Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

क्यों बना रही है सरकार कृषि संबंधित वृहद डेटाबेस?

सरकार द्वारा पारित किये गए तीन किसान कानूनों और ऐग्रिस्टैक के बीच अंतर-संबंध काफी स्पष्ट है। कृषि कानूनों की भांति यह भी भारतीय कृषि का कॉरपोरेट अधिग्रहण होगा।
Corporate of Indian Agriculture
कार्टून साभार: DownToEarth

20 सितम्बर 2021 को मोदी सरकार ने सुनिश्चित कर दिया कि वह हर किसान को एक यूनीक आइडेंटिटी नम्बर (UIN) देगी- ठीक वैसे ही जैसे आधार नम्बर दिया गया था। उसे यूनीक फारमर आइडेंटिटी (FID) कहा जाएगाकेवल इस नम्बर से किसान सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकेंगे। ये एफआईडी भारतीय कृषि व किसानों के एक वृहद डेटाबेस में एकीकृत किये जाएंगेजिसे ऐग्रिस्टैक के नाम से जाना जाएगा। ऐग्रिस्टैक को भारतीय कृषि के डिजिटलाइज़ेशन की विशाल योजना के तहत कृषि विभाग की मदद से विकसित किया जा रहा है।

ऐग्रिस्टैक का प्रयोग करने वाले किसानों को डिजिटल सेवा प्रदान करने के लिए सरकार अब तक 9 कम्पनियों के साथ एमओयू कर चुकी है। ये हैं माइक्रसॉफ्टसिसकोअमेज़न और ईएसआरआई टेक्नोलॉजीज़ जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियांऔर भारतीय कॉरपोरेट घरानेजैसे मुकेश अम्बानी के जियो प्लेटफॉर्मटाटा का स्टार ऐग्रीबाज़ार और उनकी रिटेल शाखा इन्फिनिटीजो ग्लोबल रिटेल कम्पनी वॉलमार्ट का जूनियर पार्टनर है। इसके अलावा रामदेव के पतंजलि और एनसीडीईएक्स (NCDEX) -मार्केट्सजो भारत में कामॉडिटीज़ फ्यूचर्स एक्सचेंज (Commodities Futures Exchange) संचालित करने वाली एक निजी कम्पनी है। यह इत्तेफाक से ऐग्री फ्यूचर्स मार्केट्स (Agri Futures Markets) में लाखों करोड़ों के भारतीय और विदेशी वित्तीय पूंजी की वित्तीय सटृटेबाज़ी का संस्थागत केंद्र है।

क्या है ऐग्रिस्टैक?

दरअसल है क्या ऐग्रिस्टैककिसानों से वह किस प्रकार का डाटा एकत्र करेगा और उनको वह किस किस्म की डाटा सेवा प्रदान करेगा?

सरकार पहले तो किसानों सेशुरू से अन्त तकउनके संपूर्ण कृषि कार्य प्रक्रियाओं के बारे में डाटा एकत्र करेगी। इसमें शामिल होंगे जिस प्रकार के अनाज वे उपजाते हैंजो बीज वे इस्तेमाल करते हैंअन्य क्या लागत सामग्री वे प्रयोग करते हैंउनके पास सिंचाई का कौन सा साधन हैवे कौन से कीटनाशक का प्रयोग करते हैंउनके खेतों में मिट्टी कैसी हैउनके क्षेत्र में मौसम कैसा हैप्रति एकड़ उनका उत्पादन कितना हैकृषि करने की संपूर्ण कीमत और अलग-अलग सामग्रियों की कीमतकृषि और कृषि से जुड़ी गतिविधियों से आने वाली कुल आय कितनी हैइत्यादि। सरकार उनके कर्ज की आवश्यकताओं और ऋणग्रस्तता आदि के बारे में भी डाटा एकत्र करेगी।

