उत्तर प्रदेश : योगी का दावा 20 दिन में संक्रमण पर पाया काबू , आंकड़े बयां कर रहे तबाही का मंज़र
जब वैज्ञानिक कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए अलर्ट जारी कर रहे थे, उस समय उसकी बात सुनने के बजाये, हमारे नेता पहली लहर में अपनी सफलता के बड़े-बड़े दावे करने में व्यस्त थे। उनको लग रहा था कि कोविड-19 ख़त्म हो गया है और उन्होंने जंग जीत ली है।
प्रतिदिन 200 के क़रीब मौतें
अभी दूसरी लहर का क़हर खत्म नहीं हुई है और ब्लैक फ़ंगस भी एक नई चुनौती के रूप में आ गया है। प्रतिदिन 150 से अधिक मौतें हो रही हैं। ऐसे में योगी सरकार का दावा है कि दूसरी लहर पर क़ाबू पा लिया गया है। महामारी की तीसरी लहर की तैयारी शुरू हो गई है।
भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश कोरोना आपदा की दूसरी लहर की चपेट में है। खराब स्वास्थ्य प्रणाली, अस्पतालों में ऑक्सीजन और बिस्तरों की कमी ने कोविड-19 मरीज़ों और उनके तीमारदारो को और अधिक संकट में डाल दिया है। बड़े शहरों, छोटे क़स्बों क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक के लोगों को स्वास्थ्य सेवा के अभाव का सामना करना पड़ा।
निंदा पर मुक़दमा
दिलचस्प बात यह है इस पर लिखने या चर्चा करने वालों पर मुक़दमे हो रहे हैं। जिसकी हाई प्रोफ़ायल मिसाल पूर्व आईएएस सूर्या प्रताप सिंह हैं, जिन्होंने सरकारें की निंदा की तो पर उन्नाव और वाराणसी में मुक़दमे लिख दिये गये। स्वयं मुख्यमंत्री ने कहा अफ़वाह जो फैलाए उनकी सम्पत्ति ज़ब्त कर उसके विरुद्ध रासुका के तहत करवाई हो। अब अधिकारीयों पर निर्भर करता है वह किस नापसंद ख़बर को अफ़वाह बता दें।
जिन गांवों में जहां पहली लहर के दौरान महामारी का प्रभाव कुछ कम था, वह भी दूसरी लहर के विस्तार से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के अभाव ने मरीज़ों की तकलीफ़ों को और बढ़ा दिया।
32 प्रतिशत गांवों में कोविड-19
सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि प्रदेश के 28,742 के गाँवो में कोविड-19 मामलों की पुष्टि हुई है। इसका अर्थ साफ़ है की प्रदेश के 32 प्रतिशत गाँवो में कोविड-19 फैला हुआ है।प्राप्त रिपोर्ट्स बताती है की शहरों के अनुपात में कोरोना ग्रामीण इलाक़ों में ज़्यादा है।
केवल मई में प्रदेश में मिले कोविड-19 के कुल मामलों के 78 प्रति-शत मामले ग्रामीण या अर्ध ग्रामीण इलाक़ों से मिले। जबकि अप्रैल में मिले मामलों में केवल 30 प्रति-शत मामले शहरी या अर्ध शहरी इलाक़ों में थे।
उच्च न्यायालय ने भी कहा कि छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य प्रणाली पूरी तरह से "राम भरोसा" है। मीडिया में भी यह रिपोर्ट्स प्रकाशित और प्रसारित हुई कि बहुत से गाँव ऐसे हैं जहाँ कोई टेस्टिंग नहीं हुई।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवर किया और सारी दुनिया ने हजारों लाशों को नदियों की लहरों पर तैरते देखा। नदियों के आसपास रेत में बनी कब्रें और उनके पास कुत्ते-गिद्ध भी को मीडिया की सुर्खियां में सब ने देखा। इन लाशों की गिनती की संख्या सही पुष्टि नहीं हुई है। हालाँकि मीडिया का दावा है कि हज़ारों की संख्या में शव और क़ब्रें मिली हैं।
पंचायत चुनावों के दौरान महामारी
हाल ही में संपन्न पंचायत चुनावों के दौरान महामारी प्रोटोकॉल का कर उल्लंघन किया गया। मतदान केंद्रों के बाहर अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदाताओं की भारी भीड़ देखी गई। नतीजतन, चुनाव में ड्यूटी करने वाले 1632 शिक्षकों ने अपनी जान गंवा दी-जैसा कि शिक्षक संघों ने दावा किया है। इन सबके बावजूद सरकार यह दावा कर रही है कि केवल 03 शिक्षकों की ड्यूटी के दौरान मौत हुई। जबकि राज्य निर्वाचन आयोग ने पहले ही कहा था की प्रदेश के 75 ज़िलों में से 28 में चुनाव ड्यूटी के दौरान क़रीब 77 शिक्षकों और कर्मचारियों की मौत हुई।
