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यूपी के गांव; एक पड़ताल: 1 अप्रैल से 20 मई- कोरोना के मामलों में 277% की वृद्धि

सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अध्ययन से ही साफ़ ज़ाहिर होता है कि कुल मरीज़ों में ग्रामीण हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। दूसरी लहर में जितने नए मामले सामने आये हैं उसमें 69 प्रतिशत तो केवल ग्रामीण क्षेत्रों से ही हैं।
यूपी के गांव; एक पड़ताल: 1 अप्रैल से 20 मई- कोरोना के मामलों में 277% की वृद्धि

उत्तर प्रदेश में कोरोना की पहली लहर शांत होने के बाद आम लोगों से लेकर सरकार तक मान बैठी थी कि अब कोरोना का अंत हो गया है। कोरोना की पहली लहर में कोरोना ग्रामीण इलाकों में इतना नहीं था परन्तु अब दूसरी लहर में यह गांवों में व्यापक रूप से फैल गया है। सरकार द्वारा जारी संक्रमित मरीजों के आंकड़ों के अध्ययन से ही साफ जाहिर होता है कि कुल मरीजों में ग्रामीण हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। दूसरी लहर में जितने नए मामले सामने आये हैं उसमें 69 प्रतिशत तो केवल ग्रामीण क्षेत्रों से ही हैं और यही स्थिति इसी समयावधि में कोरोना से होने वाली मौतों में रही है। 

कोरोना की दूसरी लहर और ग्रामीण इलाक़े

कोरोना की दूसरी लहर में 1 अप्रैल से 20 मई तक के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के मामलों में 277% की वृद्धि रही जबकि शहरी क्षेत्रों में यह महज 27% थी। यदि यही स्थिति केवल अप्रैल महीने की देखे तो पाते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 1645% थी जबकि शहरी क्षेत्रों में 768% रही। इसी प्रकार सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में दूसरी लहर में 1 अप्रैल से 20 मई के मध्य दैनिक मृत्यु दर ग्रामीण क्षेत्रों में 2817% की वृद्धि हुई है और शहरों में इसी समयवधि में यह वृद्धि 1933% रही है और पूरे प्रदेश जिसमे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र शामिल है, में कोरोना से होने वाली मौतों में यह वृद्धि 2522% पर रही। 

चार्ट- यूपी के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में दैनिक कोरोना संक्रमण की बढ़ोतरी दर 

(1 अप्रैल से 20 मई 2021) 

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स्रोत: उत्तर प्रदेश कोरोना मीडिया बुलेटिन और https://www.covid19india.org

इसी प्रकार कोरोना के सक्रिय मामलों के आंकड़े बताते हैं कि 20 मई को प्रदेश में कुल 116,434 सक्रिय मामले हैं जो कि 1 अप्रैल को मात्र 11,918 थे, इस अवधि में पूरे राज्य में यह वृद्धि 877% हुई है और वहीं ग्रामीण इलाकों में सक्रिय मामलों की यह वृद्धि 1336% है और शहरी क्षेत्रों में 365% है। इन आंकड़ों से साफ़तौर पर यह दिखाई देता है कि यूपी में कोरोना कितना ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में फ़ैल चुका है।

प्रदेश में ग्रामीण बहुल जनसंख्या वाले जिलों में दूसरी लहर के दौरान 30 अप्रैल को जो पांच जिले नए मामलों को लेकर टॉप पर थे उनमें मुरादाबाद जिसमें 30 अप्रैल को 1689 नए केस आये इसके साथ ही वाराणसी 1568, बरेली 1284, मुज़्ज़फरनगर 1239 और प्रयागराज 1232 शामिल हैं और अब जब सरकारी आंकड़ों में कोरोना के नए मामलों में थोड़ी कमी देखने को मिली है तब भी 20 मई को प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र और मुख्यमंत्री का मुख्य गढ़ गोरखपुर नए मामले मिलने में टॉप पर है। 