इस डाटा को उक्त कम्पनियों के साथ साझा किया जाएगाजिनके साथ सरकार ने एमओयू पर हस्ताक्षर किये हैंकथित तौर पर गुप्त (confidential) आधार पर। वर्तमान समय में एमओयू पायलट प्रोजेक्ट्स के लिए किये गए हैंपर आने वाले समय में उन्हें स्थायी लाइसेंसधारी समझौतों का रूप दे दिया जाएगा।

इसके बदले कम्पनियां किसानों को सलाहकर्ताओं के बतौर कृषि कार्य के लिए आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराएंगी। वे स्थानीय मौसमअनाज के चयन के हिसाब से सिंचाईउर्वरक का इस्तेमालअन्य लागत सामग्री के प्रयोग की जानकारी के साथ कितना प्रयोग करना है और किस समय करना है सम्बंधी जानकारी उपलब्ध कराएंगीजिसके अनुसार प्रेसिशन फार्मिंग (precision farming) करनी होगी। वे संभावित कीटों व अन्य विनाशकारी जीवों के हमलों और अनाज को लगने वाली बीमारियों के बारे में एलर्ट करेंगी और उनसे निपटने के तरकीब बताएंगी।

ऐग्रिस्टैक के अंतरगत सरकार इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ यंत्र भी लगाएगी। इसके मायने होंगे कि कृषि यंत्रों में डिजिटलाइज़्ड (digitalised) निगरानी यंत्र लगेंगे और खेतों में मवेशियों की संख्याकृषि यंत्र और उनके प्रयोग पर डाटा एकत्र करेगी। इस तरह जो डाटा इनपुट मिलेगासरकार उसके आधार पर किसानों को सलाह देगी कि इनका सही इस्तेमाल कैसे हो।

संक्षेप में कहें तो ऐग्रिस्टैक कृषि विस्तार सेवाओं या उन फार्म विस्तार (extension services) की जगह ले लेगाजो हरित क्रान्ति के समय विकसित किये गए थे। इससे लाखों विस्तार सेवा कर्मचारियों का रोज़गार छिन जाएगा।

इन कम्पनियों के द्वारा जो डिजिटल प्लैटफार्म शुरू किये जाएंगेवे आदान-प्रदान वाले, (interactive platform) होंगे जहां किसान सवाल पूछ सकेंगे और विशेषज्ञों से उत्तर प्राप्त कर सकेंगे। उन्हें सरकारी स्कीमों के विषय में जानकारी मिलेगी और अप्लाई करने के लिए फॉर्म भीताकि वे लाभों के लिए आवेदन डाल सकें। किसानों के लिए जो भी योजनाएं हैंवे इन्हें प्लैटफॉर्मों के माध्यम से चैनलाइज़ की जाएंगी और यह एफआईडी के माध्यम से होगी। इसी तरह से प्रत्यक्ष लाभ वाली सरकारी स्कीमेंजैसे पी एम केयर मनी किसानों के बैंक खातों में सीधे पहुंच जाएगाजो एफआईडी से जुड़े होंगे।

कुल मिलाकरअन्न योजनाअनाज जुताईसप्लाई चेनबाज़ारकीमतेंइनपुट व आउटपुट संबंधी गुणवत्ता विनिर्देश व अन्य डाटा किसानों को ऐपकॉल सेंटरोंएसएमएसमौसम संबंधी डाटा की स्ट्रीमिंगवास्तविक समय मूल्य डाटा स्ट्रीमिंगडीबीटी और सरकारी स्कीमों पर अपडेटआदि उपलब्ध होंगे।

यह सच है कि डिजिटल डेटाबेस पर आधारित प्रेसिशन फार्मिंग कृषि प्रोद्योगिकी में छलांग लगवा सकता है और खेती में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकता हैयदि उसे किसानों के पक्ष में बनाया गया होन कि कॉरपोरेटों के पक्ष में। परंतु अब तक सरकार चुन-चुनकर जो सूचनाएं सार्वजनिक कर रही हैउससे यह धारणा मजबूत हो रही है कि यह पूरी योजना भारतीय किसानों को कॉरपोरेटों के रहमो-करम पर छोड़ देगी। पारदर्शिता का पूर्णतया अभाव हैपर सरकार अपनी योजना को लागू करने पर आमादा है।

