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यूपी: सबूत न मिलने पर कानपुर हिंसा में गिरफ़्तार 6 लोगों को रिहा करने की तैयारी में पुलिस

हाल ही में सहारनपुर की एक अदालत ने सबूतों के अभाव में 8 लोगों को रिहा करने का आदेश दिया था। बीजेपी नेताओं द्वारा की गई पैग़ंबर की टिप्पणी के विरोध के बाद उन्हें भी जेल में डाल दिया गया था।
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: The Indian Express

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के निलंबित प्रवक्ताओं द्वारा पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर 3 जून को एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा के लिए प्राथमिकी दर्ज करने के बाद कानपुर पुलिस की जल्दबाजी और अविवेकपूर्ण गिरफ्तारी की कार्रवाई जांच के दायरे में आ गई है क्योंकि गिरफ्तार लोगों में से छह लोगों के खिलाफ कोई भी सबूत पेश करने में पुलिस विफल रही है।

पिछले शुक्रवार को संबंधित अधिकारियों ने सरकारी अभियोजकों से भी कानूनी राय ली कि ये रिपोर्ट कैसे दर्ज की जाए। अब पुलिस रिपोर्ट जमा करने के बाद अदालत इस पर विचार करेगी और अपना फैसला सुनाएगी।

इन छह लोगों के परिवारों ने पुलिस को सीसीटीवी फुटेज और अन्य सबूत सौंपे थे, जिससे पता चलता है कि आरोपी 3 जून को हिंसा स्थल पर मौजूद नहीं थे। सूत्रों का कहना है कि आपराधिक प्रक्रिया सीआरपीसी (जो सबूतों की कमी होने पर आरोपी की रिहाई की मांग करती है) की धारा 169 के तहत वह स्थानीय अदालत में आवेदन जमा करेगी। उसका कहना है कि इन छह लोगों के खिलाफ सबूत नहीं है।

रिपोर्टों के अनुसार, वे (पुलिस) जल्द ही धारा 169 के तहत एक क्लोजर रिपोर्ट फाइल करेंगे क्योंकि आरोपी को कथित अपराध से संबंध जोड़ने के लिए कोई सबूत या संदेह का उचित आधार नहीं मिला है। और यदि आरोपी हिरासत में है, तो ये रिपोर्ट दाखिल करने के बाद उसे कुछ शर्तों पर रिहा किया जाएगा जैसे कि इसमें बांड, जमानत और बुलाए जाने पर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना आदि शामिल है।

इस बीच, पुलिस आयुक्त (कानपुर) विजय सिंह मीणा और संयुक्त पुलिस आयुक्त आनंद प्रकाश तिवारी के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के कारण दो भाइयों को रिहा कर दिया गया जिन्हें इस मामले में गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया था। घटना के तीन दिन बाद छह जून को एक कमेटी का गठन किया गया और तब से लेकर 28 जुलाई तक जेल भेजे गए सभी आरोपियों की भूमिका को समझने के लिए कमेटी ने पांच बैठकें कीं।

रिपोर्ट के मुताबिक स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में पुलिस के सामने जो सबूत और तथ्य आए उनमें जेल भेजे गए छह लोगों को गलत तरीके से फंसाने की बात सामने आई। जिसके बाद पुलिस ने उन्हें जेल से बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

एक पीड़ित परिवार के सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर न्यूजक्लिक को बताया कि “मेरा भाई वहां मौजूद नहीं था जहां हिंसा हुई थी। वह हमारे घर के पास एक मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने गया और तुरंत वापस आ गया। अपने दावे को साबित करने के लिए, मैंने उन जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज दी जहां वह विरोध प्रदर्शन के दौरान मौजूद था।"

परिवार ने स्थानीय पुलिस पर 'जल्दबाजी' में कार्रवाई करने का आरोप लगाया और कहा कि स्क्रीनिंग कमेटी में उनके सबूतों पर विचार नहीं किया गया। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "मैं पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए एक दर्जन लोगों को जानता हूं जो निर्दोष हैं, लेकिन आरोप इतने गंभीर हैं कि पुलिस बैकफुट पर नहीं जाएगी।"

पुलिस ने इस संबंध में कानपुर के बेकनगंज थाने में तीन मामले दर्ज किए थे। पूर्व भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा पैगंबर पर की गई टिप्पणी के विरोध में पराडे और नई सड़क सहित उसके आसपास के क्षेत्रों में दुकानों को बंद करने के आह्वान के बाद शुक्रवार की नमाज के बाद भड़की 3 जून की हिंसा में अब तक 60 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

बाद में, पुलिस ने हिंसा के तीन "साजिशकर्ताओं" की पहचान मुख्तार बाबा, हयात जफर हाशमी और हाजी वसी के रूप में की। मुख्तार बाबा कानपुर में एक फूड चेन 'बाबा बिरयानी' का आउटलेट चलाता है, हयात जफर एक स्थानीय संगठन मौलाना मोहम्मद अली (एमएमए) जौहर फैन्स एसोसिएशन का प्रमुख है, जबकि वसी स्थानीय बिल्डर है।

पुलिस ने गुरुवार को हयात जफर हाशमी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाया। पुलिस ने हिंसा के लिए हाशमी को फंडिंग करने वाले डी2 गैंग के शफीक, मुख्तार बाबा और अकील खिचड़ी के खिलाफ भी गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की है।

यह उत्तर प्रदेश पुलिस की कथित मनमानी का अकेला उदाहरण नहीं है। हाल ही में, सहारनपुर की एक स्थानीय अदालत ने नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद के बारे में की गई टिप्पणी के विरोध में 10 जून को हिंसा में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किए गए आठ लोगों को रिहा करने का आदेश दिया था। अदालत के आदेश में कहा गया है कि आठ आरोपियों के खिलाफ मामले में जांच अधिकारी (आईओ) की जांच दोषपूर्ण थे और उन्हें बिना किसी उचित कारण या सबूत के अदालत में पेश किया गया था।

22 दिन जेल में बिताने के बाद उन्हें उस समय रिहा कर दिया गया जब पुलिस ने कहा कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। न्यूज़क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने दावा किया था कि उनके साथ "आतंकवादियों" की तरह व्यवहार किया गया और उन्हें उक्त अपराध के लिए "राष्ट्र-विरोधी" कहा गया जो उन्होंने कभी किया ही नहीं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

UP: Finding No Evidence, Police Set to Release 6 Persons Arrested ‘in Haste’ After Kanpur Violence

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