यूपी में बीते कुछ दिनों में पहले के मुकाबले कोरोना के मामले कम देखे गए हैं, हालांकि कोरोना से मरीजों की मौत के मामलों में कोई ख़ास कमी नहीं देखी जा रही है। कोरोना के कारण होने वाली मौतों 20 मई के आंकड़ों के अनुसार जो 5 ग्रामीण बहुल जिले हैं उनमें वाराणसी-17, गाज़ीपुर-15, गोरखपुर-9, अयोध्या-9 और बस्ती-7 शामिल हैं। इसके ही सक्रिय मामलों में 20 मई को जो ग्रामीण जिले टॉप 5 में हैं उनमें पहले और दूसरे स्थान पर गोरखपुर- 5195, वाराणसी- 4935, तीसरे पर सहारनपुर- 4641, मुज़्ज़फ़रनगर- 3320, तथा मुरादाबाद हैं जिसमें 3128 मामले सक्रिय हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण की वास्तविक स्थिति सरकारी आंकड़ों से कही ज़्यादा 

ऊपर दिए दिए आंकड़े सरकारी हैं और इनसे वास्तविक स्थिति का अनुमान तो लगाया जा सकता है, लेकिन सटीक आकलन नहीं किया जा सकता। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में या तो टेस्टिंग ही नहीं हो रही है या बेहद कम हो रही है।

मरीज कोरोना संक्रमित है या नहीं इसका पता सामान्यतया दो तरह की रिपोर्ट से लगता है, एक एंटीजन टेस्ट और दूसरा आरटीपीसीआर टेस्ट। एंटीजन की रिपोर्ट तुरंत आती है लेकिन उसकी सत्यता सवालों के घेरे में रही है। RTPCR जांच की रिपोर्ट मान्य है लेकिन ग्रामीण इलाकों में ये जांच कम हो रही है, और तक राज्य में जो कुल टेस्ट हुए है उनमे RTPCR आधे भी नहीं हैं। रिपोर्ट के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। राज्य के बड़े शहरों में कोविड टेस्ट के लिए सरकारी के साथ-साथ निजी लैब भी हैं, लेकिन ग्रामीण भारत में क्या व्यवस्था है? ग्रामीण भारत की आबादी अभी भी सरकारी अस्पतालों पर निर्भर है, लेकिन जांच रिपोर्ट में देरी और जांच केंद्रों की ज्यादा दूरी ग्रामीणों के लिए परेशानी बन गयी है। वहीं दूसरी और डॉक्टर कह रहे है कि कोरोना का जो नया स्ट्रेन है वह RTPCR टेस्ट में भी निगेटिव आ जाता है, ऐसे में हम कैसे कह सकते है कि संक्रमण की जो तस्वीर हमारे सामने है सही है और कोरोना गावों में नहीं फैला है। इसलिए हम यहां कह सकते है कि सरकार के द्वारा जो आंकड़े उपलब्ध कराये जा रहे है वो आंशिक है जिनसे संक्रमण के वास्तविक हालात का सही पता नहीं चलता है। लेकिन जितना कुछ भी अनुमान मिलता है, वह भी गंभीर है। 

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कानपुर के शेरेश्वर घाट पर आधा किलोमीटर में ही 400 से ज्यादा लाशें दफ़न हैं। फोटो साभार: दैनिक भास्कर

कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आंकड़े और श्मशान और कब्रिस्तान के आंकड़ों में बड़ी संख्या में अंतर देखने को मिला, बड़ी संख्या में एक साथ चिताओं के जलने के फोटों बड़ी संख्या में सोशल मीडिया में वायरल हुए, सरकार ने उनको छुपाने के भरसक प्रयास किये, जिसके लिए दीवारे तक ऊँची करा दी गयीं। इसी दौरान एक बेहद विचलित करने वाली रिपोर्ट सामने आई है। 'दैनिक भास्कर' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपी में 27 जिलों में 1140 किलोमीटर की दूरी में गंगा किनारे 2 हज़ार से ज़्यादा शव मिले हैं। ये शव गंगा किनारे कहीं पानी में तैरते मिले तो कहीं रेतों में दफनाए हुए। अख़बार ने दावा किया है कि उसके 30 रिपोर्टरों ने बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, हापुड़, अलीगढ़, कासगंज, संभल, अमरोहा, बदांयू, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर, प्रयागराज, प्रतापगढ़, भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर और बलिया में गंगा किनारे घाट और गाँवों का जायजा लिया। 

