यूपी सरकार ने शरणार्थियों की पहचान करने के दिए निर्देश, मुस्लिमों में दहशत
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने राज्य में रहने वाले शरणार्थियों की पहचान करने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है।
सरकारी स्रोतों से न्यूज़क्लिक को प्राप्त जानकारी के अनुसार सभी ज़िलों में राज्य प्रशासनिक अधिकारियों को शरणार्थियों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा गया है।
सूत्रों के अनुसार कुछ सुदूर पूर्व क्षेत्र को छोड़कर यूपी में लगभग हर ज़िले के ज़िला मजिस्ट्रेट शरणार्थियों की पहचान करने और जल्द से जल्द रिपोर्ट तैयार करने के लिए 15 दिसंबर को टेलीफ़ोन पर निर्देश दिए गए थे।
मध्य-पश्चिम ज़िले में तैनात एक ज़िला मजिस्ट्रेट ने संवाददाता को इस बाबत पुष्टि की कि उन्हें ऐसा निर्देश मिला है और उन्हें दो सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है।
नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, “मेरे कार्यालय को पिछले 15 दिसंबर को सूचना मिली और मैंने तुरंत अपने सभी उप-ज़िलाधिकारियों को उन्हें (शरणार्थियों को) पहचानने और मुझे एक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। मुझे नहीं पता कि क्या यह नागरिकता संशोधित क़ानून (सीएए) से संबंधित है क्योंकि मुझे निर्देश टेलीफ़ोन पर दिया गया था और लिखित में कुछ भी मेरे कार्यालय को नहीं भेजा गया था। अगर यह लिखित में होता तो मैं इस पर टिप्पणी कर सकता था।" उन्होंने कहा," मैंने एक रिपोर्ट बनाई है और शरणार्थियों की पहचान करने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है।"
ज़िला मजिस्ट्रेट ने आगे कहा कि उनके ज़िले में बड़ी संख्या में शरणार्थी थे जो 1970 के दशक से पहले बांग्लादेश से भारत आए थे और अब पहचान किए जाने से थोड़ा असहज थे।
उक्त अधिकारी ने एन्क्रिप्टेड टेलीफ़ोन लाइन पर न्यूज़क्लिक को बताया, “मुझे दो बार या तीन बार लोगों के समूहों द्वारा संपर्क किया गया है जिन्होंने मुझसे अनुरोध किया है कि मैं उन्हें बताऊं कि यह एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स) का हिस्सा तो नहीं है। मैंने उन्हें बताया कि यह केवल शरणार्थियों की पहचान करने के लिए किया गया था। कोई भी कहीं नहीं जा रहा है और हर कोई यहीं रहेगा। वे थोड़े डरे और तनाव में दिखे लेकिन मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि यह उनका भारत है, जितना मेरा है।”
न्यूज़क्लिक द्वारा संपर्क किए गए अन्य ज़िला मजिस्ट्रेट ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि कोई डर नहीं था और यह क़दम केवल धार्मिक उत्पीड़न के कारण दूसरे देशों से पलायन कर चुके लोगों को नागरिकता देने के लिए था। उन्होंने आगे बोलने से इनकार करते हुए कहा कि एनआरसी और शरणार्थियों की पहचान दो अलग-अलग मुद्दे थे और मुसलमानों को सीएए से बाहर रखने पर जब उनसे सरकार की मंशा के बारे में सवाल किया गया था तो रिपोर्टर को इसे 'सांप्रदायिक' मुद्दा नहीं बनाने के लिए कहा गया।
सीएए-एनआरसी को लेकर डर और दहशत
सीएए के पारित होने से राज्य में मुस्लिम समुदाय में दहशत फैल गई है। कई ज़िलों में जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त बनवाने के लिए लोगों की लंबी कतारें देखी गई हैं।
हापुड़ के रहने वाले शाहरुख़ ख़ान का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदाय डर के माहौल में हैं क्योंकि आम धारणा है कि अगर वे काग़ज़ात तैयार नहीं कर पाए तो उन्हें असम की तरह हिरासत केंद्रों में भेज दिया जाएगा।
शाहरुख़ ने कहा, “80 वर्ष की उम्र के लोगों को अपना जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लाइन में खड़ा देखा जा सकता है। अगर यह डर नहीं है तो और क्या है? प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए बुजुर्ग क्यों जूझ रहे हैं?”
लखीमपुर खीरी ज़िले के एक बुजुर्ग मसूद क़ादरी का कहना है कि लोगों को जन्म प्रमाण पत्र बनवाने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
वे कहते हैं, “नागरिकता साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र महत्वपूर्ण काग़ज़ है। पहले, नगर निगम 1947 के बाद का जन्म प्रमाण पत्र बना रहा था लेकिन अब वे बंद हो गए हैं और केवल 1970 के बाद जन्म प्रमाण पत्र बना रहे हैं। जब हमने संबंधित अधिकारी से पूछा तो उन्होंने हमें बताया कि यह आदेश उच्च अधिकारियों से मिले हैं।”
क़ादरी कहते हैं कि उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे लेकिन अब हमें इसे साबित करना होगा। हम ग़रीब लोग हैं। अगर हम काग़ज़ात इकट्ठा करते हैं तो कौन रोज़मर्रा की कमाई कमाएगा?”
बस्ती के अकरम ख़ान कहते हैं, “भारत के मुसलमानों ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में रहने का फ़ैसला किया था। लोग इसे हिंदू पाकिस्तान बनाना क्यों चाहते हैं। हम भारत के मुसलमान इस देश को उतना ही प्यार करते हैं जितना कोई दूसरा करता है।”
उन्होंने आगे कहा, "मैं आपको बता रहा हूं कि अगर राज्य में एनआरसी लागू होता है तो मुस्लिम समुदाय को भूखा रहना पड़ेगा क्योंकि वे काग़ज़ात की तलाश में लगे रहेंगे और अपने बच्चों को खिलाने-पिलाने के लिए उनके पास पैसे नहीं होंगे क्योंकि काम तो करेंगे नहीं।"
इस बीच, प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि राज्य के मुसलमानों को किसी भी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “सीएए शरणार्थियों को नागरिकता देने से संबंधित है और इसका देश के नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे लोग हैं जो अफ़वाह फैला रहे हैं और लोगों को उन पर विश्वास करने की ज़रूरत नहीं है।"
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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