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यूपी चुनाव, पांचवां चरण: अयोध्या से लेकर अमेठी तक, राम मंदिर पर हावी होगा बेरोज़गारी का मुद्दा?

पांचवें चरण के चुनावों में अयोध्या, प्रयागराज और चित्रकूट.... तीन-तीन धर्म नगरी शामिल हैं, जो हमेशा से चुनावों में भाजपा का बड़ा हथियार रही हैं, इसके बावजूद इस बार बेरोज़गारी और महंगाई भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी साबित हो सकती है।
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उत्तर प्रदेश में चार चरण के चुनाव संपन्न होने के बाद पांचवें चरण में अब अवध के साथ पूर्वांचल की बारी है। इस चरण में जहां भारतीय जनता पार्टी की संपूर्ण राजनीतिक पूंजी राम मंदिर का काम दांव पर होगा तो प्रयागराज और चित्रकूट जैसे धार्मिक नगरी में मतदाता अपने विधायक चुनेंगे। दूसरी ओर देखना ये होगा कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे दलों का सॉफ्ट हिंदुत्व कितना रंग लाता है।

692 उम्मीदवारों की किस्मत 2.24 करोड़ मतदाताओं के हाथ

पांचवें चरण में 12 ज़िलों कि 61 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इस चरण में 692 मतदाता चुनावी मैदान में हैं, जिनकी किस्मत का फैसला कुल 2,24,77494 मतदाताओं के हाथ में हैं, इसमें भी 1,19,80,571 पुरुष मतदाता और 1,04,95,171 महिला मतदाता हैं। किन-किन सीटों पर होंगे मतदान:

पांचवा चरण--- 12 ज़िले, 61 सीटें

  • श्रावस्ती ज़िला- भिनगा, श्रावस्ती
  • बहराइच ज़िला- बलहा (एससी), नानपारा, मटेरा, महसी, बहराइच, पयागपुर, कैसरगंज
  • बाराबंकी ज़िला- कुर्सी, रामनगर, बाराबंकी, जैदपुर (एससी), हैदरगढ़, दरियाबाद
  • गोंडा ज़िला- मेहनौन, गोंडा, कटरा बाजार, करनैलगंज, तरबगंज, मनकापुर (एससी), गौरा
  • अयोध्या ज़िला- दरियाबाद, रुदौली, मिल्कीपुर (एससी), बीकापुर, अयोध्या
  • अमेठी ज़िला- तिलोई, जगदीशपुर (एससी), गौरीगंज, अमेठी
  • सुल्तानपुर ज़िला- इसौली, सुल्तानपुर, सदर, लम्भुआ, कादीपुर (एससी)
  • प्रतापगढ़ ज़िला- रामपुर खास, बाबागंज (एससी), कुंडा, विश्वनाथगंज, प्रतापगढ़ सदर, पट्टी, रानीगंज
  • कौशांबी ज़िला- सिराथू, मंझनपुर (एससी), चायल
  • चित्रकूट ज़िला- चित्रकूट, मानिकपुर
  • प्रयागराज ज़िला- फाफामऊ, सोरांव (एससी), फूलपुर, प्रतापपुर, हंडिया, मेजा, करछना, इलाहाबाद पश्चिम, इलाहाबाद उत्तर, इलाहाबाद दक्षिण, बारा (एससी), कोरांव (एससी)
  • रायबरेली- सलोन

पिछले दो चुनावों के नतीजे

2017 के विधानसभा चुनाव में इन 61 सीटों में से 51 सीटें बीजेपी ने जीती थी जबकि उसके सहयोगी अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थी। वहीं, सपा के खाते में महज 5 सीटें गईं थी। इसके अलावा कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली थी और दो सीटों पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी। जबकि बसपा का खाता भी नहीं खुला था। आंकड़ों के ज़रिए समझते हैं पिछले दो साल चुनावों के आंकड़े:

बीजेपी का हिंदुत्व बनाम सॉफ्ट हिंदुत्व

12 ज़िलों की इन 61 सीटों पर पिछले विधानसभा चुनावों में भले ही भाजपा ने ज्यादातर सीटों पर कब्ज़ा किया हो लेकिन इस बार चुनावी फ़िज़ा थोड़ी बदली-बदली लग रही है, यही कारण है कि समाजवादी पार्टी के लिए भी ये चरण बेहद अहम बन गया है। दरअसल अखिलेश ने पिछले करीब एक साल से मुस्लिम-यादव गठजोड़ से सपा को बाहर निकलते हुए 'साफ्ट हिंदुत्व' के एजेंडे को भी धार दी है। इस चरण में सपा के 'साफ्ट हिंदुत्व' एजेंडे की भी परीक्षा होनी है। इस चरण से यह भी तय होगा कि धड़ों में बंटी जाति विशेष की राजनीति करने वाली पार्टियों में से जनता किसके साथ है। वहीं दूसरी ओर सोनेलाल पटेल की पत्नी अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल प्रतापगढ़ सदर सीट से खुद चुनाव मैदान में हैं। उनकी दूसरी बेटी पल्लवी पटेल सपा के चुनाव चिह्न से उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ सिराथू से चुनाव लड़ रही हैं।

