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कितना प्रभावी है यूपी का 'डबल इंजन'? 

उत्तर प्रदेश के कुछ प्रमुख आर्थिक संकेतक इस दावे को झूठा साबित करते हैं कि मोदी-योगी का 'डबल इंजन' शासन का मॉडल लोगों के लिए अच्छा है।
Adityanath and Yogi

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार के साथ उन राज्यों का वर्णन करने के लिए अक्सर एक ट्रेन को खींचने वाले दो इंजनों की एक ज्वलंत तस्वीर प्रस्तुत की जाती है जहां राज्य में भी भाजपा की सरकार है। एक इंजन, निश्चित रूप से, केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार है, और दूसरा इंजन राज्य सरकार है। यह तस्वीर ज्यादातर चुनावों के दौरान सामने आती है - जैसा कि हम उत्तर प्रदेश (यूपी) में देख रहे हैं, जहां कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव में ऊंचा दांव लगा हुआ है।

परेशान करने वाले सवाल को छोड़कर कि राज्य स्तर पर एक अलग पार्टी यानि भाजपा को नुकसान क्यों होगा, आइए हम यूपी के कुछ प्रमुख आर्थिक पहलुओं पर गौर करते हैं। इसने आर्थिक विकास, औद्योगीकरण, राज्य के वित्त के प्रबंधन और लोगों को सीधे प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों जैसे मजदूरी, मुद्रास्फीति और नौकरियों पर कैसा काम किया है? इसका मूल्यांकन करने के लिए सारा डेटा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से लिया गया है।

आर्थिक विकास में गिरावट आई है

जब मार्च 2017 में बीजेपी की भारी जीत के बाद योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था, तो वित्तीय वर्ष 2016-17 का वर्ष सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में 11.4 प्रतिशत की स्वस्थ वृद्धि के साथ समाप्त हुआ था। तब से वृद्धि ढलान पर है, जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है।

2020-21 महामारी का वर्ष है, इसलिए विकास में गिरावट की उम्मीद थी, हालांकि यह गिरावट  -6.4 प्रतिशत की चौंका देने वाली दर पर पहुँच गई थी। लेकिन उससे पहले ही यानि 2019-20 में यूपी की वृद्धि 3.8 फीसदी तक गिर गई थी। जाहिर है, 'डबल इंजन' की आर्थिक नीतियों में कुछ गलत था। मोदी सरकार की कॉर्पोरेट क्षेत्र के निवेश पर निर्भरता, और बड़ी वफ़ा से यूपी में योगी द्वारा इन्वेस्टर्स समिट्स आयोजित करने और विभिन्न सेवाओं के निजीकरण करने के बावजूद इसने काम नहीं किया है। लेकिन यह एक ऐसा सबक है जिससे सीख नहीं ली गई है क्योंकि आने वाले चुनावों में भी भाजपा नेताओं द्वारा फिर से चुने जाने पर इससे अधिक का करने का वादा कर रही है।

गैर-औद्योगीकरण की कुछ झलकियां

यूपी की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था का एक और आयाम है जिसका जिक्र बीजेपी प्रचार मशीन नहीं कर रही है। 2016-17 और 2020-21 के बीच, राज्य की अर्थव्यवस्था में उद्योग के योगदान में गिरावट आई है। [नीचे चार्ट देखें]

डबल इंजन सरकार की अवधि के दौरान सकल राज्य मूल्य वर्धित उद्योग (GSVA) की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत से घटकर 31 प्रतिशत हो गई है। कृषि में लगभग एक प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि सेवाओं में तीन अंकों की वृद्धि हुई है।

इसका मतलब यह है कि राज्य में बड़े पैमाने पर निवेश - घरेलू और विदेशी - दोनों के प्रवाह से कुछ भी नहीं हुआ है। न तो इन दावों ने लघु उद्योग और विभिन्न जिलों में पारंपरिक या अन्य उद्योगों के लिए कुछ किया और न ही 'एक जिला, एक उत्पाद' कार्यक्रम पर ध्यान देने को प्रोत्साहित किया है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उद्योग धंधे के साथ-साथ रोज़गार के साधन भी पर्याप्त रूप से नहीं बढ़े हैं। लोग या तो कृषि में शरण ले रहे हैं या कम मज़दूरी के साथ अनौपचारिक क्षेत्र में काम करना जारी रखे हुए हैं।

