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कोविड से सबसे अधिक प्रभावित इन 5 देशो में एक जैसा क्या है?

हाँ, उन देशों के पास जीवन की वास्तविकता से बड़े नेता हैं, लेकिन महामारी ने बड़ी भारी क़ीमत लेकर उनकी खामियों को उजागर किया है।
कोविड से सबसे अधिक प्रभावित इन 5 देश

कुछ दिन पहले, भारत भी कोविड-19 के कुल मामलों के संदर्भ में दुनिया शीर्ष पांच देशों में शामिल हो गया है। इस क्लब के अन्य सदस्यों में अमेरिका हैं जो इस माहामारी का चौंका देने वाली संख्या के साथ नेत्र्तव कर रहा है इसके बाद ब्राजील, रूस और ब्रिटेन आते हैं [नीचे चार्ट देखें से आगे चल रहा है। [ डाटा JHU और MoHFW से लिया गया है]। आने वाले दिनों में भी यह स्थिति बदलने की संभावना कम है। छह से दस की ऊपरी संख्या में चार यूरोपीय देश शामिल हैं जहां महामारी पहले से ही अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी है और - जब तक कि संक्रामण की दूसरी लहर नहीं आती है – इनके भी कोई उल्लेखनीय वृद्धि दिखाने की संभावना नहीं हैं। शीर्ष दस में ब्राजील के अलावा एकमात्र अन्य लैटिन अमेरिकी देश पेरू है, जहां स्थिति खतरनाक है और अभी भी वह कोविड मामले में आगे बढ़ सकता है। विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका के अन्य देशों में संभवतः विस्फोटक वृद्धि हो सकती हैं। लेकिन आज का सच यही है।

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यह सिर्फ एक संयोग नहीं है कि ये शीर्ष पांच वही हैं जो आज हैं। सभी को महामारी के साथ तेजी से लड़ने में और वैज्ञानिक रूप से जूझने में समस्या का सामना करना पड़ा है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने इस बात को मानने से ही इनकार कर दिया था कि कोरोनोवायरस अमेरिका के लिए खतरा है,  एक समय तो उन्होने कह दिया कि कोई चमत्कार हो रहा है। बाद में उन्हे बड़े भारी दिल के सतह इस तथ्य से सुलह करने पड़ी कि महामारी ने अमेरिका पर कड़ा हमला बोल दिया है, बढ़ते मामलों और मौतों के घातक घालमेल का विस्फोट हुआ और अब यह दुनिया में करीब 20 लाख केसों का सरताज बना गया है जो दुनिया के एक चौथाई कोविड केसों के करीब है।  ब्रिटेन के प्रधान मंत्री जॉनसन ने भी कार्यवाही में देरी की, कम समय के लिए ही सही उन्होने भी सख्त प्रतिबंध नहीं लगाए और और न ही कोई बेहतर संदेश जारी किए, साथ ही हर्ड इम्यूनिटी की अवधारणा को मान लिया गया जिसमें वायरस स्वाभाविक रूप से विकसित होने पर कुदरती तौर पर खत्म हो जाता है, लेकिन यहाँ भी जब केस बढ़े तो दोगुनी ताकत के साथ वायरस पर हमला बोला गया।

इस देरी ने ब्रिटेन में मृत्यु दर को बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है- जिसमें 40,000 से अधिक की मौत हुई है जिसमें बुजुर्गों की संख्या काफी है। ब्राज़ील में इस बेवकूफी का नेतृत्व जायर बोलसनारो कर रहे हैं, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से मास्क पहनने से इनकार कर दिया था, महामारी और उन लोगों का उपहास उड़ाया जो उनसे तेज़ी से कार्रवाई का आग्रह कर रहे थे, और वे इस तरह से व्यवहार कराते रहे मानो कि कुछ हुआ ही न हो, जबकि साओ पाउलो के बाहर बड़े पैमाने पर कब्रिस्तान भर रहे थे। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी शुरुआती दिनों में उदासीनता दिखाई, तैयारियां भी सुस्त थीं और कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली इस धमाके के लिए तैयार नहीं थी। फिर उछाल आया और मामलों ने रफ्तार पकड़ ली, जिससे दूर के इलाके भी प्रभावित हुए।

और भारत में, हमारे पास प्रधानमंत्री मोदी है जिन्होने कुछ कदम उठाए जिसमें उड़ानों को रद्द कर दिया गया था, वह भी जनवरी के अंत में पहले मामले की पुष्टि होने के 53 दिन बीत जाने के बाद। 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई – उन्होने भी लॉकडाउन के अलावा व्यावहारिक रूप से कुछ नहीं किया, यहाँ देश का नेतृत्व कुछ दूसरे ही रास्ते पर चला गया। मोदी के भाषणों से यह बात स्पष्ट रूप से उभरी कि इस घातक वायरस से लड़ना मुख्य रूप से आम लोगों का ही काम है और उनका ही दायित्व भी है। उन्होने कहा कि लोग संयम बरतें और संकल्प लें और मोर्चे पर लड़ रहे स्वस्थ्य कर्मियों की बर्तन और थाली पीटकर या शंख बजाकर सराहना करें। उस समय, भारत में लगभग 400 के पाए जा चुके थे। मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद आदि कई शहरों में तबाही मचाने के बाद अब यह संख्या करीब 2 लाख 70 हज़ार को पार कर गई है।

