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पश्चिम बंगाल: पुरुलिया के लगभग 1.5 लाख बीड़ी मज़दूरों ने शुरू किया मेहनताना बढ़ाने के लिए आंदोलन

“हमें 700 बीड़ी बनाने के 70 रुपये दिए जाते हैं या 800 बीड़ी के 80 रुपये और 1000 बीड़ी बनाने पर मात्र 120 रुपये का भुगतान किया जाता है। अगर हम और बीड़ी लपेटने की कोशिश करें तो केंदू पत्ते और धागे खत्म हो जाते हैं।” 
West Bengal

पुरुलिया:  यहां के झालदा प्रखंड की मलिका महतो (42) अपनी आजीविका के लिए घर पर ही बीड़ी बनाती हैं। उनके पति एक खेतिहर मजदूर हैं, जिन्हें शुष्क जलवायु वाले जिले में यदा-कदा कोई काम मिल पाता है। बीड़ी बनाने वाले कामगारों की सभा में मलिका माइक पर भरे ह्रदय से मालिकों द्वारा किए जा रहे शोषण का दर्द बयान करती हैं। वे बताती हैं कि किस तरह से मालिक 1000 बीड़ी बनाने के लिए तय न्यूनतम मजदूरी 268 रुपये का भुगतान नहीं करते हैं। 

मलिका ने कहा, “हमें 70 रुपये 700 बीड़ी बनाने के दिए जाते हैं या 800 बीड़ी के 80 रुपये दिए जाते हैं और 1000 बीड़ी बनाने पर मात्र 120 रुपये का भुगतान किया जाता है। अगर हम और बीड़ी लपेटने की कोशिश करें तो हमारे पास केंदू पत्ते और धागे खत्म हो गए होते हैं।” यहाँ की शुष्क जमीन और छोटी-छोटी पहाड़ियों वाला जिला ही बीड़ी बनाने वाली कई महिलाओं का घर है। दूसरे पेशे का यहां कोई गुंजाइश न होने के कारण, ये बीड़ी बनाने अपने मालिकों के हाथों शोषित होते हैं, जो अधिक मजदूरी मांगने पर अपने इस धंधे को किसी दूसरी जगह शिफ्ट कर देने की धमकी देते हैं। 

मलिका महतो 

देवाशीष रॉय जो ऑल इंडिया बीड़ी वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव हैं, कहते हैं, “हालांकि राज्य सरकार ने बीड़ी बनाने वालों के लिए न्यूनतम मजदूरी की घोषणा कर रखी है, लेकिन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। उन्होंने आगे कहा, "तमिलनाड़ु एवं केरल में, बीड़ी बनाने वालों को घोषित न्यूनतम दर से मजदूरी मिलती है और सरकारें भी इस पर नजर रखती हैं कि कामगारों को उनकी वाजिब मजदूरी मिल सके। लेकिन, पश्चिम बंगाल में, न्यूनतम मजदूरी की घोषणा किए जाने के बाद, सरकार यह सुनिश्चित नहीं करती कि कामगारों को उनका वाजिब मजदूरी मिल रही है कि नहीं।”

रॉय ने कहा कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार में कुछ बीड़ी फैक्टरी के मालिक या बीड़ी-संग्राहक मंत्री के रूप में शामिल हैं और इस वजह से ही बीड़ी बनाने वालों के लिए न्यूनतम मजदूरी की मांग करना टेढ़ी खीर है। रॉय आगे कहते हैं, “हालांकि श्रम मंत्री बेचराम माना ने कहा है कि न्यूनतम मजदूरी का भुगतान न करना फैक्टरी मालिकों का जुर्म है, यह “जुबानी सेवा” सालों से जारी है।”

