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पुलिस कार्रवाई में नफ़रत क्यों दिखती है?

दिल्ली पुलिस के जो वीडियो सामने आ रहे हैं, उन्हें देख कर कहा जा सकता है कि वो सिर्फ़ आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं, बल्कि वो उस नफ़रत के तहत भी काम कर रहे हैं जो बचपन से उनके ज़ेहन में घोली गई है!
Delhi Violence

दिल्ली में जो हिंसा हुई है उसमें अब 34 लोगों की मौत होने की ख़बर है, और 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं। हिंसा कब शुरू हुई, किसने शुरू की, किस धर्म के लोग ज़्यादा मरे, किस रंग के झंडे ज़्यादा लहराए गए, कौन से नारे ज़्यादा गूँजे; यह तुलना करना अब बे-मानी सा हो गया है। पागल भीड़ की हिंसा के बाद पीड़ित वर्ग सुरक्षा के लिए सुरक्षा बलों से सहारा लेता है। हिंसा के दौरान या हिंसा के बाद गोली खाने वाले, हाथ कटवाने वाले के मन में ये आस होती है कि पुलिस उसकी मदद करेगी। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने 26 फरवरी को कहा भी कि पुलिस के व्यवहार में पेशेवर रवैये की कमी है।

कोर्ट की सुनवाई के दौरान जब भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर एफ़आईआर करने की मांग याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की तरफ़ से की गई तो दिल्ली पुलिस ने कहा कि उसने अभी कपिल मिश्रा का वीडियो नहीं देखा है। जज ने कोर्ट में ही वीडियो चलाने को कहा।

"दिल्ली पुलिस ने वीडियो नहीं देखा" सुनने में हास्यास्पद लगने वाली ये बात दरअसल कितनी संवेदनहीन है, इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है। कपिल मिश्रा ने अपने बयान में दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के साथ खड़े हो कर उनको अल्टिमेटम दिया था कि अगर वो 3 दिन में जाफराबाद की सड़क खाली नहीं करवाते हैं, तो वो ख़ुद कोई क़दम उठाएंगे। बयान को 3 दिन भी नहीं गुज़रे और पूरे उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा और आगज़नी हो गई। इस पूरे प्रकरण में सवाल उठ रहे हैं कि दिल्ली पुलिस की भूमिका क्या रही, और लोगों को सुरक्षा देने में इतनी देर क्यों हुई।

हिंसा के जैसे वीडियो सामने आ रहे हैं, जिसमें दिल्ली पुलिस हिंसा करने वालों को संरक्षण दे रही है और साथ ही ख़ुद भी लोगों को पीटते हुए कह रही है, "राष्ट्रगान सुना" , "आज़ादी चाहते हो?"

सिर्फ़ उत्तर-पूर्वी दिल्ली की हिंसा की बात करें तो पुलिस के जवानों के सामने गोलियां चली हैं, बम फेंके गए हैं और दिल्ली पुलिस ने क्या किया है? कुछ नहीं।

जामिया-जेएनयू-एएमयू

जामिया में दिसम्बर के महीने में सीएए का विरोध करने वाले छात्र-छात्राओं पर पुलिस कार्रवाई के वीडियो हाल ही में 17 फरवरी को सामने आए थे। इन वीडियो में पुलिस के उन सभी दावों का झूठ सामने आ गया था जिसमें पुलिस ने कहा था कि उसने जामिया के अंदर कोई तोड़-फोड़ नहीं की है।

जामिया हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस ने लोगों के घरों में घुस कर उन्हें मारा था।

जामिया के छात्रों ने अपने बयान में कहा था कि पुलिस उन्हें "जय श्री राम" बोलने के लिए कह रही थी।

इसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिसम्बर में हुई हिंसा के वीडियो में देखा गया था कि पुलिस ने "जय श्री राम" के नारे लगाए थे।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के हॉस्टल में हुई हिंसा के दौरान भी दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा पर न्यूज़क्लिक के पत्रकार रवि कौशल ने लिखा है, "दंगाई फल लूट कर लाते और पुलिस और अर्ध सैनिक बलों को खिलाने लगे। यहाँ पता चला कम्प्लिसिटी क्या होती है. फिर कुछ पुलिस वालों के पास गया तो पता चला सांप्रदायिकता इनमें कितनी गहरी उतर चुकी है। एक पुलिस वाला कहता कि अगर ये दंगाई न होते तो सामने वाले दंगाई उन्हें मार देते।"

दिल्ली पुलिस पर सीधा आरोप है कि उसने जामिया-एएमयू और उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसक कार्रवाई की है। वह कार्रवाई मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई है, और दिल्ली पुलिस ने एक पुलिस अधिकारी की तरह नहीं, बल्कि एक हिन्दू नौजवान की तरह उन पर हमला किया है। इसकी वजह क्या है? क्या यह सिर्फ़ आदेश पालन करने का मसला है या यह सिर्फ़ गुंडों को बचाने का मामला है? अगर पुलिस हिंसा की तस्वीरों को देखा जाए तो ऐसा नहीं लगता है।

पुलिस में शामिल जवान एक सिपाही, हवलदार होने से पहले एक आम नागरिक हैं। वो उसी परिपेक्ष्य से निकले हैं जिससे एक आम हिन्दू निकला है। मुसलमान छात्रों/प्रदर्शनकारियों को "आज़ादी चाहिए तुझे? कह कर मार देने के लिए किसी आदेश की ज़रूरत नहीं है।

देश में इस समय एक मुस्लिम विरोधी भावना ज़ोरशोर से चल रही है। लेकिन यह भावना, यह नफ़रत कोई नई नहीं है। ऐसा नहीं है कि बीजेपी सरकार के दौरान हुई हिंसा से ही आम हिन्दुस्तानी के मन में मुस्लिम विरोधी भावना पैदा हुई है, बल्कि एक आम परिवार में यह नफ़रत हमेशा से घोली जाती रही है।

हुआ सिर्फ़ यह है कि पिछले 6 साल में इस नफ़रत को बल मिल गया है, और इस नफ़रत के नाम पर हिंसा कर देना "नॉर्मल" हो गया है।

दिल्ली पुलिस की हिंसा में शायद यही संदेश दिखता है कि देश में आज मुसलमानों को मारना सबसे आम बात है।

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