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यूपी: ‘आर्थिक तंगी’ के कारण पीआरडी जवान ने की ख़ुदकुशी, कम वेतन पर कोर्ट सख़्त

प्रांतीय रक्षक दल के एक जवान ने सुसाइड नोट में आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए ख़ुदकुशी कर ली। वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार को फटकार लगाते हुए वेतन बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर

ज़्यादा काम और कम पैसे.. सरकार के वादे और इंतज़ार...कुछ इन्हीं हालात में बीआरडी के एक जवान ने मौत को गले लगा लिया। किसी तरह परिवार का पेट पाल रहा उत्तर प्रदेश के हाथरस में तैनात एक जवान ने आख़िरकार हार मानकर खुदकुशी कर ली।

अब सवाल ये है कि प्रांतीय रक्षक दल के इस जवान रविंद्र की खुदकुशी का ज़िम्मेदार कौन है? क्योंकि उसने मौत को गले लगाने से पहले एक सुसाइड नोट लिखकर बताया कि "मुझे 395 रुपए रोज़ाना मिलते हैं, मैं बच्चों की फीस भी नहीं भर पा रहा। इसलिए सुसाइड कर रहा हूं।”

ये पूरा मामला हाथरस के न्यू तमन्ना गढ़ी का है जहां 40 साल के रविंद्र अपने परिवार के साथ यहां रहते थे। इनकी मां, पत्नी और दोनों, बच्चे रविंद्र के बड़े भाई के यहां गुजरात गए थे। पिछले कुछ दिनों से रविंद्र अपने घर में अकेले थे।

अब पड़ोसियों का कहना है कि बीते 3 अगस्त को सुबह करीब 10 बजे चीख़ने का आवाज़ आई, आस-पड़ोस के लोग बाहर आ गए लेकिन रविंद्र के घर से कोई नहीं निकला, जब गेट से झांककर देखा तो पीआरडी जवान रवींद्र अपने हॉल में फंदे पर लटका हुआ था।

सुसाइड की वजह वैसे तो साफ है - आर्थिक तंगी, लेकिन रवींद्र के सुसाइट नोट को पूरा पढ़कर समझने की कोशिश करते हैं कि क्या मामला है?

बीआरडी जवान के सुसाइड नोट में लिखा था कि "मैं रविंद्र सिंह S/O पन्नालाल सिंह, पीआरडी में नौकरी करता हूं। मुझे 395 रुपये रोज़ाना मिलते हैं। मेरे दो लड़के और पत्नी है। मां भी साथ में रहती हैं। जिनका खर्च मैं चलाता हूं। मुझे महीने की 24 या 25 तारीख को तनख्वाह मिलती है। इसलिए मैं बच्चों की पढ़ाई व घर का खर्च नहीं चला पाता। मैं अपने बच्चों की फीस समय से नहीं भर पा रहा हूं। मजबूर होकर मैं आत्महत्या कर रहा हूं।”

इतना तो साफ है कि बीआरडी जवान रवींद्र ने एकाएक ख़ुदकुशी नहीं की, आर्थिक तंगी के कारण वे बहुत दिनों से परेशान चल रहे थे। ऐसे में लगातार ये आरोप लग रहे हैं कि "एक बार फिर रोज़गार के प्रति सरकारी नाकामियों की वजह से एक परिवार की खुशियां छिन गईं।”

आर्थिक तंगी के कारण रवींद्र की खुदकुशी हो या कारण कोई और हो लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को फटककार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि "पीआरडी जवानों को न्यूनतम वेतन से भी कम भुगतान किया जा रहा है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और राज्य सरकार का मनमाना व अवैधानिक काम है।" न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि "पीआरडी यानी प्रांतीय रक्षक दल के जवानों को होम गार्ड के जवानों के बराबर भुगतान किया जाए।”

दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई थी, वो प्रांतीय रक्षक दल के चयनित अभ्यर्थी की ओर से ही दाखिल की गई थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि "प्रांतीय रक्षक दल और होम गार्ड सेवाओं का गठन अलग-अलग विभागों के तहत किया जाता है, उनसे सामान्य दिनों में भी लोक शांति से संबंधित काम और सेवाएं ली जाती हैं, जैसे होमगार्ड से ली जाती हैं। प्रांतीय रक्षक दल को 2013 तक प्रतिदिन 126 रुपये मिलते थे, जबकि होमगार्ड के जवानों को 2009 तक 140 रुपये मिलते थे, जिसे बढ़ाकर 210 रुपये कर दिया गया। फिर इसे 375 रुपये किया गया और अब हो गार्ड को 500 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं। जबकि प्रांतीय रक्षक दल के जवानों को हर दिन आज भी 375 रुपये ही मिलते हैं।”

यूपी सरकार के मुताबिक "ग्रामीणों में आत्मबल और सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करने, उनमें आत्म निर्भरता एवं अनुशासन की आदत डालने तथा आत्म सुरक्षा एवं अपराधों की रोकथाम के उद्देश्य से वर्ष 1947 में प्रांतीय रक्षक दल का गठन किया गया था। वर्ष 1952 में काउन्सिल आफ फिजिकल कल्चर को प्रांतीय रक्षक दल में विलीन कर दिया गया, जिसके फलस्वरूप ग्रामीण खेलकूद, व्यायामशालाओं के माध्यम से शारीरिक सम्बर्द्धन का कार्य एवं युवा आंदोलन को सुदृढ करने का कार्य प्रारंभ किया गया।”

प्रांतीय रक्षक दलों के जवानों की ड्यूटी अक्सर यातायात संचालन, थानों, मेलों समेत तीर्थस्थलों या चुनावों में पोलिंग बूथ पर लगाई जाती है।

चूंकि पीआरडी के जवानों का वेतन होमगार्ड के बराबर करने की मांग की जा रही है, ऐसे में होमगार्ड के बारे में जान लेना भी ज़रूरी है...

दरअसल, यह एक स्वैच्छिक बल यानी वॉलेंट्री फोर्स है, जिसे भारत में पुलिस की सहायता के लिए 6 दिसंबर 1946 में बनाया गया था। तब होमगार्ड को गृह मंत्रालय  के अधीन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों  के लिए बनाया गया था, देश आज़ाद हो जाने के बाद 1962 में होमगार्ड संगठन को पुनर्गठित किया गया था।

होम गार्ड अक्सर खाकी वर्दी में नज़र आते हैं, इनकी वर्दी बिल्कुल पुलिस की तरह होती है। होम गार्ड्स को सिविल सोसाइटी के विभिन्न क्रॉस सेक्शन में भर्ती किया जाता है। इनकी तैनाती गृह जनपदों के अनुसार ही होती है।

यहां आपको बता दें कि होमगार्ड और प्रांतीय रक्षक दल के जवानों को प्रतिदिन काम के हिसाब से पैसा दिया जाता है।

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