दरअसलसरकार ने जनता के समक्ष एमओयू की बात तक नहीं रखी थी न ही उसे सार्वजनिक पटल पर रखा था। जब इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (Internet Freedom Foundation), एक एनजीओ ने पारदर्शिता को बड़ा मुद्दा बनायातभी उसे सार्वजनिक पटल पर रखा गया।

बहुत से अनुत्तरित सवाल

यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि मोदी ने क्यों चुनिंदा कॉरपोरेट्स को पसंद कियाऔर क्यों खुला टेंडर नहीं जारी कियाजिसमें स्टार्ट-अप्स और एमएसएमइज़ (MSMEs) को वरीयता दी जातीये डेटाबेस का प्रबंधन ब्लॉकचेन (blockchain) तकनीकी के जरिये विकेंद्रित तरीके से कर सकते थे और उसके लिए उन दर्जनों ब्लॉकचेन स्टार्टअप्स को काम में लगा सकते थे जो भारत में काम करने लगे हैं।

निजी कॉरपोरेटों को किसानों के लिए डाटा सेवाएं देने के लिए लाइसेंस मिलेंगेपर लाइसेंस देने की शर्तें सरकार द्वारा अब तक तय नहीं की गईं। उसने किसान संगठनोंविपक्षी दलोंराज्य सरकारों की राय तक नहीं लीन ही इतने बड़े बदलाव करने से पूर्व संसद में इस विषय पर चर्चा करवाई।

अनुत्तरित प्रश्न कुछ इस प्रकार हैं:-

1. ऐग्रिस्टैक डाटा कोजो किसानों को उपलब्ध कराया जाना हैक्या सीधे कम्पनियों द्वारा उपलब्ध कराया जाएगाया कि सरकार द्वारा भीक्या जानकारियां निशुल्क दी जाएंगी या फिर शुल्क देना पड़ेगा?

2. यदि केवल निजी कम्पनियां जानकारियां देंगीतो यूज़र फ़ीस पर कोई नियंत्रण होगा?

3. यदि रिटेल कम्पनियां इस डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग खरीदने और बेचने के लिए करेंगीक्या आउटपुट कीमतों के लिए आंतरिक सुरक्षा होगीजैसे कि एमएसपी के साथ जोड़ देनाया कि यह ऐग्रिस्टैक के दायरे से बाहर होगाक्या सरकार ऐसी सुरक्षा का अन्य माध्यमों से प्रबंध करेगी?

4. क्या सम्पूर्ण डेटाबेस सरकार के हाथों में रहेगा और कम्पनियों को अनुमति होगी कि वे उसे चयनित तरीके से चुनिंदा डेटा इस्तेमाल कर सकेंगेउदाहरण के लिये हिमाचल की कोई कम्पनी कोजो केवल सेब का व्यापार करती हैक्यों तमिलनाडु के भिंडी किसानों का डाटा दिया जाएगा?

5. किसानों के निजी डाटा की सुरक्षा के लिए क्या उपाय हैंक्या यह पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल के प्रावधानों के अनुकूल है?

6. वास्तव में ऐग्रिस्टैक कल्याणकारी योजनाओं के संग आधार-लिंकेज पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की भावना का कोई समन्वय नहीं है। आधार के स्थान पर यूनीक आइडेंटिटी नंबर कहने से यह गुणात्मक रूप से भिन्न नहीं हो जाता। क्या ऐग्रिस्टैक भी अंत में अपवर्जनात्मक (exclusionary) बन जाएगा?

7. क्या कम्पनियों द्वारा गलत सूचना देने के लिए दायित्व तय करने का प्रावधान होगाउदाहरण के लिए कीटनाशक या बीज के ब्रांड के बारे मेंजिसके कारण किसानों को हानि हुई हो?

