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सियासत: कांग्रेस में ‘डबल रोल’ क्यों चाहते हैं अशोक गहलोत?

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव करीब आते ही राजस्थान की राजनीति गर्म हो गई है, अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने दबी ज़ुबान से संकेत देने शुरू कर दिए हैं कि वो पीछे हटने वाले नहीं हैं।
Ashok

कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश के एक बयान ने पार्टी के भीतर बहुत बड़े बदलाव के संकेत दे दिए हैं। यानी लगभग तय चुका है कि पार्टी की कमान अब ग़ैर-गांधी सदस्य के हाथों में जाने वाली है। अगर ऐसा होता है तो 24 सालों बाद ऐसा होगा जब कांग्रेस का अध्यक्ष कोई ग़ैर-गांधी सदस्य होगा।

दरअसल जयराम रमेश ने कहा है कि राहुल गांधी नामांकन के दौरान भारत जोड़ो यात्रा पर रहेंगे और वे दिल्ली नहीं जाएंगे, जिसके बाद ये लगभग तय हो गया है कि वो पार्टी की कमान नहीं संभालेंगे। हालांकि राहुल 23 सितंबर को भारत जोड़ो यात्रा से ब्रेक लेकर अपनी मां सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली आएंगे।

ये कहना ग़लत नहीं होगा कि पार्टी में ग़ैर-गांधी अध्यक्ष वाला बदलाव बहुत नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी साबित हो सकता है, तो बहुत से नेता और कार्यकर्ता ये सोचने में लगे होंगे कि नया अध्यक्ष उनकी सुनेगा ये नहीं। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कांग्रेस के भीतर पिछले लंबे वक्त से वरिष्ठ नेताओं के आपसी मतभेद सामने आते रहे हैं। यानी ग़ैर-गांधी परिवार के अध्यक्ष के लिए आगे का सियासी सफर आसान होने वाला नहीं है, और इसके बाद ऐसा भी हो सकता है कि पार्टी को भी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ जाए। इसकी बानगी फिलहाल राजस्थान में देखने को मिलने भी लगी है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री ने प्रदेश में विधायकों के साथ बैठक कर ये साफ कर दिया कि वो अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करेंगे। जिन्हें टक्कर देने के लिए शशि थरूर सामने हो सकते हैं। हालांकि गांधी परिवार के करीबी होने, सबसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता होने और हिंदी पट्टी में अच्छी पकड़ रखने के कारण उनकी दावेदारी ज्यादा मज़बूत दिखाई पड़ रही है।

और अगर अशोक गहलोत पार्टी के अध्यक्ष बन जाते हैं, फिर राजस्थान में असली खेल देखने को मिलेगा। क्योंकि मुख्यमंत्री पद के लिए लंबे वक्त से इंतज़ार कर रहे सचिन पॉयलट अपने हाथ से ये मौका जाने नहीं देंगे, और अशोक गहलोत इशारों-इशारों में ये कह चुके हैं कि राजस्थान छोड़ेंगे नहीं, जिसका मतलब साफ है कि वो अपने किसी क़रीबी को अपनी जगह देना चाहेंगे।

हालांकि पिछले दिनों सचिन पायलट ने जिस तरह से हाईकमान के साथ अपनी करीबियां दिखाई हैं, राहुल गांधी के पक्ष में बयान दिए हैं, उससे यही ज़ाहिर होता है कि हाईकमान का प्लान पहले से तय है, कि राजस्थान में मुख्यमंत्री सचिन पायलट को बनाना है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पिछले दिनों राहुल ने सचिन को पद के लंबे इंतज़ार के साथ ख़ुद की श्रेणी में रखा था। और अब सचिन पायलट नॉमिनेशन से पहले भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी से मिलने भी पहुंच गए हैं। ऐसे में सचिन पायलट की जनता के बीच स्वीकार्यता और लोकप्रियता को देखते हुए हाईकमान उन पर दांव खेल सकते हैं। लेकिन इसकी संभावना फिलहाल कम दिखाई दे रही है। यहां एक बात ग़ौर करने वाली और है कि अगर पायलट मुख्यमंत्री बन भी जाते हैं तो क्या अध्यक्ष रहते हुए गहलोत उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने देंगे? वहीं ऐसा होने पर राजस्थान कांग्रेस की स्थिति पंजाब जैसी न हो जाए हाईकमान इसका भी विशेष ध्यान रखेगा।

