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यूपी: फिर तेज़ हुई OPS बनाम NPS की लड़ाई, 75 जनपदों में सड़कों पर उतरे कर्मचारी

OPS में सर्विस के दौरान मौत होने पर फैमिली पेंशन का प्रावधान है। NPS में सर्विस के दौरान मौत होने पर फैमिली पेंशन मिलती है, लेकिन योजना में जमा पैसे सरकार जब्त कर लेती है। OPS में रिटायरमेंट पर GPF के ब्याज पर किसी प्रकार का इनकम टैक्स नहीं लगता है। NPS में रिटायरमेंट पर शेयर बाजार के आधार पर जो पैसा मिलेगा, उस पर टैक्स देना पड़ेगा।
OPS

कई राज्यों में पुरानी पेंशन की बहाली से उत्साहित उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने पुरानी पेंशन योजना (OPS) लागू करवाने के लिए एक बार फिर आंदोलन तेज कर दिया है। इसी क्रम में बीते सोमवार यानी 7 नवंबर को परिषद के बैनर तले लखनऊ, कानपुर, अलीगढ़, बलिया, इटावा, मऊ, सोनभद्र, जालौन समेत राज्य के 75 जिलों में कर्मचारियों ने सड़कों पर उतरकर अपनी मांग के लिए आवाज बुलंद की। राजधानी लखनऊ में बीएन सिंह प्रेरणा स्थल के सामने बड़ी संख्या में कर्मचारियों का जुटान हुआ और जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को 11 सूत्री ज्ञापन सौंपा गया, जिसमें सबसे प्रमुख मांग OPS बहाली की थी।

क्या कहते हैं संगठन के पदाधिकारी

संगठन की लखनऊ जिला अध्यक्ष अमिता त्रिपाठी कहती हैं कि अगर सरकार विधायकों-सांसदों को पुरानी पेंशन दे सकती है, तो सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों को क्यों नहीं दे सकती। एक सरकारी कर्मचारी अपने जीवन का स्वर्णिम काल सरकार के काम को देता है। उसकी इतनी ही इच्छा होती है कि जब वह रिटायर हो, तो सम्मान के साथ अपने परिवार के साथ बाकी के दिन बिता सके। लेकिन सरकार उसका यह अधिकार भी छीन रही है। उन्होंने कहा कि कई मुद्दों पर शासनादेश तो पारित हो जाते हैं, लेकिन उन शासनादेशों का सरकार सख्ती से पालन नहीं करा पाती। वह कहती हैं कि, "यह कितनी अजीब विडंबना है कि पहले कर्मचारी अपनी मांगों से संबंधित शासनादेश जारी करवाने के लिए लिए संघर्ष करता है, फिर उसे उसी शासनादेश को लागू करवाने के लिए दोबारा सड़क पर उतरना पड़ता है। एक लंबा अरसा में इसी में गुजर जाता है। सरकार से हमारी मांग है कि कम से कम जिन मुद्दों पर शासनादेश जारी हो चुका है, उन्हें अविलंब लागू कराया जाए।"

अमिता कहती हैं कि उत्तर प्रदेश पहला ऐसा राज्य होगा जहां OPS को लेकर कर्मचारी-शिक्षक लंबे से आंदोलनरत हैं। कर्मचारियों ने 2013 में लखनऊ से लेकर दिल्ली तक साइकिल यात्रा निकाली और 13 दिन हड़ताल पर भी रहे। तब न्यायालय में सरकार और कर्मचारियों के बीच समाधान के लिए सहमति भी बनी थी, लेकिन मामला कुछ आगे बढ़ा नहीं।

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रांतीय महामंत्री शिव बरन सिंह यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड ने OPS को बहाल कर दिया है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश इस ओर अग्रसर हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार आखिर इस दिशा में आगे क्यों नहीं बढ़ रही! उन्होंने कहा कि 2024 के आम चुनाव को देखते हुए कर्मचारी व शिक्षक आंदोलन को तेज कर रहे हैं, ताकि इसे एक बड़े चुनावी मुद्दे के रूप में स्थापित किया जा सके। इसी क्रम में संगठन के पदाधिकारी विभिन्न राज्यों का दौरा कर एकजुटता बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
शिव बरन सिंह कहते हैं, "जटिलता यह है कि कर्मचारी वरिष्ठ अधिकारियों तक अपनी मांगों को पहुंचा देते हैं, लेकिन अधिकारी उसे सरकार तक नहीं ठोस तरीके से नहीं पहुंचाते। वह कहते हैं कि 2010, 2011, 2012 में जब कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन की बहाली की मांग को लेकर देशभर में आंदोलन किया था, तो योगी आदित्यनाथ ने बतौर सांसद कर्मचारियों की मांग और आंदोलन का समर्थन करते हुए भारत सरकार को चिट्ठी लिखी थी कि पुरानी पेंशन कर्मचारियों के लिए लाभकारी है और उसे लागू किया जाए। लेकिन अब मुख्यमंत्री रहते हुए वह OPS की मांग को नजरअंदाज कर रहे हैं। आखिर यह दोहरा व्यवहार क्यों।

