा कर्मी कोरोना काल में अपनी जान गंवा चुके हैं लेकिन उनके त्याग को भी सम्मान नहीं दिया गया। जान गंवा चुके उन कर्मियों के परिवारों की स्थिति बेहद दयनीय है। लगातार अपनी मांगों को शासन-प्रशासन के सामने हम शांतिपूर्ण तरीके से रखते आए हैं लेकिन प्रशासनिक स्तर पर कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है। इसके कारण मनरेगा कर्मीयों के मन में नाराजगी बढ़ती गई है।'

उनका कहना था कि सरकार ने अपने घोषणा पत्र में हमें नियमित करने का वादा किया था लेकिन साढ़े 3साल गुजर जाने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई है। इतना ही नहीं कोरोना काल में हमने ग्रामीण मजदूरों को काम देने व ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने में अपनी जान की परवाह किए बिना काम किए है जिसके चलते प्रदेश को प्राप्त लक्ष्य के विरुद्ध मात्र पांच महीने में 120 फीसदी उपलब्धि हासिल हुई है।

कई बार कमेटी का गठन लेकिन नतीजा शून्य

हड़ताल के दौरान राज्य शासन द्वारा कई बार कमेटी का गठन किया जा चुका है। यह कमेटी अलग-अलग अधिकारियों की अध्यक्षता में बनाई गई थी लेकिन नतीजा आज तक कुछ नहीं निकला है। प्रतिवेदन के आधार पर न अब तक नियमितीकरण हुआ है न कोई ठोस कदम राज्य सरकार द्वारा उठाया गया है जिससे कर्मचारियों में भारी नाराजगी रही है।

बता दें कि सात जनवरी 2014 को लंबे समय से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी संविदा पर कार्यरत तृतीय व चतुर्थ श्रेणी को कर्मचारियों को शासन ने विभिन्न् विभागों में सीधी भर्ती में प्राथमिकता देने की प्रक्रिया शुरू की थी। सामान्य प्रशासन विभाग सचिव की अध्यक्षता में कमेटी का गठन हुआ था लेकिन आज तक कर्मचारियों को नियमित नहीं किया गया।

400 किलोमीटर पैदल यात्रा कर रायपुर पहुंचे थे

सीएम भूपेश बघेल तक अपनी बात पहुंचाने के लिए मनरेगा कर्मियों ने गत 12 अप्रैल को दांतेवाड़ा से तिरंगा यात्रा निकाला था और भीषण गर्मी में 400 किलोमीटर पैदल चलकर18 दिनों में रायपुर पहुंचे थें। इस यात्रा का नाम उन्होंने दांडी मार्च दिया था। इस यात्रा में 5 हजार से ज्यादा मनरेगा कर्मचारी शामिल हुए थें। एक किलोमीटर लंबी तिरंगा लेकर मनरेगा कर्मचारी रायपुर पहुंचे थें।

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