इनकी मौत के तमाम कारण गिनाए जा रहे हैं कि शायद इन वजहों से इन लाशों को इनके परिजनों द्वारा नदियों में बहा दिया गया। इनमें से पहला कारण इन लोगों की कोरोना से मौत होना ही बताया जा रहा है क्योंकि गांवों में कोरोना संक्रमण फैलने का डर इतना ज्यादा है कि परिजन किसी की कोरोना से मौत होने पर अंतिम संस्कार करने से भी डर रहे हैं।

कल, शुक्रवार, 21 मई को पीएम अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के डॉक्‍टरों और फ्रंटलाइन वर्कस से वीडियो कॉन्‍फ्रेंस के जरिये रूबरू हुए थे, इस  दौरान वह कोरोना महामारी के कारण जान गंवाने वाले लोगों के बारे में बात करते हुए भावुक नजर आए। आपको यहां बताते चले कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 20 मई तक 846 मृत्यु हो चुकी हैं, इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में अभी तक 18,588 तथा पूरे देश में 2,91,331 मृत्यु हो चुकी हैं। ऐसे में केवल भावुक होने से कुछ नहीं होगा, बल्कि इन तमाम मौतों की जिम्मेदारी लेनी होगी, जिस तरह से पहली लहर के बाद केस कम होने पर अपनी पीठ थपथपाई थी।  कोरोना से हुई मौतों के लिए सरकार और उसका सिस्टम जिम्मेदार है। लोगों ने अस्पतालों में ऑक्सीजन न होने, बेड न मिलने, दवाइयाँ न मिलने से दम तोड़ा है, इसकी पूरी जिम्मेदारी राज्य और केंद्र सरकार की है जिसने समय रहते ध्यान नहीं दिया। 

बीजेपी ट्विटर हेंडल पर पीएम मोदी के भावुक होने की पोस्ट पर विरेन्द्र बिश्नोई कमेंट करते है कि- 

देश की जनता बेवकूफ नहीं है साहब!

जब देश की जनता को हॉस्पिटल मैं ऑक्सीजन की जरूरत थी, लोग तड़प तड़प के मर रहे थे!

आप अपने चुनाव में लगे थे।

लोगों की भीड़ इकट्ठा करके खुशियां मना रहे थे!

और तो और ना कोई व्यवस्था सरकार ने की ना आपने ध्यान दिया!

अब झूठी सांत्वना, आंसू क्यों बहा रहे हो?

ज़िलों में जांच की संख्या बहुत कम

 

उत्तर प्रदेश का रायबरेली जिला जिसमें अभी तक 6.71 लाख टेस्ट हुए हैं जो जिले की कुल जनसंख्या का मात्र 23% ही है। इसमें से मात्र 38% ही RTPCR टेस्ट हुए हैं। इसी प्रकार बिजनौर जिला जिसकी कुल आबादी 36.82 लाख है, उसमें महज 4.91 लाख ही सैंपल टेस्ट हुए हैं जो कि कुल जनसँख्या का मात्र 13 प्रतिशत है और बिजनौर जिले में 19 मई को इतनी बड़ी जनसंख्या पर जांच के लिए मात्र 1759 सैंपल दिए गए हैं, इसके साथ ही 34.66 लाख की जनसंख्या वाले सहारनपुर जिले में अभी तक कुल 8.80 लाख सैंपल टेस्ट हुए हैं जिसमे से RTPCR मात्र 40 फ़ीसदी हैं।

जिलों में जहाँ एक तरफ इतने कम टेस्ट हो रहे हैं और वहीं दूसरी और सरकार दावा कर रही है कि मात्र 32% गावों में ही संक्रमण पहुंचा है, ऐसे में जब टेस्ट ही सही मात्रा में नहीं हो रहे तो आखिर सरकार किस आधार पर यह दावा कर रही है यह समझ से परे है।