वे मानते हैं कि 2005 के बाद से ही कर्मचारी जहां एक ओर इस दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण आर्थिक, मानसिक उत्पीड़न झेल रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर आकस्मिक घटना होने पर परिवार का भविष्य सुरक्षित नहीं रह गया हैं।

परिषद के ही  संप्रेक्षक  फहीम अख्तर ने बताया कि आज के दिन राज्य के 75 जनपदों में कर्मचारी धरना-प्रदर्शन, जुलूस के जरिये अपनी मांग को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने के लिए आंदोलन में उतरे हैं। अगर इसके बाद भी सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो कर्मचारी राजधानी लखनऊ की ओर कूच करेंगे। वह कहते हैं कि संघर्ष की कभी हार नहीं होती। अगर मांगें उचित हैं और जनहित में हैं, तो सरकार को झुकना ही पड़ता है। बीते दिनों किसान आंदोलन के जरिये नये कृषि कानूनों की वापसी इसकी एक मिसाल है। भले ही OPS की मांग पूरी होने में कुछ वक्त लगे, लेकिन अंत में जीत कर्मचारियों के संघर्ष की ही होगी।     

फहीम कहते हैं नई पेंशन नीति की विसंगतियां लगातार सामने आ रही हैं। सरकार की यह नीति हमारे बुढ़ापे की लाठी छीन रही है। मौजूदा समय में कर्मचारियों और शिक्षकों की संख्या बहुत बड़ी है। इसको नजरअंदाज कर कोई भी पॉलिसी नहीं बनानी चाहिए। वे बताते हैं कि उप्र में अभी 13 लाख कर्मचारी ऐसे हैं, जिनको पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिलता है। अगर हर कर्मचारी के परिवार में चार सदस्य भी जोड़ें तो करीब 52 लाख लोग सीधे प्रभावित हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि उनका संगठन सबसे प्रमुख माँग OPS के साथ साथ कर्मचारियों के लिए कैशलेस चिकित्सा की सुविधा लागू करने, सातवें वेतन आयोग का बकाया पेंशनरों को एकमुश्त देने, अप्रैल 2005 से नियुक्त होने वाले कर्मचारियों को नियमित करने ,आउटसोर्सिंग के जरिए तैनाती बंद करने, आशा का मानदेय दस हजार करने, कर्मचारियों का समय से प्रोन्नति किए जाने की माँग भी सरकार से करता है।

लंबे समय से चल रहा आंदोलन

इसमें दो मत नहीं कि पिछले लंबे समय से उत्तर प्रदेश के वे कर्मचारी, शिक्षक आंदोलरत हैं जिनकी बहाली उस समय हुई जब देश में  2004 में तत्कालीन केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा नई पेंशन योजना ( NPS )लाई गई और तब कई राज्यों ने भी इसे अपने यहाँ लागू किया जिसमें उत्तर प्रदेश भी शामिल था। यहाँ बता दें कि पहले NPS का नाम " नई पेंशन योजना"  थी लेकिन अब मौजूदा केंद्र सरकार ने इसका नाम बदलकर " नेशनल पेंशन सिस्टम " राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली रख दिया है। NPS में पुरानी पेंशन योजना के लाभ को खत्म कर सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली अन्य सुविधाओं को समाप्त या कम कर दिया गया।

पुरानी पेंशन बहाली के लिए उत्तर प्रदेश के राज्यकर्मियों ने  2018 में बड़ा आंदोलन खड़ा किया था और वे हड़ताल पर भी चले गए थे। आंदोलन को देखते हुए  विभिन्न कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों के साथ सरकार ने एक आपातकाल बैठक भी बुलाई थी। दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुरानी पेंशन बहाली पर विचार कर अपनी रिपोर्ट देने के लिए एक कमेटी बनाई । कमेटी ने इस दिशा में बहुत सारे तथ्यों पर काम किया था, लेकिन हड़ताल समाप्त होने के बाद धीरे-धीरे यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