पिछड़ी-अति पिछड़ी जातियों पर दारोमदार

पांचवें चरण में कई समूहों में बंटी पिछली और अति पिछड़ी जातियों पर जीत का दारोमदार होगा। सपा ने मौर्य, राजभर, कुर्मी-पटेल और निषादों को साधने के लिए इनके नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया है। इन्हीं पिछड़ी जातियों को साधकर ही भाजपा ने साल 2017 में प्रचंड बहुमत हासिल किया था।

अमेठी और रायबरेली कांग्रेस की चुनौती

ये चरण सिर्फ भाजपा-सपा और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए ही नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इसी चरण में कांग्रेस के गढ़ अमेठी की सभी सीटों और रायबरेली की एक सीट पर चुनाव होने हैं। बतातें चलें कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस के राहुल गांधी को अमेठी में हार का मुंह देखना पड़ा था, जाहिर है कांग्रेस यहां वापसी करना चाहेगी। उधर, बहुजन समाज पार्टी भी अपनी दमदार दस्‍तक से सबको चौंका देना चाहती है।

योगी के इन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर

पांचवें चरण की 61 सीटों में से 90 फीसदी सीटों पर योगी सरकार के कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। पांचवें चरण के चुनाव में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सिराथू सीट से चुनाव लड़ रहे हैं तो कैबिनेट मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह पट्टी सीट से उतरे हैं। कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह,  इलाहबाद पश्चिम से प्रत्याशी हैं तो नागरिक उड्डयन मंत्री नंद गोपाल नंदी इलाहाबाद दक्षिण, समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री मनकापुर सुरक्षित सीट से और राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय चित्रकूट सदर से चुनाव लड़ रहे हैं। योगी सरकार के मंत्री रहे मुकुट बिहारी की जगह उनके बेटे चुनावी मैदान में हैं।

इन कैबिनेट मंत्रियों की साख दांव पर

प्रतापगढ़ में राजा भैया की अग्निपरीक्षा

प्रतापगढ़ के कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया इस बार अपनी जनसत्ता पार्टी से चुनावी मैदान में हैं। राजा भैया और बगल की बाबागंज सुरक्षित सीट से विनोद सरोज भी जनसत्ता दल से चुनाव लड़ रहे हैं। राजा भैया के खिलाफ डेढ़ दशक के बाद समाजवादी पार्टी ने पहली बार अपना उम्मीदवार गुलशन यादव को मैदान में उतारा है।

बेरोज़गारी और महंगाई से मात खाएगी भाजपा!

इस चरण की 61 सीटों पर अगर मुख्य मुद्दों की बात करें तो भाजपा के लिहाज़ से राम मंदिर, आतंकवाद, राष्ट्रवाद, बुल्डोज़र, लोगों के शरीर का तापमान आदि है। जबकि इन मुद्दों का वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। क्योंकि अयोध्या में जहां एक ओर राम मंदिर का विकास हो रहा है तो 70 फीसदी गांव उजाड़ दिए गए हैं, जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है और रोज़गार के नाम पर सिर्फ झांसा है, वहीं दूसरी ओर अयोध्या में ही किसी को बुखार भी आ जाए तो 135 किलोमीटर दूर लखनऊ के लिए भागना पड़ता है। यही हाल पूरे उत्तर प्रदेश समेत पूरे पूर्वांचल का भी है, जो कोरोना काल के दौरान खुलकर सामने आ गया। एक-एक कर कुछ अहम मुद्दों पर नज़र डालते हैं:

पिछले कुछ सालों में जिस तरह से आवारा पशुओं ने किसानों की खेती बर्बाद कर उनकी रीढ़ तोड़ी है, इसका ख़ामियाज़ा ज़रूर भाजपा को भुगतना पड़ेगा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की नाराज़गी पर बात ज़रूर बोल दी कि 10 मार्च के बाद छुट्टा जानवरों से जुड़ी समस्याओं का पुख्ता इंतज़ाम किया जाएगा। लेकिन किसानों को मनाना भाजपा के लिए यह टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