वैक्सीन लगाने की रफ़्तार बहुत धीमी 

यदि हम कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन की स्थिति देखें तो ज्ञात होता है कि जनसंख्या की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश जिसकी जनसंख्या अभी 22 करोड़ से अधिक है उसमें दोनों डोज को मिलाकर महज 1.56 करोड़ लोगों को ही अभी तक कोरोना वैक्सीन मिल पाई है। इसमें 1.23 करोड़ लोगों को पहली डोज लगी है और दूसरी डोज लगने वालों की संख्या मात्र 33 लाख है।

इसके साथ ही 18-45 आयुवर्ग के लिए 75 जिलों में से केवल 23 जिलों में ही वैक्सीन का कार्य चल रहा है और अभी तक 18-45 आयुवर्ग में मात्र 7.46 लाख लोगों को ही वैक्सीन लगी है। जिस रफ़्तार से राज्य में वैक्सीन दी जा रही ऐसे में पूरे राज्य में वैक्सीन लगने में सालों लगने वाले हैं।

कोरोना में जिस तरह गांवों के हालात तेजी से बिगड़े हैं उसने स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत उजागर कर दी है। कमोबेश राज्य के लगभग सभी जिलों के हालात एक जैसे हैं। कोरोना की इस भयावह स्थिति के बारे में यह कहना भी सही नहीं होगा कि यह सब अचानक हुआ है या योगी सरकार को इसका अंदेशा पहले से नहीं रहा होगा, विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे थे कि ग्रामीण इलाकों में संक्रमण फैलना कहीं ज्यादा बड़ा खतरा साबित होगा। परन्तु जिस तरह से गांवों को लेकर हर स्तर पर अनदेखी और लापरवाही होती रही, उसी का नतीजा है कि गांवों में हालात बदतर हो गए। इसके लिए राज्य सरकार पूरी तरह जिम्मेदार है, सरकार के पास लगभग एक साल का समय था इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक करने पर जोर नहीं दिया गया बल्कि और ऐसे कार्य किये गए कि कोरोना ने भयावह स्थिति धारण कर ली। कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र राज्य में चुनावों को लेकर तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और चुनाव आयोग दोनों को फटकार भी लगाई थी, इसके बावजूद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए।

पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान कोरोना से 1621 शिक्षकों की मौत की उप्र शिक्षक संघ द्वारा लिस्ट जारी की गयी थी जिसको राज्य सरकार ने ख़ारिज करते हुए कहा कि मात्र तीन शिक्षकों की ही मृत्यु हुई है। कर्मचारियों कि मौत के मामले में अलग-अलग आंकड़े जारी होने पर प्रदेश सरकार चौतरफा घिर गयी है। इस प्रकरण से साफ़ पता चलता है कि योगी सरकार आंकड़ों की हेराफेरी कर स्थिति सामान्य दिखाने की किस तरह कोशिश कर रही है।

प्रदेश में योगी सरकार को जनता की सही मायनों में सुध लेनी होगी। उसको अपने हाल पर ऐसे ही नहीं छोड़ देना होगा। इस दौरान तमाम स्तर पर लापरवाहियां भी देखने को मिल रही हैं। कोरोना के लक्षणों से पीड़ित तमाम ग्रामीण झोलाछाप डॉक्टरों की सेवाएं लेने को मजबूर हुए हैं। राज्य में सरकार को सीएचसी के नेटवर्क को मजबूत करके गांवों तक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की कनेक्टिविटी को मजबूत करना होगा, बड़े जिला अस्पतालों पर तो प्रशासन की भी नजर रहती है, लेकिन छोटे सीएचसी की हालत अधिकारियों के ध्यान में नहीं आ पाती। इन अस्पतालों को मजबूत किए बिना यूपी में कोरोना के खिलाफ लड़ाई को जीता नहीं जा सकेगा।

कोरोना की पहली लहर में गांव औद्योगिक क्षेत्रों के लिए बड़ी उम्मीद बनकर उभरे थे। जिस समय शहरी क्षेत्रों में तालाबंदी-बेरोजगारी के कारण सभी जरूरी चीजों की मांग ठप पड़ गई थी, गांवों ने देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था, परन्तु इस दूसरी लहर में गांवों पर ध्यान न देने के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था में गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। 

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