सरकारी दावों के अनुसार प्रतिदिन मिलने वाले कोविड-19 मरीज़ों की संख्या में कमी ज़रूर आई है। लेकिन आरोप है कि सरकार ने कोविड-19 की जाँच कम कर कर दी हैं। हालाँकि कोविड-19 से मरने वालों की संख्या में अभी ज़्यादा कमी नहीं है।
सरकार पर यह आरोप भी लगते रहे हैं की वह मरने वालों की संख्या छुपा रही है। राजधानी लखनऊ में तो शमशान की एक विडियो सामने आने के बाद, प्रशासन ने शमशान के चारों तरफ़ दिवार बनवा दी थी ताकि तस्वीर ना ली जा सके।
मौतों का सरकारी आंकड़ा
सरकारी आँकड़ों के अनुसार कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 21 मई को 172, 20 मई को 238, 19 मई को 282, 18 मई को 255, 16 मई को 311, 15 मई को 281, 14 मई को 312, 12 मई को 329, और 11 मई को 306 रही है।
वही शनिवार की रात सरकार ने बताया कि 21 मई को मौत कि आँकड़ा कम होने के बाद 22 मई को यह बढ़ गया। शनिवार की शाम जारी कोविड-19 के आँकड़ों में बताया गया की पिछले 24 घंटे में 226 की मौत हुई है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार अब तक प्रदेश में अब तक 18978 लोग कोविड-19 से मर चुके हैं।
ब्लैक फंगस का संकट
कोविड 19 के इस दौर में अब ब्लैक फंगस के बढ़ते संक्रमण ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं।प्रदेश में इसके मरीजों का आंकड़ा 279 के पार हो चुका है।इसके अलावा 33 से ज्यादा मरीजों की मौत हो चुकी है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ, के डॉक्टर सुधीर ने न्यूज़क्लिक को बताया की उनके अस्पताल में 125 ब्लैक फ़ंगस के मरीजों का इलाज चल रहा है।
जबकि यहाँ क़रीब 10 मरीज़ों की इस से मौत हो चुकी है। उन्होंने बताया कि 06 मरीजों की कल शुक्रवार को सर्जरी की गई है।लखनऊ में पूरे प्रदेश से ब्लैक फ़ंगस के मरीज़ आ रहे हैं।
दवा का संकट
एक डॉक्टर ने नाम न लिखने कि शर्त पर बताया कि प्रदेश की लखनऊ में ब्लैक फ़ंगस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लेकिन इस बीमारी के इलाज में कारगर “एम्फोटेरेसिन बी 50” इंजेक्शन की बहुत किल्लत है। मरीज़ों की बढ़ती संख्या को देखते, प्रतिदिन 500 से 700 इंजेक्शन की जरूरत पड़ रही है। लेकिन कुछ लोगों को ही यह समय से मिल पा रहे हैं।
निजी अस्पतालों में भर्ती ब्लैक फ़ंगस के मरीजों के लिए दिक्कतें अधिक हैं क्योंकि उनके इलाज के लिए दवा नहीं है। ब्लैक फंगस की दवा एम्फोटेरेसिन-बी कहीं नहीं मिल रही है।प्रदेश सरकार ने निजी अस्पतालों से दवा उपलब्ध करवाने का वादा किया है। लेकिन केंद्र से जितना कोटा मिलता रहा है उससे अधिक मरीज़ सरकारी अस्पतलों में भर्ती हैं। ऐसे में निजी अस्पतालों में ब्लैक फ़ंगस के इलाज का संकट खड़ा होता दिख रहा है।
ऐसे हालात में जब 200 के क़रीब की प्रतिदिन कोविड-19 से मौत हो रही हैं, क्या सरकार का दावा कि उचित है की दूसरी लहर पर क़ाबू पा लिया है? जबकि दूसरी लहर में ब्लैक फंगस ने आकर डॉक्टरो की चुनौतियों को और बढ़ा दिया है।
सरकार को ऐसे समय में दावे कम और ज़मीनी स्तर पर कम करने ज़रूरत है। अगर लोगों समय पर मूलभूत सुविधा ऑक्सिजन, अस्पताल में बेड और वेंटिलेटर आदि मरीज़ों को मिल जाती तो, शायद सरकार को स्वयं अपनी प्रशंसा करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अगर सुविधा नहीं मिलती है तो सरकार की स्वयं की जितनी भी प्रशंसा कर ले, उस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
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