साल 2022 के विधान सभा चुनाव से पहले भी प्रदेश के कर्मचारी-शिक्षकों के विभिन्न संगठनों द्वारा OPS के लिए जोरदार आंदोलन किये गए। करीब एक साल पहले ऑल इंडिया टीचर्स एंड एम्प्लॉयज वेलफेयर एसोसिएशन (अटेवा) के बैनर तले इको गार्डन में हजारों कर्मचारियों, शिक्षकों ने प्रदर्शन किया था। प्रदेश का कोई जिला ऐसा नहीं था जहाँ से प्रदर्शनकारी लखनऊ न पहुँचा हो। तब माना जा रहा था कि उनके इस विशाल प्रदर्शन को देखते हुए योगी सरकार विधानसभा चुनाव से पहले उनके हित में कोई बड़ा फैसला ले सकती है लेकिन अफ़सोस ऐसा हरगिज नहीं हुआ। तो क्या सरकारी कर्मचारी-शिक्षक सरकार के एजेंडे में नहीं, इस सवाल के जवाब में चीफ फार्मासिस्ट पद से कुछ साल पहले रिटायर हुए बस्ती के रहने वाले संतराम कहते हैं, "दरअसल हक़ीकत यही है कि सरकारी कर्मचारी सरकार के एजेंडे में शामिल रहा ही नहीं क्योंकि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले प्रदेश में चंद कर्मचारी सरकार की नजर में इतनी बड़ी शक्ति नहीं कि सरकार का तख्ता पलट कर सके।"

वे कहते हैं, "प्रदेश में राज्य कर्मचारियों की करीब 25 लाख संख्या है और तकरीब 13 लाख ऐसे हैं जो NPS के दायरे में हैं। यदि 25 लाख का आँकड़ा भी ले लिया जाए तो 22 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में 25 लाख इतनी बड़ी संख्या नहीं कि किसी सरकार को गिरा सके और बीते विधानसभा चुनाव में इस बात को भाजपा सरकार और अच्छे से समझ गई है तो भला उसे क्या जरूरत है आंदोलनकारियों की आवाज सुनने की।"

संतराम कहते हैं इससे बड़ी दुखद बात और क्या हो सकती है कि जब कोई सरकार अपने लाभ-हानि का गणित जोड़कर अपने ही कर्मचारियों के इस्तेमाल पर उतारू हो जाए।

OPS और NPS में अंतर

ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) में पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं होती जबकि NPS  में वेतन से 10% की कटौती का प्रावधान है। OPS एक सुरक्षित पेंशन योजना है. इसका भुगतान सरकार की ट्रेजरी के जरिए किया जाता है। NPS शेयर बाजार आधारित है, बाजार की चाल के आधार पर ही भुगतान होता है। OPS में रिटायरमेंट के समय अंतिम बेसिक सैलरी के 50 फीसदी तक निश्चित पेंशन मिलती है.NPS में रिटायरमेंट के समय निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं ।

इसके अलावा OPS में GPF (General Provident Fund) की सुविधा है। 6 महीने के बाद मिलने वाला महंगाई भत्ता (DA) लागू होता है। रिटायरमेंट के बाद 20 लाख रुपए तक ग्रेच्युटी मिलती है। जबकि NPS में ऐसा कुछ नहीं है। OPS में सर्विस के दौरान मौत होने पर फैमिली पेंशन का प्रावधान है। NPS में सर्विस के दौरान मौत होने पर फैमिली पेंशन मिलती है, लेकिन योजना में जमा पैसे सरकार जब्त कर लेती है। OPS में रिटायरमेंट पर GPF के ब्याज पर किसी प्रकार का इनकम टैक्स नहीं लगता है। .NPS में रिटायरमेंट पर शेयर बाजार के आधार पर जो पैसा मिलेगा, उस पर टैक्स देना पड़ेगा।

बहरहाल आंदोलनकर्ता प्रदेश के मुख्यमंत्री से यह सवाल पूछ रहे हैं कि जब सांसद रहते हुए आपने OPS का समर्थन कर इसे कर्मचारियों के हित में बताया था तो मुख्यमंत्री पद पाने के बाद आख़िर सोच और नजरिया क्यों बदल गया?

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