8. कम्पनियों द्वारा किसानों के निजी डाटा सुरक्षा के उलंघन होने पर दंड का विशेष उल्लेख एमओयू (MoU) में क्यों नहीं किया गया?

डॉ. उदय शंकर पुराणिकनिदेशकआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐंड साइबर सिक्युरिटी सर्विसेज़ (Artificial Intelligence and Cyber security Services), एमजीआई इंटरनेशनल बहुराष्ट्रीय कम्पनीजिनका डाटा सिस्टम्स प्रबंधन में 35 वर्षों का अनूभव हैने न्यूज़क्लिक को बताया कि क्योंकि सरकार के पास विशाल भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए क्लाउड (डाटा स्टोरेज) और एआई आधारित डाटा ऐनेलिटिक्स उपलब्ध कराने के लिए साधन नहीं हैतो स्वाभाविक है कि वह निजी कॉरपोरेट घरानों की सेवाएं लेंगे। पर सरकार ही अधिकतर सेवाएं किसानों को सीधे निःशुल्क उपलब्ध कराएगी। फिर सरकार अपने खजाने से टेक कम्पनियों को डेटाबेस संबंधी सेवाएं देने के लिए पैसे देगी। जब कभी सरकार निजी कम्पनियों को डेटा सेवाओं को आउटसोर्स करेगी वे तुरंत ही सुरक्षा प्रबंध धीरे-धीरे लागू करेंगे। मस्लनसरकार के पास संस्थागत अधिसंरचनात्मक ढांचा नहीं है कि वह भारत के प्रत्येक खेत की मिट्टी का परीक्षण कर सके तो वह विशिष्ट क्षेत्रों में यह काम निजी कम्पनियों को सौंप सकती है। ये कम्पनियां किसानों के साथ ठीक वैसे ही व्यापार करेंगे जैसे अन्य क्षेत्रों में कोई व्यापारी करता है।’’

बहरहालडॉ. पुराणिक का आशावाद न ही कृषि मंत्रालय द्वारा जारी की गई ऐग्रिस्टैक की अवधारणा नोट और न ही कॉरपोरेट्स के साथ किये गए एमओयू दस्तावेज़ों से पुष्ट होते हैं। फिरजिन कॉरपोरेटों को सरकार ने साथ लिया हैउनमें से माइक्रोसॉफ्ट ने पहले ही ऐज़्योर फार्मबीट्स और ऐज़्योर मार्केटप्लेस लॉन्च कर दिया है ताकि वह किसानों को एक कीमत के लिए प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान बेच सके। अब एमओयू के तहतयह बड़ी टेक कम्पनी अन्य कम्पनियों को प्रशिक्षित करेगीताकि वे किसानों को ऐप्स के माध्यम से ऐग्रिस्टैक का प्रयोग करवाएं। अमेज़न एक बड़ी ग्लोबल रिटेल कम्पनी है और खुद के द्वारा तय किये गए दामों पर किसानों के उत्पाद को खरीद कर बेच रही है। और अबएमओयू के तहत उन्हें ई-मार्केटिंग के लिए किसानों के वास्ते प्लेटफॉर्म विकसित करने होंगे। ईएसआरआई एक अमेरिकी कम्पनी है जो व्यावसायिक रूप से काम करते हुए जीआईएस डाटा या भौगोलिक सूचना तंत्र डाटा बेचेगीजो खेती के लिए सैटेलाइट-आधारित सूचनाएं होंगीऔर कृषि विभाग के साथ जो एमओयू हुआ हैउसके तहत ये भारतीय किसानों को जीआईएस डाटा बेचेगीपर किस दाम पर यह कोई नहीं जानता। 