अब सवाल आता है कि अगर गहलोत के न रहते पायलट को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा, तो कौन होगा मुख्यमंत्री कौन बनेगाऐसे में निगाहें गहलोत के करीबियों की ओर जाती हैं, जो उनके प्रति वफादार हों और राजनीति में तेज़-तर्रार नेता वाली छवि रखते हों। हम तेज़-तर्रार की बात इसलिए कह रहे हैं ताकि पायलट का विरोध नेता के काम पर भारी न पड़े। यानी अब जो नाम सामने आते हैं वो यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल और विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के हैं। ऐसे में कभी-कभी बीडी कल्ला का भी नाम सुनाई दे जाता है।

वैसे तो इन तीनों में सबसे ज़्यादा सीपी जोशी का नाम लोगों की ज़ुबान पर चढ़ा हुआ है, लेकिन अनुभव के कारण शांति धारीवाल का नाम ज्यादा आगे चल रहा है।

अगर इन तीनों में किसी को अध्यक्ष चुना जाता है, तो हो सकता है कि हाईकमान सचिन पायलट को राजस्थान के अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी सौंपे दे और उनसे कहे कि 2023 का विधानसभा चुनाव आपके नाम पर लड़ा जाएगा। लेकिन इन मौके पर पायलट पंजाब का उदाहरण दे सकते हैं, जब सिद्धू को भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया था।

हालांकि यहां जो ध्यान रखने वाली हैं वो ये कि अगर पायलट को प्रदेश का अध्यक्ष बनाया जाता है तो गोविंद सिंह डोटासरा को अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ जाएगा, और ये रिस्क कांग्रेस लेने से इसलिए बचेगी क्योंकि डोटासरा के हटने के बाद कोई जाट चेहरा कांग्रेस में पद पर नहीं रह जाएगा।

लेकिन ये सब तब होगा जब सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष के लिए मानेंगे, क्योंकि जगज़ाहिर है कि साल 2018 के चुनाव के बाद से सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर रार रही है, जिसमें पायलट पीछे रह गए। लंबे वक्त के बाद अब मौका आया है तो सचिन पायलट इसे इतनी आसानी से जाने नहीं देंगे।

सचिन पायलट क्यों नहीं मानेंगे इसका एक उदाहरण जनता 2020 में हुए सियासी बवाल के ज़रिए देख चुकी है, जब अपनी सरकार से नाराज होकर वो मानेसर चले गए थे। तब वे प्रदेश के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री दोनों थे।

पुराने राजनीतिक संकटों को देखते हुए अगर हाईकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना भी दे, तो पायलट के लिए 2023 को लेकर बहुत बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि उन्हें हर हाल में ये चुनाव जीतकर देना ही होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनके राजनीतिक भविष्य पर एक धब्बा लगना तय है। हालांकि सचिन पायलट अगर अच्छी सीटें भी ले आते हैं तो 2028 के लिए उनका पक्का हो जाएगा।

क्योंकि सभी जानते हैं कि राजस्थान का राजनीतिक ऊंट हर पांच साल पर सियासी करवट लेता ज़रूर है। यानी ये भी एक बड़ा कारण हो सकता है कि सचिन पायलट की ओर से मौका नहीं छोड़ने का, क्योंकि अगर 2023 में पार्टी हार गई तो सचिन पायलट के सपने पांच साल के लिए और ठहर जाएंगे। ऐसे में सचिन मानने वाले नहीं है। इसके संकेत उनके एक बयान से सामने आए हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि कांग्रेस में ‘एक व्यक्ति को दो पद’ नहीं चलेगा। सचिन पायलट का ये बयान तब आया है जब गहलोत ने इस बात का इशारा किया था कि वो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी राजस्थान नहीं छोड़ेंगे। लेकिन अगर हाईकमान एक व्यक्ति एक पद’ का फॉर्मूला लागू कर देते हैं, तो गहलोत के सपनों पर पानी फिर जाएगा।

फिलहाल दिल्ली से लेकर राजस्थान तक, कांग्रेस में होने वाले बदलावों के लिए ज्यादा दिनों का इंतज़ार नहीं करना है, क्योंकि अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को वोटिंग होगी और 19 अक्टूबर को काउंटिंग होगी। वहीं इससे पहले 24 सितंबर से 30 सितंबर तक नॉमिनेशन होगा। जिसके लिए अभी तक अशोक गहलोत और शशि थरूर के नाम सामने आए हैं।

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