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अध्ययन : सूखती धरा की कोख, आधा देश सूखे की चपेट में

आईआईटी गांधीनगर के मुताबिक इस समय देश का 47 फीसदी हिस्सा सूखे की चपेट में है। उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग मण्डल मुरादाबाद के पिछले 10 साल यानी 2009 से 2018 तक के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इन सभी जनपदों के भूगर्भ जल स्तर में भारी गिरावट देखी जा रही है।
सूखी नहर
बिजनौर में सूखी नहर। फोटो : अजीत सिंह

"जल ही जीवन है" "जल है तो कल है" ऐसे स्लोगन तो आपने कई जगह सुने और लिखे देखे होंगे। और कई शताब्दी पहले अक़बर के नवरत्नों में शुमार अब्दुल रहीम खानखाना ने भी पानी की महत्वता को बताते हुए कहा था "रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून, पानी गये ना उबरे मोती मानस चून" जी हां ये सच भी है क्योंकि जल के बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती। लेकिन पिछले दशक के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भूगर्भ में मौजूद जल का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। और देश का करीब 50% हिस्सा सूखे की चपेट में है। इस गिरते भूजलस्तर को रोकने के लिए सरकारों ने जल के संरक्षण के लिए अनेकों योजनाएं चलाई। लेकिन सरकारें भूजल के गिरते स्तर को रोकने में नाकाम रहीं हैं। और अब यही जल हमारी पहुंच से दूर होता जा रहा है।

देश में सूखे और उससे जुड़ी दूसरी समस्याओं पर सर्वेक्षण और विश्लेषण का काम इस समय आईआईटी गाँधीनगर के जिम्मे है। आईआईटी गांधीनगर की वाटर एंड क्लाइमेट लैब ने इस साल देश में सूखे की स्थिति के ताजे आंकड़े जारी किए हैं। आईआईटी गांधीनगर के मुताबिक इस समय देश का 47 फीसदी हिस्सा यानी करीब आधा देश सूखे की चपेट में है। सूखे की चपेट में देश के इस 47% भूभाग में 16% इलाके ऐसे हैं, जिन्हें अत्यधिक या भयंकर सूखे की श्रेणी में रखा गया है।

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आख़िर भूमिगत जल स्तर के गिरने का क्या कारण है? 

एक तरफ जहां देश में बढ़ती जनसंख्या के चलते जल की आवश्यकता में बेइंतहा वृद्धि हुई है। तो वहीं दूसरी तरफ बढ़ते औद्योगिकीकरण, तेजी से फैलते शहर और फसलों को पैदा करने में अत्याधिक जल के उपयोग की वजह से भूगर्भ में मौजूद जल पर दबाव भी बढ़ा है। परिणाम स्वरूप भूमिगत जल का स्तर भी तेजी से नीचे गिर रहा है। उधर ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन के चलते वर्षा का जल चक्र भी गड़बड़ाया है। वर्षा की कमी और वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से वनक्षेत्र लगातार कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होते जा रहे हैं। नतीजा वर्षा का जल भूगर्भ में समाहित नही हो पा रहा है। और धरती बंजर बन रेगिस्तान में बदलती जा रही है।

ऐसा नहीं है कि भूगर्भ के जलस्तर में यह गिरावट पहली बार देखी जा रही हो। और ऐसा भी नही है कि सरकारों ने जल के संरक्षण और भूमिगत जल के गिरते स्तर को रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया हो। सन् 1972 में केंद्र सरकार ने केंद्रीय भूजल बोर्ड यानी सी.जी.डब्ल्यू.बी की स्थापना घटते भूजल स्तर की मॉनिटरिंग और उसके प्रबंधन के मक़सद से की थी। जिसके लिए देश भर में भूगर्भ जल विभाग ने हजारों पर्यवेक्षीय कूपों को स्थापित किया। जहां भूजल में होने वाले परिवर्तन, जलस्तर की प्रकृति और जल की गुणवत्ता में लम्बे समय से हो रहे उतार चढ़ाव का अध्ययन किया जाता है। 