माओ उग्रवाद 

राज्य में मुर्शिदाबाद जिले के बाद पुरुलिया ही बीड़ी बनाने वालों के लिहाज से सघन जिला है, जहां 1.3 लाख बीड़ी कामगार रहते हैं। दिलचस्प है कि पुरुलिया जिले का यह हिस्सा कुछ साल पहले माओ उग्रवाद का गवाह रहा है, जिसने यहां के बीड़ी यूनियन के नेता भीम कुमार का सिर कलम करने के लिए ईनाम देने की घोषणा कर दी थी। कमजोर से दिखने वाले 70 वर्षीय कुमार ने न्यूजक्लिक को बताया  कि उग्रवाद के दौरान गांववालों ने ही एकाध मौकों पर उनकी जान बचाई थी। तब यूनियन इस कदर ताकतवर थी कि जिले में लोकतांत्रिक अभियान को भी बीड़ी वर्कर्स फेडरेशन की इस मजबूती से लाभ मिला था।

'भूत' का भय 

दिलचस्प है कि इस क्षेत्र के बीड़ी कामगारों को भूतों के मिथ से मुकाबला करना पड़ा है, जो लोकतांत्रिक अभियानों के दबाव पर खोले गए बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन को बंद कराने की कोशिश कर रहे थे। यह ‘भूत की कहानी’ आज से 45 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी, जब ट्रेन ड्राइवर्स ने कई लोगों के ट्रेन से कट जाने की बात कही लेकिन खोजने पर आसपास कोई नहीं मिलता था। भीम कुमार के अनुसार, छऊ नर्तकों के मास्क लगा कर कुछ उपद्रवी लोग रेलकर्मियों को डरा दिया करते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि रेलवे स्टेशन को बंद कर दिया गया और इसके अगले स्टेशन कोटशिला से कामकाज किया जाने लगा। लेकिन अभी हाल ही में बीड़ी कामगार इस भय के भूत को भगाने में कामयाब हो गए और स्टेशन को आम जनता के उपयोग के लिए खोल दिया गया। 

माकपा के पूर्व सांसद बासुदेव आचार्य ने गांववासियों से लदी दो ट्रेन चलवाई थी, इनमें पहली ट्रेन बेगुकोडोर से चली थी, जबकि भीम कुमार और बीड़ी कामगार यूनियन ने विज्ञान मंच के विशेषज्ञों के सहयोग से लोगों के दिमाग में बैठे भय के भूत को दूर करने में अग्रिम भूमिका निभाई थी। इसके फलस्वरूप, बीड़ी कामगारों के फेडरेशन के सौजन्य से बेगुनकोडोर अब भुतहा स्टेशन नहीं रहा। 

पुरुलिया जिले में बीड़ी कामगारों के कई सारे मामले हैं। जिले में एक ही बीड़ी अस्पताल है, जिसमें एक डॉक्टर तो हैं पर कोई फार्मासिस्ट नहीं हैं। जब इस संवाददाता ने बताया कि वह कोलकाता में रहते हैं तो वहां जमा महिला बीड़ी कामगारों ने हमसे निजाम पैलेस में स्थित आयुक्त कार्यालय से संपर्क करने का अनुरोध किया ताकि उनका अस्पताल ठीक तरीके से संचालित हो सके। यह भी कि कामगार बिना किसी प्रोविडेंट फंड के काम करते हैं और कइयों के पास तो पहचान पत्र भी नहीं हैं। 

जिले के बीड़ी कामगारों को कई बार अपनी वितरण प्रणाली को ठप करना पड़ा था, जिसके बाद कुछ फैक्टरी मालिकों ने मजदूरी संशोधन के लिए बुलाई गई द्विपक्षीय बैठक में भाग लिया एवं मजदूरी में मात्र 23 रुपये की बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा। हालांकि बैठक में ज्यादातर मालिक गैरहाजिर थे और वहां मौजूद में से थोड़े ने ही प्रस्ताव पर हामी भरी थी। इस प्रकार, कामगार वाजिब मजदूरी के अपने हक-हकूक लिए लड़ाई जारी रखे हुए हैं। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

West Bengal: About 1.5 Lakh Bidi Workers from Purulia Lead Movement for Wages

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