स्टार ऐग्रिबाज़ारजिसकी मालिक टाटा की रिटेल कम्पनी इन्फिनिटी हैपहले से ही किसानों को व्यवसायिक भण्डारण सेवाएं उपलब्ध करा रही है और 23 बैंकों के साथ डील कर चुकी है। यह दलाल की भांति कमीशन के लिए किसानों के गोदाम स्टाक पर किसानों को बैंक से कर्ज दिला रही है। अब एमओयू के तहत वह किसानों को कृषि-वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराएगी। इसके मायने होंगे कि कॉरपोरेट स्थानीय राजनीतिज्ञों और दलालों की जगह ले लेंगे और ये किसानों के लिए बड़े कमीशन के बदले बैंक लोन का प्रबंध करेंगे। अब टाटा स्वयं पहले से ही बड़ी ग्लोबल रिटेल कम्पनी वॉलमार्ट के लिए एजेन्ट का काम कर रही है। बदले में वॉलमार्ट टाटाज़ के रिटेल व्यापार में करीब 25 अरब डॉलर यानी 1,85,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगा। मुकेश अम्बानी का जियो प्लैटफार्म सरकार के साथ एमओयू करने वालों में अंतिम थापर अभी से ही वह लक्ष्य बना चुका है कि वह भारत का सबसे विशालकाय रिटेल कपोरेट नेटवर्क बनेगाऔर किसानों से खरीदकर उपभोक्ताओं को माल बेचने के मामले में नम्बर वन होगा! भारतीय किसानों पर तैयार किया जाने वाला पूरा डेटाबेस उनको सपुर्द कर दिया जाएगा। क्या गारंटी है कि वे उसे अपने व्यापार व लाभ के लिए नहीं इस्तेमाल करेंगे?

पतंजलिजो भगवा सत्ता के नज़दीक हैक्रोनी कैपिटलिज़्म का भारतीय-भगवा ब्रान्ड है। वह पहले से ही किसानों से सीधे खरीदे हुए कृषि उत्पाद बेच रहा हैउसने किसानों को अपनी ही कृषि प्रोद्योगिकी बेचकर यह किया है। अब एमओयू के तहत उसकी ज़िम्मेदारी होगी कि किसानों को प्रसिशन फार्मिंग में मदद करे।

भारत जैसे विकासशील देश में कॉरपोरेट लालच उतनी ही बड़ी सच्चाई है जितनी कृषि में बदलाव के लिए निजी हिस्सेदारी की वस्तुगत जरूरत। कुछ बाज़ार विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि भारतीय कृषि का डिजिटलाइज़ेशन कॉरपोरेट घरानों को 24 अरब डॉलर के नए अवसर दिलाएगा। बड़े कॉरपोरेटजिनके पास भारी धन बल और राजनीतिक ताकत है और बिखरे हुए गरीब छोटे किसानो के बीच फ्री मार्केट इंटरफेस में किसका बोलबाला होगा यह हम अनुमान लगा सकते हैं। यदि रिकार्ड देखा जाए तो कई दशकों की कॉरपोरेट फार्मिंग के बाद और कर्नाटक में पेप्सीकोआईटीसी और कृषि निर्यात कम्पनियों के किसान-विरोधी कारनामों के बावजूद सत्तारूढ़ सरकारों ने अबतक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कोई नियंत्रक तंत्र तैयार नहीं किया गया। क्या ऐग्रिस्टैक इससे जरा भी भिन्न होगा?

पूंजी-प्रधान कृषि की सामाजिक लागत

हर हाल मेंऐग्रिस्टैक-आधारित कॉरपोरेट विस्तार सेवा छोटे किसानों के लिए कृषि को अधिक पूंजी-प्रधान बना देगा। उनकी बहुसंख्याजो पहले से ही अलाभकारी कृषि से परेशान हैंकीमतों में कुछ हजार रुपये की बढ़ोत्तरी को झेल नहीं पाएंगे और कृषि को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे। 2001 के सेन्सस के अनुसारकिसानों की संख्या 12 करोड़ 73 लाख थी और 2011 सेन्सस में घटकर 11 करोड़ 88 लाख हुई और मंत्रीजी के अनुसार अब 8 करोड़ रह गई है। यानी, 20 वर्षों में एक तिहाई किसान गायब हो गए!