* ये कहना ग़लत न होगा कि भाजपा सरकार में जब-जब युवाओं ने रोज़गार मांगा है तब उन्हें सिर्फ लाठियां ही मिली हैं। हाल ही में हुई प्रयागराज की घटना को कौन भूल सकता है जहां हॉस्टल में घुस-घुसकर छात्रों को बुरी तरह पीटा गया था। यानी साफ है कि बेरोज़गारी के कारण भाजपा गच्चा ज़रूर खा सकती है।

* बेरोज़गारी के अलावा लोगों में महंगाई को लेकर भी बहुत ज्यादा गुस्सा है, घरेलू गैस से लेकर रसोई का सामान तक लोगों के लिए आफत बनी हुई है।

योगी सरकार भले ही माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने की बात करती रही हो, लेकिन सरकार बनाने के लिए अपराधी से नेता बनने की फिराक में बैठे लोगों के दर माथा टेकना ही पड़ेगा। अयोध्या के गोसाईगंज में बबलू सिंह और आरती तिवारी में संघर्ष हो चुका है। सुल्तानपुर में भी माफिया सरगना आमने-सामने हैं तो चित्रकूट के मानिकपुर में दस्यु सम्राट रहे ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल चुनाव मैदान में हैं। प्रतापगढ़ के कुंडा से रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजाभैया व अमेठी में डॉ. संजय सिंह मैदान में हैं। इन दोनों को अपने रजवाड़ों की लाज रखनी है।

दिलचस्प समीकरण

पांचवें चरण के चुनावों में इस बार कई दिलचस्प समीकरण देखने को मिल रहे हैं:

* पति-पत्नी चुनावी मैदान में: दरअसल बहराइच की दो सीटों पर पति-पत्नी चुनावी ताल ठोंक रहे हैं। बहराइच की मटेरा सीट से सपा ने अपने विधायक यासिर शाह की पत्नी मारिया शाह को उतारा है, जबकि इसी सीट से पिछली बार जीते यासिर शाह बहराइच सदर से चुनाव लड़े रहे हैं। यानी अगर ये दोनों जीते तो एक ही घर में दो-दो विधायक होंगे।

* 48 विधायक फिर से चुनावी मैदान में: पांचवे चरण की 61 सीटों पर अलग-अलग दलों के 48 मौजूद विधायक फिर से मैदान में हैं जबकि बाकि 13 सीट पर टिकट काट दिए गए हैं। ऐसे में वो खुद की बजाए दूसरों के लिए प्रचार कर रहे हैं।

* तीन सीट पर दो-दो विधायक: इस चरण की तीन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मौजूदा विधायक का मुकाबला विधायक से है। जैसे फूलपुर सीट पर विधायक बीजेपी के प्रवीण सिंह पटेल हैं, तो उनके सामने बसपा से सपा में आए प्रतापपुर से विधायक मुजतबा सिद्धीकी ताल ठोंक रहे हैं। वहीं बहराइच सदर से भाजपा विधायक अनुपमा जायसवाल के सामने मटेरी सीट से सपा विधायक यासिर शाह मैदान में हैं। इस बार सपा ने यासिर की सीट पर उनकी पत्नी को उतारा है। इसके अलावा प्रतापगढ़ की रानीगंज सीट पर बीजेपी के धीरेंद्र ओझा विधायक हैं, इसी सीट पर सपा ने उनके सामने आरके वर्मा को मैदान में उतार दिया है। आपको बता दें कि आरके वर्मा 2017 में अपना दल(एस) टिकट पर विश्वनाथ गंज सीट से जीते थे, बाद में उन्होंने सपा का दामन थाम लिया।  

तमाम सियासी समीकरणों के बीच जहां भाजपा मुख्य मुद्दों को छोड़कर राष्ट्रवाद के बल पर वोट मांग रही है वहीं समाजवादी पार्टी बेरोज़गारी और महंगाई को लेकर योगी सरकार को घेर रही हैं, वहीं यूपी चुनावों की दिग्गज बसपा सुप्रीमो अपने साइलेंट वोटरों के ज़रिए 2007 दोहराने की बात कर रही हैं तो कांग्रेस की कमान संभाले प्रियंका गांधी ‘’लड़की हूं लड़ सकती हूं’’ के सहारे सत्ता में आने का ख्वाब देख रही हैं। इन सबके बावजूद आखिरी फैसला जनता को ही करना है, जिसका नतीजा 10 मार्च को सामने आएगा।

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