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हाल

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मण्डल के अंतर्गत पांच जनपद आते हैं। जिसमें मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, रामपुर और संभल जनपद शामिल हैं। इन सभी जनपदों में 39 विकास खंड है। और इन सभी विकास खंडों में उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग ने पर्यवेक्षीय कूपों की स्थापना कर रखी है जिनका अध्ययन करके भूमिगत जल का सर्वेक्षण किया जाता है। इन जनपदों में स्थित 582 पर्यवेक्षीय कूपों में से 244 पर्यवेक्षीय कूप चोक पड़े हैं यानी की बंद है साथ ही इनकी कोई मानिटरिंग भी नहीं हो पा रही है। उत्तर प्रदेश भूगर्भ जल विभाग मण्डल मुरादाबाद के पिछले 10 साल यानी कि 2009 से 2018 तक के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इन सभी जनपदों के भूगर्भ जल स्तर में भारी गिरावट देखी जा रही है अमरोहा जिले में 4.98 मीटर से 8.55 मीटर, बिजनौर में 0.72 मीटर से 12.02 मीटर, मुरादाबाद में 3.67 मीटर से 7.09 मीटर, रामपुर में 1.49 मीटर से 5.92 मीटर और संभल में 5.90 मीटर से 13.84 मीटर तक की गिरावट दर्ज की गई है। मुरादाबाद मण्डल के इन सभी जनपदों के 18 विकास खंड ऐसे हैं जो ओवर एक्सप्लॉइटेड यानी अति दोहन के कारण डार्क ज़ोन घोषित किये गये हैं। जिनमें अमरोहा के पांच विकास खण्ड, बिजनौर में तीन विकास खण्ड, मुरादाबाद के दो विकास खण्ड, रामपुर के चार विकास खण्ड और सम्भल के चार विकास खण्ड हैं। इन्ही जनपदों के 6 विकास खंड क्रिटिकल ज़ोन घोषित हैं यानी यहां  भूगर्भ जल के अति दोहन के चलते गंभीर स्थिति बनी हुई है। और धरा की कोख भी सूखती जा रही है। कृषि विभाग भी इन क्षेत्रों के किसानों को कम पानी से पैदा होने वाली फसलों और खेती के लिए प्रेरित कर रहा है। ताकि भूमिगत जल के दोहन को कुछ हद तक कम किया जा सके।

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क्षेत्रीय किसानों का कहना है कि जल संरक्षण के लिए सरकार ने नहरों का निर्माण कराया और मनरेगा के तहत तालाबों की खुदाई भी कराई। जिससे भूमि के जल का स्तर नीचे ना गिरे, क्षेत्र में जो नहरें हैं उनमें कभी पानी ही नहीं दिखाई देता, हजारों हेक्टेयर भूमि में फैली इन नहरों में सिर्फ बरसात के दिनों में पानी दिखाई देता है। सरकार ने अरबों रुपये खर्च करके नहरें बनवाई और मनरेगा के तहत करोडों रुपये की लागत से तालाब खुदवाये। ताकि भूगर्भ में तेजी से गिरते जल स्तर को रोका जा सके। 

वहीं जनपद बिजनौर में जल संरक्षण के लिए सरकार ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत जनपद की 1128 ग्राम पंचायतों में अब तक 1366 तालाबों की खुदाई की जांच चुकी है वही 229 तालाब अतिक्रमण और विवाद के चलते अधूरे पड़े हैं। सरकार इन तालाबों की खुदाई पर करीब 18 करोड़ रुपये भी खर्च कर चुकी है लेकिन ये तालाब भी पानी की बाट जोह रहे हैं। सरकार के पास कोई ऐसी ठोस योजना नहीं है जिससे इन तालाबों में जल को संरक्षित किया जा सके और गिरते भूमिगत जल के स्तर को रोका जा सके। किसानों को अपनी खेती करने के लिए ट्यूबवेल यानी बिजली के नलकूपों का सहारा लेना पड़ रहा है। जो किसानों को आर्थिक चोट तो पहुंचा ही रह है। साथ ही इससे ज़मीनी पानी का दोहन बहुत ज्यादा हो रहा है। 

पिछले चालीस साल से नलकूप लगाने के व्यवसाय से जुड़े गजराज सिंह और क्षेत्रीय किसानों का कहना है कि आबादी बढ़ने और औद्योगिकरण के चलते भूगर्भ के जल स्तर में गिरावट आ रही है। सरकार की जल संरक्षण की नीति फेल है। पहले सभी गाँव और शहरों में तालाब होते थे जो धरती के पानी को रिचार्ज करते रहते थे। अब सब तालाब खत्म हो गए हैं। लोगों ने उन पर अतिक्रमण कर लिया है। सिंचाई के लिए बनाई गयी नहरों में पानी नहीं होता सरकार ने जो तालाब खुदवाये है उनमें भी पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। इसी कारण क्षेत्र में नलकूपों की तादाद पिछले दस साल में दुगनी हो गयी है। ऊपर से बारिश भी कम हो रही है। अगर सरकार नहरों और तालाबों में लगातार पानी छोड़े तो किसान उस पानी से खेती कर सकता है उसे खेती करने के लिए जमीनी पानी का दोहन नही करना पड़ेगा। अगर भूमिगत जल का दोहन नहीं होगा तो जल स्तर में सुधार हो सकता है। साथ ही भविष्य में होने वाली पानी की किल्लत से कुछ हद तक बचा जा सकता है। अगर समय रहते हमने इस जल को बचाने के प्रयत्न नहीं किये तो वो दिन दूर नहीं जब हम इसी जल की एक एक बूंद को तरस जायेंगें।

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