बात बोलेगी: बंगाल में भाजपा की बढ़त के लिए ममता भी दोषी
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चारों तरफ से घेरकर अपनी विधानसभा सीट को बचाने के लिए नंदीग्राम में ही कैंप करने के लिए मजबूर कर दिया है। इस पूरे इलाके में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण डराने वाला है। जिस तरह से नंदीग्राम के बाजार में हमें बांग्ला में जय श्रीराम के छोटे-छोटे झंडे दिखाई दिए, लोग हिंदू हैं तो हिंदू पार्टी को वोट देंगे कहते नज़र आए, उससे आभास हुआ कि तृणमूल कांग्रेस की जमीन खिसक गई है। इसी दरम्यान ममता बनर्जी और नंदीग्राम में भाजपा में शामिल हुए पुराने तृणमूल नेता का जो ऑडियो क्लिप वायरल किया गया है, उसने भी ममता के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उधर, आज फिर भाजपा नेता, देश के गृह मंत्री अमित शाह ने दोहराया कि उनकी पार्टी 200 सीटें बंगाल में जीत रही है।
एक और बात यहां स्पष्ट करनी ज़रूरी है कि बंगाल की इस गति के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ही जिम्मेदार हैं। उन्होंने अपने कारनामों से ही यह स्थिति पैदा की। भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी को सत्ता का जिस तरह से पश्चिम बंगाल में पर्याय बना दिया गया, उसी की वजह से ममता पर जब भाजपाई हमलावर होते हैं, तो ममता को वह समर्थन नहीं मिलता है, जो उन्हें पहले मिला करता था। जिस तरह से ममता बनर्जी के नेतृत्व में वाम दलों के कार्यकर्ताओं को निशाने पर लिया गया, उन पर बर्बर हिंसा की गई—उसने बहुत गहरे ज़ख्म दिये हैं, जिन्हें सिर्फ भाजपा विरोध के नाम पर ममता बनर्जी इन चुनावों में भर पाने में असमर्थ नजर आ रही हैं।
नंदीग्राम में बाजार में दुकानदार पार्थ घोष ने न्यूज़क्लिक को बताया, ममता ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। हमारे नेता दादा हैं (शुवेंदु अधिकारी) दीदी नहीं। दीदी को अब याद आया कि जनता के द्वार पर सरकार को जाना चाहिए, पहले तो उनके भतीजे के पास ही थी सरकार। जनता को परिवर्तन चाहिए। नंदीग्राम से हम ममता को हरा कर दिखाएंगे। अब बड़ा दिलचस्प दृश्य यह है कि कल तक जो लोग तृणमूल के नेता और कार्यकर्ता थे, अब वे ही भाजपा का नारा लगाते हुए, भाजपा का झंडा लगा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को भाजपामय बनाया है, उससे बंगाल भाजपा तृणमूल नेताओं से अटी पड़ी है। नंदीग्राम में मोची की छोटी सी दुकान चलाने वाले प्रदीप मंडल ने कहा, सब पैसे औऱ ताकत का खेला है। खेला तो अभी हो रहा है। दीदी पर भरोसा है हमें। पर वह अकेले पड़ गई हैं। मुश्किल तो है। अगर वह हार गईं तो हम लोगों का जिंदा रहना मुश्किल होगा। बहुत डर है यहां।
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उनकी बात में दम है। इस डर का आभास नंदीग्राम की सड़कों पर होता है। भीषण तनाव है यहां। भाजपा के पक्ष में जुटे लोगों के बीच किसी तृणमूल समर्थक की आवाज निकलनी मुश्किल है। बाहर अध्यापन कर रहे एक व्यक्ति ने, नाम न जाहिर करते हुए कहा, यह डर की राजनीति ममता की देन है। पहले इसी तरह से वह अपने विपक्षी (वाम दलों) के समर्थकों को निशाने पर लेती थी। हिंसा का खुला खेल होता था, जान जाती थी। आज विडंबना है, उनका ये खेला करने वाले लोग (शुवेंदु अधिकारी) उन्हीं से खेला कर रहे हैं।
अगर तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं का प्रोफइल देखा जाए तो वे सब बाहुबली, घोटालों से घिरे लोग हैं। इन सबके बारे में अनगिनत कहानियां हैं, जो स्थानीय लोग बताने का आतुर होते हैं, कि कैसे फलां नेता को ईडी का डर दिखा कर, किसी की सीडी को पब्लिक करने का खतरा दिखाकर पाला बदलवाया गया। ऐसी कहानियों के सिर-पैर तो होते नहीं, लेकिन जनता-जनार्दन को लगता है कि वह सब जानती है। एक बार और जो यह चुनाव स्थापित कर रहे हैं, वह यहां कि पैसे की महिमा अपरंपार है और इसमें भाजपा का कोई तोड़ नहीं है।
(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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