इन सभी देशों के पास इस तरह के सत्तावादी नेता हैं जो मानते हैं कि वे सब कुछ जानते हैं और सब कुछ वैसा ही चलना चाहिए, जैसा वे चाहते हैं। यहां तक कि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की राय को भी दरकिनार कर दिया गया है। वैश्विक अनुभव से व्यवस्थित ढंग से कुछ नहीं सीखा है। कुछ लोगों ने तो अपने विचित्र किन्तु सत्य सनकीपन को पूरी तरह से सार्वजनिक किया जिसमें बोलसानारों और ट्रम्प शामिल हैं। अन्य लोग फोटोबाज़ी और अधूरे आंकड़ों से अपना रास्ता निकालते रहे जिनकी वे कथित रूप से गलत व्याख्या करते रहे हैं - जैसे कि मोदी और पुतिन, और यहां तक कि जॉनसन भी इस मुहिम में शामिल हैं।

लेकिन जिस तरह से इन नेताओं ने सत्ता को अपने हाथों में केंद्रीकृत किया और असंतोष, या यहां तक कि विभिन्न विचारों की अवहेलना की और अपनी मजबूरी के चलते बड़े झूठ बोले। वे तानाशाह और असहिष्णु हैं। वे अपने साथ जितनी शक्ति रख सकते हैं, उसे बनाए रखने के लिए लड़ते हैं, उसे केवल तब छोड़ते हैं जब चीजें उनके हाथ से निकल जाती हैं। यानि हालत बिगड़ते ही वे किसी और को दोषी ठहरा देते है। अब देखो, मोदी सरकार ने किस तरह से राज्य सरकारों को खराब होते हालात से निपटने के लिए कह दिया है, वह भी बिना किसी आर्थिक मदद के।

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता की ये नेता लोकप्रिय भी थे। शायद यही कारण है कि उन्हें अपनी मर्ज़ी करने का दम मिला। ये कहा जा सकता है कि इस राजनीतिक लोकप्रियता ने भी - वास्तव में, इसे बढ़ावा दिया है– और चाटुकारों और हां में हां मिलाने वाले लोगों की वजह से भी ऐसा हुआ। आप शायद इस तरह से चुनाव तो जीत सकते हैं, लेकिन आप महामारी से नहीं लड़ सकते खासकर तब जब कोई भी महान नेता से असहमत होने की हिम्मत नहीं जुटा  पाता है।

इशारा यह है कि अब ये तिलस्म टूट रहा है। ट्रम्प के अनुमोदन की रेटिंग आंशिक रूप से कम हो गई है, क्योंकि मिनियापोलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या से निपटने के मामले में, और साथ ही कोविड की वजह से होने वाली बहुत अधिक मौतों के कारण भी उनकी प्रसिद्धता नीचे की तरफ है। बोल्सनारो भी लोकप्रियता और जनुत्तेजना पर सवार होकर आए थे, लेकिन जनता उन्हे बढ़ती मौतों के लिए जिम्मेदार मान रही है और अब वे भी जनता का समर्थन खो रहे हैं। रूस में पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं, लेकिन वहां की गति अलग है क्योंकि सत्ता को चुनौती देने वाले वहाँ अभी भी उभर ही रहे हैं और उन्होंने दो दशकों से अपनी शक्ति को लगातार मजबूत किया है। जॉनसन बेशक अभी भी कुछ लोकप्रिय हैं क्योंकि उन्होंने हाल ही में ब्रेक्सिट और चुनाव दोनों को जीता है। लेकिन महामारी की आपदा को समझाने में उसे कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है।

भारत में मोदी, अब तक, महामारी पर छाए हुए थे, मुख्य रूप से भारत में अपेक्षाकृत कम मौते भी इसका कारण हो सकती है। लेकिन उन्होंने भारत में कृषि, औद्योगिक संबंधों, कॉर्पोरेट कराधान, विदेशी निवेश नीतियों और सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश में बहुत ही अलोकप्रिय परिवर्तनों को आगे बढ़ाया है। और, लॉकडाउन ने उस अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है जो पहले से ही लड़-खड़ा रही थी। बेरोजगारी लगभग 24 प्रतिशत की दर तक बढ़ गई है, सख्त राजकोषीय निज़ाम में किसी भी बड़े बदलाव से इंकार कर दिया है, इन सभी संकेतों से ऐसा लगता है कि भारत एक कठिन भविष्य की तरफ बढ़ रहा है।

कोविड के 5 के बड़े क्लब में अपने दोस्तों की तरह, मोदी भी बड़ी तेजी के साथ निराश लोगों का सामना कर रहे हैं – और इसलिए उन्होंने पहले से ही अपनी सभी चतुर रणनीतियों और धोखाधड़ी का उपयोग करना शुरू कर दिया है।

[डाटा न्यूज़क्लिक की डाटा एनालिटिक्स टीम के पीयूष शर्मा ने जुटाए हैं]

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Big 5 of COVID: Guess What is Common to These Top Affected Countries?

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