बढ़ते क़र्ज़ का बोझ

यूपी सरकार की बकाया देनदारियों (यानि कर्ज़) में डबल इंजन के तहत सर घूमा देने वाली प्रतिशत की वृद्धि हुई है – जोकि 2016-17 में लगभग 4.7 लाख करोड़ रुपए था फिर जब योगी ने कार्यभार संभाला तो 2020-21 में कर्ज़ बढ़कर 6.6 लाख करोड़ रुपये हो गया था। यह लगभग 40 प्रतिशत की बहुत बड़ी छलांग है। इसने यूपी को - डबल इंजन सरकार के तहत - सबसे ऊपर, यानि सबसे अधिक कर्ज़ वाले राज्य के रूप में तब्दील कर दिया है। इस कर्ज़ का लगभग तीन-चौथाई वाणिज्यिक है, यानी बैंकों और वित्तीय संस्थानों का कर्ज़ है वह भी बाज़ार की ब्याज दरों के हिसाब ऐसी तस्वीर सामने आई है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के संदर्भ में, जोकि 2021 में अनुमानित लगभग 23 करोड़ है, और इसके मुताबिक प्रति व्यक्ति 28,708 रुपये के कर्ज़ के  बराबर है। [नीचे चार्ट देखें]

इसलिए, डबल इंजन की सरकार ने राज्य को केवल कहीं अधिक कर्ज में धकेल दिया है, इतना पैसा उधार लेने के फायदों को दिखाने के लिए सरकार के पास कुछ भी नहीं है। पिछले एक साल में सरकारी कर्मचारियों से लेकर शिक्षकों, स्वास्थ्य कर्मियों तक के विभिन्न वर्ग अपने अर्जित वेतन के भुगतान के लिए आंदोलन कर रहे हैं। स्वास्थ्य व्यवस्था और स्कूलों की हालत खस्ता है - योगी सरकार द्वारा उधार लिए गए इस सारे पैसे से उन्हें कोई फ़ायदा होता नहीं दिख रहा है।

अनियंत्रित मूल्य वृद्धि

लोगों के लिए राज्य की आर्थिक नीतियों के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक बाज़ार में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें हैं। 2017-18 के बाद से, योगी के नेत्रत्व में 'डबल इंजन' सरकार के पूरे काम-काज के दौरान औसत वार्षिक मुद्रास्फीति दर (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर) 2020-21 में 2.4 प्रतिशत से बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई है। [नीचे चार्ट देखें]

नई नौकरियां उपलब्ध नहीं होने के कारण और मौजूदा रोज़गार जिनमे वेतन काफी कम होने से, बेलगाम मुद्रास्फीति परिवार के बजट को नष्ट कर रही है, लोगों को खाद्य पदार्थों, शिक्षा और उपभोक्ता की टिकाऊ वस्तुओं आदि सहित विभिन्न आवश्यक खर्चों में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

ग्रामीण मज़दूरी काफ़ी कम है

लोगों की दयनीय दुर्दशा को केवल एक ही ज्वलंत मुद्दे के ज़रिए देखा जा सकता है – वह है खेतिहर मजदूरों की मजदूरी। यूपी में 2021 में पुरुष श्रमिकों का औसत वेतन 274.5 रुपये प्रति दिन था। यह, ज़ाहिर है, आधिकारिक तौर पर घोषित दर है और वास्तव में, मजदूरी आमतौर पर इससे कम होती है। जो भी हो, यह दर भारत की औसत दर से काफी कम है, जो प्रति दिन 309.9 रुपये है।

वास्तव में, यूपी में मजदूरी दर देश में सबसे कम है, इसके मुकाबके केवल पांच प्रमुख राज्य हैं जिनमें मजदूरी यूपी से कम है। ये राज्य बिहार (272.6 रुपये), महाराष्ट्र (267.7), ओडिशा (255.6 रुपये), मध्य प्रदेश (217.6 रुपये) और गुजरात (213.1 रुपये) हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में देश के सबसे अधिक कृषि श्रमिकों की संख्या लगभग 1.99 करोड़ है।

डबल इंजन सरकार की विफलता

यह यूपी सरकार के आर्थिक प्रदर्शन का एक स्नैपशॉट था। यह शासन के 'डबल इंजन' मॉडल की पूर्ण विफलता को दिखाती है। नारा तो महज़ ढोंग है क्योंकि अगर डबल इंजन ऐसा है जो सबको नीचे की ओर खींचता है तो उसका कोई फ़ायदा नहीं है। इसका कारण स्पष्ट है कि दोनों इंजन निरंकुश निजीकरण, कल्याणकारी खर्च में भयंकर कटौती, कॉरपोरेट्स को रियायतें और अदूरदर्शी आर्थिक नीतियों के सिद्धांत का पालन कर रहे हैं।

ज़रूरत इस बात की है कि कल्याणकारी उपायों पर सार्वजनिक खर्च में वृद्धि की जाए, उदाहरण के लिए, सार्वजनिक वितरण प्रणाली या स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत किया जाए, उद्योग में सार्वजनिक निवेश के माध्यम से रोज़गार सृजन, किसानों को बेहतर मूल्य, श्रमिकों को उच्च मजदूरी आदि पर काम दिया जाए। योगी और मोदी दोनों की ही यह दृष्टि नहीं है - इसलिए डबल इंजन विफल हो रहा है। आने वाले चुनावों में, यह गलत दृष्टि जो इतनी आर्थिक दुर्दशा का कारण है, लोगों द्वारा उसकी परीक्षा ली जाएगी।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

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