एनएसएसओ आंकड़ों के अनुसार संख्या और अधिक है-भारत में 2004-05 और 2011-12 के बीच 3 करोड़ 40 लाख किसान कृषि से बाहर हो गए। दूसरी ओर कृषि मज़दूरों की संख्या 2001 में 10 करोड़ 68 लाख से बढ़कर 2011 में 14 करोड़ 43 लाख हो गई थी। यदि हम उस विशाल प्रवासी जनसंख्या को भी जोड़ लें जो गांव से शहर आ गयातो हम कह सकते हैं कि इस दौर में किसानों का सर्वहाराकरण’ व्यापक रहा है। जारी कृषि संकट ही इसका कारण हो सकता है। प्रत्येक किसान परिवार सेजिसने भूमि खोई है और कृषि से बाहर हो गया है, 3-4 सदस्य खेत मज़दूर बन गए हैं।

ऐसे परिदृश्य मेंभले ही डिजिटल सेवाएं मुट्ठी भर धनी किसानों को लाभ दे रही होंकिसानों के ध्रुवीकरण और विभेदीकरण की प्रवृत्ति बढ़नी ही है। ये तभी बच सकते हैं जब सरकार खुद उन्हें ये डिजिटल सेवाएं किसान उत्पादक संगठनों व अन्य छोटे किसान कोऑपरेटिव्स के माध्यम से मुफ्त में उपलब्ध कराए।

सरकार द्वारा पारित किये गए तीन किसान कानूनों और ऐग्रिस्टैक के बीच अंतर-संबंध काफी स्पष्ट है। कृषि कानूनों की भांति यह भी भारतीय कृषि का कॉरपोरेट अधिग्रहण होगा।

भारत की नीलामी!

आश्चर्य की बात तो यह है कि आरएसएस और उसके ढोंगी स्वदेशी सहयोगियों की ओर से प्रतिरोध का एक स्वर तक नहीं है। वह भी ऐसे मुद्दे पर जिसका वास्ता 10-15 करोड़ भारतीय किसानों के भविष्य से है। जहां तक बड़े कॉरपोरेटों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों भारत को नीलाम करने की बात है तो भगवा शासकों ने मनमोहन सिंह के अंतर्गत यूपीए को भी मात दे दी है। अधिकतर लोगों को पता नहीं होगा कि पहले भी एक विश्व बैंक टीम भारत आई थी और ऐग्रिस्टैक लॉन्च करने का प्रशिक्षण दे गई थी। यह वही सरकार है जो केसरिया राष्ट्रवाद के नाम की कसमें खाती है! ऐसी सरकारजो भारतीय समाज के परंपरागत ज्ञान को सुरक्षित रखने और आगे बढ़ाने की डींगे भरती हैअब ऐग्रिस्टैक को विकसित करने हेतु तेज़-तर्रारशहरी और भद्र आईटी विशेषज्ञों को लेकर एक एक्सपर्ट कमिटी नियुक्त कर चुकी हैजिन्हें जनता के लिए लेशमात्र भी चिंता या सहानुभूति नहीं हैन ही शासन में जवाबदेही हैक्योंकि इन्हें कृषि और किसानों के बारे में तनिक भी जानकारी नहीं है।

बिल्ली थैले से बाहर निकल चुकी है। तीन कृषि कानूनों को लाने के बाद मोदी सरकार कृषि के कॉरपोरेटाइज़ेशन और डिजिटलाइज़ेशन के अपने विज़न के साथ आई है। पर वह इसे चोरी से नहीं कर सकती। उसे पारदर्शी होना पड़ेगा और किसानों को भी समझ में आना चाहिये कि उनके भविष्य के साथ क्या कुछ हो रहा है। किसी लोकतंत्र में कोई भी नया कदम सभी स्टेकहोलडर्स के साथ राय-मश्विरा करने के बाद और उनकी पूरी सहमति के साथ ही उठाया जा सकता है।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest